Saturday, December 28, 2019

गीतिका


रीतियाँ नश्वर जगत की यूँ निभाना चाहिए ,
चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए ।

राख से पहले यहाँ क्यों हो रहा जीवन धुआँ ,
ध्यान चरणों में सदा प्रभु के लगाना चाहिए ।

देह माटी की बनी अभिमान इस पर क्यों करें ,
मोह  माया से परे जीवन बिताना चाहिए ।

ईश है कारक सदा से ,भाव कारक क्यों रखें ,
कर्म से झोली  भरें अब पुण्य पाना चाहिए ।

पाप करते जा रहे क्यों ,धर्म के धारक बनें ,
कीर्ति की शोभित पताका ही दिखाना चाहिए । 

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