दोहा छन्द
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होली के त्यौहार में,जीवन का उल्लास ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास।।
बहन होलिका गोद में, ले बैठी प्रहलाद।
रहे सुरक्षित आग में ,ये था आशीर्वाद ।।
अच्छाई की जीत में ,हुई अहम् की हार ।
दहन होलिका में करें ,अपने सभी विकार ।।
अभिमानी के अंत का ,सदा रहा इतिहास
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
टेसू लाली फैलती ,उड़ता रंग गुलाल ।
मन बासंती हो रहा ,फागुन रक्तिम गाल ।।
पीली सरसों खेत में,कोयल कुहुके डाल।
लगे झूलने बौर अब ,मस्त भ्रमर की चाल।।
बच्चों की टोली करे,पिचकारी की आस ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
होली के हुडदंग में ,बाजे ढोल मृदंग।
नशा भांग का बोलता,तन पर चढ़े तरंग।।
रंग लगाती सालियां, छिड़ी मनोरम जंग।
दीदी देखें क्रोध में,पड़ा रंग में भंग ।।
करें गली के लोग भी,भौजी सँग परिहास,
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
होली क्या खेलें सखी ,मन में उठती पीर ।
देखा खूनी फाग जो,धरी न जाये धीर ।।
हुआ रंग आतंक का ,छिड़ी धर्म की रार ।
दहन संपत्ति का किया ,लगी आग बाजार।।
जन जन में सद्भावना,मिल कर करें प्रयास।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
अनिता सुधीर "आख्या"
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-03-2020) को "होलक का शुभ दान" (चर्चा अंक 3637) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के महापर्व होलिकोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आ0 हार्दिक आभार
Deleteहोली क्या खेलें सखी ,मन में उठती पीर ।
ReplyDeleteदेखा खूनी फाग जो,धरी न जाये धीर ।।
बहुत ही शानदार लाजवाब दोहे होली पर...
वाह!!!!
जी सादर अभिवादन
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