चित्र गूगल से साभार
*सृजन पीर का माधुर्य*
सृजन पीर माधुर्य लिए
आनन्द लुटाती है
क्षणिक चित्र उर माटी में
दृश्य बीज अकुलाए
मसि कागद जब खाद बने
शब्द कहाँ सो पाए
सृजनहार कवि फिर जन्मा
वो कलम लुभाती है।।
बीज अँधेरे में खेले
करे उजाला खटखट
चीर धरा को फिर ओढ़े
हरित आवरण झटपट
खड़े बिजूका हाँड़ी ले
वो धरा सुहाती है।।
स्वप्न सींचते कोख सदा
आशाओं का स्पन्दन
करे गर्भ जब अठखेली
तब सरगम सी धड़कन
माँ जन्मी अपने तन जब
वो भाव अघाती है।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत खूबसूरत 👌👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0 सखि
Deleteहार्दिक आभार आ0 सखि
Deleteअत्यंत भावपूर्ण🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार गुंजित
Deleteकविता का भाव एवं उसकी अभिव्यक्ति तो अति-सुन्दर है ही, संलग्न चित्र मानो सोने-पे-सुहागा हैं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteअत्यंत उत्कृष्ट एवं हृदयस्पर्शी सृजन 💐💐🙏🏼
ReplyDeleteधन्यवाद दीप्ति जी
Deleteवाहहह, अनुपम
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसुंदर अति सुंदर भाव सृजन,सखी।
ReplyDeleteधन्यवाद सखि
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी आभ्गर
Deleteजीव सृजन को सार्थक करता सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 29 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी हार्दिक आभार
Deleteबहुत बहुत ही सुंदर सृजन सखी।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद सखि
Deleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आ0
Deleteसुन्दर भाव उम्मदा सृजन।
ReplyDeleteसृजन में पीड़ा है पर ये पीढ़ा सर्जित को ऊर्जित होते देख ख़त्म हो जाती है ...
ReplyDeleteजीवन देने का आनद हर किसी को तो नहीं मिलता चाहे रचना को ही क्यों न हो ...
भाव पूर्ण सृजन
ReplyDelete