Wednesday, November 17, 2021

कृतज्ञता



कुंडलिया


आभारी हृद से रहें, लेकर भाव कृतज्ञ।

शब्द मात्र समझें नहीं, यह जीवन का यज्ञ।।

यह जीवन का यज्ञ, मनुज का धर्म सिखाता।

समता का ले भाव, जगत का दर्प मिटाता।।

पूरक बने समाज, मान के सब अधिकारी।

करके नित्य प्रयोग, अर्थ समझें आभारी।।


अनिता सुधीर आख्या

7 comments:

  1. हार्दिक आभार आ0

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  2. अति सुंदर एवं सहज विश्लेषण करती कुण्डलिया 💐🙏🏼

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  3. बहुत ही बेहतरीन व सुंदर सृजन

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  4. सार्थकता से ओतप्रोत सुंदर कुंडलिया छंद ।

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  5. सुंदर कुण्डलियाँ छंद सखी।

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  6. केवल स्वरूप में ही नहीं, भाव में भी उत्कृष्ट एवं अति-सराहनीय रचना; कवयित्री की असाधारण प्रतिभा का जीवंत प्रमाण।

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