Monday, March 16, 2020

साँस



अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक  जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।
जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
अचेतन  में अस्ति से नास्ति
का जीवन है बड़ा कठिन ।
अस्थि ढांचा है पड़ा हुआ
मन देख कर ये द्रवित हुआ
ये कैसी परिस्थिति है,जब
जीवन अस्तित्व विहीन हुआ
सांसों के आने जाने के क्रम में
उपकरणों का सहारा है
अपनों के मुख पर  मायूसी
नियति से मानव हारा है ।



©anita_sudhir

14 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२२-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१३"साँस"( चर्चाअंक -३६४८) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

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    1. जी हार्दिक आभार सखी

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  2. भावपूर्ण, सार्थक, हृदय स्पर्शी सृजन सखी।

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. जब जीर्ण शीर्ण काया मे
    क्लान्त शिथिल हो जाये मन
    अचेतन में अस्ति से नास्ति
    का जीवन है बड़ा कठिन । ''आज का सत्य'' बहुत ही खूब ल‍िखा अनीता जी

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    1. वेंटिलेटर पर पड़े इंसान की उपजी पीड़ा

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  5. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सृजन।

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  6. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय सखी अनीता जी।

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    1. प्रिय सखि को बहुत धन्यवाद

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  7. सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार

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