Monday, November 22, 2021

बिंदिया

 

चित्र गूगल से साभार

बिंदिया ललाट की


किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली


गुलमोहर के रंग चुरा

मुखड़ा लगता तपने

दृग पगडण्डी फिर देखे

कुछ कजरारे सपने

आहट पगचापों की तब

करती आँख मिचोली।।

किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली।।


भिन्न रूप आकार लिए

सूर्य बिम्ब भी होता

दूज चाँद श्यामल मुख पर

ओढ़ सादगी सोता

बिंदु वृत्त का रूप खिला

फबती रही मझोली।।

किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली।।


दर्पण के आलिंगन या

प्रणय साक्ष्य में रहती

नींद चोर के ठप्पे से

स्वेद कणों सी बहती

जब त्रिनेत्र का रूप धरूँ

थर थर काँपे गोली।।

किंशुक लाली हूँ माथे 

करती हँसी ठिठोली।।


अनिता सुधीर आख्या


15 comments:

  1. स्त्री का श्रृंगार बिंदी।अति सुंदर रचना

    ReplyDelete
  2. अति सुंदर एवं मनमोहक सृजन 💐💐🙏🏼

    ReplyDelete
  3. हार्दिक आभार आ0

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर 🙏🙏🙏💐💐

    ReplyDelete
  5. वाह!लाज़वाब सृजन आदरणीय अनीता दी जी।
    सादर

    ReplyDelete
  6. वाह! बहुत ही सुंदर😍💓

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete

विज्ञान

बस ऐसे ही बैठे बैठे   एक  गीत  विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...