Tuesday, March 10, 2020

नवगीत


14/14


अहम् की निरंकुश सत्ता
मिटाने जल्लाद आया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया

सूक्ष्म ने फिर सिर उठाया
रूप विकृत ले के आया
स्वाद भोजन तुम बढ़ाते
नाकों चने वो खिलाया
आह अब कीड़ों की लगी
वो यही अवसाद लाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया

कुम्भकरण की निंद्रा ले
संस्कृति सोई है कबसे
सत्य पगडण्डी ढूँढती
लाठी गांधी की कबसे
मौन 'चश्में' से झाँकता
कौन तन फौलाद लाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया।

सोच को नभ लेकर चलें
झूठ दम्भ में  प्रेम  पले
ईश मान अभिमानी को
बैठ चिता पर लगा गले,
जाग गयी ममता दिल में
चूनर औलाद उढ़ाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया।

अनिता सुधीर




No comments:

Post a Comment

माता कालरात्रि  *** कालरात्रि की अर्चना,सप्तम तिथि को कीजिए। काल विनाशक कालिका,शुभंकरी को पूजिए।। रक्त बीज संहार जब,जन्म हजारों रक्त का। दान...