चित्र गूगल से साभार
बिंदिया ललाट की
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली
गुलमोहर के रंग चुरा
मुखड़ा लगता तपने
दृग पगडण्डी फिर देखे
कुछ कजरारे सपने
आहट पगचापों की तब
करती आँख मिचोली।।
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली।।
भिन्न रूप आकार लिए
सूर्य बिम्ब भी होता
दूज चाँद श्यामल मुख पर
ओढ़ सादगी सोता
बिंदु वृत्त का रूप खिला
फबती रही मझोली।।
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली।।
दर्पण के आलिंगन या
प्रणय साक्ष्य में रहती
नींद चोर के ठप्पे से
स्वेद कणों सी बहती
जब त्रिनेत्र का रूप धरूँ
थर थर काँपे गोली।।
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली।।
अनिता सुधीर आख्या
स्त्री का श्रृंगार बिंदी।अति सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आ0
Deleteअति सुंदर एवं मनमोहक सृजन 💐💐🙏🏼
ReplyDeleteअत्युत्तम🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteजी आभ्गर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteबहुत सुंदर 🙏🙏🙏💐💐
ReplyDeleteवाह!लाज़वाब सृजन आदरणीय अनीता दी जी।
ReplyDeleteसादर
जी सादर आभार
Deleteवाह! बहुत ही सुंदर😍💓
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत ही सुंदर
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