तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क
Thursday, December 24, 2020
गीत
Sunday, December 20, 2020
गजल
गजल
Tuesday, December 8, 2020
बंद
Monday, November 30, 2020
किसान आंदोलन
Friday, November 27, 2020
रस्में
Wednesday, November 25, 2020
एकादशी
Tuesday, November 24, 2020
धोखा
Sunday, November 15, 2020
चिंतन
Wednesday, November 4, 2020
माता पिता
Wednesday, October 28, 2020
मंथरा अवसाद में
मंथरा अवसाद में अब
है जगत पर मार उसकी
नित कथा लिखती कुटिलता
तथ्य बदले अब समय में
रानियाँ है केश खोले
कोप घर अब हर निलय में
फिर किले भी ध्वस्त होते
जीतती है रार उसकी ।।
मंथरा अवसाद..
प्राण बिकता कौड़ियों में
बुद्धि पर ताला लगा है
सोच कुबड़ी कुंद होती
स्वार्थ को कहती सगा है
लिख नया इतिहास पाती
वेदना हो पार उसकी।
मंथरा अवसाद ...
सत्य पूछे वन गमन क्यों
मंथरा कब तक रहेगी
शक्तियाँ हैं आसुरी अब
सीख भी कब सीख लेगी
व्यंजना भी रो रही है
देख आँसू धार उसकी।।
मंथरा अवसाद ...
अनिता सुधीर आख्या
Saturday, October 17, 2020
नवरात्रि
Sunday, October 11, 2020
गीतिका
Tuesday, October 6, 2020
कोहरा
Saturday, October 3, 2020
बुद्धि बनी गांधारी
Thursday, October 1, 2020
गांधी
गांधी
Saturday, September 26, 2020
वर्तमान भारत
Tuesday, September 22, 2020
गीत
मैं धरा मेरे गगन तुम
अब क्षितिज हो उर निलय में
प्रेम आलिंगन मनोरम
लालिमा भी लाज करती
पूर्णता भी हो अधूरी
फिर मिलन आतुर सँवरती
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय में।।
मैं धरा..
धार बन चलती चली मैं
गागरें तुमने भरी है
वेग नदिया का सँभाले
धीर सागर ने धरी है
नीर को संगम तरसता
प्यास रहती बूँद पय में।।
मैं धरा..
नभ धरा फिर मान रखते
तब क्षितिज की जीत होती
रंग भरती चाँदनी जो
बादलों से प्रीत होती
भास क्यों आभास का हो
काल मृदु नित पर्युदय में।।
©anita_sudhir
Sunday, September 20, 2020
अधिक मास
मनहरण घनाक्षरी
**
चंद्र मास की चाल में,तीन वर्ष के काल में,
मलिन दिन मध्य में ,मलमास जानिए ।।
वर्जित त्योहार हुए,मंद खरीदार हुए,
नियम ऐसे क्यों हुए ,शुभ पहचानिए।।
पूजा पाठ धर्म करें,दान श्रेष्ठ कर्म करें,
मास पुरुषोत्तम है,विष्णु को मनाइए ।।
चिंतन मनन करें,वेद का श्रवण करें,
पंचभूत शरीर को,तप में लगाइए।।
अनिता सुधीर आख्या
Friday, September 18, 2020
निजीकरण
Tuesday, September 15, 2020
चलते चलते
'शब्द युग्म '
चलते चलते
चाहों के अंतहीन सफर
मे दूर बहुत दूर चले आये
खुद ही नही खबर
क्या चाहते हैं
राह से राह बदलते
चाहों के भंवर जाल में
उलझते गिरते पड़ते
कहाँ चले जा रहे है ।
कभी कभी
मेरे पाँवों के छाले
तड़प तड़प पूछ लिया करते हैं
चाहतों का सफर
अभी कितना है बाकी
मेरे पाँव अब थकने लगे है
मेरे घाव अब रिसने लगे है
आहिस्ता आहिस्ता ,रुक रुक चलो
थोड़ा थोड़ा मजा लेते चलो।
हँसते हँसते
बोले हम अपनी चाहों से
कम कम ,ज्यादा ज्यादा
जो जो भी पाया है
सहेज समेट लेते है
चाहों की चाहत को
अब हम विराम देते है
सिर्फ ये चाह बची है कि
अब कोई चाह न हो ।
अनिता सुधीर
Sunday, September 13, 2020
हिंदी
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
राजभाषा हिंदी को समर्पित सुमन
छंद की विभिन्न विधाओं से अपनी बात आप तक पहुँचाने का छोटा सा प्रयास करा है।
#मुक्तक
अपनों के ही मध्य में,ढूँढ रही अस्तित्व।
एक दिवस में बाँध के,निभा रहे दायित्व।।
शिक्षा की नव नीति से,लगी हुई उम्मीद,
रहे श्रेष्ठतम हिन्द में,हो इसका स्वामित्व।।
बनती खिचड़ी अधपकी,रहा अधूरा ज्ञान।
दो नावों पर पैर रख,छेड़ रहे हैं तान ।।
हीन भावना छोड़िये,करिये इस पर गर्व
हिंदी हिंदुस्तान है,करना है उत्थान।।
#कुंडल छंद
12,10 अंत दो गुरु
यति के पूर्व और बाद में त्रिकल
हिंदी मान सम्मान,भाल सजे बिंदी।
शिल्प लय रस व्याकरण,सजा रहे हिंदी।।
शब्द के भंडार में,भाव निहित होते।
मत दिवस में बाँधिये,लगा जलधि गोते।।
कवियों की कलम लिखे,हिन्द देश बोली।
हिंदी इतिहास लिए,सरस काव्य झोली।।
अवधी ब्रज भोजपुरी,रूप रख निराला।
एकता के सार में,गूँथ रही माला ।
#सवैया
विधान- *मत्तगयंद सवैया*
भगण ×7+2गुरु, 12-11 वर्ण पर यति चार चरण समतुकान्त।
*मतगयंद सवैया*
भोजपुरी ब्रज मैथिल में सज,अद्भुत भाव समाहित हिंदी।
छंद विधा लय शिल्प सजा रस,रूप अनूप रहे सम बिंदी।
काव्य रचा कर श्याम सखा पर,घूम रही बन प्रीत कलिंदी।
मान बढ़ा नित उन्नत होकर,पश्चिम बोल करो अब चिंदी।।
#दोहा छंद
संवाहक है भाव की, उन्नत हिंदी रूप।
ब्रज अवधी हरियाणवी, रखती रूप अनूप।।
Iभारत के परिवेश में,मौलिकता है दूर।
निज भाषा संवाद से, दर्प विदेशी चूर।।
शुद्ध वर्तनी में सजी,शुद्ध व्याकरण सार ।
सकल विश्व में हो रहा,इसका खूब प्रचार।।
#कुंडलिया
हिंदी भाषा राष्ट्र की,देवनागरी सार।
उच्चारण आसान है,भरा शब्द भंडार।।
भरा शब्द भंडार,रही संस्कृत हमजोली।
भौगोलिक विस्तार,सभी बोलें ये बोली।।
मास सितम्बर खास,सजी माथे जब बिंदी।
ले उर्दू का साथ,मस्त है भाषा हिंदी।।
#दोहा गजल
हिंदी ही अस्तित्व है,गहन भाव यह बोल।
रची बसी मन में रही,शुचिता ले अनमोल।।
हिन्दी का वन्दन करें,हो इसका उत्थान,
मधुरम मीठे बोल दें,कानों में रस घोल।
कबिरा के दोहे सजे,सजा प्रेम रसखान,
देवनागरी की लिखीं,कृतियाँ करें हिलोल।
हिन्दी ही अभियान हो,हिन्दी हो अभिमान
नहीं बदलता फिर कभी,भाषा का भूगोल।
सजे शीश पर ये सदा,हिंदी हिंदुस्तान,
एक दिवस में बाँध के,रहे चुकाते मोल।
#नवगीत
राजभाषा ले लकुटिया
पग धरे हर द्वार तक
राह में अवरोध अनगिन
हीनता का दंश दें
स्वामिनी का भाव झूठा
मान का कुछ अंश दें
ये दिवस की बेड़ियां भी
कब लड़ें प्रतिकार तक।।
हूक हिय में नित उठे जो
सौत डेरा डालती
छीन कर अधिकार वो फिर
बैर मन में पालती
कष्ट का हँसता अँधेरा
बादलों के पार तक।।
अब घुटन जो बढ़ रही है
कंठ का फन्दा कसा
खोल उर के पट सभी अब
धड़कनों में फिर बसा
अब अतिथि की वेशभूषा
छल रही श्रृंगार तक।।
#रोला छन्द
हिंदी हो अभिमान,यही पहचान हमारी।
करें आंग्ल को दूर,मात दें उसे करारी।।
हो इसका उत्थान,लगी है दोहाशाला।
करिये सभी प्रयास,सजा कर हिंदी माला।।
**
#सरसी छंद आधारित गीत
"हिन्दी है अस्तित्व हमारा" ,गहन भाव ये बोल।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
लिखी भक्ति मीरा की इसमें,लिखा प्रेम रसखान,
कबिरा के दोहों से सजती ,भाषा मातृ महान ।
माखन,दिनकर महादेवि की ,कृतियां करें हिलोल।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....
देवनागरी भाषा अपनी,रचते छन्द सुजान ,
चुन चुन कर ये भाव सजाती ,हिन्दी है अभिमान।
नहीं बदल पायेगा कोई ,भाषा का भूगोल ।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....
हिन्दी का वन्दन अभिनन्दन, हिन्दी हो अभियान,
एक दिवस में क्यों बाँधें हम ,हिन्दी हिन्दुस्तान।
मधुरम मीठी भाषा वाणी,रस देती है घोल ।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" ,गहन भाव ये बोल,
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।
#छंद मुक्त
रचनाकार का हिंदी से वार्तालाप
क्यों हो क्लान्त शिथिल तुम
क्यों हो आज व्यथित तुम
ऊंचाइयों तक पहुँच
किस भाव से ग्रसित हो तुम ।
...आज के हालात पर
चीत्कार करता मेरा मन
होता जब अधिकारों का हनन
अपनों में जब पराये हो जाएं
विदेशी आ मुझे हीन कहें
सीमाओं, दिवस मे
बांध दिया जाए
तब वेदना से ग्रसित हो
बिंधता है मेरा तन ।
.....निर्मूल है तुम्हारी व्यथा
प्राचीनतम गौरवमयी
इतिहास रहा है तुम्हारा
कोई छीन नही सकता
आकर,अधिकार तुम्हारा
पहला शब्द तोतली भाषा
माँ के उच्चारण में हो तुम,
सम्प्रेषण के सशक्त
माध्यम में हो तुम
जन जन में चेतना का
संचार करती हो तुम
कवियों की वाणी हो तुम
रस छंद अलंकार से सजी तुम
संस्कृत उर्दू बहनें तुम्हारी
अंग्रेजी है अतिथि तुम्हारी
साथ साथ मिल कर रहो
एक दिवस का क्षोभ न करो
तुम हमारी शान हमारी पहचान
प्रतिदिन करते है तुम्हारा सम्मान
पर आज तुम्हें देते विशेष स्थान
हम हिंदी से ,हिंदी हिन्दोस्तान ।
अनिता सुधीर आख्या
Tuesday, September 8, 2020
फिर पढ़ाई भी तरसती
नवगीत
*फिर पढ़ाई भी सिसकती*
पाठशाला मौन है अब
फिर पढ़ाई भी सिसकती
प्रार्थना के भाव चुप हैं
राष्ट्र जन गण गीत तरसे
पंजिका पर हाजिरी की
कब मधुर आवाज बरसे
श्यामपट खाली पड़े हैं
बात खड़ियों को खटकती।।
मुस्कराहट रूठती है
खेल सूने से खड़े हैं
वो जुगत जलपान वाली
आज औंधे मुख पड़े हैं
कुर्सियों पर धूल जमती
प्रेत की छाया भटकती।।
भेलपूरी कौन लेता
खोमचे की है उदासी
छूटते अब मित्र साथी
मस्तियाँ फिर लें उबासी
खूँटियों पर वस्त्र लटके
टीस सी अंतस कसकती।।
अनिता सुधीर आख्या
Monday, September 7, 2020
पितृ पक्ष
पितरागमन
Saturday, September 5, 2020
शिक्षक
नमन मंच
*शिक्षक*
**
ज्ञान आचरण दक्षता,शिक्षा का आधार।
करे समाहित श्रेष्ठता, उत्तम जीवन सार।।
शिक्षक दीपक पुंज है,ईश्वर का अवतार।
शिक्षक अपने शिष्य को,देते ज्ञान अपार।।
निर्माता हैं देश के,उन्नत करें समाज।
रखते कल की नींव ये,करें नया आगाज।।
अनगढ़ माटी के घड़े,शिक्षक देते ढाल।
मार्ग प्रदर्शक आप हैं,उन्नत करते भाल।।
पेशा उत्तम जानिए,गढ़ते मनुज चरित्र।
आशा का संचार कर,करते कर्म पवित्र।।
पथ प्रशस्त करते सदा,मन में भरें प्रकाश।
नैतिकता के पाठ से,है विस्तृत आकाश।।
परम्परा गुरु शिष्य की,रही बड़ी प्राचीन।
ध्येय सिद्धि को साधने,सदा रहे थे लीन।।
हृदय व्यथित हो देखता,शिक्षा का व्यापार।
फैल रहा इस क्षेत्र में ,कितना भ्रष्टाचार।।
अपने शिक्षक को करूँ, शत शत बार प्रणाम।
जिनके संबल से मिला,जीवन को आयाम।।
मैं शिक्षक के रूप में,श्रेष्ठ निभाऊँ धर्म।
देना ये आशीष प्रभु,समझूँ शिक्षा मर्म।।
अनिता सुधीर आख्या
Wednesday, September 2, 2020
चंचल मन
चंचल मन को गूँथना
सबसे टेढ़ी खीर
**
घोड़े सरपट भागते
लेकर मन का चैन
आवाजाही त्रस्त हो
सुखद चाहती रैन
उछल कूद कर कोठरी
बनती तभी प्रवीर।।
चंचल मन..
भाड़े का टट्टू समझ
कसते नहीं लगाम
इच्छा चाबुक मार के
करती काम तमाम
पुष्पित हो फिर इन्द्रियाँ
चाहें बड़ी लकीर।।
चंचल मन..
भरी कढ़ाही ओटती
तब जिह्वा का स्वाद
मंद आँच का तप करे
आहद अनहद नाद
लोक सभी तब तृप्त हो
सूत न खोए धीर।।
चंचल मन..
अनिता सुधीर आख्या
Friday, August 28, 2020
आँकड़े कागजों पर
आँकड़े कागजों पर
खूब फले फूले
बुधिया की आँखों में
टिमटिम आस जली
कोल्हू का बैल बना
निचुड़ा गात खली
कर्ज़े के दैत्य दिए
खूँटी पर झूले।।
आँकड़े...
गमछे में धूल बाँध
रंग भरे पन्ने
खेतों की मेड़ों पर
लगते हैं गन्ने
अनुदान झुनझुने से
नाच उठे लूले।।
आँकड़े...
मतपत्र बने पूँजी
रेवड़ी बाँट कर
फिर झोपड़ी बिलखती
क्यों रही रात भर
जय किसान ब्रह्म वाक्य
आज सभी भूले।।
आँकड़े...
अनिता सुधीर आख्या
Wednesday, August 26, 2020
प्रतीक्षा
Saturday, August 22, 2020
गणेश वंदना
आधार #चामर छन्द
23 मात्रा,15 वर्ण
गुरू लघु×7+गुरू
**
रिद्धि सिद्धि साथ ले,गणेश जी पधारिये।
ग्रंथ हाथ में धरे ,विधान को विचारिये।।
देव हो विराजमान ,आसनी बिछी हुई।
थाल है सजा हुआ कि भोग तो लगाइये।।
प्रार्थना कृपा निधान, कष्ट का निदान हो।
भक्ति भाव हो भरा कि ज्ञान ही प्रधान हो।।
मूल तत्व हो यही समाज में समानता।
हे दयानिधे! दया ,सुकर्म का बखान हो।।
ज्ञान दीजिये प्रभू अहं न शेष हो हिये।
त्याग प्रेम रूप रत्न कर्म में भरा रहे।।
नाम आपका सदा विवेक से जपा करें,
आपका कृपालु हस्त शीश पे सदा रहे।।
©anita_sudhir
Thursday, August 20, 2020
प्रार्थना
दोहा छन्द
***
सब धर्मों में प्रार्थना,भक्त ईश संवाद।
अन्तर्मन की शुद्धि से,गूँजे अंतर्नाद।।
एक रूप हो ईश से,करें प्रार्थना मौन।
ऊर्जा का संचार ये,अनुभव करता कौन?
लोभ अहम का नाश कर,करता दूर विकार।
सम्बल देती प्रार्थना,शुद्ध रखे आचार।।
उचित कर्म मानव करे,उचित करे व्यवहार।
करें प्रार्थना ईश से,सुखमय हो संसार।।
सामूहिक हो प्रार्थना,करिये यही प्रयास।
मनुज मनुज को जोड़ कर,सदा मिटाती त्रास।।
शुद्ध भाव में प्रार्थना,करें नहीं व्यापार।
श्रद्धा अरु विश्वास ही,रहा सदा आधार।।
अनिता सुधीर
लखनऊ
Tuesday, August 18, 2020
तृषा बुझा दो मरुथल की*
रिक्त कुम्भ है जग पनघट पर
फिर आस लगी है श्यामल की
काया निस दिन गणित लगाती
जोड़ घटाने में है उलझी
गुणा भाग से बूझ पहेली
कब हृदय पटल पर है सुलझी
थी मरीचिका मृगतृष्णा की
अब तृषा बुझा दो मरुथल की।।
रिक्त कुम्भ....
थकी पथिक हूँ पड़ी राह में
बीत गयीं हैं कितनी सदियां
नहीं माँगती ताल तलैया
नहीं चाहती शीतल नदियां
एक बूँद से तृप्त हुई जो
अखिल तृप्ति संजीवन बल की।।
अस्तित्व मिटा पाथर सी हूँ
जीवन स्पन्दन निष्प्राण हुआ
मिले तुम्हारा हस्ताक्षर जब
स्पर्श तरंगों से त्राण हुआ
शापमुक्त फिर हुई अहिल्या
ठोकर खाकर चरण कमल की।।
रिक्त कुम्भ....
अनिता सुधीर आख्या
Friday, August 14, 2020
स्वतंत्रता
दोहा छन्द
Tuesday, August 11, 2020
वेदना प्रभु की
अंतरयामी प्रभु सर्वज्ञ अच्युत अनिरूद्ध हैं।
अपने बनाये संसार की दशा देख उनकी वेदना और पीड़ा असहनीय है ।
कर्मयोगी प्रभु मानव जाति को स्वयं *कल्कि* बनने का उपदेश दे रहे हैं।
इस को दोहा छन्द गीत के माध्यम से दिखाने का प्रयास
आहत है मन देख के ,ये कैसा संसार।
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
नौनिहाल भूखे रहें ,मुझे लगाओ भोग ,
तन उनके ढकते नहीं,स्वर्ण मुझे दे लोग।
संतति मेरी कष्ट में,उनका जीवन तार ,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
नहीं सुरक्षित बेटियां ,दुर्योधन का जोर,
भाई अब दुश्मन बने,कंस हुए चहुँ ओर ।
आया कैसा काल ये ,मातु पिता हैं भार,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
प्रेम अर्थ समझे नहीं ,कहते राधेश्याम,
होती राधा आज है,गली गली बदनाम।
रहती मन में वासना,करते अत्याचार ,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
सुनो भक्तजन ध्यान से ,समझो केशव नाम,
क्या लेकर तू जायगा ,कर्म करो निष्काम।
स्वयं कल्कि अवतार हो,कर सबका उद्धार,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
अनिता सुधीर आख्या
Sunday, August 9, 2020
हलषष्ठी
चौपाई
भाद्र मास की षष्ठी आयी
हलछठ व्रत सुंदर फलदायी।।
जन्म दिवस दाऊ का मनता।
पोखर घर के आँगन बनता ।।
शस्त्र अस्त्र हल दाऊ सोहे ।
हलधर की मूरत मन मोहे।।
पुत्रवती महिलाएं पूजें।
मन अँगना किलकारी गूँजे।।
पूजन पलाश झड़बेरी का।
भोग लगा महुवा नारी का ।।
जोता बोया आज न खाए
तिन्नी चावल दधि सँग भाए।।
दीर्घ आयु संतति की करना।
आशीषों से झोली भरना ।।
वृक्ष पूजना पाठ पढ़ाता ।
संस्कृति का यह मान बढ़ाता।।
अनिता सुधीर आख्या
©anita_sudhir
Tuesday, August 4, 2020
राम
Monday, August 3, 2020
राखी
Friday, July 31, 2020
नई शिक्षा नीति
Wednesday, July 29, 2020
मोह
#मोह
#दोहा गीत
***
प्रेम मोह में भेद कर,हे मानव विद्वान।
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।
त्याग समर्पण प्रेम है,प्रेम रहे निस्वार्थ।
प्रेम लीनता मोह है,समझें यही यथार्थ।।
पुत्र मोह धृतराष्ट्र सम,होता गरल समान
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।
प्रेम मोह को साथ रख,करें उचित व्यवहार।
सीमा में रख मोह को ,यही प्रेम आधार।।
हरिश्चंद्र के प्रेम का,दिव्य रूप पहचान।
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।
शत्रु मनुज के पांच ये,काम क्रोध अरु लोभ।
उलझे माया मोह जो,मन में रहे विक्षोभ।।
उचित समन्वय साधिए,जीवन का उत्थान
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।
अनिता सुधीर आख्या
Thursday, July 23, 2020
सावन
बरसे मेघा बरसी अँखियाँ,
सावन हिय को तड़पाये।
धरती पर फैला सन्नाटा,
तम के बादल हैं छाए ।।
बाग बगीचे सूने लगते,
झूले मौन बुलाते हैं
याद सताती सखियों की अब,
कँगना शोर मचाते हैं
कजरी घेवर को मन तरसे,
तीजों पर काले साए।।
कांवड़िया यह राह देखता,
कैसे अब अभिषेक करें
दुग्ध धार गंगाजल अर्पण
आक धतूरा शीश धरें
बिल्व पत्र शंकर को प्यारा,
उनको अर्पण कर आए
विपदा चारों ओर खड़ी है,
बम बम भोले कष्ट हरो
नृत्य दिखा कर तांडव फिर से,
धरती के दुख दूर करो
सावन में मन की हरियाली,
लौट लौट फिर आ जाए
अनिता सुधीर
Saturday, July 18, 2020
क्यूँ लिखूँ
यक्ष प्रश्न सामने खड़ा
इसका जवाब
चेतना अवचेतना में गड़ा
मैं मूढ़ अल्पज्ञानी खोज रही जवाब
और मस्तिष्क कुंद हुआ पड़ा
प्रश्न ओढ़े रहा नकाब
अब तक न मिला जवाब!
प्रश्न से ही प्रश्न?
अगर न लिखूँ ........
क्या बदल जायेगा!
अनवरत वैसे ही चलेगा
जैसे औरों के न लिखने से .....
मैं सूक्ष्म कण मानिंद
अनंत भीड़ में लुप्त
संवेदनाएं,वेग आवेग उद्वेलित करती
घुटन उदासी की धुंध
विचार गर्भ में ही मृतप्रायः
और मैं सूक्ष्म से शून्य की यात्रा पर..
यह जवाब समाहित किये
में क्यूँ लिखूँ
सूक्ष्म से विस्तार की
यात्रा के लिए ...
Tuesday, July 14, 2020
गजल
तुम्हारी ख्वाहिशों को आसमाँ कोई नहीं देगा।
बढ़ी जब प्यास होगी तो कुआँ कोई नहीं देगा।।
लिया करता जमाना ये कभी जब इम्तिहाँ मेरा,
सहारा मतलबी जग में यहाँ कोई नहीं देगा ।
खड़ी की मंजिलें ऊँची टिकी जो झूठ पर रहती
यहाँ सच के लिए तो अब बयाँ कोई नहीं देगा ।।
चली अब नफरतों की आंधियाँ हर ओर ही देखो
रहें जो दहशतों में सब जुबाँ कोई नहीं देगा ।।
डसा करते रहे हरदम भरोसा हम किये जिन पर
कभी सुख चैन से जीने यहाँ कोई नहीं देगा ।।
तराशे पत्थरों को अब उठाना कौन चाहे है
गिराने पर लगे सब आसमाँ कोई नहीं देगा।।
अनिता सुधीर
©anita_sudhir
Saturday, July 11, 2020
गजल
काफिया आर
रदीफ़ कर
2122 2122 2122 212
***
कब सफर पूरा हुआ है जिन्दगी का हार कर ।
मंजिलों की शर्त है बस मुश्किलों को पार कर।।
साथ मिलता जब गमों का वो मजा कुछ और है
कर सुगम तू राह उनसे हाथ अब दो चार कर ।।
मुश्किलों के दौर में बस हार कर मत बैठना
आसमां को नाप लेंगे आज ये इकरार कर ।।
वक़्त की इन आँधियों में क्या बिखरना है सही
दीप जलता ही रहेगा इस हवा से प्यार कर।।
आशियाने आरजू के हैं वहीं पर टूटते ।
बेवजह यूँ हर किसी पर मत कभी इतबार कर।।
ख्वाहिशों के आसमां में जब सितारे टाँकना
हौसला रख चाँदनी का जिंदगी उजियार कर ।।
अनिता सुधीर आख्या
Wednesday, July 8, 2020
इश्क़ और बेरोजगारी
बाली उमरिया देखिए, लगा इश्क़ का रोग
साथ चाहिए छोकरी,नहीं नौकरी योग ।।
रखते खाली जेब हैं,कैसे दें उपहार।
प्रेम दिवस भी आ गया,चढ़ता तेज बुखार।।
दिया नहीं उपहार जो,कहीं न जाये रूठ।
रोजगार तो है नहीं,उससे बोला झूठ ।।
स्वप्न दिखाए थे उसे,ले आऊँगा चाँद ।
अब भीगी बिल्ली बने,छुप जाऊँ क्या माँद।।
साथ छोड़ते दोस्त भी,देते नहीं उधार ।
जुगत भिड़ानी कौन सी,आता नहीं विचार।।
भोली भाली माँ रही,पूछे नहीं सवाल ।
बात बात पर रार जो,पापा करते बवाल।।
नहीं दिया उपहार जो,साथ गया यदि छूट।
लिए अस्त्र तब चल पड़े,करनी है कुछ लूट।
मातु पिता का मान अब ,सरेआम नीलाम।
आये ऐसे दिन नहीं,थामो इश्क़ लगाम ।।
रोजगार अरु इश्क़ में,कमोबेश ये तथ्य ।
दोनों का ही साथ हो ,जीवन सुंदर कथ्य ।।
अनिता सुधीर आख्या
Sunday, July 5, 2020
गुरु
*गुरु*
दोहा छन्द गीत
**
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन,हर्षित हुये अपार।
****
अनगढ़ माटी के घड़े,उत्तम देते ढाल ,
नींव दिये संस्कार की ,नैतिक होगा काल।
पहले गुरु माता पिता,दूजा ये संसार।
सद्गुरु का जो साथ हो,जीवन धन्य अपार।
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन,हर्षित हुये अपार।
***
दूर करें मन का तमस,करें दुखों का नाश।
अध्यातम की लौ जला,उर में भरे प्रकाश।
गुरु बिन ये मन कब सधे,भरे ज्ञान भंडार।
मिलता गुरु आशीष जब,भवसागर से पार ।
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन,हर्षित हुये अपार।
***
श्रद्धा अरु विश्वास से ,चित्त साध लें आज।
पथ प्रशस्त करिये सदा ,पूरन मङ्गल काज।
बिना आपके कुछ नहीं,गुरु जीवन आधार।
अन्तस उजियारा करे,महिमा अपरम्पार।
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन,हर्षित हुये अपार।
****
अनिता सुधीर आख्या
Wednesday, July 1, 2020
Tuesday, June 30, 2020
गाँव
दोहा छन्द
**
सोंधी माटी गाँव की,वो खेतों की मेड़ ।
रचा बसा है याद में,वो बरगद का पेड़।।
अथक परिश्रम खेत में,कृषक हुआ जब क्लांत।
हरियाली तब गाँव की ,करे चित्त को शांत।।
झूले पड़ते नीम पर, झूले सखियाँ संग।
दृश्य निराला गाँव का,बिखरे अद्भुत रंग।।
ताल तलैया गाँव में ,वो आमों का बाग ।
जामुन महुआ तोड़ते,सुन कोयल की राग ।।
गाँव चले मजदूर अब,लेकर मन में आस।
विकसित लघु उद्योग हों,करना यही प्रयास।।
भारत गाँवो में बसे,पढ़ें बाल गोपाल।
बनें आत्म निर्भर सभी,लोग रहें खुशहाल।।
अनिता सुधीर आख्या
Friday, June 26, 2020
कर्ण नायक या .
महाभारत युद्ध के पहले कुंती द्वारा कर्ण को अपनी सच्चाई ज्ञात होने पर उसकी मनःस्थिति
और कुंती से वार्तालाप का दृश्य दिखाने का प्रयास
***
सेवा से तुम्हारी प्रसन्न हो
ऋषि ने तुम्हें वरदान दिया
करती जिस देव की आराधना
उसकी संतान का उपहार दिया।
अज्ञानता थी तुम्हारी
तुमने परीक्षण कर डाला
सूर्य पुत्र मैं, गोद में तेरी,
तुमने गंगा में बहा डाला ।
इतनी विवश हो गयी तुम
क्षण भर भी सोचा नहीं,
अपने मान का ध्यान रहा ,
पर मेरा नाम मिटा डाला ।
कवच कुंडल पहना कर
रक्षा का कर्तव्य निभाया
सारथी दंपति ने पाला पोसा
मात पिता का फर्ज निभाया ।
सूर्य पुत्र बन जन्मा मै
सूत पुत्र पहचान बनी
ये गलती रही तुम्हारी , मैंने
जीवन भर विषपान किया।
कौन्तेय से राधेय बना मैं
क्या तुम्हें न ये बैचैन किया!
धमनियों में रक्त क्षत्रिय का
तो भाता कैसे रथ चलाना।
आचार्य द्रोण का तिरस्कार सहा
तो धनुष सीखना था ठाना।
पग पग पर अपमान सहा
क्या तुमको इसका भान रहा !
दीक्षा तो मुझे लेनी थी
झूठ पर मैंने नींव रखी ,
स्वयं को ब्राह्मण बता ,मैं
परशुराम का शिष्य बना ।
बालमन ने कितने आघात सहे
क्या तुमने भी ये वार सहा !
था मैं पांडवों मे जयेष्ठ
हर कला में उनसे श्रेष्ठ,
होता मैं हस्तिनापुर नरेश
क्या मुझे उचित अधिकार मिला
क्या तुम्हें अपराध बोध हुआ!
जब भी चाहा भला किसी का
शापित वचनों का दंश सहा
गुरु और धरती के शाप ने
शस्त्र विहीन ,रथ विहीन किया।
भरी सभा द्रौपदी ने
सूत पुत्र कह अपमान किया
मत्स्य आँख का भेदन कर
अर्जुन ने स्वयंवर जीत लिया ।
मैंने जो अपमान का घूंट पिया
क्या तुमने कभी विचार किया !
कठिन समय ,जब कोई न था
दुर्योधन ने मुझे मित्र कहा
अंग देश का राजा बन
अर्जुन से द्वंद युद्ध किया ।
मित्रता का धर्म निभाया
दुर्योधन जब भी गलत करे
कुटिलता छोड़ कर , उसको
कौशल से लड़ना बतलाया ।
दानवीर नाम सार्थक किया
इंद्र को कवच कुंडल दान दिया
तुमने भी तो पाँच पुत्रों
का जीवन मुझसे माँग लिया
क्या इसने तुम्हें व्यथित किया !
आज ,जब अपनी पहचान जान गया
माँ ,मित्र का धर्म निभाना होगा
मैंने अधर्म का साथ दिया ,
कलंक सदियों तक सहना होगा
अब तक जो मैंने पीड़ा सही
उसका क्या भान हुआ तुमको !
मेरी मृत्यु तक तुम अब
पहचान छुपा मेरी रखना
अपने भाइयों से लड़ने का
अपराध, मुझे क्षमा करना ।
जीवन भर जलता रहा आग में
चरित्र अवश्य मेरा बता देना
खलनायक क्यों बना मैं
माँ तुम जग को बतला देना ।
अनिता सुधीर आख्या
Sunday, June 21, 2020
योग
योग दिवस की शुभकामनाएं
दोहा छन्द
***
योग दिवस पर विश्व में,मची योग की धूम।।
गर्व विरासत पर हमें,भारत माटी चूम ।
करते प्रतिदिन योग जो ,रहें रोग से दूर।
श्वासों का बस साधिए ,मुख पर आए नूर ।।
आसन बारह जो करे,होता बुद्धि निखार ।
सूर्य नमन से हो रहा ,ऊर्जा का संचार ।।
पद्मासन में बैठ कर ,रहिये ख़ाली पेट।
चित्त शुद्ध अरु शाँत हो,करिये ख़ुद से भेंट ।।
प्राणवायु की जब कमी ,होते सारे रोग ।
जीवन प्राणायाम से ,मानव उत्तम भोग ।।
ओम मंत्र के जाप से ,होते दूर विकार।
तन अरु मन को साधता,बढ़े रक्त संचार।।
अनिता सुधीर आख्या
Sunday, June 14, 2020
तीली
#तीली
***
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्हीं जलाती काया।
ठाढ़े होकर कपास सोचती
बन जाऊँ मैं बाती,
दीप शैया पर पहुरे पहुरे
घृत सारा पी जाती
इक आलिंगन करूँ तीली से
हुलसे मेरी छाया
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।
मुख फैलाये दैत्य दहेज का
उर में अग्नि जलाता
तेल लोभ का बंद कमरों में
चिंगारी भड़काता
क्यों सुलगाती तीली स्वार्थ की
क्यों झुलसाती साया।
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।
कोमल काया बनती काष्ठ से
विस्फोटक को लादे
आहुति देना अपने गात की
सोच समझ कर प्यादे
चीख सुनो उस अबला सुता की
नमक वहीं का खाया
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।
अनिता सुधीर आख्या
Saturday, May 30, 2020
हिंदी पत्रकारिता दिवस*
*
पत्रकारिता /पत्रकार
दोहा छन्द
*तीस मई* शुभ दिन रहा ,लिखा गया इतिहास।
समाचार *मार्तण्ड* ने ,उर में भरा हुलास ।।
लिए कलम की धार जो,बनता पहरेदार।
पत्रकार निष्पक्ष हो ,लड़े बिना तलवार ।।
डोर सत्य की थामता,कहलाता है स्तंभ।
शुचिता का संचार हो ,नहीं मिला हो दम्भ।।
साहस संयम ही रहे ,पत्रकारिता मान।
सोच,विषय संवाद से,मिले नयी पहचान ।।
परिवर्तन के दौर में ,माध्यम हुए अनेक ।
समाचार की सत्यता,होती अब व्यतिरेक।।
प्रौढ़ कलम दम तोड़ती,बिकी कलम जब आज।
भटक गयी उद्देश्य से,रोता रहा समाज ।।
नया कलेवर डाल के,भूली सहज प्रवाह ।
पूंजीपति के कैद में ,ढूँढे झूठ गवाह ।।
जोड़ तोड़ अब मत करें,पहले समझें कथ्य।
मिले वही पहचान फिर,सत्य लिखें अब तथ्य।।
अनिता सुधीर आख्या
Friday, May 29, 2020
विदाई
विदाई
****
सूने पार्क में कोने के चबूतरे पर बैठी
यादों के बियाबान जंगल में विचरण करती हुई..
तभी पीले पत्तों का
शाख से विदा हो कर
स्पर्श कर जाना ,
निःशब्द, स्तब्ध कर गया मुझे ।
अंकुरण नई कोपलों का ,
हरीतिमा लिए पत्तियों में ऊर्जा का भंडार ,
जीवन भर का अथक प्रयास,
और अब इनकी विदाई की बेला।
कितने ही दृश्य कौंध गये....
माँ की नन्हीं गुड़िया की
घर से छात्रावास तक की विदाई
अपने जड़ों से दूर जाने की विदाई
एक आँगन से दूसरे आँगन में रोपने की विदाई
पत्नी ,बहू माँ रूप में जीवन का तप..
समय के चक्र में वही क्रम ,वही विदाई
एक एक कर सब विदा लेते हुए....
वही नम आँखे ....
जीवन के लंबे सफर में
उम्र के इस ढलान पर
काश मैं भी इन पत्तों सी विदाई ले लेती...
साँसों की डोर में..निरर्थक बंधी हुई ..
अंतिम विदाई ले पाती..
तभी एक मैले कुचैले कपडे में
एक अबोध बालिका का रुदन
विचलित कर गया ...
अभी रोकनी होगी अपनी अनंत
यात्रा की कामना ..
और सार्थक करनी होगी
अपनी अंतिम विदाई ...
अनिता सुधीर
Monday, May 25, 2020
मुक्तक
मुक्तक
मॉपनी
1222 1222 1222 1222
**
1)
वंदना
विराजो शारदे माँ तुम,नया आसन बिछाते हैं ।
तुम्हारी ही कृपा से हम,विधा नित सीख पाते हैं।
सजाते भाव के मोती,चढ़ाते शब्द की माला,
तुम्हारी ही कृपा से हम,अनोखे पद रचाते हैं ।
2)
मुहब्बत
लगाते आग जो तुम हो,बुझाना भूल जाते हो ,
जमाने से छिपाते हो ,बताना भूल जाते हो ,
मुहब्बत को इशारे से ,जताया आप ने होता ,
रही फितरत तुम्हारी ये ,मनाना भूल जाते हो ।
3)
मुहब्बत के तरानों में ,तरन्नुम साज बनती है,
कभी दिल गुनगुनाता है,गजल अल्फाज बनती है।
तराने आशिकी गाते ,निगाहों से जताना है,
पहेली इश्क़ कब सुलझी,यही आवाज बनती है।।
4)
मित्रता
न हमको सांझ की चिंता,न हमको रात का डर है,
मिले जो तुम मुझे मित्रों, न हमको घात का डर है,
पलों को जी लिया करते,ठहर जाये यहीं जीवन,
रहे बैचैन क्यों अब हम ,मुझे किस बात का डर है।
अनिता सुधीर आख्या
Friday, May 22, 2020
दर्पण
दर्पण को आईना दिखाने का प्रयास किया है
दर्पण
*********
दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है तुम्हें
अपने पर ,
कि तू सच दिखाता है।
आज तुम्हे दर्पण,
दर्पण दिखाते हैं!
क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट
बिखर नहीं जाएगा
जब तू उजाले का संग
नहीं पाएगा
माना तू माध्यम आत्मदर्शन का
पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता है
कि तू सच बताता है ।
माना तुम हमारे बड़े काम के ,
समतल हो या वक्र लिए
पर प्रकाश पुंज के बिना
तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
दर्पण को दर्पण दिखलाना
मन्तव्य नहीं,
लक्ष्य है आत्मशक्ति
के प्रकाश पुंज से
गंतव्य तक जाना ।
अनिता सुधीर
Monday, May 18, 2020
रोटी
कुंडलिया
1)
रोटी पर कविता लिखे,कहाँ मिटे है भूख।
दो रोटी की आस में ,आंतें जाती सूख ।।
आंतें जाती सूख ,उदर पानी से भरते।
मिलती कवि को वाह,तड़प कर भूखे मरते।।
काल बड़ा है क्रूर,रही किस्मत भी खोटी ।
भरा रहे अब थाल ,लिखे कवि ऐसी रोटी ।।
2)
रोटी माँ के हाथ की,रखे स्वाद भरपूर।
दो रोटी के फेर में ,हुए उन्हीं से दूर ।।
हुये उन्हीं से दूर ,नहीं अब दालें गलती।
मिले वही फिर स्वाद ,कमी अब माँ की खलती।।
नहीं रही वो डाँट ,नीर से रोटी घोटी ।
भरे नयन में नीर ,याद आती वो रोटी ।।
3)
'रोटी बैठा तोड़ता' ,करे नाम बदनाम ।
महत्व रोटी का रहा,करना पड़ता काम।।
करना पड़ता काम,सभी आलस को छोड़ो।
मिले नहीं बिन दाम,मुफ्त मत इसको तोड़ो।।
रहा परिश्रम सार ,जोर हो एड़ी चोटी ।
तृप्त हुआ उर भाव ,कमाई जब खुद रोटी।।
4)
माया ठगिनी डोलती,बदल बदल कर रूप।
नाच नचाती ये रही ,रहे रंक या भूप ।।
रहे रंक या भूप ,लगी तृष्णा जो मन की।
बिक जाता ईमान ,मिटे पर भूख न इनकी।।
छीन रहे अधिकार ,तिजोरी भर भर खाया ।
बुझी नहीं है प्यास,रही रोटी की माया ।।
अनिता सुधीर आख्या
Saturday, May 16, 2020
त्रासदी
***
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया
गरम रोटियां जब सिकती
तब पाँवों के उन छालों से
व्यथा भाप बन कर फिकती
हृदय यंत्र तब छुप छुप रोते
नाद बुलाते साँवरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया
मौतें सप्तम स्वर गाये
काल क्रूर जब स्वप्न कुचलते
राग गीत कैसे भाये
तप्त दुपहरी ज्येष्ठ दिखाये
मोड़ मोड़ पर काँवरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया
दृगजल की बरसात हुई
स्वर कंपित हो अधर मौन तब
आज भयावह रात हुई
प्राण फूँक तुम कर्म गीत के
प्रीत भरो अब अंजुरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया
Tuesday, May 12, 2020
मंगल यात्रा
आज से train का संचालन आरम्भ हो रहा है ,जीवंतता का एक खूबसूरत एहसास है ,इसी को लिखने का प्रयास
***
सत्य सलोना सुंदर सरगम
आस लगाए शहनाई
पटरी पर छुक छुक करता जब
नव जीवन भागा दौड़ा
कालापानी के चंगुल से
अब इसने नाता तोड़ा
विस्मृत स्मृतियाँ कालखंड की
सुखद भावना हरषाई
सत्य सलोना सुंदर सरगम
आस लगाए शहनाई
रुका हुआ नदिया का पानी
सागर से मिलना चाहे
पथराई आँखो के किस्से
में खूब भरी है आहें
आस मिलन की प्रियजन से अब
उड़न खटोले पर आई
सत्य सलोना सुंदर सरगम
साज सजाती शहनाई
अनगिन पापड़ बेले सबने
मेघ सुखाते हैं आकर
एक सुनहरी धूप उतरती
खिलता सुख ऊर्जा पाकर
कोमल मादक मस्त महकती
कलियाँ अब ले अँगड़ाई
सत्य सलोना सुंदर सरगम
आस लगाए शहनाई।
अनिता सुधीर आख्या
Sunday, May 10, 2020
माँ
शायद सबके मन की बात हो
*मैं* ,*मेरी माँ* ,*मेरे बच्चे*
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।
उंगली थाम कर चलना सीखा
कदम कदम पर डाँट पड़ी
हाथ पकड़ संतान चलाये
निर्देशों की लगी झड़ी
स्वर्ग मिला है मातु गोद में
बच्चे अब भान करायें
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।
पीर मातु ने सदा छुपाई
कितने कष्ट सहे थे तब
व्यथा झेल कर कष्ट छुपाते
वही करें औलादें अब
लिटा गोद में सिर सहला के
थपकी देकर लोरी गाये
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।
मेरी माँ मेरे अंदर है
सदा रही उनके जैसी
चक्र समय का चलता जाता
संतति राह चले वैसी
मातु भाव में संसार निहित
शब्द नहीं इसको पाये
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।
अनिता सुधीर आख्या
Saturday, May 9, 2020
भूख
Thursday, May 7, 2020
यादें
बूंदो की वो सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर
उन गलियों में याद दौड़ती
छुप छुप के नंगे पाँवों से ,
शूल चुभाते कुछ किस्से थे
तब गन्ध उठी उन घावों से ।
कटी प्याज सी खुश्बू यादें
ठहर गयी आँखो में आकर
बूंदो की सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर।
भानुमती का खोल पिटारा
अनगिन यादें आज खँगाली।
उमड़ घुमड़ कर मेघा बरसे
नैना बनते आज सवाली ।।
मौन खड़ा सब झेल रहा मन
याद बनाती जब भी चाकर
बूंदो की सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर
खाद पड़ी थी विष बेलों पर
अमर याद ये बढ़ती जाती,
लिपट वल्लरी उन खंभों पर
अनचाहे ही चढ़ती जाती
सदा फूलती फलती रहती
बिना नीर के दुख को खाकर
बूंदो की सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर।
अनिता सुधीर आख्या
Thursday, April 30, 2020
लखनऊ
मेरा शहर
***
धाम नवाबों के नगर,लखनपुरी है नाम ।
बागों का है ये शहर,लिये दशहरी आम ।।
अविरल नदिया गोमती, उत्तर रहा प्रदेश ।
हँसते हँसते आप भी ,कुछ पल करें निवेश।।
आप आप पहले कहें,अद्भुत है तहजीब ।
अवध नज़ाकत जानिये, उर्दू रहे करीब ।।
बाड़ा है ईमाम का ,भूलभुलैया नाज ।
हर पल के इतिहास में,कितने सिमटे राज।।
ज्येष्ठ मास मंगल रहा ,यहां बड़ा ही खास ।
पंच मुखी हनुमान जी,पूरी करिये आस ।।
नृत्य कला का केंद्र ये ,संस्कृति से भरपूर।
चिकन काम प्रसिद्ध हुआ,जरदोजी मशहूर।।
शाला चलती शोध की ,सिखा रहा विज्ञान ।
औषधि, पादप क्षेत्र में ,होते अनुसंधान ।।
पान लखनवी खाइए,संग टुंडे कबाब ।
लाजवाब कुल्फी रहे,हजरतगंज शबाब।।
कण कण में है शायरी ,आशिक़ी रहा मिजाज।
चौराहे नुक्कड़ सजे ,रिश्तों के नित साज ।।
गंगा जमुनी सभ्यता,है इसकी पहचान।
मुझको इस पर गर्व है,मेरा शहर महान।।
अनिता सुधीर आख्या
Tuesday, April 28, 2020
बुद्धि और ज्ञान
मनुज श्रेष्ठतम जीव में,ज्ञान रहा आधार ।
ज्ञान सत्य की खोज से,करे बुद्धि विस्तार।।
बुद्धि सदा सत्मार्ग हो,करना पड़ता यत्न।
तत्व ज्ञान मिलता तभी,संग रहे गुरु रत्न ।।
ज्ञानी जब अभिमान में,करते रहते रार ।
बुद्धि चक्षु को खोलता,सकल जगत का सार।।
निराकार शिव जानिये,शंकर हैं साकार।
बुद्धि ज्ञान के भेद से, तत्व लिए आकार ।।
****
©anita_sudhir
Friday, April 24, 2020
ध्यान
ध्यान
आदि सृष्टि में मूल ओंकार
कल्याण भाव का अर्थ निहित
स्थूल जगत के सूक्ष्म मनुज कण
वृहद ब्रहमांड समाये हुए
पंच तत्व से बना शरीरा
अनगिन रहस्य छिपाये हुए
ॐ निनाद में शून्य सनातन
है ब्रहाण्ड समस्त समाहित
आदि सृष्टि में मूल ओंकार
कल्याण भाव का अर्थ निहित।
निसृत ध्वनी होती श्वासों से
प्रणव बोध के अवयव जानें
नौ नादों की योग भूमियाँ
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव मानें
अन्तर्मन में ध्यान लगा के
प्रणव स्फुरण अति बल अवगाहित
आदि सृष्टि का मूल ओंकार
कल्याण भाव का अर्थ निहित।
शून्य विचारों को करके जब
बहिर्जगत से नाता तोड़ा
पक्षी कलरव की आवाजें
सागर तट से बंधन जोड़ा
मिश्रित ध्वनि जो उद्भव अंतस
गतिशील गंगा से प्रवाहित
आदि सृष्टि का मूल ओंकार
कल्याण भाव में अर्थ निहित।
अनिता सुधीर आख्या
Wednesday, April 22, 2020
मन
चेतन अरु अवचेतना ,रखे भिन्न आयाम ।
जाग्रत चेतन जानिये ,अवचेतन मन धाम।।
पंच तत्व निर्मित जगत,चेतन जीवन सार ।
अवचेतन मन साधना ,पूर्ण सत्य आकार ।।
तर्क शक्ति अरु भावना,नींव पड़े व्यवहार ।
सोच सकारात्मक रखें,यही सत्य आधार ।।
दोनों का अस्तित्व ही ,है जीवन का सार ।
दूर करें पाखंड जो ,मन हो एकाकार।।
Sunday, April 19, 2020
कैक्टस का फूल
मरुथल में
एक फूल खिला
कैक्टस का ,
तपते रेगिस्तान में
दूर दूर तक रेत ही रेत ,
वहाँ खिल कर देता ये संदेश
विपरीत स्थितियों में
कैसे रह सकते शेष
फूल खिला तो सबने देखा ,
पौधे को किसने सोचा?
स्वयं को ढाल लिया
विपरीत के अनुरुप
अस्तित्व को बदला कांटो में
संग्रहित कर सके जीवन जल
खिल सके पुष्प ।
ऐसे ही नही खिलता
मानव बगिया मे कोई पुष्प,
माली को ढलना पड़ता है,
परिस्थिति के अनुरूप ।
अनिता सुधीर
Wednesday, April 15, 2020
विषाणु
सोच का विषाणु
छिपा हुआ है विष अणुओं का
बुद्धि कवच की कच्ची गोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली
मिले जीत जब दिखता दुश्मन
बात सही है नहीं ठिठोली
निम्न सोच की चादर ताने
अदृश्य सोता रहा बिचोली
एक कोप कोरोना बनकर
खेल रहा है आंख मिचोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।
मार कुंडली बैठा सिर पर
नित भ्रष्ट करे सुविचारों को
अपना उल्लू रहा साधता
क्यों अनगिन पाल विकारों को
अहम् खड़ा है शीश उठाये
खेल तंत्रिकाओं से होली।
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।
दबे पांव धीरे घुस आता
और दिखाता हेरा फेरी
भेजा मति को घास चराने
करता पल पल तेरी मेरी
एक बखेड़ा द्वार खड़ा है
एक बनाता घृणित रंगोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।
अनिता सुधीर आख्या
Monday, April 13, 2020
माटी
दोहावली
***
माटी मेरे देश की,इस पर है अभिमान।
तिलक लगा कर भाल पर,करते हैं सम्मान।।
इस माटी में जन्म ले काम इसी के आय।
वतन पर जो मर मिटे,जीवन सफल कहाय।।
रक्त शहीदों का बहा,माटी है अब लाल।
कब तक होगी ये दशा,माटी करे सवाल।।
पूजें माटी खेत की,करके कर्म पवित्र।
मान बढ़े भू पुत्र का ,करें यत्न सब मित्र ।।
अंकुर निकले बीज से ,दे ये अन्न अपार।
माटी गुण की खान है,औषध की भरमार।।
कच्ची माटी के घड़े ,सोच समझ कर ढाल।
उत्तम बचपन जो गढ़ो ,उन्नत होगा काल।।
माटी को बाँधे जड़ें ,रोके मृदा कटाव ।
स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव।।
अनिता सुधीर
Saturday, April 11, 2020
सैनिक
Friday, April 10, 2020
दीप
दोहावली
**
दीप जलाओ प्रेम का,लड़ना भीषण युद्ध ।
ऊर्जा का संचार हो ,अंतस होगा शुद्ध ।।
**
मानवता के दीप को,शत शत करें प्रणाम।
विकट काल में वीर ये,करते उत्तम काम ।।
**
अंतस की बाती बना,तेल समर्पण डाल ।
दीपक बन कर हम जलें,उत्तम होगा काल।।
**
दीप जला कर ज्ञान का,करें तमस का नाश।
ध्वजवाहक अब आप हो,फैले सत्य प्रकाश।।
***
विकट काल है विश्व में,भारत जगमग देश ।
जले दीप से दीप जो,बना नया परिवेश ।।
अनिता सुधीर
Thursday, April 9, 2020
वैरागी
मनुष्यत्व को छोड़
देवत्व को पाना ही
क्या वैरागी कहलाना ।
पंच तत्व निर्मित तन
पंच शत्रुओं से घिरा
जग के प्रपंच में लीन
इस पर विजय
संभव कहाँ!
हिमालय की कंदराओं में
जंगल की गुफाओं में
गरीब की कुटिया में
या ऊँची अट्टालिकाओं में!
कहाँ मिलेगा वैराग्य
क्या करना होगा सब त्याज्य
क्या बुद्ध बैरागी रहे
या यशोधरा कर्तव्यों को
साध वैरागिनी रहीं !
गेरुआ वसन धारण किये
हाथ में कमंडल लिये
सन्यासी बने
वैरागी बन पाए
या संसारी संयमी हो
कर्त्तव्य साधता रहा
वही वैरागी रहा ।
ज्ञान प्राप्ति की खोज
दर दर भटकते लोग
निर्लिप्त में लिप्त
वो वैरागी
या जो लिप्त में निर्लिप्त
हो जाये,
वो वैरागी कहलाये।
©anita_sudhir
Monday, April 6, 2020
महावीर जयंती
कविता
छंदमुक्त
***
अज्ञानता का अंधकार जब छाया था संसार में
ज्ञान का प्रकाश फैलाया चौबीसवें तीर्थंकर ने ।
जन्म पूर्व माँ त्रिशला को स्वप्न में आभास हुआ
राजा सिद्धार्थ ने स्वपनों को यथा परिभाष किया।
साधना ,तप ,अहिंसा से, सत्य से साक्षात्कार किया
महापुरुष महावीर ने जनजीवन को आधार दिया ।
जैन धर्म को पंचशील का सिद्धांत बतलाया
सत्य,अहिंसा,अपरिग्रह,अस्तेय, ब्रह्मचर्य सिखाया ।
बारह महत्वपूर्ण वचनों से था भिज्ञ करवाया
'जियो और जीने दो' का अर्थ था समझाया ।
शत्रु कहीं बाहर नही ,भीतर ही विराजमान है
क्रोध ,घृणा ,लोभ अहम से लड़ना सिखाया ।
स्वयं को जीतना ही श्रेयस्कर है ,समझाया
क्षमा और प्रेम के महत्व का पाठ पढ़ाया ।
आत्मा सर्वज्ञ और आनंद पूर्ण है ,
शांति और आत्मनियंत्रण ही महत्वपूर्ण है ।
अलग कहीं न पाओगे प्रभु के अस्तित्व को
सही दिशा में प्रयास कर पा जाओ देवत्व को ।
शेर और गाय अब एक ही घाट पानी पियें
आओ मानवता का दीप हम प्रज्वलित करें।
आज के समय की भी यही पुकार है
तीर्थंकर के संदेशों को आत्मसात कर जीवन सफल करें।
उनके वचनों का पालन करने का व्रत लेते है
महावीर जयंती पर शत शत नमन करते हैं ।
अनिता सुधीर
Thursday, April 2, 2020
राम
दर्शन चिंतन राम का,है जीवन आधार।
आत्मसात कर राम को,मर्यादा है सार ।।
नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल
नेह हृदय कुछ बोल रहा था,
बसी राम की उर में मूरत
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।
मुखमंडल की आभा ऐसी,
दीप्ति सूर्य की चमके जैसी।
बंद नयन में तुमको पाया,
आठ याम की लगन लगाया।
इस पनघट पर घट था रीता
ज्ञान चक्षु वो खोल रहा था।
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।।
आहद अनहद सब में हो तुम ,
निराकार साकार सभी तुम ।
विद्यमान हो कण कण में तुम ,
ऊर्जा का इक अनुभव हो तुम ।
झांका जब अपने अंतस में,
वरद हस्त अनमोल रहा था ।
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।।
राम श्याम बन संग रहो तुम,
चाह यही मैँ ,तुम्हें निहारूँ ।
मन मंदिर के दरवाजे पर,
नित दृगजल से पाँव पखारूं।
इसी आस में बैठी रहती ,
उर सागर किल्लोल रहा था।
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।
अनिता सुधीर 'आख्या'
Saturday, March 28, 2020
स्त्री
लिये चित्त में शून्यता
रही सदा निर्वात,
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
तन कठपुतली सा रहा
थामे दूजा डोर ,
सूत्रधार बदला किये
पकड़ काठ की छोर
मर्यादा घूँघट ओढ़ती
सहे कुटिल आघात
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
चली ध्रुवों के मध्य ही
भूली अपनी चाह
तोड़ जगत की बेड़ियां
चाहे सीधी राह,
ढूँढ़ रही अस्तित्व को ,
बहता भाव प्रपात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
जिसके आँचल के तले
सदा रही हो छाँव
सदियों से कुचली गयी
आज माँगती ठाँव
सूत्रधार खुद की बने
पीत रहे क्यों गात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
"
Wednesday, March 25, 2020
नव संवत
नव संवत नव वर्ष
मुक्तक
***
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,ये हिन्दू नववर्ष।
नव संवत प्रारंभ है ,हो जीवन में हर्ष ।।
नाम 'प्रमादी' वर्ष में ,बनते 'बुध' भूपाल,
मंत्री बन कर चंद्रमा,करे जगत उत्कर्ष ।।
***
गुड़ी ,उगाड़ी पर्व अरु,भगवन झूले लाल।
नौ दिन का उत्सव रहे ,नव संवत के साल।।
रचे विधाता सृष्टि ये ,प्रथम विष्णु अवतार ,
सतहत्तर नव वर्ष में ,उन्नत हो अब काल।।
***
नौरातों में प्रार्थना ,माँ आओ उर धाम ।
करे कलश की स्थापना,पूजें नवमी राम ।।
कष्टहारिणी मातु का ,वंदन बारम्बार ,
कृपा करो वरदायिनी,पूरे मङ्गल काम ।।
***
धर्म ,कर्म उपवास से ,बढ़ता मन विश्वास।
अन्तर्मन की शुद्धता ,जीवन में उल्लास।।
पूजें अब गणगौर को ,मांगे अमर सुहाग,
छोड़ जगत की वेदना,रखिये मन में आस।।
**
कली ,पुष्प अरु मंजरी,से सुरभित संसार ।
कोयल कूके बाग में ,बहती मुग्ध बयार ।।
पके अन्न हैं खेत में ,छाये नव उत्साह ,
मधुर रागिनी छेड़ के,धरा करे श्रृंगार ।।
अनिता सुधीर आख्या
Tuesday, March 24, 2020
वर्तमान
वर्ण नाचते झूम झूम के
देखो ता ता थैया
भाव बुलाते ताल बजा के
गीत लिखो अब भैया ।
खड़ी रात की दीवारें हैं
पड़ा सूर्य पर गरदा
शोर मचाता श्वान चीख के
फटा कान का परदा
दृश्य कौंधता उस मरघट का
नहीं मिली जब शैया
कैसे रच दूँ गीत अनोखा
तुम्हीं बताओ भैया।।
काल खंड की प्रस्तर मूरत
बहती दृग से सरिता
बड़ी उम्र से सूनी सड़कें
कौन रचेगा कविता
गीत रचा तू प्राण फूँक दे
बाट जोहती मैया।।
कैसे रच दूँ गीत अनोखा
तुम्हीं बताओ भैया।।
सभी जला दें दुख के कंबल
तमस हृदय को चिरता
चाँद कला की कारागृह अब
देख!रुपैया गिरता
मेघ छँटे उर विश्वास जगा
मोर नाचते छैया।।
नवल धवल हो सुखद सबेरा
तभी लिखूंगा भैया।।
वर्ण नाचते झूम झूम के
देखो ता ता थैया
भाव बुलाते ताल बजा के
गीत लिखो अब भैया ।
©anita_sudhir
Sunday, March 22, 2020
आह्वान
रोला छन्द
***
रहें घरों में कैद ,दवा ये उत्तम जानें ।
संकट में है राष्ट्र ,बात मुखिया की मानें।
बनें जागरूक आप ,नहीं अब विचलित होना ।
करें योग अरु ध्यान ,हराना अब कोरोना ।
सामाजिक अभियान ,निभाओ जिम्मेदारी ।
उत्तम करो विचार ,छिपाओ मत बीमारी ।
योद्धा हैं सब आज,सजग प्रहरी अब बनिये।
कोरोना का नाश,सभी मिल जुल कर करिये ।
मचता हाहाकार,काल आपात लगाया।
कोरोना का वार,बंद बाजार कराया ।
भरो नहीं भंडार ,नागरिक उत्तम बनना ।
संकट में सब साथ ,मनन ये सबको करना।
नहीं प्राण का मोह ,लगे परहित में रहते ।
नमन उन्हें सौ बार,कष्ट वो कितने सहते ।
प्रकट करें आभार ,बजायें मिल कर ताली।
भाव एकता सार ,बताती बजती थाली ।
Friday, March 20, 2020
गीतिका
**
पढ़े लिखों को देखिये,हो गयी बुद्धि खाक।
नेता मंत्री मौज में,शहर हुआ नापाक ।।
बोझ व्यवस्था पर बढ़ा ,बढ़ता मन में क्षोभ,
क्षणिक लाभ ये देखते,जनता खड़ी अवाक ।
निम्न कोटि की सोच ने ,किया हाल बेहाल,
कारागृह में डालिये ,बात कहूँ बेबाक ।
रोजी रोटी बंद है, होती बंद दुकान,
कैद घरों में हो गये ,मारो एक फटाक।
मुसीबतें कितनी बढ़ी,कितना फैला रोग ,
शर्म करो करतूत पर ,धूमिल करते नाक ।
©anita_sudhir
Thursday, March 19, 2020
वायरस
छंदमुक्त
***
वायरस ने जब पैर फैलाये
सिंहासन सबका डोल गया
"विषाणु" विष अणु बन कर
जब फ़ेफ़डों को लील गया ।
हथियारों के जखीरे धरे रहे
परमाणु बम जो डराते रहे
प्रोटीन परमाणु ने काम तमाम किया
दुनिया का जीना हराम किया ।
अहम् के किले कुछ ऐसे ढहे
अस्तित्व के संकट में सब कुछ बहे
प्रत्यारोप ,प्रकोप का प्रलाप चला
प्रलय प्रवर्धन से अब हाल बुरा ।
ये भविष्य की बानगी भर है
प्रकृति से जो खिलवाड़ किया
जीव की जो ये आह लगी
फिर दूर से प्रणाम किया ।
वायरस वायरल हो रहा
नकली सेनेटाइजर का बाजार बढ़ा
दिमाग में घुसे वायरस ने
मास्क का घिनौना खेल चला ।
कोरोना वायरस का रोना है
इसकी कोई दवा नहीं
आकार परिवर्तित हो जाये
प्रबंधन आसान हो जाये ।
पर ...दिमाग में घुसे कुटिल
वायरस के हमले से कौन बचाये
उसका एंटीवायरल कौन बनाये!
अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
Monday, March 16, 2020
साँस
अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।
जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
अचेतन में अस्ति से नास्ति
का जीवन है बड़ा कठिन ।
अस्थि ढांचा है पड़ा हुआ
मन देख कर ये द्रवित हुआ
ये कैसी परिस्थिति है,जब
जीवन अस्तित्व विहीन हुआ
सांसों के आने जाने के क्रम में
उपकरणों का सहारा है
अपनों के मुख पर मायूसी
नियति से मानव हारा है ।
©anita_sudhir
Saturday, March 14, 2020
कोरोना
कुंडलिया
1)
कोरोना का कोप अब,फैल रहा अविराम।
ग्रसित 'सूक्ष्म' आतंक से,करने लगे प्रणाम।
करने लगे प्रणाम,बनें सब शाकाहारी ।
सामाजिक अभियान,निभायें जिम्मेदारी ।
अपना करें बचाव,बीज संस्कृति के बोना ।
बनें जागरुक आप ,नाश करिये कोरोना ।।
2)
विचलित होते सूरमा,कैसा फैला त्राण।
कोरोना से हारते , संकट में हैं प्राण ।
संकट में हैं प्राण,करें अब मंथन चिंतन।
उत्तम करें विचार,रहे जीवन प्रद्योतन ।
भारत ऊँचा नाम,हवन है संस्कृति अतुलित।
स्वच्छ रहे अभियान,नहीं हो इससे विचलित ।
3)
कोरोना लक्षण जानिये,सर्दी छींक जुकाम।
श्वसन तंत्र की गड़बड़ी, करती काम तमाम।
करती काम तमाम,बने क्यों अब तक भक्षक।
लौंग पोटली साथ, स्वयं ही बनिये रक्षक ।
बात नीति की मान,सदा हाथों को धोना ।
इस पर करें प्रहार,जीव नन्हां कोरोना।
4)
दुविधा ऐसी देखिये,बंद पड़ा व्यापार ।
अर्थ व्यवस्था डूबती,मचता हाहाकार।
मचता हाहाकार,काल आपात लगाया।
कोरोना का वार,बंद बाजार कराया ।
चौपट हैं उद्योग,मिलेगी कब तक सुविधा।
करिये नेक उपाय ,खत्म हो सारी दुविधा ।
अनिता सुधीर'आख्या'
Friday, March 13, 2020
सतरंगी
***
बीते कालिमा
अब फैले लालिमा ,
आभा सिंदूरी
मृग ढूँढे कस्तूरी,
धूप गुलाबी
श्वेत हिम सजाती,
स्वर्णिम रश्मि
नीले सागर आती,
पावन धरा
है उपवन हरा,
चूनर पीली
ओढ़ती हरियाली,
किंशुक लाली
पुरवा मतवाली ,
श्वेत चाँदनी
खिले पुष्प बैंगनी!
रूप प्रकृति
अनमोल संपत्ति
हो रक्षा ज्यों संतति।
स्वरचित
अनिता सुधीर
Thursday, March 12, 2020
भाईचारा
आईना
मुक्तक
1)
दर्पण तुम लोगों को , आइना दिखाते हो।
बड़ा अभिमान तुमको,कि तुम सच बताते हो।
बिना उजाले के क्या ,अस्तित्व रहा तेरा ,
दायें को बायें कर ,क्यों फिर इतराते हो ।
2)
जब तू करे श्रृंगार प्रिये ,माथे की बिंदिया बन जाऊँ।
हाथों का कँगना बन जाऊँ,ज़ुल्फों पर वेणी सज जाऊं।
तेरे रूप का प्रतिरूप बनूँ,छाया की प्रतिछाया बनूँ
अधरों की लाली बन जाऊँ,मैं इक आईना बन जाऊं।।
3)
ये दर्पण पर सीला पन था,
या छाया का पीला पन था ।
आईने को पोछा बार बार ,
क्या आँखो का गीलापन था ।
4)
हर शख्स ने चेहरे पर चेहरा लगा रखा है ।
अधरों पर हंसी, सीने में दर्द सजा रखा है ।
सुंदर मुखौटों का झूठ बताता है आईना ,
और मायावी दुनिया का सच छिपा रखा है।
अनिता सुधीर"आख्या"
Tuesday, March 10, 2020
नवगीत
14/14
अहम् की निरंकुश सत्ता
मिटाने जल्लाद आया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया
सूक्ष्म ने फिर सिर उठाया
रूप विकृत ले के आया
स्वाद भोजन तुम बढ़ाते
नाकों चने वो खिलाया
आह अब कीड़ों की लगी
वो यही अवसाद लाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया
कुम्भकरण की निंद्रा ले
संस्कृति सोई है कबसे
सत्य पगडण्डी ढूँढती
लाठी गांधी की कबसे
मौन 'चश्में' से झाँकता
कौन तन फौलाद लाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया।
सोच को नभ लेकर चलें
झूठ दम्भ में प्रेम पले
ईश मान अभिमानी को
बैठ चिता पर लगा गले,
जाग गयी ममता दिल में
चूनर औलाद उढ़ाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया।
अनिता सुधीर
Monday, March 9, 2020
होली गीत
दोहा छन्द
**
होली के त्यौहार में,जीवन का उल्लास ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास।।
बहन होलिका गोद में, ले बैठी प्रहलाद।
रहे सुरक्षित आग में ,ये था आशीर्वाद ।।
अच्छाई की जीत में ,हुई अहम् की हार ।
दहन होलिका में करें ,अपने सभी विकार ।।
अभिमानी के अंत का ,सदा रहा इतिहास
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
टेसू लाली फैलती ,उड़ता रंग गुलाल ।
मन बासंती हो रहा ,फागुन रक्तिम गाल ।।
पीली सरसों खेत में,कोयल कुहुके डाल।
लगे झूलने बौर अब ,मस्त भ्रमर की चाल।।
बच्चों की टोली करे,पिचकारी की आस ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
होली के हुडदंग में ,बाजे ढोल मृदंग।
नशा भांग का बोलता,तन पर चढ़े तरंग।।
रंग लगाती सालियां, छिड़ी मनोरम जंग।
दीदी देखें क्रोध में,पड़ा रंग में भंग ।।
करें गली के लोग भी,भौजी सँग परिहास,
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
होली क्या खेलें सखी ,मन में उठती पीर ।
देखा खूनी फाग जो,धरी न जाये धीर ।।
हुआ रंग आतंक का ,छिड़ी धर्म की रार ।
दहन संपत्ति का किया ,लगी आग बाजार।।
जन जन में सद्भावना,मिल कर करें प्रयास।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
अनिता सुधीर "आख्या"
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
होलिका दहन
***
प्रत्येक युग का सत्य ये कह गए ज्ञानी प्रज्ञ
होलिका की अग्नि समझ जीवन का यज्ञ।
होलिका प्रतीक अज्ञान अहंकार का
विनाश काल में बुद्धि विकार का।
प्रह्लाद रूप धरे निष्ठा विश्वास का
कालखंड का सत्य,भक्ति अरु आस का ।
होलिका दहन है,अंत राग द्वेष का
प्रतीक है परस्पर सौहार्द परिवेश का।
होलिका की अग्नि में डाल दे समिधा
अहम त्याग कर ,मिटा दे सारी दुविधा
रक्षा कवच अब सत्कर्म का धारण कर
जीवन के यज्ञ में कर्म की आहुति भर
रंगोत्सव संदेश दे जीवन सृजन का
फागुन है मास अब कष्ट हरण का
पलाश के वृक्ष में निवास देवता का
लाल चटक रंग है मन की सजीवता
टेसू के रंग से तन मन भिगो दो
अबीर गुलाल से द्वेष को भुला दो ।
अब कहीं होलिका में घर न जले
पलाश के रंग सा रक्त न बहे
फागुन मधुमास में प्रीतम सँग होली
मस्ती लुटाती देवरों की टोली ।
ढोलक की थाप पर भांग नशा छाया
फागुन का यौवन मन हरषाया ।।
अब कहीं होलिका में घर न जले
पलाश के रंग सा रक्त न बहे ।
पलाश के रंग सा रक्त न बहे ।
अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
Sunday, March 8, 2020
नारी
कुंडलिनी
1)
वनिता ,नव्या ,नंदिनी, निपुणा बुद्धि विवेक ।
शिवा,शक्ति अरु अर्पिता ,नारी रूप अनेक ।
नारी रूप अनेक, रहे अविरल सम सरिता ।
सकल जगत का मान,सृजनकारी है वनिता ।
2)
नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज।
पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।
निर्बल करता आज,बनो मत अब बेचारी
अपनी रक्षा आप ,सदा तुम करना नारी।।
3)
सहना मत अन्याय को,इससे बड़ा न पाप।
लो अपना अधिकार तुम,छोड़ो अपनी छाप ।
छोड़ो अपनी छाप ,यही है उत्तम गहना ।,
मत करना अब पाप,कभी मत इसको सहना ।
4)
सरिता सम नारी रही,अविरल रहा प्रवाह।
जन्म मरण दो ठौर की ,बनती रहीं गवाह ।
बनती रहीं गवाह,इन्हीं से जीवन कविता ।
सदा करें सम्मान ,रहे निर्मल ये सरिता ।
5)
नारी तुम हो श्रेस्ठतम,तुम जीवन आधार ।
एक दिवस में तुम बँधी,माँगों क्यों अधिकार।
माँगों क्यों अधिकार,निभाओ भागीदारी ।
परम सत्य ये बात ,रहे पूरक नर नारी।
अनिता सुधीर आख्या
Saturday, March 7, 2020
अग्निशिखा
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
कितने धागे टूटा करते ,सूखे अधरों को सिलने में,
पहर आठ अब तुरपन करते,क्षण लगते कुआं भरने में,
रिसते घावों की पपड़ी से,पल पल बखिया वही उधेरा ,
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
पुष्प बिछाये और राह पर,शूल चुभा वो किया बखेरा
दुग्ध पिला कर पाला जिसको,वो बाहों का बना सपेरा ।
पीतल उसकी औकात नहीं,गढ़ना चाहे स्वर्ण ठठेरा
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
बन कर रही मोम का पुतला,धीरे धीरे सब पिघल गया
अग्निशिखा अब बनना चाहूँ,कोई मुझको क्यों कुचल गया
अब अंतस की लौ सुलगा कर,लाना होगा नया सवेरा ।
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा था चैन लुटेरा ।
दीपशिखा,....
#हिंदी _ब्लॉगिंग
औरतें
ख्वाहिशों का बोझ ढोते
सदियों से वर्जनाओं मे जकड़ी
परम्पराओं और रुढियों
की बेड़ियों मे बंधी
नित नए इम्तिहान से गुजरती
हर पल कसौटियों पर परखी जाती
पुरुषों के हाथ का खिलौना बन
बड़े प्यार से अपनों से ही छली जाती
बिना अपने पैरों पर खड़े
बिना रीढ़ की हड्डी के,
ये अपने पंख पसारती
कंधे से कंधा मिला कर चलती
सभी जिम्मेदारियाँ निभाती
खामोशी से सब सह जाती
आसमान से तारे तोड़ लाने
की हिम्मत रखती है
तभी नारी वीरांगना कहलाती है ।
ये क्या एक दिन की मोहताज है..
नारी !गलती तो तुम्हारी है
बराबरी का अधिकार माँग
स्वयं को तुम क्यों कम आँकती
तुम पुरुष से श्रेष्ठ हो
बाहुबल मे कम हो भले
बुद्धि ,कौशल ,सहनशीलता
मे श्रेष्ठ हो तुम
अद्भुत अनंत विस्तार है तुम्हारा
पुष्प सी कोमल हो
चट्टान सी कठोर हो
माँ की लोरी ,त्याग मे हो
बहन के प्यार में हो
पायल की झंकार हो तुम
बेटी के मनुहार मे हो
नारी !नर तुमसे है
सृजनकारी हो तुम
अनुपम कृति हो तुम
आत्मविश्वास से भरी
अविरल निर्मल हो तुम
चंचल चपला मंगलदायिनी हो तुम
नारी !वीरांगना हो तुम।
©anita_sudhir
Thursday, March 5, 2020
किताब
मुक्तक
1)
गुणी जनों ने लिख दिये ,कितने सुंदर तथ्य।
कड़ा परिश्रम जानिये,लिखा हुआ जो कथ्य।
आहुति देते ज्ञान की,बनती एक किताब ,
आत्मसात कर तथ्य का ,करें अनुसरण पथ्य ।
2)
रही किताबें साथ में ,बन कर उत्तम मित्र।
भरें ज्ञान भंडार ये ,लिये जगत का इत्र ।
इनका महत्व जान के,पढ़िए नैतिक पाठ ,
गीता ,मानस से सजे ,सुंदर जीवन चित्र ।
3)
जीवन ऐसा ही रहा ,जैसे खुली किताब,
प्रश्नों के फिर क्यों नहीं,अब तक मिले जवाब।
अर्पण सब कुछ कर दिया,होती जीवन साँझ,
सुलझ न पायी जिंदगी,ओढ़े रही नकाब।
4)
पुस्तक के ही पृष्ठ में,स्मृतियाँ मीठी शेष ।
प्रेम चिन्ह संचित रखे,विस्मृत नहीँ निमेष ।
वो किताब जब भी पढ़ी,मिलते सुर्ख गुलाब,
खड़े सामने तुम हुए ,रखे पुराना भेष ।।
5)
काल आधुनिक हो गया,बात बड़ी गंभीर ।
कमी समय की हो गयी ,नहीं बचा अब धीर।
पढ़ते अधुना यंत्र से ,छूते नहीं किताब ,
समाधान अब ढूँढिये,मन में उठती पीर ।
अनिता सुधीर"आख्या"
#hindi_blogging#हिन्दी_ब्लॉगिंग
Tuesday, March 3, 2020
अवतार
त्रेता, द्वापर प्रभु लिये ,राम ,कृष्ण अवतार।
कलयुग में अब "कल्कि" बन,करो दुष्ट संहार ।
करो दुष्ट संहार ,दनुजता दूर भगाओ ।
हुई धर्म की हानि,मनुजता फिर से लाओ।
लिये कल्कि अवतार,बनें स्वयं युग प्रचेता ।
जन जीवन मुस्कान,यही युग होगा त्रेता ।
2)
क्रंदन अन्तरमन करे ,देख क्रूर व्यवहार,
जलती रहती बेटियाँ,देवी रुप अवतार ।
देवी रुप अवतार ,कोख में मारी जाती।
सहती कितने कष्ट,न्याय की आस लगाती।
बेटी कुल की मान ,करें सब इनका वंदन ।
इन्हें मिले अधिकार,नहीं हो हिय में क्रंदन।
©anita_sudhir
गुब्बारे
कुंडलिनी
1)
गुब्बारे जब बेचते ,करें विनय !लो आप।
क्षुधापूर्ति को चाहिये,रहा अँगूठा छाप।
रहा अँगूठा छाप,तनय को दूँ सुख सारे।
हो उसका कल्याण ,नहीं बेचे गुब्बारे ।
2)
उसकी सुन कर बात यह, लो गुब्बारे आप।
नेक कार्य सहयोग हो ,करें दूर संताप ।
करें दूर संताप,व्यथा होती है सबकी ।
समझें गहरी बात ,मिटेगी पीड़ा उसकी ।
3)
बच्चे खेलें खेल जब,गुब्बारों के साथ।
रंग बिरंगे रूप में,सपने ले कर हाथ ।
सपने ले कर हाथ,नहीं टूटे ये कच्चे।
सुंदर सा संसार ,बसायें प्यारे बच्चे ।
4)
सज्जा घर की हो रही ,जन्मदिवस है आज।
गुब्बारों को देख कर, बाबा छेड़ें साज ।
बाबा छेड़ें साज ,छिपातीं दादी लज्जा ।
पोते का परिहास ,देख मुख पर ये सज्जा ।
5)
गुब्बारे सम फूल के ,ऊँची भरी उड़ान ।
फुस्स हवा जब हो गयी,निकली सारी शान ।
निकली सारी शान,दिखे अब दिन में तारे।
करना मत अभिमान, फूट जाते गुब्बारे ।
Monday, March 2, 2020
तारे
5,7, 5,7,7
सितारे /तारे
**
1)
सितारे भरी
झिलमिल चूनर
ओढ़े अम्बर!
चाँद सा प्रियवर,
लालिमा मुख पर ।
2)
काले बादल
तारों की टिमटिम
दुःख अस्थाई !
मेघों की रिमझिम ,
पल होंगे स्वर्णिम ।
अनिता सुधीर
Sunday, March 1, 2020
अपराधी कौन ?
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शिशिर को परेशान देखकर अजय ने पूछा _क्या बात हो गयी भाई!
यार अखबार पढ़ कर मन खराब हो जाता है।देखो न भ्रष्टाचार में भारत कितने ऊँचे पायदान पर है।
अखबार दिखाते हुए बोला।
अजय...अरे भाई शांत हो जाओ।समाधान तो हम सब को मिल कर निकालना है।
शिशिर .. मेरे बचत पत्र की अवधि पूरी हो गयी है ,वो लेने जाना है, चल यार मेरे साथ ,बातें भी होती रहेंगी।
ये काम आज नही हो सकता ,आप कल आइयेगा
कहते हुए कर्मचारी ने शिशिर की ओर देखा ।
शिशिर ..कुछ चाय पानी के लिये ले लो, पर मेरा काम जरा जल्दी करा दो।
अजय शिशिर को देख रहा था ।
अनिता सुधीर
#हिंदी _ब्लॉगिंग
Saturday, February 29, 2020
वैमनस्य
कब पकड़ोगे दूजा छोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर
एक डाल के सब पंछी है,
जग में रहते कोयल ,काग ,
जो हो मीठी,कर्कश वाणी
रखिये पर उर में अनुराग ।
मत बनिये मन कोयल काला
तन काले का भावे शोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।
अब मौसम बदले पल पल में
जब तब खेलें खूनी फाग
ठंडक में है गरमी लगती
अपनी ढपली अपना राग।
दिया सीख दूजों को करते,
उर सागर में बसता चोर ,
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।
सहन शक्ति सीता की भूले
भूले पन्ना माँ का त्याग,
बोझ अहम् का बढ़ता जाता,
जले स्वार्थ की उर मेँ आग।
घना कोहरा दूर भगाओ
प्रेम रश्मि से हो अब भोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर
©anita_sudhir
Friday, February 28, 2020
परीक्षा
सबका चैन उसने चुराया ।
कहानी घर घर की हुई
तू दिन भर क्या करता है ?
राजू देखो कितना पढ़ता है
उससे नंबर कम आये
तो मोबाइल तुम नही पाये ।
ऐसी बातें घर घर की
बच्चे पाते ज्यादा भाव
नहीं रखते कोई अभाव
सँग में देते ये तनाव
दूध बादाम तुम खा लो
प्रतियोगिता में दौड़ लगा लो
सबसे आगे रहना है
कम से कम सत्तानवे तो करना है ।
दिन वो जब शुभ आया
परीक्षा कक्ष में खुद को पाया
देख कर पेपर सिर चकराया
गणित के सवालों ने घुमाया
भौतिक के सिद्धांतों में उलझे
कहीं रासायनिक समीकरण गड़बड़ाया
सबकी महत्वाकांक्षाओं ने सिर उठाया ।
हक्का बक्का वो खड़ा हुआ
अवसादों में घिरा हुआ
जीने से आसान मौत लगी
उसे प्यार से गले लगाया
और सन्नाटा ....अंधकार
अखबार की सुर्खी बनी
एक प्रश्नचिन्ह
समाज के माथे बना गया
दोष कहाँ
शिक्षा व्यवस्था में या
परीक्षा प्रणाली में
प्रतिस्पर्धा या
प्रतिद्वंदिता में
शिक्षक के पठन पाठन में
या छात्र के मानसिक स्तर में
मां पिता के उम्मीदों में
कारण जो भी रहा
जिंदगी टूटती है
और यदि ये भार सहन नहीं
तो जीवन में कदम कदम पर परीक्षा
उसका क्या ?
अनिता सुधीर
Wednesday, February 26, 2020
पाषाण
जीवन था पत्थर पर निर्भर
जली थी अग्नि घर्षण से
मानव दिल में था आकर्षण।
पाषाण से करते आखेट
साधन भरण पोषण का ,
आवश्यकता जीवन यापन
अनगढ़ पुरातन काल पाषाण।
क्या पता गर्भ में !
भविष्य अब यह होगा
अब अग्नि से हुए घृणा पूर्ण कार्य
मानव दिल हुआ पाषाण
बढ़ता हृदय में विकर्षण ।
अब पत्थर से दे रहे आघात
घात लगा निर्बल को
चीखें ,और त्रास ही त्रास
क्यों नहीं पिघलता मानव पाषाण।
दर्द संवेदना लुप्त हो रहीं
व्यथित नहीं,
परपीड़ा से हृदय ।
परिवार अपने में सिमटते हुए ।
पाषाण मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा
भूखे नंगे दम तोड़ते
पाषाण मूर्ति पर सुसज्जित आभूषण
मानव मत बन तू पाषाण
अनगढ़ पुरातन काल पाषाण ।
मत जाओ पुरातन काल
आया एक कालखंड बाद
ये सुविधापूर्ण आधुनिक काल
साध इसे संतुलन ,आकर्षण से
मानव मत बन तू पाषाण
अनगढ़ पुरातन काल पाषाण ।
अनिता सुधीर"आख्या"
#हिंदी_ब्लॉगिंग
Tuesday, February 25, 2020
दोहावली
करते अनर्थ !अर्थ का,बुद्धिहीन ये मूढ़ ।।
कार्य अतिरिक्त सौंपते ,हनन हुये अधिकार।
नियुक्ति तदर्थ कीजिये,सुचारुता हो सार ।।
शंका अनर्थ निर्मूल है ,कर समर्थ विश्वास।
ले तदर्थ की चाह अब ,पूरी करिये आस ।।
घृणित कार्य उन्माद में,भूलते राष्ट्रवाद।
आग लगाते देश में,ये कैसा अवसाद ।।
दूर करें अवसाद को,छोड़ें वाद विवाद ।
देश प्रेम उन्माद में,फूँक बिगुल का नाद ।।
गौरान्वित हैं हम सभी,हुआ देश आजाद ।
आजादी के नाम पर ,कैसा करें जिहाद।।
धर्म जाति बदलाव का ,मुद्दा प्रेम जिहाद ।
असली मुद्दा भूलते ,....फैलाते उन्माद ।।
हुआ मार्ग अवरुद्ध ये ,निकल पड़ी बारात ।
नाचें गाते झूमते ,...........भूले यातायात ।।
द्वारे वंदनवार है ,आयी शुभ बारात ।
डोली बेटी की सजी ,खुशियों की सौगात ।।
अब दहेज की मांग पर,वापस हो बारात ।
बेटी कम मत आंकिये,बने सहारा तात ।।
वो निरीह रोता रहा ,लौट गई बारात ।
बिकने को तैयार थे ,नहीं सुने वो बात ।।
विष का प्याला पी गये ,वो सुकरात महान ।
जीवन दर्शन उच्चतम, कैसे करें बखान ।।
मसि कागद छूये नहीं,दोहे रचे कबीर ।
कालखंड के सत्य में ,उपजी मन की पीर।।
सत्य आचरण जानिये ,कहते दास कबीर ।
रूढ़िवाद पर चोट कर ,कही बात गंभीर।।
#hindi_blogging#हिन्दी_ब्लॉगिंग
अनिता सुधीर "आख्या"
Sunday, February 23, 2020
पीर विरह की
नव गीत
निश्चल छन्द पर आधारित
***
पंक्ति
पीर जलाती आज विरह की ,बनती रीत।
**
पीर जलाती आज विरह की,
बनती रीत,
मिले प्रेम में घाव सदा से,
बोलो मीत ।
विरह अग्नि में मीरा करती ,
विष का पान,
तप्त धरा पर घूम करें वो,
कान्हा गान ।
कुंज गली में राधा ढूँढे ,
मुरली तान ,
कण कण से संगीत पियें वो,
रस को छान ।
व्यथित हृदय से कृष्ण खोजते,
फिर वो प्रीत ,
पीर जलाती आज विरह की,
बनती रीत ।
तड़प तड़प कर कैसे जीये ,
राँझा हीर,
अलख निरंजन जाप करे वो ,
टिल्ला वीर।
बेग!माहिया बन के तड़पे ,
रक्खे धीर,
विरह अग्नि सोहनी की बुझे ,
नदिया तीर।
ब्याह रचाते चिनाब में वो ,
मौनी मीत ,
पीर जलाये आज विरह फिर,
बनती रीत ।
जन्मों के वादे कर हमसे,
पकड़ा हाथ,
विरह की वेदना को सहते ,
छोड़ा साथ।
बिना गुलाल अब सूखा फाग,
सूना माथ,
घर लगे अब भूत का डेरा,
झेलें क्वाथ ।
पत्तों की खड़खड़ भी करती,
है भयभीत ,
पीर जलाये आज विरह फिर,
बनती रीत ।
Saturday, February 22, 2020
आजकल
मापनी - गालगा गालगा गालगा गालगा
स्त्रगविनि छन्द
समान्त - इयाँ
पदान्त - आजकल
गीतिका
*******
खोलते ही कहाँ खिड़कियां आजकल ,
झाँकती रह गयीं रश्मियां आजकल ।
प्यार की चाह में मन धरा सूखती ,
नफरतों की गिरे बिजलियाँ आजकल।
बोलते ही रहे हम सदा तौलकर,
प्रेम में फिर बढ़ी दूरियां आजकल ।
खो गये भाव अब शब्द मिलते नहीं
भेजते हैं कहाँ पातियाँ आजकल ।
शाम होने लगी जो सफर की यहाँ ,
अब डराने लगी आंधियाँ आजकल।
दाँव देखो सियासी चले जा रहे
घर जला सेंकते रोटियां आजकल ।
अनिता सुधीर
Friday, February 21, 2020
शिव शंभु
शिव और शिवत्व को पाना साधना है ।
इस को छन्द के माध्यम से
गोपी छन्द आधारित मुक्तक
विधान- कुल 15 मात्रा, आदि त्रिकल+द्विकल,
अंत गा पर अनिवार्य और तुकांत
विधाता ब्रह्मा जी के लिए
रुद्र शिव
नाम शिव का जपते रहिये ,
भक्ति शिव की करते रहिये,
लोक त्रिय के स्वामी भोले,
शम्भु शिव दुख हरते रहिये ।
शम्भु,शिव में भेद समझिये
शम्भु को साकार समझिये ।
रूप की पूजा सरल बड़ी
ज्ञान शिव के लिये समझिये ।
गले में साँपों की माला,
हाथ में डमरू मतवाला ,
जटा से गंगा उतरी है,
ओढ़ते हैं मृग की छाला।
उमापति शिव अविरामी है
सत्य शिव सुंदर स्वामी हैं
काल के महाकाल बाबा
जगत के अंतरयामी हैं ।
सृष्टि के निर्माता शिव हैं,
विधाता विष्णु रुद्र शिव हैं,
ज्योति का रूप धारण करे
ज्ञान के वरदाता शिव हैं।
अनिता सुधीर
प्रकृति और पुरुष
**
प्रकृति और पुरुष के आध्यात्मिक मिलन की रात है
शिवरात्रि का पावन पर्व आया लिये बड़ी सौगात है ।
शिव प्रगट हुए रूप धरि अग्नि शिवलिंग
द्वादश स्थान प्रसिद्ध हुये द्वादश ज्योतिर्लिंग ।
न शिव का अंत है ,न शिव का आदि
ब्रह्मा विष्णु थाह पा न सके,शिव ऐसे अनादि
सृष्टि के रचयिता ये ,तीन लोक के स्वामी
कालों के महाकाल ये,बाबा औगढ़ अविरामी
जो सत्य , वो शिव ,जो शिव वो सुंदर
शिव होना सरल ,शिवत्व पाना कठिन।
पांच तत्व का संतुलन,शिवत्व का आधार
मस्तक पर चाँद विराजे ,गले साँपो का हार ।
संग गौरा पार्वती ,पर शिव वीतरागी
दो विरोधी शक्तियों का संतुलन बाबा वैरागी ।
विराजे संग पार्वती कैलाश पर,हाथ में त्रिशूल लिये
दैहिक ,दैविक भौतिक ताप ,शिव का त्रिशूल हरे ।
त्रिशूल प्रतीक तीन नाड़ियो की साधना का
साध इन्हें ध्येय प्राणिक ऊर्जा को पाना ।
गरल रस पान कर, सदाशिव नीलकंठ कहलाये
डमरू बजा कर शिव कल्याणकारी कहलाये ।
भक्तों के लिए शिव का हर रूप निराला है ,
चिता की राख को अपने तन पर डाला है
भस्म हुआ जीवन है ,नही बचा भस्म मे दुर्गुण
पवित्रता का सम्मान कर ,मृतात्मा से स्वयं को जोड़ा
प्रकृति और पुरुष के आध्यात्मिक मिलन की रात है
शिवरात्रि का पावन पर्व आया लिये बड़ी सौगात है ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
Thursday, February 20, 2020
दाँव
दोहा गीत
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लगा दाँव पर अस्मिता ,करते हैं व्यापार।
रंग हुआ आतंक का ,नेताओं की रार ।।
निम्न कोटि के हो रहे ,नेताओं के बोल,
मूल्यों को रख ताक पर,देते ये विष घोल ।
नायक जनता के बनें,करिए दूर विकार ।
अपने हित को त्यागिये,रखिए शुद्ध विचार।
याद करें संकल्प ये ,देश प्रेम आधार ।
रंग...
जाति धर्म निज स्वार्थ दे,गद्दारी का घाव ।
देश भक्ति ही धर्म हो ,रखे एकता भाव।
जन जन की वाणी बनो,अमर देश का नाम,
राजनीति को अब मिले ,एक नया आयाम।
भारत के निर्माण में ,बहे एकता धार ।
रंग ...
युग ये कैसा आ गया ,चरण वंदना धर्म।
झूठे का गुणगान ही ,बनता जीवन मर्म ।
अपने हित को साधिये,सदा देश उपरांत ।
देशप्रेम अनमोल है ,अडिग रहे सिद्धान्त।
सच्चाई की राह पर,रुको नहीं थक हार ।
रंग ...
स्वरचित
अनिता सुधीर 'आख्या'