चित्र गूगल से
कीर्ति ध्वज
कीर्ति ध्वज जब हाथ थामे
है शिखर भी पाँव में फिर
शीत भी जब काँपती-सी
धमनियों में रक्त उबले
हिम कणों की चादरों में
है तिरंगा श्रेष्ठ पहले
प्राण भी बाजी लगाता
पर्वतों के ठाँव में फिर।।
कीर्ति ध्वज..
हौसला पहुँचे चरम पर
मुश्किलें कब रोकतीं पग
जब विजय उद्घोष करता
गर्जना से गूँजता जग
सरहदों का गान होता
राष्ट्र के हर गाँव में फिर।।
कीर्ति ध्वज..
वीरता डंका बजाकर
धूल बैरी को चटाए
काल सीना तान कर नित
शत्रु की हस्ती मिटाए
युद्ध जब इतिहास रचता
देश ध्वज की छाँव में फिर।।
कीर्ति ध्वज..
अनिता सुधीर आख्या
आप के विचार सभी विषयों पर भावपूर्ण और मार्मिक होते हैं। साधुवाद
ReplyDelete💐💐
Deleteबहुत ही सुन्दर दी बधाई आपको 🙏🙏🙏👌👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभ्गर आ0
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