Friday, November 12, 2021

मद्य पान


*मद्य पान*

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये


स्वेद कण श्रम में भिगोकर

चार पैसे जो कमाते

डाँट पत्नी को पिलाकर

वो सुरालय में लुटाते

मद्य के बिन अब कहाँ है

द्वन्द में जीवन सरल ये।।

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये


रोग लगता प्रेम का या

बोझ काँधे पर बढ़ा कर

घूँट बनती फिर दवा जो

पाठ मदिरा का पढ़ा कर

आस फिर परिवार तोड़े

पीसती जब भी खरल ये।।

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।


अर्थ भी मजबूत होता

देश का भरता खजाना

दोहरी अब नीतियां हैं

धन कमा कर तन मिटाना

जब बहकते पाँव पड़ते

फिर करे जीवन गरल ये।।

मद्य तन का पान करता

फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।


अनिता सुधीर आख्या

18 comments:

  1. मद्य तन का पान करता वाह बहुत सुंदर

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  2. एकदम सटीक, अद्भुत🙏🙏

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  3. सत्य एवं सटीक सृजन 🙏🙏🙏💐💐

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  4. अत्यंत सटीक एवं प्रभावशाली सृजन 🙏🏼💐💐

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    1. हार्दिक धन्यवाद दीप्ति जी

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  5. सादर आभार सरोज जी

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  6. बहुत अच्छी, बहुत सच्ची कविता है यह। मद्य से अपने दुख के विस्मरण का प्रयत्न केवल एक प्रवंचना है, वस्तुतः तो ऐसी अवस्था में दुख और प्रबल प्रतीत होने लगता है। अभिनन्दन आपका।

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  7. चिंतनपूर्ण सराहनीय रचना ।

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  8. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. सार्थक सृजन सखी।
    मद्य पान के सभी पहलुओं को छोटी से नवगीत में समेटा है आपने, बहुत सुंदर।

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