Tuesday, December 10, 2019



गजल
वक़्त मेरे लिये कुछ निकाला करो।
काम अपने सिरे सब न पाला करो

चार दिन जिंदगी के बचे अब यहाँ,
सन्तुलन अब रहे, कुछ निराला करो ।

साँझ अब जिंदगी की यहाँ हो रही,
वक़्त को साध लो मन न काला करो।

तुम बहुत जी लिये दूसरों के लिये,
खुद कभी को जरा अब संभाला करो ।

दौड़ती ही रही जिंदगी हर घड़ी,
थाम लो अब इसे वक़्त ढाला करो।


अनिता सुधीर

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