Wednesday, December 11, 2019

कहमुक़री 

बाहुपाश में जकड़े जाते,
स्वप्न लोक की सैर कराते।
बिन उसके सूनी है रतिया,
का सखि साजन ,ना सखि तकिया।

रूप सलोना सब मन भाये,
सबके ही वो काम कराये।
तड़पे सब उसके बिन ऐसे,
का सखि साजन ,ना सखि पैसे।

साथ साथ चलता वो रहता,
सीधा साधा कुछ नहि कहता।
गुण ये उसका अतिशय भाया,
का सखि साजन ,ना सखि छाया ।

विरह अग्नि  में पल पल जलती
मिलने को अब आतुर रहती
आस मिलन की  लगती सदियां
का सखि साजन?ना सखि नदियां।

तुम बिन होती है कठिनाई
तुमसे ही ये रौनक छाई
जीवन के पल करते अर्पण
का सखि साजन?ना सखि दर्पण।।
©anita_sudhir








7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 दिसंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,

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  2. वाह! शानदार प्रस्तुति।

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  3. बहुत सुंदर कह मुकरियां।

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