कुंडलिया
आभारी हृद से रहें, लेकर भाव कृतज्ञ।
शब्द मात्र समझें नहीं, यह जीवन का यज्ञ।।
यह जीवन का यज्ञ, मनुज का धर्म सिखाता।
समता का ले भाव, जगत का दर्प मिटाता।।
पूरक बने समाज, मान के सब अधिकारी।
करके नित्य प्रयोग, अर्थ समझें आभारी।।
अनिता सुधीर आख्या
हार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteअति सुंदर एवं सहज विश्लेषण करती कुण्डलिया 💐🙏🏼
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन व सुंदर सृजन
ReplyDeleteसार्थकता से ओतप्रोत सुंदर कुंडलिया छंद ।
ReplyDeleteसुंदर कुण्डलियाँ छंद सखी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteकेवल स्वरूप में ही नहीं, भाव में भी उत्कृष्ट एवं अति-सराहनीय रचना; कवयित्री की असाधारण प्रतिभा का जीवंत प्रमाण।
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