दोहे
रंग चुरा लूँ धूप से, संग नीर की बूँद।
इंद्रधनुष हो द्वार पर, देखूँ आँखे मूँद।।
तम के बादल छट रहे, दुख की बीती रात।
इंद्रधनुष के रंग ले, सुख की हो बरसात।।
रंगों के इस मेल में, छुपा सुखद संदेश।
इंद्रधनुष बन एक हों, उत्तम फिर परिवेश।।
सात रंग के अर्थ में, कितने सुंदर कथ्य।
धरा गगन जल सूर्य के, लिए हुए हैं तथ्य।।
कभी उदासी घेरती, कभी हुआ मन क्लांत।
इंद्रधनुष के रंग फिर, करे चित्त को शांत।।
अनिता सुधीर
अंतिम पंक्तियां मन को छूती हुई ... बहुत ही अच्छा लिखा आपने
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत ही सुंदर दोहावली🙏
ReplyDeleteअति सुंदर एवं मनमोहक दोहावली 💐💐🙏🏼
ReplyDeleteसादर आभार दीप्ति जी
ReplyDeleteअति सुन्दर एवं सार्थक दोहावली दीदी 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद सरोज जी
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(21-12-21) को जनता का तन्त्र कहाँ है" (चर्चा अंक4285)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
जी सादर आभार
Deleteबहुत खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-12-2021) को चर्चा मंच "दूब-सा स्वपोषी बनना है तुझे" (चर्चा अंक-4286) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर अभिवादन आ0
Deleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआभ्गर आ0
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteआप के द्वारा रचित दोहे प्रशंसनीय है एवं विषय वस्तु भी सराहनीय।धन्यवाद।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत ही प्यारे दोहे इंद्रधनुष से लुभावने।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखि
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