Thursday, March 12, 2020

आईना


मुक्तक
1)
दर्पण तुम लोगों को , आइना दिखाते हो।
बड़ा अभिमान तुमको,कि तुम सच बताते हो।
बिना उजाले के क्या ,अस्तित्व रहा तेरा ,
दायें को बायें कर ,क्यों फिर इतराते हो ।
2)
जब तू करे श्रृंगार प्रिये ,माथे की बिंदिया बन जाऊँ।
हाथों का कँगना बन जाऊँ,ज़ुल्फों पर वेणी सज जाऊं।
तेरे रूप का प्रतिरूप बनूँ,छाया की प्रतिछाया बनूँ
अधरों की लाली बन  जाऊँ,मैं इक आईना बन जाऊं।।
3)
ये दर्पण पर सीला पन था,
या  छाया का पीला पन था ।
आईने को पोछा बार बार ,
क्या आँखो का गीलापन था ।
4)
हर शख्स ने चेहरे पर चेहरा लगा रखा है ।
अधरों पर हंसी, सीने में दर्द सजा रखा है ।
सुंदर मुखौटों का झूठ बताता है आईना ,
और मायावी दुनिया का सच छिपा रखा है।


अनिता सुधीर"आख्या"

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