कुंडलिनी
1)
गुब्बारे जब बेचते ,करें विनय !लो आप।
क्षुधापूर्ति को चाहिये,रहा अँगूठा छाप।
रहा अँगूठा छाप,तनय को दूँ सुख सारे।
हो उसका कल्याण ,नहीं बेचे गुब्बारे ।
2)
उसकी सुन कर बात यह, लो गुब्बारे आप।
नेक कार्य सहयोग हो ,करें दूर संताप ।
करें दूर संताप,व्यथा होती है सबकी ।
समझें गहरी बात ,मिटेगी पीड़ा उसकी ।
3)
बच्चे खेलें खेल जब,गुब्बारों के साथ।
रंग बिरंगे रूप में,सपने ले कर हाथ ।
सपने ले कर हाथ,नहीं टूटे ये कच्चे।
सुंदर सा संसार ,बसायें प्यारे बच्चे ।
4)
सज्जा घर की हो रही ,जन्मदिवस है आज।
गुब्बारों को देख कर, बाबा छेड़ें साज ।
बाबा छेड़ें साज ,छिपातीं दादी लज्जा ।
पोते का परिहास ,देख मुख पर ये सज्जा ।
5)
गुब्बारे सम फूल के ,ऊँची भरी उड़ान ।
फुस्स हवा जब हो गयी,निकली सारी शान ।
निकली सारी शान,दिखे अब दिन में तारे।
करना मत अभिमान, फूट जाते गुब्बारे ।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-03-2020) को "रंगारंग होली उत्सव 2020" (चर्चा अंक-3630) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आ0 हृदय तल से आभार
Deleteरचना को स्थान देने के लिए
वाह ! प्रिय अनिता जी | गुब्बारों के लिए बहुत सुंदर कुंडलियाँ लिखी हैं आपने | बचपन में जितने गुब्बारे प्यारे लगते हैं उतनी शायद ही की और चीज | ये बालमन की उड़ान को बहुत ऊँचें ले जाते हैं | सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं |
ReplyDeleteरेणु जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
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