Wednesday, February 16, 2022

ग़ज़ल


ग़ज़ल

अब गमों रंजिशों से बचा कौन  है।
इस उजड़ते चमन का ख़ुदा कौन है।।

आईना दूसरों को दिखाता रहे
ऐब अपने कभी देखता कौन है।।

पत्थरों का शहर ज़ख्म देता रहा
ठोकरों से बचाता भला कौन है।।

ज़िंदगी अनकही सी गुजरती गयी
सुन सके जो इसे वो सगा कौन है।।

आप मेरी ग़ज़ल क्यों नहीं बन सके?
आप ही बोलिए बेवफ़ा कौन है।।

इश्क़ की जो नुमाइश लगी आजकल
रूह से रूह का अब पता कौन है।।

ये सियासत सदा चाल चलती रही
अब वतन की यहाँ सोचता कौन है।।

अनिता सुधीर

3 comments:

विश्व पृथ्वी दिवस

सहकर सबके पाप को,पृथ्वी आज उदास। देती वह चेतावनी,पारा चढ़े पचास।। अपने हित को साधते,वक्ष धरा का चीर। पले बढ़े जिस गोद में,उसको देते पीर।। दू...