स्वरचित कहमुक़री
क्लांत चित्त को शांत करे जो
पल में धमके नहीं डरे वो
मिली प्रीति की फिर से थपकी
का सखि साजन! ना सखि झपकी।।
अनिता सुधीर
चित्र गूगल से साभार
नवगीत
कहमुक़री के बिम्ब अब
ढूँढ़ रहे नित स्वाँग
दीवारों ने कान दे
सुनी सखी की बात
कर्ण सुने मृदुहास जो
जागे सारी रात
भरम सखी को घेरता
पी कर आयी भाँग।।
छेड़-छाड़ कर चूनरें
बाँधें प्रीतम डोर
एक पहेली चल पड़ी
आज भिगोने कोर
चार चरण में खेल कर
सखियाँ खींचें टाँग।।
यौवन इठलाता चला
लाज करे शृंगार
भेद छिपा कर प्रश्न फिर
करने चला दुलार
दो सखियों की बात में
भरता बिम्ब छलाँग।।
अनिता सुधीर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteअद्भुत सखी ।
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण।
हार्दिक आभार सखि
Deleteअति सुंदर बिम्ब वाह
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाह!बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteसराहनीय 👌
वाह अद्भुत।
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
Deleteअति सुंदर बिम्ब 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteवाह। अद्भुत चित्रण
ReplyDelete💐💐💐
Deleteबेहतरीन बहुत ही मोहक सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद आ0
Deleteऐसी अद्भुत रचनाओं की समुचित प्रशंसा करने की अर्हता मुझमें कहाँ? कहमुकरी के साथ जो नवगीत है, वह तो ऐसा है कि जिसे बारम्बार पढ़ने पर भी मन न भरे।
ReplyDeleteआप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ0
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