कुंडलिनी
1)
भाई चारा लुप्त अब ,कैसा बना समाज ।
मीठी वाणी बोल के ,खंजर चलते आज ।
खंजर चलते आज,बढ़ी रिश्तों में खाई ।
मिटा दिलों के रार,रहें निर्मल मन !भाई ।
2)
भाई चारा नींव ही ,भारत की पहचान।
सर्व धर्म समभाव से,बढ़े तिरंगा मान ।
बढ़े तिरंगा मान,पटे नफरत की खाई ।
उन्नत होगा देश ,रहें मिल जुल कर भाई ।
अनिता सुधीर
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१५-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१२ "भाईचारा"(चर्चा अंक -३६४१) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
जी सादर
Deleteभाईचारा पर बहुत ही सुंदर कुंडलिनी अनीता जी ,सादर नमन
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
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