अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।
जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
अचेतन में अस्ति से नास्ति
का जीवन है बड़ा कठिन ।
अस्थि ढांचा है पड़ा हुआ
मन देख कर ये द्रवित हुआ
ये कैसी परिस्थिति है,जब
जीवन अस्तित्व विहीन हुआ
सांसों के आने जाने के क्रम में
उपकरणों का सहारा है
अपनों के मुख पर मायूसी
नियति से मानव हारा है ।
©anita_sudhir
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२२-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१३"साँस"( चर्चाअंक -३६४८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
जी हार्दिक आभार सखी
Deleteभावपूर्ण, सार्थक, हृदय स्पर्शी सृजन सखी।
ReplyDeleteधन्यवाद सखि
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजब जीर्ण शीर्ण काया मे
ReplyDeleteक्लान्त शिथिल हो जाये मन
अचेतन में अस्ति से नास्ति
का जीवन है बड़ा कठिन । ''आज का सत्य'' बहुत ही खूब लिखा अनीता जी
वेंटिलेटर पर पड़े इंसान की उपजी पीड़ा
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन।
धन्यवाद सखी
Deleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय सखी अनीता जी।
ReplyDeleteप्रिय सखि को बहुत धन्यवाद
Deleteसुंदर सृजन ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteजी शुक्रिया
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