Thursday, November 25, 2021

सृजन पीर का माधुर्य


चित्र गूगल से साभार

*सृजन पीर का माधुर्य*

सृजन पीर माधुर्य लिए
आनन्द लुटाती है

क्षणिक चित्र उर माटी में
दृश्य बीज अकुलाए
मसि कागद जब खाद बने
शब्द कहाँ सो पाए
सृजनहार कवि फिर जन्मा
वो कलम लुभाती है।।

बीज अँधेरे में खेले
करे उजाला खटखट
चीर धरा को फिर ओढ़े
हरित आवरण झटपट
खड़े बिजूका हाँड़ी ले
वो धरा सुहाती है।।

स्वप्न सींचते कोख सदा
आशाओं का स्पन्दन
करे गर्भ जब अठखेली
तब सरगम सी धड़कन
माँ जन्मी अपने तन जब
वो भाव अघाती है।।

अनिता सुधीर आख्या

 

31 comments:

  1. वन्दना नामदेवNovember 25, 2021 at 11:07 AM

    बहुत सुन्दर सृजन

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  2. Replies
    1. हार्दिक आभार आ0 सखि

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    2. हार्दिक आभार आ0 सखि

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  3. अत्यंत भावपूर्ण🙏

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    1. हार्दिक आभार गुंजित

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  4. कविता का भाव एवं उसकी अभिव्यक्ति तो अति-सुन्दर है ही, संलग्न चित्र मानो सोने-पे-सुहागा हैं।

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  5. अत्यंत उत्कृष्ट एवं हृदयस्पर्शी सृजन 💐💐🙏🏼

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  6. सुंदर अति सुंदर भाव सृजन,सखी।

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  7. जीव सृजन को सार्थक करता सुंदर सृजन ।

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  8. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 29 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. बहुत बहुत ही सुंदर सृजन सखी।
    सादर

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  10. बेहद खूबसूरत रचना

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  11. सुन्दर भाव उम्मदा सृजन।

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  12. सृजन में पीड़ा है पर ये पीढ़ा सर्जित को ऊर्जित होते देख ख़त्म हो जाती है ...
    जीवन देने का आनद हर किसी को तो नहीं मिलता चाहे रचना को ही क्यों न हो ...

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  13. भाव पूर्ण सृजन

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