*मद्य पान*
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये
स्वेद कण श्रम में भिगोकर
चार पैसे जो कमाते
डाँट पत्नी को पिलाकर
वो सुरालय में लुटाते
मद्य के बिन अब कहाँ है
द्वन्द में जीवन सरल ये।।
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये
रोग लगता प्रेम का या
बोझ काँधे पर बढ़ा कर
घूँट बनती फिर दवा जो
पाठ मदिरा का पढ़ा कर
आस फिर परिवार तोड़े
पीसती जब भी खरल ये।।
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।
अर्थ भी मजबूत होता
देश का भरता खजाना
दोहरी अब नीतियां हैं
धन कमा कर तन मिटाना
जब बहकते पाँव पड़ते
फिर करे जीवन गरल ये।।
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।
अनिता सुधीर आख्या
सत्य व सटीक
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमद्य तन का पान करता वाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteएकदम सटीक, अद्भुत🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteसत्य एवं सटीक सृजन 🙏🙏🙏💐💐
ReplyDeleteअत्यंत सटीक एवं प्रभावशाली सृजन 🙏🏼💐💐
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद दीप्ति जी
Deleteसादर आभार सरोज जी
ReplyDeleteबहुत अच्छी, बहुत सच्ची कविता है यह। मद्य से अपने दुख के विस्मरण का प्रयत्न केवल एक प्रवंचना है, वस्तुतः तो ऐसी अवस्था में दुख और प्रबल प्रतीत होने लगता है। अभिनन्दन आपका।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteचिंतनपूर्ण सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसार्थक सृजन सखी।
ReplyDeleteमद्य पान के सभी पहलुओं को छोटी से नवगीत में समेटा है आपने, बहुत सुंदर।