Monday, December 9, 2019

इस जमाने में हवा ऐसी चली है अब ,
होश खोकर जी रहे इन आंधियों में सब।

भेड़िये अब घूमते चारों तरफ ऐसे,
लूटते हैं बेटियों की अस्मिता !कैसे
पापियों के पाप से अब नर्क है जीवन
नोच! जिंदा लाश करते दुष्ट ये कैसे ।
फैसला हो शीघ्रता से राह निकले तब।।
इस जमाने में ..

क्यों बिना मक़सद जिये हम जा रहे ऐसे
साँस लेना जिंदगी !सोची कहाँ वैसे।
मौत के पहले किसी के काम आ पाती,
मौत भी शायद ठिठक कुछ देर रुक जाती।
बाण शब्दों के चला चुप बैठते है सब
इस जमाने में .

जल न पाए अब कभी ये बेटियां  वैसे
प्रेम उपवन हो सजा  चहका  करें ऐसे
अब यही उद्देश्य ,जीने का हमारा हो,
हो खुशी जग में  !न कोई बेसहारा हो।
भाव रखते ये सदा  हो आस पूरी अब।
इस जमाने में ..

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...