Sunday, December 1, 2019

 आक्रोश
नवगीत

कागज पर उतरता आक्रोश

भावों की  कचहरी  में
शब्दों के गवाह बना
कलम से सिद्ध करते दोष
और फिर हो जाते खामोश
कागज पर उतरता आक्रोश ।

मोमबत्तियां जल जाती हर बार
जुलूस भी निकाल लिये जाते
पर वासना से उत्पन्न
गंदी नाली के कीड़ों में
अब कहाँ बचा है होश
कागज पर उतरता आक्रोश ।

बालिका संरक्षण गृह में
ही फल फूल रहे
सभी तरह के धंधे
मासूम कहाँ है सुरक्षित
मजबूरी में करती जिस्मफरोश
कागज पर उतरता आक्रोश ।

प्याज  निकाल रहा आँसू
गोड़से पर चल रही राजनीति
बिकने के लिये तैयार बैठे
ये  सफेदपोश
कागज पर उतरता आक्रोश ।

सनद रहे
हम भारत की संतान हैं
ये जन जन का आक्रोश
सदैव क्षणिक न रह पायेगा
उठ खड़ा होगा
अपने अधिकार के लिए,
व्यवस्था कब तक रहेगी बेहोश
कागज पर उतरता आक्रोश ।

स्वरचित
अनिता सुधीर






4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 01 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आ0 सादर धन्यवाद

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  3. सामायिक विषय पर कलम का आक्रोश उभर कर आया है।
    अप्रतिम ‌

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