तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Tuesday, December 28, 2021

अधूरे सपने


 स्वप्न अधूरे कह रहे

चलो गगन की ठाँव।


काँटे साथी राह के

 मंजिल खड़ी सुदूर

बोल उठे हैं घाव भी

थक कर होते चूर

बनी पैंजनी बेड़ियाँ

घायल करती पाँव।।


मन पक्षी बन उड़ रहा

मार कुलाँचे जोर

फिर सूरज की रश्मियाँ

पकड़ाती हैं छोर

देख हुए तब बावरे

शीघ्र मिले वो गाँव।।


ख्याली पुलाव कब पके

चाहे भट्टी आँच

ताप सहे परिश्रम का

फिर निखरे है काँच

नैन खोल के सो रहे

मुस्काती तब छाँव।।


अनिता सुधीर

चित्र गूगल से

Monday, December 27, 2021

संकल्प


संकल्प

शुभारम्भ संकल्प से ,परम्परा प्राचीन।
ध्येय सिद्धि की पूर्णता,रहिये इसमें लीन।।

सुप्त पड़ी क्षमता जगा,शक्ति मानसिक साध।
एक ज्योति संकल्प की,जलती रहे अबाध ।।

सदाचार के ह्रास से, हुई सभ्यता भार।
भूल गये संकल्प वो,जो जीवन आधार।।

दृढ़ इच्छा रख प्रण करें,यही बने संकल्प।
जीवन के निर्माण में ,संशय रखें न अल्प।।

शक्ति बड़ी संकल्प में,कहते संत सुजान ।
है अनगिन सम्भावना,कठिन कार्य आसान।।

अनिता सुधीर

Saturday, December 25, 2021

महामना प0 मदन मोहन


शत शत नमन

पच्चीस दिसंबर याद रहे,देवदूत जन्मा था एक।

लोक हितैषी योगी शिक्षक,कार्य किए थे जिसने नेक।। 


संस्कृत के विद्वान रहे थे,और वकालत से पहचान। 

लक्ष्य समाज सुधार रखे जब,कर्मवीर का कार्य महान।।


राष्ट्र निर्माण के सपने में,शिक्षा को दें सदा महत्व।

काशी का हिंदू विद्यालय,दिया युवाओं को दायित्व।।


चोरी चोरा केस लड़ा जब,जीत गए कितने अभियुक्त।

दो दल में फिर साध संतुलन,प्रण लेते अब होना मुक्त।। 


तम को दूर भगाकर मोहन,दें अनुपम आलोकित ज्ञान।

सत्यमेव नारा देकर के,किया धर्म संस्कृति उत्थान।।

Friday, December 24, 2021

वृद्धावस्था

 चित्र गूूूगल से 
वृद्धावस्था
***
नींव रहे ,
ये सम्मानित बुजुर्ग
मजबूत हैं इनके बनाये दुर्ग
छत्रछाया में जिनके पल रहा  
सुरक्षित आज का नवीन युग..
परिवर्तनशील जगत में 
खंडहर होती इमारतें 
और उम्र के इस पड़ाव में ..
निस्तेज पुतलियां,भूलती बातें
पोपला मुख ,आँखो में नीर 
झलकती व्यथा ,अब करती सवाल है ...
मेरे होने का औचित्य क्या ..
क्या मैं जिंदा हूँ ....
तब स्पर्श की अनुभूति से
अपनों का साथ पाकर
दादा जी
जो जिंदा है बस
वो थके जीवन में  फिर जी उठेंगे ....
वृद्धावस्था अंतिम सीढ़ी  सफर  की
समझें ये पीढ़ी जतन से
जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
तब अस्ति से नास्ति
का जीवन  बड़ा कठिन ।
अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक  जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।"
जो बोया काटोगे वही 
मनन करें 
सम्मान  दे इन्हें
पाया जो प्यार इनसे , 
शतांश भी लौटा सके इन्हें
ये तृप्त हो लेंगे.. 
ये फिर जी उठेंगें ...

अनिता सुधीर 

Wednesday, December 22, 2021

कहमुक़री के बिम्ब

सव
 
स्वरचित कहमुक़री

क्लांत चित्त को शांत करे जो
पल में धमके नहीं डरे वो
मिली प्रीति की फिर से थपकी
का सखि साजन! ना सखि झपकी।।

अनिता सुधीर


चित्र गूगल से साभार

नवगीत


कहमुक़री के बिम्ब अब

ढूँढ़ रहे नित स्वाँग


दीवारों ने कान दे

सुनी सखी की बात

कर्ण सुने मृदुहास जो

जागे सारी रात

भरम सखी को घेरता

पी कर आयी भाँग।।


छेड़-छाड़ कर चूनरें

बाँधें प्रीतम डोर

एक पहेली चल पड़ी

आज भिगोने कोर

चार चरण में खेल कर

सखियाँ खींचें टाँग।।


यौवन इठलाता चला

लाज करे शृंगार

भेद छिपा कर प्रश्न फिर

करने चला दुलार

दो सखियों की बात में

भरता बिम्ब छलाँग।।


अनिता  सुधीर


Tuesday, December 21, 2021

गीतिका

आस का सूरज उगा कर बात करनी चाहिए।

बर्फ जमती उर पटल पर वह पिघलनी चाहिए।।



उष्णता की नित कमी से त्रास बढ़ता जा रहा

दृश्य ओझल हो रहा अब धुंध मिटनी चाहिए।।


नित कुटिलता को बढ़ाने अब शकुनि घर घर रहें

ध्येय जिनका यह रहा है रार मचनी चाहिए ।।


शून्य होती भावना में धीरता की है कमी

धैर्य की फिर बूँद से अब झील भरनी चाहिए।।


मौन हो अभिव्यक्तियाँ अब दृग पलक पर क्यों सजें

शब्द मुखरित हो सकें मुस्कान मिलनी चाहिए।।



अनिता सुधीर आख्या

Monday, December 20, 2021

इंद्रधनुष

 

दोहे

दोहे


रंग चुरा लूँ धूप से, संग नीर की बूँद।

इंद्रधनुष हो द्वार पर, देखूँ आँखे मूँद।।


तम के बादल छट रहे, दुख की बीती रात।

इंद्रधनुष के रंग ले, सुख की हो बरसात।।


रंगों के इस मेल में, छुपा सुखद संदेश।

इंद्रधनुष बन एक हों, उत्तम फिर परिवेश।।


सात रंग के अर्थ में, कितने सुंदर कथ्य।

धरा गगन जल सूर्य के, लिए हुए हैं तथ्य।।


कभी उदासी घेरती, कभी हुआ मन क्लांत।

इंद्रधनुष के रंग फिर, करे चित्त को शांत।।


अनिता सुधीर

Saturday, December 18, 2021

नयी सोच

 शीत लहर का  प्रकोप चरम सीमा पर था । शासन के आदेश अनुसार सभी विद्यालय बंद हो गये थे ।बच्चों की छुट्टियाँ थी इतनी ठंड में सभी  काम निबटा  लेकर नीता  रज़ाई  में घुसी ही थी ,कि दरवाज़े  की घंटी बजी ।

इतनी ठंड में  कौन आया ,नीता बड़बड़ाते हुए उठी ।

(दरवाजे पर कालोनी के कुछ बच्चों और लड़कों को देखकर )

नीता - तुम लोग इतनी ठंड में ?

रोहन - आंटी एक रिक्वेस्ट है आपसे ,यदि कोई पुराने गर्म कपड़े ,कम्बल आदि आपके पास हो तो प्लीज़ साफ़ कर के उसे  पैक कर दीजिए ,हम लोग उसे दो तीन दिन में आकर ले जाएँगे ।

नीता - (आश्चर्य से  )तुम लोग इसका क्या करोगे ?

रोहन - (जो इन सबमें सबसे बड़ा  कक्षा  १२ का छात्र था ) 

आंटी  इतनी ठंड पड़ रही है,कुछ बच्चों को ठिठुरते देखा तो हम सबने ये सोचा कि इनकी  सहायता कैसे करें !

तो हम सभी ने ये तय  किया  कि सबके घर में पुराने  छोटे कपड़े होते ही हैं  वो  इकट्ठा कर इन ज़रूरतमंद लोगों को दे सकते हैं ।उनकी क्रिसमस और नए साल का  गिफ़्ट हो जाएगा  ,ठंडक से आराम और हमारी छुट्टियों का सदुपयोग भीं हो जाएगा ।

नीता - मंत्रमुग्ध सी रोहन की बात सुन कर , बेटा मैं तुम्हारे  विचारों से बहुत प्रभावित हुई हूँ ,क्या तुम लोगों ने अपने घर में बात कर ली है !

रोहन - आंटी पापा को बताया था , वो बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने हमारी पूरी सहायता करने को कहा है ।ये सब  बाँटने में वो हमारे साथ होंगे ।

नीता - (सोचते हुए )धन्य  हैं  रोहन के माता पिता जिन्होंने इतने अच्छे संस्कार दिए । जब आज की पीढ़ी नए साल की पार्टी  में नशे में चूर  हो  डान्स में डूब जाती है तो ये विचार समाज में एक नयी सुबह ले कर आयेगा ,निश्चिन्त हूँ  जब तक ये संवेदनशीलता हमारी सोच में रहेगी हमारी संस्कृति की रक्षा सदैव रहेगी । मुस्कुराते हुए वो गर्म  कपड़े निकालने चल दी थी ::

अनिता सुधीर

Thursday, December 16, 2021

दहेज (कानून का अनुचित लाभ)


 चित्र गूगल से


काल चले जब वक्र चाल में

बिना बिके दूल्हा डरता


सात वर्ष ने दाँव चला अब

घर की हँड़िया कहाँ बिके

धन की थैली प्रश्न पूछती

छल प्रपंच में कौन टिके

अदालतों से वधू पक्ष फिर

खेत दूसरों के चरता।।


चिंता लाड़ जताती सबसे

नाच रही घर के अँगना

सास ननद अब सहमी सोचें

बचा रहे चूड़ी कँगना

पुरुष घरों के छुपे खड़े हैं

व्यंग्य उदर को फिर भरता।।


कोर्ट-कचहरी के नियमों को

घूँघट से दहेज  पढ़ता

अपने दोष छिपाकर सारे

वर की पगड़ी पर मढ़ता

तारीखों में सबको फाँसे

तहस-नहस जीवन करता।।


अनिता सुधीर





















Monday, December 13, 2021

काशी



धर्म और अध्यात्म का,लेकर रूप अनूप।

विश्वनाथ के धाम का,देखें भव्य स्वरूप।।


वरुणा असि के नाम पर,पड़ा बनारस नाम।

घाटों की नगरी रही,कहें मुक्ति का धाम।।


घाटों के सौंदर्य में,है काशी की साख।

गंग धार की आरती,कहीं चिता की राख।।


विश्वनाथ बाबा रहे, काशी की पहचान।

गली गली मंदिर सजे,कण कण में भगवान।।


गंगा जमुनी मेल में रही बनारस शान।

तुलसी रामायण रचें, कबिरा संत महान।।


कर्मभूमि उस्ताद की,काशी है संगीत।

कत्थक ठुमरी साज में,जगते भाव पुनीत।।


काशी विद्यापीठ है, शिक्षा का आधार।

हिन्दू विद्यालय लिए,'मदन' मूल्य का सार।।


दुग्ध कचौरी शान है, मिला पान  को मान।

हस्त शिल्प उद्योग से, 'बनारसी' पहचान।।


नित्य शवों की त्रासदी,भोग रहें हैं लोग।

करें प्रदूषित गंग को, काशी को ही भोग।।


बाबा भैरव जी रहे, काशी थानेदार।

हुये द्रवित अब देख के, ठगने का व्यापार।।


धीरे चलता यह शहर,अब विकास की राह।

मूल रूप इसका रहा,जन मानस की चाह।।


अनिता सुधीर


Sunday, December 12, 2021

अमृत महोत्सव

 



चित्र गूगल से

पदपादाकुलक छन्द


है अमृत पर्व की नव बहार।

अब आत्म बोध का हो विचार।।


नित देश प्रेम की जले ज्योति

मिल लक्ष्य साध लो सब अपार।।


बलिदान कथ्य जो अमर आज

हम चुका सकें उनका उधार


कर्तव्य भाव को रख प्रगाढ़,

मिल पूर्ण करें अमरत्व सार।।


हों स्वर्ण विहग के नव्य पंख,

सुन मातु भारती की पुकार।।


अनिता सुधीर आख्या


Friday, December 10, 2021

विडंबना

 

रो रही है उम्र कच्ची

जब कुपोषण को जिया है।


भूख तड़पे नित उदर में

जब पतीली ही उबलती

हाथ दो ही खींचते घर

आठ की जो आस पलती

रोग को मिलता निमंत्रण

रक्त फिर आकर पिया है।।


थाल भरते व्यंजनों से

फिर उदर नखरे दिखाता

पूड़ियों को छोड़ कर तब

स्वाद का तड़का लगाता

ढूँढ़ते कूड़ा रहे कुछ

बीन कर रोटी लिया है।।


वृक्ष ने कीमत चुकायी

अन्न हो सब थालियों में

आदतों की मौजमस्ती

अन्न बहता नालियों में

है दुखद यह बात कितनी

ब्रह्म अपमानित किया है।।


लोक हित में हों समर्पित

नित यही कर्त्तव्य करना

श्रेष्ठता ही धर्म हो अब

अन्न का सब मान रखना

लक्ष्य हमको साधना है

ये वचन भू को दिया है।।


अनिता सुधीर आख्या

















Thursday, December 9, 2021

कीर्ति ध्वज


 चित्र गूगल से


कीर्ति ध्वज


कीर्ति ध्वज जब हाथ थामे

है शिखर भी पाँव में फिर


शीत भी जब काँपती-सी

धमनियों में रक्त उबले

हिम कणों की चादरों में

है तिरंगा श्रेष्ठ पहले

प्राण भी बाजी लगाता 

पर्वतों के ठाँव में फिर।।

कीर्ति ध्वज..


हौसला पहुँचे चरम पर

मुश्किलें कब रोकतीं पग

जब विजय उद्घोष करता

गर्जना से गूँजता जग

सरहदों का गान होता

राष्ट्र के हर गाँव में फिर।।


कीर्ति ध्वज..


वीरता डंका बजाकर

धूल बैरी को चटाए

काल सीना तान कर नित

शत्रु की हस्ती मिटाए

युद्ध जब इतिहास रचता

देश ध्वज की छाँव में फिर।।


कीर्ति ध्वज..



अनिता सुधीर आख्या



Wednesday, December 8, 2021

विवाह पंचमी

 विवाह पंचमी की शुभकामनाएं



।।१।।

उर लाज भरे पग साध चलीं, सुकुमारि सिया वरमाल लिए।

अति प्रेम भरें वर को निरखें, मुख तेज कपोल गुलाल लिए।।

शुभ सुंदर रूप लखें वधु का, जन हर्षित हैं सुर ताल लिए।।

सखि मंगलचार करें सँग में, वर पूजन का शुभ थाल लिए।।


।।२।।

अति विह्वल जान सखी कहतीं,अब लाज तजो कर माल उठाओ। 

प्रभु को लख क्यों सुध भूल रही, उनको वरमाल गले पहनाओ।।

कर पंकज नाल समान उठा, विधु मान उन्हें अब अर्घ्य चढ़ाओ।

जब चेतन-शक्ति प्रतीक मिले ,जग जीवन के अब स्वप्न सजाओ।।


अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, December 7, 2021

महान


महान
दोहावली

मन के ही विश्वास से, पत्थर में भगवान।
कण-कण को हम पूजते,संस्कृति रही महान।।

मनुज धर्म की श्रेष्ठता, करिये कार्य महान।
राजनीति से दूर हो , रखें देश का मान ।।

देवि रूप में पूजते, फिर नारी अपमान।
कैसा ये पाखंड है ,भूले अर्थ महान।।

प्रण लघु मन में ठान के, करिए कार्य महान।
सत्य संकल्प से बने,मानव दृढ़ बलवान।।

अपने लहु की मसि बना,गाथा लिखी महान ।
अमर तिरंगा कर गए, भारत वीर जवान ।।

अनिता सुधीर


Sunday, December 5, 2021

लव जिहाद


*लव जिहाद*

चित्र गूगल से साभार

प्रेम जाल में फाँस कर

फिर तितली पर वार करें


पंखों पर जब पुष्प उगे

सूरज लेने दौड़ी थी

मस्ती ने थैले में फिर

भरी न कोई कौड़ी थी

पदचिन्हों की ताली भी

खुशियों पर अधिकार करे।।


बाज उसाँसे भर-भर कर

झूठे दाने फेंक रहा

मीन फाँस कर मुख में रख

नाम धर्म का सेंक रहा

रक्त सने मासूमों पर

शोषण को हथियार करे।।


तभी सियासी जामे ने

प्रेम गरल का रूप धरा

भीड़ तंत्र ने कुचला जो

प्रीत भाव फिर कूप गिरा

मित्र बना दीपक ही क्यों

जीवन को अंगार करे।।


अनिता सुधीर


Saturday, December 4, 2021



तोरण द्वारे पर सजे
बाजे मंगल गीत।
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

सात जन्म के प्यार को 
बाँधा तेरे साथ
रचा प्रेम अनुभूतियां
थामा प्रीतम हाथ
बंधन जन्मों का रहे
मधुरम प्रणय पुनीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

पीहर से पी घर चली
स्वप्न सुनहरे बाँध
मन मंदिर में साजना
मिला तुम्हारा काँध
प्रेम कवच विश्वास का
संबंधों की जीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

प्रेम सरिस दूजा नहीं
यही प्रणय का सार
हृदय प्रेम परिपूर्णता
सजा सकल संसार
मन कोयल सा कूकता
अंग अंग संगीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, December 3, 2021

डॉ राजेंद्र प्रसाद



डॉ राजेंद्र प्रसाद

3 दिसंबर 1884 - 28 फरवरी 1963


राष्ट्रपति भारत के

थे प्रथम बाबू राजेंद्र।

सादगी मूरत में

देश की आशा का केंद्र।।


त्याग सादगी की मूरत में,थे राजेंद्र प्रसाद महान।

नवनिर्माता भारत के थे,प्रथम राष्ट्रपति का सम्मान।


प्रतिभाशाली छात्र रहे जो,बनते शिक्षक और वकील। 

सभी मुकदमा जीतें बाबू, देते अद्भुत तर्क दलील।।


भाषाओं के ज्ञानी का था,सादा जीवन उच्च विचार। 

पहनावा साधारण सा था, सेवा व्रत जीवन आधार।।

 

नहीं व्यक्तिगत चाह रखी थी,धन-दौलत का कब था मोह। 

गांधी दर्शन का चिंतन कर,जीवन को लेते वो टोह।।


मातृभूमि की सेवा करके,सब के मुख पर दी मुस्कान। 

अर्थशास्त्र लिख खादी का,बने देश के रत्न महान।।


अनिता सुधीर आख्या


Thursday, December 2, 2021

तेल बाती को पिलाऊँ


 चित्र गूगल से साभार

काँपती लौ श्वास चाहे

तेल बाती को पिलाऊँ


कठघरे तन की सलाखें

दागती हैं रीतियों को

फिर धुँआ कैसे सँभाले

राख होती नीतियों को

तब शिखा की दीप्ति सोचे

मर्म जीवन जान पाऊँ।।


फूस की छत पूछती है

खम्भ तेरा क्या ठिकाना

छप्परों की मौज मस्ती

भरभरा कर फिर गिराना

ढाल पर जीवन डरा है

अग्नि से तृण को बचाऊँ।


सुर लहरियाँ डूबतीं अब

ताल तिनके ढूँढ़तीं है

पृष्ठ थक कर रो रहे जो

लेखनी सिर फोड़ती है

व्याकरण उलझा हुआ सा

छन्द कैसे छाँट लाऊँ।।


Wednesday, December 1, 2021

महर्षि पतंजलि



चित्र गूगल से साभार
*मदिरा सवैया*
।। १ ।।
पावन भू पर जन्म लिए,मुनि भारत गौरव गान लिखे।
दर्शन योग पतंजलि का,ऋषि धातु रसायन मान लिखे।।
योग विधान प्रसिद्ध हुआ,परिभाषित सूत्र महान लिखे।।
भाष्य विवेचन सार लिखे,वह संस्कृति का अवदान लिखे।।
।।२।।
अष्ट प्रकार सधे तन ये,छह दर्शन में उत्थान लिखे।
औषधि वैद्य पितामह थे,तन साधन का तप ज्ञान लिखे।।
जो उपचार किए मन का,मन चंचल का वह ध्यान लिखे।
रोग विकार मिटा जग का,वह भारत की  पहचान लिखे।।

अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, November 30, 2021

दोहे

चिंगारी अफवाह की,झूठ पसारे पाँव।
उठता रहता है धुँआ,सत्य माँगता ठाँव।।

जले ज्योति संकल्प की, सतत मनोबल साध।
खड़ी सफलता द्वार पर, लेकर हर्ष अगाध।।

झूठ लबादा ओढ़ के,चकाचोंध में मस्त।
विज्ञापन बाजार में,मानव जीवन त्रस्त।।

नेता बाँटें रेवड़ी, नाम दिए अनुदान।
पासा फेंकें लोभ का,राजनीति विज्ञान।।

सरकारी अनुदान का,करिए उचित प्रयोग।
जनता का धन है लगा, भूल रहे यह लोग।।

अनिता सुधीर

Sunday, November 28, 2021

शून्यता


 

बोले मन की शून्यता

क्यों डोले निर्वात


कठपुतली सी नाचती

थामे दूजा डोर 

सूत्रधार बदला किये 

पकड़ काठ की छोर

मर्यादा घूँघट लिए

सहे कुटिल आघात।।


चली ध्रुवों के मध्य ही 

भूली अपनी चाह 

पायल की थी बेड़ियां

चाही सीधी राह

ढूँढ़ रही अस्तित्व को 

बहता भाव प्रपात।।


अम्बर के आँचल तले

नहीं मिली है छाँव

कुचली दुबकी है खड़ी

आज माँगती ठाँव

आज थमा दो डोर को

पीत पड़े अब गात।।


चित्र गूगल से साभार

Thursday, November 25, 2021

सृजन पीर का माधुर्य


चित्र गूगल से साभार

*सृजन पीर का माधुर्य*

सृजन पीर माधुर्य लिए
आनन्द लुटाती है

क्षणिक चित्र उर माटी में
दृश्य बीज अकुलाए
मसि कागद जब खाद बने
शब्द कहाँ सो पाए
सृजनहार कवि फिर जन्मा
वो कलम लुभाती है।।

बीज अँधेरे में खेले
करे उजाला खटखट
चीर धरा को फिर ओढ़े
हरित आवरण झटपट
खड़े बिजूका हाँड़ी ले
वो धरा सुहाती है।।

स्वप्न सींचते कोख सदा
आशाओं का स्पन्दन
करे गर्भ जब अठखेली
तब सरगम सी धड़कन
माँ जन्मी अपने तन जब
वो भाव अघाती है।।

अनिता सुधीर आख्या

 

Tuesday, November 23, 2021

गीतिका

छन्द से श्रृंगार करती,नित्य पावन गीतिका।
बैठती उपवन सजा कर, हिन्द आँगन गीतिका।।

शिल्प का जामा पहन कर, लेखनी में कूकती,
झूम कर साहित्य कहता,है लुभावन गीतिका।।

भाव की जब गूढ़ता को,पंक्तियां दो ही कहें
कुंभ में वारीश भरती,दिव्य चिंतन गीतिका।।

लालिमा नीरव लिए जब,शब्द इठलाते चले,
काव्य की फिर रागिनी में, बिम्ब मंथन गीतिका।।

गा रहीं चारों दिशाएं,हो अमर चिरकाल तक,
हैं प्रफुल्लित फिर जनक भी, देख गुंजन गीतिका।।

Monday, November 22, 2021

बिंदिया

 

चित्र गूगल से साभार

बिंदिया ललाट की


किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली


गुलमोहर के रंग चुरा

मुखड़ा लगता तपने

दृग पगडण्डी फिर देखे

कुछ कजरारे सपने

आहट पगचापों की तब

करती आँख मिचोली।।

किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली।।


भिन्न रूप आकार लिए

सूर्य बिम्ब भी होता

दूज चाँद श्यामल मुख पर

ओढ़ सादगी सोता

बिंदु वृत्त का रूप खिला

फबती रही मझोली।।

किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली।।


दर्पण के आलिंगन या

प्रणय साक्ष्य में रहती

नींद चोर के ठप्पे से

स्वेद कणों सी बहती

जब त्रिनेत्र का रूप धरूँ

थर थर काँपे गोली।।

किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली।।


अनिता सुधीर आख्या


Saturday, November 20, 2021

Wednesday, November 17, 2021

कृतज्ञता



कुंडलिया


आभारी हृद से रहें, लेकर भाव कृतज्ञ।

शब्द मात्र समझें नहीं, यह जीवन का यज्ञ।।

यह जीवन का यज्ञ, मनुज का धर्म सिखाता।

समता का ले भाव, जगत का दर्प मिटाता।।

पूरक बने समाज, मान के सब अधिकारी।

करके नित्य प्रयोग, अर्थ समझें आभारी।।


अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, November 16, 2021

प्रेम


*गेरुए सी छाप तेरी*



मखमली से भाव रखते
गेरुए सी छाप तेरी

साथ चंदन सा महकता
प्रेम अंगूरी हुआ है
धड़कनों की रागिनी में
रूप सिंदूरी हुआ है
सोचता मन गाँव प्यारा
ये डगर रंगीन मेरी ।।

देह के अनुबंध झूठे
रोम में संगीत बहता
बाँसुरी की नाद बनकर
दिव्यता को पूर्ण करता
जो मिटा अस्तित्व तन का
अनवरत अब काल फेरी।।

जब अलौकिक सी कथा को
मौन की भाषा सुनाती
उर पटल नित झूमता सा
प्रीत नूतन गीत गाती
स्वप्न को बुनते रहे हम
कष्ट की फिर दूर ढेरी।।

स्वरचित
अनिता सुधीर

Monday, November 15, 2021

बिरसा मुंडा


 जनजातीय गौरव दिवस

आदिवासी मुंडा
क्रांति का करते आगाज।
आस वनरक्षक की
अंत हो रानी का राज।। 


एक आदिवासी नायक ने,आजादी की थाम मशाल। 
क्रांतिवीर बिरसा मुंडा ने,उलगुलान से किया कमाल।।

धरती आबा नाम मिला है,देव समझकर पूजें आज।
कलम धन्य है लिखकर गाथा,लाभान्वित है पूर्ण समाज।।

शौर्य वीर योद्धा थे मुंडा,जल जंगल के पहरेदार।
उलगुलान में जीवित अब भी,माँग रहे अपने अधिकार।। 

सबके हित की लड़ी लड़ाई,नहीं दिया था भूमि लगान। 
एक समाज सुधारक बन के, कार्य किए थे कई महान।। 

विष देकर गोरों ने मारा,छीन सके क्या क्रांति विचार।
परिवर्तन की आंधी लेकर,जन्मों फिर से हर घर द्वार।। 

अनिता सुधीर आख्या


Sunday, November 14, 2021

देवोत्थानी एकादशी



दोहा

प्रबोधिनी एकादशी,आए कार्तिक मास।

कार्य मांगलिक हो रहे,छाए मन उल्लास।।

चौपाई

शुक्ल पक्ष एकादश जानें।

     कार्तिक शुभ फलदायक मानें।।

चार मास की लेकर निद्रा।

      विष्णु देव की टूटी तंद्रा।।

श्लोक मंत्र से देव जगाएँ ।

     प्रभु चरणों में शीश झुकाएँ।।

तुलसी परिणय अति पावन है।

      मंत्र दशाक्षर मनभावन है।।

भाव सुमन को उर में भरिये ।

     विधि विधान से पूजन करिये।।

दीप धूप कर्पूर जलाएं।

    माधव को प्रिय भोग लगाएं।।

व्रत निर्जल जब सब जन रखते।

    दीन दुखी के प्रभु दुख हरते ।।

महिमा व्रत की है अति न्यारी।

     पुण्य प्रतापी सब नर नारी।।

दोहा

पाप मुक्त जीवन हुआ,हुआ शुद्ध आचार।

आराधन पूजन करे,खुले मोक्ष के द्वार।।

अनिता सुधीर


Saturday, November 13, 2021

बाल दिवस विशेष

चित्र गूगल से साभार

कच्ची माटी

नाटिका

*दृश्य  1 *

पार्क का दृश्य 


रमा... क्या जमाना आ गया है ,आजकल के बच्चे जब देखो तब मोबाइल में डूबे रहते हैं ,पता नहीं कैसे पेरेंट्स  हैं जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते ,और इतने कम उम्र में ही मोबाइल थमा देते हैं ।

अब देखो पार्क में आयें है तो कुछ खेलने के बजाय

मोबाइल लिए बैठे हैं ।

वीना  ...सच कह रही हो रमा तुम ,एक हम लोगों का समय था कितना हम लोग खेला करते थे कभी खो-खो तो कभी बैडमिंटन और शारीरिक व्यायाम तो खेल-खेल  में ही हो जाता था। उस समय की दोस्ती भी क्या दोस्ती हुआ करती थी।

रमा  ... तुमने तो बचपन की मीठी बातें याद दिला दीं

अरे आओ हम भी अपना बचपन जी लेते  हैं।

वीना  ..  बहुत हो गया ,चलो अब  घर चलो

 रमा ... हर  समय घर घर किये रहती हो ।

अरे चलती हूं मुझे तो कोई चिंता नहीं है

वीना ... क्यों

मेरी बेटियां पढ़ाई के लिए बहुत सिंसियर है ।

 मैं उनको बोल के आई हूँ , वो तो पढ़ाई में व्यस्त होंगी और मुन्नी को बोल कर आई हूँ,वो घर के सारे काम कर रही होगी ।

वीना  ...तेरी तो मौज है ,अब मुझे ही देख  !घर जाकर अभी खाना बनाना फिर बच्चों की पढ़ाई में उनके साथ बैठना ,मेरा तो सारा समय इसमें ही निकल जाता है  ।

अच्छा रमा  क्या तुम मुन्नी को भी पढाती हो  ....

रमा ....मुन्नी को पढ़ा  कर क्या करूंगी ,करना तो उसे यही  काम है ,कौन सा कलेक्टर बनी जा रही महारानी  ।और फिर घर का काम क्या मैं करूंगी?

वीना  ... अरे वो तो मैं ऐसे ही पूछ रही थी 

*दृश्य दो *

रमा का घर 

मुन्नी मुन्नी कहाँ मर गई तू ,देख रही है मैं बाहर से आ रही हूँ तो पानी तो पिला दे 

आई मेमसाब  ..

तू बच्चों के कमरे में क्या कर रही है ?जब देखो वहीं रहती है ,कुछ कामधाम नहीं होता तुझे

वह पढ़ रहे हैं तो उन्हें पढ़ने दे उन्हें क्यों डिस्टर्ब कर रही है  चल अपना काम कर ,कामचोर हो गयी है।

रमा सोचते हुए ,मेरी बेटियां मेरा  गुरूर है कितना पढ़ती है ,न मोबाइल न किसी से  दोस्ती ,ये लोग बहुत  नाम कमाएंगी ।

(थोड़ी देर बाद  रमा )

बड़ा सन्नाटा  लग रहा है देखूँ ये लड़कियां कर क्या रही है 

बेटियां मां के आने की आहट सुन अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो जाती हैं और मुन्नी कपड़े तह करने लग गयी। 

रमा  ....कितनी अच्छी बेटियां हैं मेरी 

जब देखो तब यह पढ़ती  ही रहती हैं ।

 मुन्नी तूने अभी तक  कपड़े नहीं तह किये ?  अभी सारा काम पड़ा है ,करती क्या रहती है तू सारा दिन अभी खाना भी बनाना है तुम्हें

*

(दृश्य 3)

 रमा तुम सब लोग अपने-अपने काम करो

 मैं जरा पड़ोस की आंटी के यहां से होकर आती हूं.

 ठीक है मां आराम से जाओ ,और आराम... से आना

 रमा के जाने के बाद बेटियां  फिर से मोबाइल में व्यस्त हो गई और मुन्नी पढ़ाई में ...

मुन्नी  कहां हर समय तू  किताबों में सर खपाती  है आओ तुम्हें मोबाइल में अच्छे-अच्छे गेम दिखाएं.. 

मुन्नी ...अरे नहीं दीदी 

मेम साहब जब बाहर गई हैं तभी मुझे पढ़ने का मौका मिला है ।वह आ जायेंगी तो मुझे उनकी डांट भी खानी पड़ेगी और काम में जुटना होगा होगा।

 मेरी परीक्षा आ रही है तो मुझे जैसे ही अवसर मिलता है मैं अपनी  पढ़ाई कर लेती हूं ।

इस तरह से घर के कामों के साथ मेरी पढ़ाई भी चल रही है ।

पढ़ाई कर लूँगी तभी मेरे जीवन में सुधार आएगा। 

बेटियां मुन्नी की बातेँ सुन हतप्रभ हो सोच रही हैं  

मैं किस को धोखा दे रही हूं 

 एक तरफ मुन्नी है जो मां के जाने के बाद पढ़ाई कर रही है और हम लोग अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं ।

माँ पापा इतनी मेहनत करते हैं और स्कूल की फीस ,कोचिंग की फीस ,सभी सुविधाएं देते हैं और  हम लोग मां  को धोखा दे रहे हैं ।

और सही अर्थ में मां को धोखा न देकर  स्वयं को ही  धोखा दे रहे हैं ।

मन ही मन मुन्नी को धन्यवाद देते  हुए 

मुन्नी तुमने तो हम लोगों की आंखें खोल दी और हमें नैतिकता  और शिक्षा का महत्वपूर्ण पाठ समझा दिया । और एक बात मुन्नी हम लोग माँ से तुम्हारी पढ़ाई की बात करेंगे 

मुन्नी के चेहरे पर खुशी और बेटियों को आत्मसंतुष्टि ...

बचपन शिक्षा और नैतिकता के मार्ग पर अग्रसर हो


अनिता सुधीर आख्या



Friday, November 12, 2021

मद्य पान


*मद्य पान*

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये


स्वेद कण श्रम में भिगोकर

चार पैसे जो कमाते

डाँट पत्नी को पिलाकर

वो सुरालय में लुटाते

मद्य के बिन अब कहाँ है

द्वन्द में जीवन सरल ये।।

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये


रोग लगता प्रेम का या

बोझ काँधे पर बढ़ा कर

घूँट बनती फिर दवा जो

पाठ मदिरा का पढ़ा कर

आस फिर परिवार तोड़े

पीसती जब भी खरल ये।।

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।


अर्थ भी मजबूत होता

देश का भरता खजाना

दोहरी अब नीतियां हैं

धन कमा कर तन मिटाना

जब बहकते पाँव पड़ते

फिर करे जीवन गरल ये।।

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।


अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, November 10, 2021

छठ


 चित्र गूगल से साभार


दो0

करें सूर्य आराधना, आया छठ का पर्व।

समरसता के भाव में, करे विरासत गर्व।।


चौपाई

कार्तिक मास सदा उर भाए।

      त्योहारों में मन हर्षाए।। 

शुक्ल पक्ष की षष्ठी आई।

       महापर्व की खुशियाँ छाई।। 

सूर्य उपासन आराधन का।

      पर्व रहा संस्कृति गायन का।। 

छिति जल पावक गगन समीरा। 

         पंच तत्व को पूज अधीरा।।

जुड़े धरा से सबको रहना। 

       यही पर्व छठ का है कहना।। 

सूप लिए जब चले सुहागन।

         प्रकृति समूची लगे लुभावन।। 

ईखों से जब छत्र सजे हैं। 

        अंतर्मन के दीप जले हैं।।

सूरज डूबा जब जाएगा।

          नवल भोर ले फिर आएगा।।

अर्थ निकलता त्योहारों से।

           जुड़े रहे सब परिवारों से।।

दो0

परंपरा की नींव में,जीवन का है सार।

गूढ़ अर्थ समझे सभी,मना रहे त्योहार।।


अनिता सुधीर आख्या






तुम बिन

गीत

राह देखती ये अँखियाँ ओ साथी मेरे मन के।

तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।।


कब आओगे खत लिख दो 

तुम बिन अब रहा न जाए 

यह श्रृंगार अधूरा है

जो तेरी याद सताए

घर चौबारा रिक्त पड़ा

तुम शोभा हो आँगन के

राह देखती ये अँखियाँ,ओ साथी मेरे मन के।

तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।


साथ तुम्हारा शीतल है

इस जीवन के मरुधर में

जल की बूँद सरिस हो तुम

झंझावत के अम्बर में

सुधा कलश बिखरा देना

धड़कन हो तुम जीवन के

राह देखती ये अँखियाँ,ओ साथी मेरे मन के।

तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।


तुम बिन सूनी डगर लगे

जैसे तारे बिना गगन 

बिना नीर के कमल कहाँ

ऐसे रहती ध्यान मगन

आ जाओ प्रियतम मेरे,

सुख देना अब बंधन के।

राह देखती ये अँखियाँ,ओ साथी मेरे मन के।

तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।।


अनिता सुधीर




Tuesday, November 9, 2021

छठ


 छठ के पावन पर्व की शुभकामना



पूजा बिहार की मनभावन।

छठ व्रत सुहाग का अति पावन।।

माँ कुटुंब का मंगल करिये।

अखण्ड सुख से झोली भरिये।।


हमारे त्यौहारों और रीति रिवाजों में एक सार्थक संदेश है आवश्यकता है इसके मूल भाव को समझने की 


जीवनदायिनी नदी को पूजने का संदेश

धर्म ही नहीं ,

जड़ों से जुड़ने का संदेश

उगते और डूबते सूरज को अर्घ्य दे 

सांस्कृतिक विरासत,समानता का संदेश

देते है ,

ये रीति रिवाज और त्यौहार विशेष





Sunday, November 7, 2021

दीप


 *दीप* 


दीप हो उर द्वार पर जब

जग प्रफुल्लित जगमगाए


झोपड़ी सहती व्यथा है

द्वार पर लक्ष्मी उदासी

उतरनों की जब दिवाली

फिर भरे कैसे उजासी

जो विवशता दूर भागे

फिर हँसी भी खिलखिलाए।।

दीप हो उर द्वार पर जब

जग प्रफुल्लित जगमगाए


जब अमीरों की तिजोरी

खोलती हो नित्य ताला

निर्धनों के गात भी जब 

ओढ़ते हों नव दुशाला

फिर कली महकी वहाँ पर

गीत भँवरा गुनगुनाए।।

दीप हो उर द्वार पर जब

जग प्रफुल्लित जगमगाए


तेल अंतस का जला कर

ज्योति की हो वर्तिका अब

यह अँधेरा दूर भागे

कर अहम को मृत्तिका अब 

कालिमा में लालिमा हो

भोर भी फिर गुदगुदाए।।

दीप हो उर द्वार पर जब

जग प्रफुल्लित जगमगाए


Tuesday, November 2, 2021

Sunday, October 31, 2021

सरदार वल्लभ भाई पटेल



जब बँटा भारत था

त्रासदी आयी अति घोर।

लौह वल्लभ ने फिर 

एकता की बाँधी डोर।।

***

दूरदर्शिता सरिस शिवाजी, कूटनीति थी सम कौटिल्य। 

सजग सचेत सदा जीवन में ,नीति निपुणता थी प्राबल्य।।


बने बारडोली के नायक, महिलाएँ कहती सरदार। 

लौह पुरुष थे उच्च श्रृंग पर, लिए अखंडित देश प्रभार।। 


क्रांति करी थी रक्तहीन जो, लोकतंत्र का दे आधार। 

ऐसे नायक बिरले होते, जो जीवन को दें आकार।। 


मूर्ति खड़ी जो एका की है, हर उर में अब धड़कें आप।  

उन्हीं सिद्धांत पर आज चलें, कटे देश के सब संताप। 


नाप सकेगा कौन ऊँचाई,ऐसा बल्लभ भाई नाम। 

भारत रत्न महान रहा जो , नतमस्तक हो उन्हें प्रणाम।।


अनिता सुधीर आख्या

Saturday, October 30, 2021

काष्ठ


 

भाव उकेरे काष्ठ में, कलाकार का ज्ञान।
हस्तशिल्प की यह विधा,गाती संस्कृति गान।।

वृक्षों पर आरी चली,बढ़ा काष्ठ उपयोग।
कैसे शीतल छाँव हो, कैसे रहें निरोग।।

ठंडा चूल्हा देख के, आंते जातीं  सूख।
अग्नि काष्ठ की व्यग्र है,शांत करें कब भूख।।

छल कपटी व्यवहार से,क्यों रखते आधार।
नहीं काष्ठ की हाँडियाँ, चढ़तीं बारंबार।।

सजे चिता जब काष्ठ की, पावन हों सब कर्म।
गीता का उपदेश यह, समझें जीवन मर्म।।

Friday, October 29, 2021

दक्षिणा

दक्षिणा

***
'मॉम पंडित जी का पेमेंट कर दो '
सुन कर इस पीढ़ी के श्रीमुख से
संस्कृति कोने में खड़ी कसमसाई थी 
सभ्यता दम तोड़ती नजर आई थी ।

मैं घटना की मूक साक्षी बनी
पेमेंट और दक्षिणा में उलझी रही,
आते जाते गडमड करते विचारों को
आज के परिपेक्ष्य में सुलझाती रही।

दक्षिणा का सार्थक अर्थ बताने 
 उम्मीद लिए बेटे के पास आई
पूजन सम्पन्न कराने पर दी जाने 
वाली श्रद्धापूर्वक  राशि बताई 

एकलव्य और आरुणि की कथा सुना 
गुरू दक्षिणा का महत्व समझाई 
ब्राह्मण और गुरु चरणों में नमन कर 
उसे अपनी संस्कृति की दुहाई दे आईं

सुनते ही उसके चेहरे पर विद्रूप हँसी नजर आयी 
ऐसे गुरु अब कहाँ मिलते मेरी भोली भाली माई ,
अकाट्य तर्कों से वो अपने को सही कहता रहा
मैं स्तब्ध , उसे कर्तव्य निभाने को कहती आई ।

न ही वैसे गुरु रहे ,न ही वैसे शिष्य
दक्षिणा देने और लेने की सुपात्रता प्रश्नचिह्न बनी
विक्षिप्त सी मैं दो  कालखंड में भटकती रही,
दक्षिणा के सार्थक अर्थ को सिद्ध करती रही ।

प्रथम गुरू माँ  होने का मैं कर्तव्य  निभा न पाई
अपनी संस्कृति  संस्कार से अगली पीढ़ी को
परिचित करा न पाई
दोष मेरा भी था ,दोष उनका भी है 
बदलते जमाने के साथ सभी ने तीव्र रफ्तार पाई

असफल होने के बावजूद बेटे से अपनी दक्षिणा मांग आयी 
तुम्हारे धन दौलत सोने चांदी मकान से सरोकार नहीं मुझे 
बस तू नेक इंसान बन कर जी ले अपनी जिंदगी 
इंसानियत रग रग में हो,
उससे अपना पेमेंट माँग आयी।


अनिता सुधीर

Wednesday, October 27, 2021

नारी

बोले मन की शून्यता


बोले मन की शून्यता

क्यों डोले निर्वात


कठपुतली सी नाचती

थामे दूजा डोर 

सूत्रधार बदला किये 

पकड़ काठ की छोर

मर्यादा घूँघट लिए

सहे कुटिल आघात।।


चली ध्रुवों के मध्य ही 

भूली अपनी चाह 

पायल की थी बेड़ियां

चाही सीधी राह

ढूँढ़ रही अस्तित्व को 

बहता भाव प्रपात।।


अम्बर के आँचल तले

नहीं मिली है छाँव

कुचली दुबकी है खड़ी

नित्य माँगती ठाँव

आज थमा दो डोर को

पीत पड़े अब गात।।


अनिता सुधीर आख्या


Monday, October 25, 2021

ग़ज़ल



आपकी याद को जब ज़ुदा कर दिया।

रूह को जिस्म ने ज्यों फ़ना कर दिया।।


जिंदगी फिर अधूरी कहानी बनी

बेसबब ही दुखों को बड़ा कर दिया।।


तल्खियां जो पसरने लगी दरमियां

चाहतों ने वही फिर ख़ता कर दिया।।


खिड़कियां बंद रखने लगे अब सभी

फिर गमों ने यहाँ घोंसला कर दिया।।


आज़ भी धड़कनों को ख़बर ही नहीं

कब इन्हें ख्वाहिशों ने ख़फ़ा कर दिया।।


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, October 24, 2021

करवा चौथ

*मेरे गगन तुम*

मैं धरा मेरे गगन तुम
अब क्षितिज हो उर निलय में

दृश्य आलिंगन मनोरम
लालिमा भी लाज करती
पूर्णता भी हो अधूरी
फिर मिलन आतुर सँवरती
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय में।।

धार इठलाती चली जब
गागरें तुमने भरीं है
वेग नदिया का सँभाले
धीर सागर ने धरी है
नीर को संगम तरसता
प्यास रहती बूँद पय में।।

नभ धरा को नित मनाता
फिर क्षितिज की जीत होती
रंग भरती चाँदनी तब
बादलों से प्रीत होती
भास क्यों आभास का हो
काल मृदु हो पर्युदय में।।

अनिता सुधीर

Friday, October 22, 2021

मंथरा


 मंथरा घर-घर विराजी

झूठ थिर-थिर नच गया


वृक्ष की मजबूत टहनी

भाग्य पर इठला रही

नित कुटिलता जड़ हिलाती

वेदना है अनकही

पात फँसते चाल में जो

बंधनों का सच गया।।


कान कौवा ले उड़ा जो

दौड़ कर क्यों काग पकड़े

भरभरा विश्वास गिरता

प्रेम को जब लोभ जकड़े

सोच कुबड़ी जीतती जो

पल अकेला बच गया ।।


चाल चलकर काल निष्ठुर

ओढ़ चादर सो रहा

पीप की दुर्गंध सह कर

घाव रिसता रो रहा

मेहंदी भीगी पलक से

और अम्बर रच गया।।

Thursday, October 21, 2021

गीतिका


 छाए जब घनघोर अँधेरा,मन में आस जगाता कौन।

बीच भंवर में नाव फँसी है,इससे पार लगाता कौन।।


खड़ा अकेला बचपन सहमा,एकल होते अब परिवार

दादी नानी के किस्से का,नैतिक पाठ पढ़ाता कौन।। 


सामाजिक ताने-बाने का,भूल गए हैं लोग महत्व 

परंपरा जब बोझ लगेगी,होगा युग निर्माता कौन।। 


कथनी-करनी का भेद बड़ा,व्यथित हृदय के हैं उद्गार ।

एक मुखौटा ओढ़ खड़े हैं, इसको आज हटाता कौन।।


शक्ति रूप में देवी पूजन,फिर बेटी पर अत्याचार

मर्यादा आघात सहे जब, इसका मान बचाता कौन।।


एक दिवस अठखेली कर, हिंदी घूमी चारों ओर। 

शेष समय चुपचाप पड़ी है,नित्य महत्व बढ़ाता कौन।।


ऋषि मुनियों की भारत भू पर, वैदिक संस्कृति का इतिहास।

सत्य सनातन धर्म हमारा, इसको आज सिखाता कौन।।



अनिता सुधीर आख्या


Wednesday, October 20, 2021

पनिहारिन


 

पनिहारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


धरा तरसती अब बूँदों को

हुआ वक्ष उसका खाली 

जीव जगत तब व्याकुल रोया 

कहाँ गया उसका माली

तपी दुपहरी कूप खोदते 

आज कागजों में चारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


जूठे वासन आँगन देखें 

सास देखती अब चूल्हा

रिक्त पतीली बाट जोहती 

कौन पकाएगा सेल्हा 

तपिश सूर्य  से दग्ध हुई वो 

ज्येष्ठ धूप में बंजारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


नुपुर चरण को जब तब छेड़े

पाँव बचाते पत्थर तब

भरी गगरिया छलक रही जो 

बहा परिश्रम झर झर तब

नीर उमड़ता जो नयनों  से 

कहे कहानी कुल तारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


अनिता सुधीर आख्या


Tuesday, October 19, 2021

शरद पूर्णिमा

 शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं



मंगल


मंगलकारी रात में, हो अमरित बरसात।

शरदपूर्णिमा चाँद से, बहते हृदय प्रपात।।

बहते हृदय प्रपात, शुभ्रता जीवन भरती।

निकट हुए राकेश, धरा आलिंगन करती।।

रखा पात्र में खीर, बना औषधि उपचारी।

सभी कला में पूर्ण,  कलानिधि मंगलकारी।।


अनिता सुधीर आख्या

पिता

मेरे संग्रह देहरी गाने लगी से...

*पिता*


भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता


पाँव नन्हें याद में अब

स्कन्ध का ढूँढ़े सहारा

उँगलियाँ फिर काँध चढ़ कर

चाहतीं नभ का किनारा

प्राण फूकें पाँव में वो

सीढ़ियाँ नभ तक बनाता।।


जोड़ता संतान का सुख

भूल कर अपनी व्यथा को

जब गणित में वो उलझता

तब कहें जूते कथा को

फिर असीमित बाँटने को

सब खजाना वो लुटाता।।


छत्रछाया तात की हो

धूप से जीवन बचाते

दुख बरसते जब कभी भी

बाँध छप्पर छत बनाते

और अम्बर हँस पड़ा फिर 

प्यास धरती की बुझाता।।


अनिता सुधीर

Monday, October 18, 2021

लिव इन रिलेशनशिप

 देहरी गाने लगी   (मेरे एकल संग्रह से)


लिव इन रिलेशनशिप


डगमगाती सभ्यता का

अब बनेगा कौन प्रहरी


सात फेरे बोझ लगते

नीतियों के वस्त्र उतरें

जो नयी पीढ़ी करे अब

रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें

इस क्षणिक अनुबंध को अब

देखती नित ही कचहरी।।


जब सृजन आधार झूठा 

तब नशे ने दोष ढूँढ़ा

सत्य बदले केंचुली जो

चित्त ने तब रोष ढूँढ़ा

फल घिनौने कृत्य का है

हो रही संतान बहरी।।


पत्थरों ने दूब कुचली

सभ्यता अब रो रही है

माँगती उत्तर सभी से

चेतना क्या सो रही है।।

आँधियों के प्रश्न पर फिर 

ये धरा क्यों मौन ठहरी।।

Sunday, October 17, 2021

गेरुए सी छाप तेरी

गेरुए सी छाप तेरी*

मखमली सी याद में है
गेरुए सी छाप तेरी

साथ चंदन सा महकता
प्रेम अंगूरी हुआ है
धड़कनों की रागिनी में
रूप सिंदूरी हुआ है
सोचता मन गाँव प्यारा
ये डगर रंगीन मेरी ।।

देह के अनुबंध झूठे
रोम में संगीत बहता
बाँसुरी की नाद बनकर
दिव्यता को पूर्ण करता
जो मिटा अस्तित्व तन का
अनवरत अब काल फेरी।।

जब अलौकिक सी कथा को
मौन की भाषा सुनाती
उर पटल नित झूमता सा
प्रीत नूतन गीत गाती
स्वप्न को बुनते रहे हम
कष्ट की फिर दूर ढेरी।।

Saturday, October 16, 2021

ग़ज़ल

गमों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।

जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।

शिकायत करें दर्द क्या हाकिमों से
अदालत लगा कौन सुनता यहां है।

तमाशा दिखाकर सियासत करें जो
मसीहा बने कब दिए आसमां हैं।।

तरक्की क़लम ने लिखी मुल्क की पर... 
थमे मुफ़लिसों पर सितम कब कहाँ है l


 अनिता सुधीर 




Thursday, October 14, 2021

रावण

रावण ..

अशांत मन ,असहनीय वेदना लिये 
यायावर सा भटकता रहा ,
संदेशों में कहे गूढ़ अर्थ को 
समझने की कोशिशें करता रहा ।
प्रतिवर्ष  दम्भी रावण का दहन, 
रावण का समाज में प्रतिनिधित्व
राम कौन ,जो मुझको मारे !ये प्रश्न पूछ
दस शीश रख अट्ठहास करना ,
समाज रावण और भेड़ियों से भरा
ये संदेश विचलित करते रहे ।
एक ज्वलंत प्रश्न कौंधा 
क्या लिखने वालों ने अनुसरण किया!
या संदेश अग्रसारित कर 
कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली ।
.....दो पुतलों को जलते देखा  जब
भीड़ के चेहरे का उत्साह,
वीडियो बनाते इन पलों को कैद करते लोग 
मेला घूमते लोगों को देख 
मन शांत हो नाच उठा ।
ये भीड़ प्रतिदिन
गरीबी ,बेरोजगारी ,अशिक्षा 
अत्याचार और न जाने कितने 
ही रावण से युद्व करती है 
जीवन की भागदौड़ में
तिल तिल कर मरती है ।
त्यौहार संस्कृति है हमारी 
त्यौहार से मिलती खुशियां सारी
प्रत्येक वर्ष रावण का दहन 
देख अपने दुख ,कष्ट भूल जाते हैं 
रावण कुम्भकरण प्रतिवर्ष जल कर 
अपनी संस्कृति से जोड़े रहते हैं
और राम बनने के प्रयास जारी ....

https://youtu.be/mcfFqNAdH80

माता सिद्धिदात्री

माता सिद्धिदात्री के चरणों में पुष्प


नंदा पर्वत तीर्थ में,सिद्धि शक्ति का वास है।
नवमी तिथि की मान्यता,कन्या पूजन खास है।।

महादेव को सिद्धियाँ, मातु कृपा से प्राप्त हैं।
अर्ध देह रख देवि का,नारीश्वर विख्यात है।।

मातु सिद्धिदात्री लिये ,दुर्गे का अवतार हैं।
आठ सिद्धियाँ पाइये,भव सागर फिर पार है।।

ज्ञान बोध की देवियां,परा शक्ति का ध्यान कर।
मिले सिद्धि सम्पूर्णता,सप्त शती का गान कर।।

हवन कुंड की अग्नि में,मिटते सभी विकार हों।
पूजन  सार्थक फिर तभी,अंतस का श्रृंगार हो।।


अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, October 13, 2021

माँ महागौरी

माता महागौरी के चरणों में पुष्प



अष्टम तिथि की दिव्यता,पूज्य शिवा में ध्यान हो।
मातु महागौरी सदा,भक्तों का कल्याण हो।।

जन्म हिमावन के यहाँ, मातु पार्वती ने लिया।
शंकर हों पति रूप में,बाल काल से तप किया।।

श्वेत वर्ण है मातु का,उपमा श्वेतांबरधरा ।
चतुर्भजी दुखहारिणी,माँ का अब है आसरा ।।

पूजन गौरी का करे,शांति हृदय में व्याप्त हो।
करें पाप का नाश फिर,शक्ति अलौकिक प्राप्त हो।।

राहू की हैं स्वामिनी ,दूर करें इस दोष को।
मातु वृषारूढ़ा भरें,सभी भक्त के कोष को।।

Tuesday, October 12, 2021

लोहिया



 राम मनोहर लोहिया


देश के चिंतन में

लोहिया जीवित हैं आज।

पक्षधर शुचिता के 

कर्म के मंथन में आज।।


कुछ लोग मरा कब करते हैं, सोच अमर करती है नाम। 

राम मनोहर समाजवाद को, जन-जन करता नित्य प्रणाम। 


राष्ट्रवाद के प्रखर प्रणेता, नित्य सुधारें देश समाज। 

कर्म अनुसरण कर कितनों ने, अब भी पहना सिर पर ताज।।


आजादी के आंदोलन में,योगदान भूला है कौन। 

जनमानस में भेद मिटाने, कर्म करें वह रहकर मौन।। 


मतभेद जवाहर से होता, सप्त क्रांति की उनकी नीति।

ऐसा जग बन जाए फिर जिसमें पलती पल-पल प्रीति।।


राजनीति की शुचिता में वो, अपनों का भी करें विरोध। 

अनगिन स्मारक आज खड़े हो, नित्य कराते सबको बोध।। 


माँ कालरात्रि

 माता कालरात्रि के चरणों में पुष्प

***

माँ कालरात्रि की अर्चना


कालरात्रि की अर्चना,सप्तम तिथि को कीजिए।

काल विनाशक कालिका,शुभंकरी को पूजिए।।


रक्त बीज संहार जब,जन्म हजारों रक्त का।

दानव का संहार कर,कष्ट हरा फिर भक्त का।।


तीन नेत्र की स्वामिनी,रूप धरे विकराल हैं।

तांडव मुद्रा देख के,दूर भागता काल है ।।


चतुर्भुजी के हाथ में,कांटा और कटार है।

गर्दभ वाहन साथ ले,करें असुर संहार है।।


रोग दोष से मुक्त कर,करें शत्रु का नाश है।

ग्रह बाधा को दूर कर,जग में भरा प्रकाश है।।


द्वार सिद्धियों के खुलें,साधक मन सहस्रार में।

शीर्ष चक्र की चेतना,है दैहिक आधार में।।


अनिता सुधीर

कात्यायनी माता

कात्यायनी माता
***

कात्यायन ऋषि की सुता,अम्बे का अवतार हैं।
छठे दिवस कात्यायनी, वंदन बारम्बार है।।

दानव अत्याचार से,मिला धरा को त्राण था।
महिषासुर संहार से,किया जगत कल्याण था।।

पूजें सारी गोपियाँ, ब्रज देवी सम्मान में।
मुरलीधर की आस थी,मग्न कृष्ण के ध्यान में।।

चतुर्भुजी माता लिए,कमल और तलवार हैं।
वर मुद्रा में शाम्भवी, जग की पालनहार हैं।।

जाग्रत आज्ञा चक्र जो,ओज,शक्ति संचार है।
फलीभूत हैं सिद्धियाँ, महिमा अपरम्पार है।।

Monday, October 11, 2021

स्कन्द माता

 स्कन्द माता के चरणों में पुष्प


पंचम तिथि माँ स्कंद का,पूजन नियम विधान है।

भक्तों का उद्धार कर , करतीं कष्ट निदान हैं।।


तारकसुर ब्रह्मा जपे, माँग लिए वरदान में।

अजर अमर जीवित रहूँ,मृत्यु न रहे विधान में।।


संभव ये होता नहीं,जन्म मरण तय जानिए।

शिव सुत हाथों मोक्ष हो,मिले मूढ़ को दान ये।।


मूर्ति वात्सल्य की सजे,कार्तिकेय प्रभु गोद में।

संतति के कल्याण में,जीवन फिर आमोद में।।


सिंह सवारी मातु की,चतुर्भुजी की भव्यता।

शुभ्र वर्ण पद्मासना,परम शांति की दिव्यता।।


जीवन के संग्राम में,सेनापति खुद आप हैं।

मातु सिखाती सीख ये, बुरे कर्म से पाप हैं।।


ध्यान वृत्ति एकाग्र कर,शुद्ध चेतना रूप से।

पाएं पुष्कल पुण्य को,पार  लगे भवकूप से।।


Sunday, October 10, 2021

माँ कुष्मांडा

माँ कुष्मांडा के चरणों में श्रद्धा के पुष्प


माँ कुष्मांडा पूजते, चौथे दिन नवरात्रि के।
वंदन बारम्बार है, चरणों में बल दात्रि के।।

अंधकार चहुँ ओर था, रूप लिया कुष्माण्ड का ।
ऊष्मा के फिर अंश से, सृजन किया ब्रह्मांड का।।

अष्ट भुजी देवी लिए, माला निधि की हाथ में।
अमृत कलश की सिद्धियाँ, सदा सहायक क्वाथ में।।

शक्ति मिले संकल्प की, चक्र अनाहत ध्यान से।
रहे प्रकाशित दस दिशा, यश समृद्धि सम्मान से।।

ओज तेजमय पुंज का, सूर्य लोक में धाम है ।
सकल जगत की स्वामिनी, शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

अनिता सुधीर आख्या




Saturday, October 9, 2021

माँ चंद्रघंटा

माँ चंद्र घण्टा के चरणों में पुष्प


नवरातों त्योहार में, दिवस तीसरा ख़ास।

चंद्र घंट को पूज के, लगी मोक्ष की आस ।।


सौम्य रूप में शाम्भवी, माँ दुर्गा अवतार ।

घण्टा शोभित शीश पर ,अर्ध चंद्र आकार ।।


सिंह सवारी मातु की, अस्त्र शस्त्र दस हाथ।

दर्श अलौकिक जानिए , दिव्य शक्तियाँ साथ।।


अग्नि तत्व मणिपुर सधे, योग साधना तंत्र ।

साधक मन को साधते, सप्त शती के मंत्र।।


ध्वनि घंटे की शुभ रही, करें जोर से नाद।

दूर प्रेत बाधा करे, दूर करे अवसाद ।।


कीर्ति मान सम्मान हो, साधक के घर द्वार।

रक्षा करने धर्म की, माँ आयीं संसार।।


अनिता सुधीर

Friday, October 8, 2021

माँ ब्रह्मचारिणी

मॉं ब्रह्मचारिणी के चरणों में पुष्प


कठिन तपस्या जब करी,बिल्व पत्र फल पान से।
मनोकामना पूर्ण फिर,चंद्रमौलि के  ध्यान से।।

अक्ष, कमंडल हाथ में,देवि नाम की भव्यता।
प्रेम त्याग तप साधतीं,मातु रूप में दिव्यता।।

ब्रह्मचारिणी रूप में, माँ अम्बे को पूजिए।
कर्म शक्ति अनुरूप ही,कठिन तपस्या कीजिए।।

ब्रह्मचर्य की साधना, धीरज सयंम जानिए।
सदाचार एकाग्रता, पूजन विधि ये मानिए।।

स्वाधिष्ठानी चक्र को,साधक मन जागृत करे।
विचलित चंचल मन सधे,शांत भाव झंकृत करे।।


Wednesday, October 6, 2021

कहमुक़री


**

1)

तुम बिन जीवन सूना लागे

तुम से ही  साँसों के धागे

गीत बनो मेरे ज्यों मधुकर

का सखि साजन?ना सखि दिनकर ।

2)

बनूँ  तुम्हारी  ही परछाईं ,

तुम बिन होती  है कठिनाई

मेरा जीवन तुमको अर्पण 

का सखि साजन?ना सखि दर्पण।।


3)

क्लांत चित्त को शांत करे जो

पल में धमके नहीं डरे वो

मिली प्रीति की फिर से थपकी

का सखि साजन! ना सखि झपकी।।


4)

बिन उसके अब रहा न जाए

जग में ज्यों अँधियारा छाए

गुण गान करूँ उसकी महिमा

का सखि साजन! ना सखि चश्मा।।


5)


वादों का नित जाल फैलाए

उसकी बातों में फँस जाए

बड़ा सयाना कब कुछ देता

का सखि साजन, ना सखि नेता।।


6)


कहाँ मना करने पर माने

नींद खड़ी रहती सिरहाने

हर पल सुनते उसकी खरखर 

का सखि साजन, ना सखि मच्छर।।


7)


उसकी माया के बंधन में

निशिदिन बीते ध्यान मनन में

उस पर जीवन है न्यौछावर

का सखि साजन, ना सखि तरुवर।।


8)


रिक्त हृदय में विश्वास भरे

जीवन में फिर से आस भरे

तन मन की वह हरता पीड़ा

का सखि साजन, ना सखि क्रीड़ा।।


9)


हाथ पकड़ नित संबल देते

उड़ने को तब अम्बर देते 

जब भी थी जीवन की झंझा

का सखि साजन, ना सखि मंझा।।


10)


स्वर्णिम पल जीवन में लाए

झोली भर के सुख दे जाए

उससे ही सजती उर वीथिका

का सखि साजन, ना सखि जीविका।



अनिता सुधीर

Saturday, October 2, 2021

पोशाक


लघुकथा
पोशाक


चाय का कप पकड़े आरती किंकर्तव्यविमूढ़ बैठी थी। 
वेदना उसके मुख पर स्पष्ट दृष्टिगोचर थी 
राजेश! क्या हुआ आरती
पत्नी को झकझोरते हुए बोला..
आरती अखबार राजेश की ओर बढ़ाते हुए.
किस पर विश्वास करें ,सगे रिश्तेदार भी ? 
और 
पाँच माह की बच्ची क्या पोशाक पहने ,ये समाज निर्धारित कर दे.
कहते हुए
बेटी के कमरे की ओर चल दी...


अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ

Wednesday, August 25, 2021

तुम्हारी आँखों में



जीवन का मनुहार, तुम्हारी आँखों में।
परिभाषित है प्यार, तुम्हारी आँखों में।।

छलक-छलक कर प्रेम,भरे उर की गगरी।
बहे सदा रसधार, तुम्हारी आँखों में।।

तुम जीवन संगीत, सजाया मन उपवन
भौरों का अभिसार, तुम्हारी आँखों में।।

पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया
खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।

रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल
करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।

किया समर्पण त्याग, जले बाती जैसे
करे भाव अँकवार, तुम्हारी आँखों में।।

जीवन की जब धूप, जलाती थी काया
पीड़ा का उपचार, तुम्हारी आँखों में।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, August 20, 2021

चीखें



चीखें
**
चीखें 
बच्चों की
अब सुनाई नहीं पड़ती 
खोमचे वाला 
गली से गुजरता है जब
गरीबी ने माँ को
चुप कराने का हुनर 
सिखा दिया होगा
*
खामोश शहरों की
चीखती रातें
चूड़ियों के टूटने की आवाज 
तन चीत्कार कर उठे
मुफलिसी में
बूढ़े माँ बाप की दवाईयाँ
और आत्मा की चीखें शांत
**
अनवरत 
अंदर चीखें रुदन करती हुईं
अधर मौन 
और फिर कागज चीखते हुए



अनिता सुधीर आख्या

Friday, August 13, 2021

कठपुतली

*कठपुतली*

आँख में अंजन दांत में मंजन 
नित कर नित कर नित कर
नाक में ऊँगली कान में लकड़ी 
मत कर मत कर मत कर"..
कितनी सरलता से हँस-हँसकर 
जीवन का पाठ पढ़ाती थी वो
दूसरों के हस्त संचालन से नाचती
काठ की कठपुतली थी वो...
जिज्ञासा थी बालमन में
कैसे डोर से बंधी ये नाचती होगी..
पर्दे के पीछे कमाल सूत्रधार का 
जो उंगलियों से उन्हें नचाता होगा...
जिज्ञासा अब शांत हो रही 
अब डोर है कितने अदृश्य हाथों में...
काठ के तो नहीं  
भावनाएं है
कुछ सपने 
कुछ आकांक्षाएं है..
निपुणता से संचालन करते हैं लोग 
परिवार धर्म मर्यादा रिश्तों के नाम पर
कितनी बखूबी से नचाते है लोग..
वो काठ की कठपुतली थी
दूसरों के इशारे पर नाचती थी वो 
और अब...

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, August 11, 2021

आरक्षण

कुंडलिया

पिछड़े अगले खेल में, संसद में सब एक।
अगले को पिछड़ा करें, कौन विचारे नेक।।
कौन विचारे नेक, जाति की सीढ़ी चढ़ते।
नीति नियम हों एक, तभी सब आगे बढ़ते।।
आरक्षण की चोट, लाभ से क्यों सब बिछड़े।
सबको कर दो उच्च, मिटा दो सारे पिछड़े।।


अवसर सबको ही मिले, यही विचारो आज।
आगे बढ़ना नीति में, उन्नत सकल समाज।।
उन्नत सकल समाज, मिले वंचित को सुविधा।
भारत में सब एक, करें क्यों इसमें दुविधा।।
होंगें तभी स्वतंत्र, नहीं हो कोई अंतर।
चलो समय के साथ, दिला दो सबको अवसर।।

अनिता सुधीर आख्या




Sunday, August 8, 2021

महिला हॉकी

पावन मंच को सादर नमन

गीतिका-

पायलों की रुनझुनों में,काल की टंकार हो तुम।
नीतियों की सत्यता में,स्वर्ण का आधार हो तुम।।

खो रहा अस्तित्व था जब, लुप्त होती भावना में,
आस का सूरज जगाए,भोर का उजियार हो तुम।।

जब छिपी सी धूप होती,तब लड़े वो बादलों से
लक्ष्य की इस पटकथा में,भाल का शृंगार हो तुम।।

साधनों की रिक्तता में,हौसले के साज रखती
खेल टूटी डंडियों में,प्रीति का अँकवार हो तुम।

रच रहा इतिहास नूतन,स्वप्न अंतर में सँजोये
कोटि जन के भाव कहते,देश का आभार हो तुम।।

अनिता सुधीर आख्या


Wednesday, July 28, 2021

सावन

सावन 
दोहे

धानी चूनर ओढ़ के,धरा रचाये रास।
बागों में झूले पड़े ,सावन है मधुमास ।।

कुहू कुहू कोयल करे,वन में नाचे मोर।
भीगे सावन रात में,दादुर करते शोर।।

बूँदों का संगीत सुन ,मन में है उल्लास।
प्रेम अगन में तन जले,साजन आओ पास।।

बदरा बरसे  नेह के ,सुनकर राग मल्हार।
कजरी सुन हुलसे हिया, मनें तीज त्योहार।

धीरे झूलो कामिनी, चूड़ी करती शोर ।
मन पाखी सा उड़ रहा,पकड़े दूजा छोर।।

शंकर आदि अनंत हैं,पावन सावन मास।
पूजे सावन सोम जो ,पूरी हो सब आस ।।

मंदिर मंदिर सज गये,चलें शम्भु के  द्वार।
काँवड़ ले कर चल रहे,श्रद्धा लिये अपार ।।

माला साँपों की गले,कर में लिये त्रिशूल।
सोहे गंगा शीश पर ,शिव हैं जग के मूल।।

डमरू हाथों में लिये,ओढ़े मृग की छाल।
करते ताण्डव नृत्य जब,रूप धरें विकराल।।

महिमा द्वादश लिंग की ,अद्भुत अपरम्पार।
चरणों में शिवशम्भु के,विनती बारम्बार ।।

अनिता सुधीर आख्या

Saturday, July 17, 2021

शिक्षक

शिक्षक
**
दोहावली

ज्ञान आचरण दक्षता,शिक्षा का आधार।
करे समाहित श्रेष्ठता, उत्तम जीवन सार।।

शिक्षक दीपक पुंज है,ईश्वर का अवतार।
शिक्षक अपने शिष्य को,देते ज्ञान अपार।।

निर्माता हैं देश के,उन्नत करें समाज।
रखते कल की नींव ये,करें नया आगाज।।

अनगढ़ माटी के घड़े,शिक्षक देते ढाल।
मार्ग प्रदर्शक आप हैं,उन्नत करते भाल।।

पेशा उत्तम जानिए,गढ़ते मनुज चरित्र।
आशा का संचार कर,करते कर्म पवित्र।।

पथ प्रशस्त करते सदा,मन में भरें प्रकाश।
नैतिकता के पाठ से,है विस्तृत आकाश।।

परम्परा गुरु शिष्य की,रही बड़ी प्राचीन।
ध्येय सिद्धि को साधने,सदा रहे थे लीन।।

हृदय व्यथित हो देखता,शिक्षा का व्यापार।
फैल रहा इस क्षेत्र में ,कितना भ्रष्टाचार।।

अपने शिक्षक को करूँ, शत शत बार प्रणाम।
जिनके संबल से मिला,जीवन को आयाम।।

मैं शिक्षक के रूप में,श्रेष्ठ निभाऊँ धर्म।
देना ये आशीष प्रभु,समझूँ शिक्षा मर्म।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, July 4, 2021

*अंतस ने अपनी पीर कही*


**

*अंतस ने अपनी पीर कही*

आहत हो कर अंतस सोचे,कैसे पीर अपार लिखें।
रंग बदलते मानव के नित,कैसे क्षुद्र विकार लिखें।।

पढ़े चार अक्षर ये ज्ञानी,नित्य बखेड़ा करते जब
अपशब्दों का दौर चला है,कैसा जग व्यवहार लिखें।।

दूजे कंधे पर पग रखकर,अपनी राह बनाई जब
पूरा जीवन स्कंध कराहे,कैसे जग के वार लिखें।।

घात सहे नित पाषाणों से,उनको धीर धरे सहता 
सहन शक्ति औषधि बन पूछे,कैसे नित उपचार लिखें।।

रखे ताक पर चिंतन मंथन,कूप अहम से भरते जन
कलम तड़पती जब मेरी ये,कैसे लेखन धार लिखें।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, July 2, 2021

तुरपन



तुरपन

याद आती है 
माँ की वो हिदायतें
जो वो 
दिया करतीं थीं...
तुरपन
इतनी महीन करना 
दूसरी ओर दिखे न धागा..
मैं ग़लतियाँ करती रही
सुई कई बार ऊँगलियों में चुभी 
 टीस उठती रहती 
धागा दूसरी और दिखता ही रहा ...
अब 
जीवनके पन्ने पलट कर 
देखते हैं 
तो सोचते हैं 
माँ तुम्हारी आकांक्षाओं पर 
तब तुरपन
सही थी या नहीं 
पर अब माँ 
इन महीन धागों से
महीन तुरपन कर
अधरों को सी रखा है ...
माँ अब ..
दूसरों को दिखता नहीं धागा 
रिश्तों को बाँध रखा है 
सहेजने में टीस उठती है 
कुछ दिल में चुभती है 
इस सहेजने  बाँधने में
तुरपन
टूटने का देर रहता है 
पर माँ बहुत मेहनत से 
आपने जो तुरपन सिखाई थी 
उसका मान  रखना है न माँ ...

अनिता सुधीर आख्या



Thursday, June 24, 2021

नीयत



नवगीत


भोली सूरत उर खोटा

नीयत पर चढ़ नीम करेला
बींध रहा कबसे तन मन

प्रश्न निरर्थक डेरा डाले
फाँस बने हैं गरदन की
मर्यादा पर अमर बेल चढ़
घाव बढ़ाती मर्दन की
कंटक के तरुवर को सींचा
पुष्प महकता कब उपवन।।

क्षुद्र विचारों की गपशप थी
भूल गए वो भावों को
अफवाहों का बाजार गरम
शूल चुभोया पाँवो को
बिल्ली खिसियानी घूम रही
तोड़े छींका हर आँगन।।

काँव काँव के ठेके में है
भोली सूरत उर खोटा
गिरगिट लज्जा से देख रहा
नाम बड़ा दर्शन छोटा
वैचारिक अतिक्रमण का फिर
ध्वजा लिए चलता अनबन।।

अनिता सुधीर आख्या











Sunday, June 20, 2021

महर्षि पतंजलि

 

मदिरा सवैया

*महर्षि पतंजलि*


पावन भू पर जन्म लिए,मुनि भारत गौरव गान लिखे।
दर्शन योग पतंजलि का,ऋषि धातु रसायन मान लिखे।।
योग विधान प्रसिद्ध हुआ,परिभाषित सूत्र महान लिखे।।
भाष्य विवेचन सार लिखे,वह संस्कृति का अवदान लिखे।।

अष्ट प्रकार सधे तन ये,छह दर्शन में उत्थान लिखे।
औषधि वैद्य पितामह थे,तन साधन का तप ज्ञान लिखे।।
जो उपचार किए मन का,मन चंचल का वह ध्यान लिखे।
रोग विकार मिटा जग का,वह भारत की  पहचान लिखे।।

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, June 10, 2021

सैनिक


*सैनिक*
आल्हा छन्द 

*
शब्दों की सीमा सोच रही, कैसे लिख दूँ सैनिक आज।
कर्तव्यों की वेदी पर जो,पहने हैं काँटों का ताज।।

वीरों की धरती है भारत,थर थर काँपे इनसे काल।
संकट के जब बादल छाए, रक्षा करते माँ के लाल।।

रात जगी पहरेदारी में, देख रही है सोया देश।
मित्र बना कर बारूदों को,वीर सजाते फिर परिवेश।।

रिपु को धूल चटाना हो या,नागरिकों का रखना ध्यान।
विपदा कैसी भी आ जाए,हँस कर देते हैं बलिदान।।

हिमकण की ओढ़ें चादर या ,तपती बालू का शृंगार।
देश बना जब इनका प्रियतम, नित्य ध्वजा से है मनुहार।।

भू रज मस्तक की शोभा है,शौर्य समर्पण है पहचान।
फौलादी तन मन  रख सैनिक ,करते कितने कार्य महान।।


अनिता सुधीर














Monday, May 31, 2021

वृक्ष


दोहा 
वृक्ष
**

वृक्ष काटते जा रहे, पारा हुआ पचास।
वृक्षों का रोपण करें,इस आषाढ़ी मास ।।

जड़ें मृदा को बाँधतीं, लगे बाढ़ पर रोक।
 वृक्ष क्षरण जब रोकते, तभी मिटे ये शोक।।

धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इसपर  गौर ।।

भोजन का निर्माण कर ,वृक्ष करे उपकार।
प्राणवायु देते सदा ,जो जीवन आधार ।।

देव रूप में पूज्य ये ,धरती का श्रृंगार।
है गुण का भंडार ये ,औषध की भरमार ।।

संतति जैसे वृक्ष ये ,करिये प्यार दुलार ।
उत्तम पानी खाद से ,लें रक्षा का भार ।।

अनिता सुधीर

Friday, May 28, 2021

क्यूँ लिखूँ



*क्यूँ लिखूँ*

क्यूँ लिखूँ, मैं क्यूँ लिखूँ
यक्ष प्रश्न सामने खड़ा
इसका जवाब 
चेतना अवचेतना में गड़ा
मैं मूढ़ अल्पज्ञानी खोज रही जवाब 
और मस्तिष्क कुंद हुआ पड़ा
प्रश्न ओढ़े रहा नकाब 
अब तक न मिला जवाब!
प्रश्न से ही प्रश्न?
अगर न लिखूँ ........
क्या बदल जायेगा!
अनवरत वैसे ही चलेगा 
जैसे औरों के न लिखने से .....
मैं सूक्ष्म कण मानिंद
अनंत भीड़ में लुप्त
संवेदनाएं,वेग आवेग उद्वेलित करती
घुटन उदासी की धुंध 
विचार गर्भ में ही मृतप्रायः
और मैं सूक्ष्म से शून्य की यात्रा पर..
 यह जवाब  ही समाहित किये  
  क्यूँ लिखूँ  मैं
सूक्ष्म से विस्तार की 
यात्रा के लिए ...
 उन पर बढ़ते नन्हें कदम 
के लिए लिखूँ.…

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, May 26, 2021

मंगल

 मंगल शब्द पर दोहे

अंतरिक्ष अभियान में,ऊँची भरे उड़ान।
ग्रह पर मंगल यान से ,बढ़ा देश का मान।।

ज्येष्ठ मास मंगल रहे,लखनऊ में कुछ खास ।
पंचमुखी हनुमान जी,पूरी करते आस ।।

शुभ मंगलकारी वचन,भरते उर उत्साह ।
मिले मनुज को जीत फिर,उत्तम पथ निर्वाह।।

मंगलमय जीवन रहे,मंगल ध्वनि सुर साज।
उर में मंगल भाव से,हर्षित रहे समाज।।

लेखन रुचि दो वर्ष से,आख्या अब उपनाम ।
यात्रा मंगल दायिनी,आये नहीं विराम ।।

वैदिक ज्योतिष ग्रंथ में, मंगल ग्रह बलवान।
मूँगा से ग्रह शान्ति हो, कहते विज्ञ सुजान।।

करें शांत ग्रह ज्योतिषी, शोध करे विज्ञान।
रोवर मूँगा  से चले, मंगल जल अभियान।।

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, May 12, 2021

गरमी


*गरमी*
कुंडलिया

गरमी के इस ताप में ,पारा हुआ पचास ।
सूरज उगले आग जो,बरखा की है आस।।
बरखा की है आस,जीव सब जल को तरसें।
सूख गए अब ताल,झूम कर मेघा बरसें।।
रोपें फसल खरीफ,दिखा अब थोड़ी नरमी।
भरें खेत खलिहान,बाद इस मौसम गरमी।।

2)

गरमी सबकी अब अलग,बढ़ा रही संताप ।
लोभ क्रोध के ताप में,बढ़ा धरा पर पाप।।
बढ़ा धरा पर पाप,सुलग कर जीवन रहता।
होता अत्याचार, मनुज तन पीड़ा सहता।।
आख्या की सुन पीर,पाप जब करें अधर्मी।
करिये सभी प्रयास, उतारें इनकी गरमी ।।

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, May 6, 2021

मति की क्षति

गीत

मति की क्षति के अर्थ अनेकों
विषय बड़ा है गूढ़

एक तराजू कैसे तौले
मति गति बुध्दि विवेक।
अलग रही क्षति की परिभाषा
मानव रूप अनेक।।
तीस मार खाँ सभी बने अब
मैं अज्ञानी मूढ़
मति की ...

इसकी क्षति में घर से निकले
दोनों राजा रंक
देश रसातल में जाता फिर
खूब लपेटे पंक
हवा करे काला बाजारी
तरसें बच्चे बूढ़
मति की ...

इसकी गति जब हो बलशाली
टीका हो तैयार
फिर क्षति में हो नीयत लोभी 
करे दवा व्यापार
अहम कराता दंगल बाजी
जो सत्ता आरूढ़
मति की ...

अनिता सुधीर 



















Friday, April 30, 2021

अमृत

अमृत


मौतें तांडव कर रहीं,मिलता नहीं इलाज।
अमृत कलश की सिद्धियां,मिल जाएं फिर आज।।

स्वयं मौत का डर नहीं,पी लें अमृत आप।
रहे अमरता आपकी, रहे अमिट सी छाप।।

मुरलीधर की बाँसुरी,छेड़े मीठी तान।
प्रीत राग सुनकर हुआ,शुद्ध अमृत का पान।।

मंथन जीवन भर किया ,लगा नहीं कुछ हाथ ।
पान अमृत का तब हुआ,सद्गुरु जब हैं साथ ।।

जीवन अद्भुत रंग में,करें आप स्वीकार।
अमृत मिले या विष मिले, मिले नियति अनुसार।।

अमृत छोड़ जो विष पिये,जग में वो आराध्य।
सुख वैभव को त्यागते, लिए सदा वैराग्य।।



अनिता सुधीर आख्या






















Sunday, April 25, 2021

गीतिका



रखें उत्तम गुणों को जो,रहें सबके विचारों में।
मनुजता श्रेष्ठतम उनकी,चमकते वो हज़ारों में।

सभी लिखते किताबें अब,बचे पाठक नहीं कोई।
पढ़ेगा कौन फिर इनको,पड़ी होंगी किनारों में।।

हवा की बढ़ रही हलचल,समय आया प्रलयकारी
नहीं जो वक़्त पर चेते, उन्हें गिन लो गँवारों में।।

लगी है भूख दौलत की,हवा को बेचते अब जो
सबक तब धूर्त लेंगे जब, लगेंगे वो कतारों में ।।

अटल जो सत्य था जग का,भयावह इस तरह होगा
गहनता से इसे सोचें, मनुज मन क्यों विकारों में।।

ठहरता जा रहा जीवन,सवेरा अब नया निकले
दुबारा हो वही रंगत,महक हो फिर बहारों में।।


अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, April 20, 2021

त्राहिमाम

नवगीत

गलबहियां जो कर रहे
करते वही विरोध

दूजे सर पर ठीकरा
फोड़ रहें हैं लोग
सिसक रहा कर्तव्य भी
खाकर छप्पन भोग
देख विवश है फिर जगत
बुद्धि धरे कब बोध।।

खेल खिलाड़ी खेलते 
मतपत्रों की भीड़
पाप बढ़ा कर कुंभ भी
छीने दूजे नीड़
औषधि अब मजबूर है
ढूँढ़ रहीं वो शोध।।

तांडव करती मौत जब
रुदन हुआ अब मौन 
बिलख रहे परिवार फिर
काँधा देगा कौन
पुष्प हृदय चीत्कारता
शूल बना ये क्रोध।।

अनिता सुधीर आख्या
















Tuesday, April 13, 2021

संवत 2078

***
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,है हिन्दू नववर्ष।
नव संवत प्रारंभ है ,हो जीवन में हर्ष ।।
संवत 'राक्षस' वर्ष में ,'मंगल' हैं भूपाल,
मंगल ही मंत्री बने, करें जगत उत्कर्ष ।।
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गुड़ी ,उगाड़ी पर्व अरु,भगवन झूले लाल।
नौ दिन का उत्सव रहे ,नव संवत के साल।।
रचे विधाता सृष्टि ये ,प्रथम विष्णु अवतार ,
अठहत्तर नव वर्ष में ,उन्नत हो अब काल।।
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नौरातों  में प्रार्थना ,माँ आओ  उर धाम ।
करे कलश की स्थापना,पूजें नवमी राम ।।
कष्टहारिणी मातु का ,वंदन बारम्बार ,
कृपा करो वरदायिनी,पूरे  मङ्गल काम ।।
***
धर्म ,कर्म उपवास से ,बढ़ता मन विश्वास।
अन्तर्मन की  शुद्धता ,जीवन में उल्लास।।
पूजें अब गणगौर को ,मांगे अमर सुहाग,
छोड़ जगत की वेदना,रखिये मन में आस।।
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कली ,पुष्प अरु मंजरी,से सुरभित संसार ।
कोयल कूके बाग में ,बहती मुग्ध बयार ।।
पके अन्न हैं खेत में ,छाये नव  उत्साह ,
मधुर रागिनी छेड़ के,धरा करे श्रृंगार ।।

अनिता सुधीर आख्या