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नींव रहे ,
ये सम्मानित बुजुर्ग
मजबूत हैं इनके बनाये दुर्ग
छत्रछाया में जिनके पल रहा
सुरक्षित आज का नवीन युग..
परिवर्तनशील जगत में
खंडहर होती इमारतें
और उम्र के इस पड़ाव में ..
निस्तेज पुतलियां,भूलती बातें
पोपला मुख ,आँखो में नीर
झलकती व्यथा ,अब करती सवाल है ...
मेरे होने का औचित्य क्या ..
क्या मैं जिंदा हूँ ....
तब स्पर्श की अनुभूति से
अपनों का साथ पाकर
दादा जी
जो जिंदा है बस
वो थके जीवन में फिर जी उठेंगे ....
वृद्धावस्था अंतिम सीढ़ी सफर की
समझें ये पीढ़ी जतन से
जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
तब अस्ति से नास्ति
का जीवन बड़ा कठिन ।
अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।"
जो बोया काटोगे वही
मनन करें
सम्मान दे इन्हें
पाया जो प्यार इनसे ,
शतांश भी लौटा सके इन्हें
ये तृप्त हो लेंगे..
ये फिर जी उठेंगें ...
अनिता सुधीर
हम कुछ कर सकें तो बेहतर। कुछ आस दे सकें तो बेहतर। जीवन एक चक्र है जो युवा है वो भी कल बुजुर्ग होगा।ये सबकी समझ में आ जाए तो और भी बेहतर।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और सीख देने वाली रचना।
सत्य
Deleteबहुत सटीक आंकलन
Delete👌👌
Deleteमार्मिक। सच, हम शतांश भी लौटा सकें....
ReplyDelete👌👌
Deleteअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteधन्यवाद दीप्ति जी
Deleteअत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक सत्य.... ये फिर जी उठेंगे 🙏🙏🙏💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार सरोज जी
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-१२ -२०२१) को
'रिश्तों के बन्धन'(चर्चा अंक -४२८९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद अनिता जी
Deleteशतांश भी लौटा सके उन्हें🙏🙏🙏अत्यंत गंभीर🙏नमन
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteबुढापे और उनके प्रभावों को बाखूबी लिखा है ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteये सम्मानित बुजुर्ग
ReplyDeleteमजबूत हैं इनके बनाये दुर्ग
छत्रछाया में जिनके पल रहा
सुरक्षित आज का नवीन युग..
बिल्कुल सही कहा आपने मैम
बहुत ही गहरे भावों को बयां करती मार्मिक व हृदयस्पर्शि रचना..
हार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत ही हृदयस्पर्शी एवं संवेदनशील सृजन
ReplyDeleteसही कहा हम शतांश भी लौटा सकें....
वाह!!!
हार्दिक आभार आ0
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन सखी।
ReplyDeleteप्रेरक पंक्तियां काश सब समझ लें।
पूरा प्रतिदान न सही कुछ ही देर दे।👌
धन्यवाद सखि
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
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