चित्र गूगल से साभार
प्रेम जाल में फाँस कर
फिर तितली पर वार करें
पंखों पर जब पुष्प उगे
सूरज लेने दौड़ी थी
मस्ती ने थैले में फिर
भरी न कोई कौड़ी थी
पदचिन्हों की ताली भी
खुशियों पर अधिकार करे।।
बाज उसाँसे भर-भर कर
झूठे दाने फेंक रहा
मीन फाँस कर मुख में रख
नाम धर्म का सेंक रहा
रक्त सने मासूमों पर
शोषण को हथियार करे।।
तभी सियासी जामे ने
प्रेम गरल का रूप धरा
भीड़ तंत्र ने कुचला जो
प्रीत भाव फिर कूप गिरा
मित्र बना दीपक ही क्यों
जीवन को अंगार करे।।
अनिता सुधीर
सत्य एवं सटीक 🙏🙏🙏💐💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद सरोज जी
Deleteसत्य, सटीक, धारदार
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर सटीक बात लाजवाब पंक्तियाँ💐💐💐
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteसमसामयिक और जटिल समस्या पर उत्कृष्ट रचना 👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteसटीक
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अत्यंत संवेदनशील एवं सटीक प्रहार करती रचना 💐💐🙏🏼
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteसमसामयिक बहुत सारगर्भित रचना ।
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteअत्यंत अद्भुत👏🙏सटीक🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी आभ्गर
Deleteसत्य को बयां करती बहुत ही उम्दा रचना!
ReplyDeleteबहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रेम का सहारा लेकर, धर्म के लिए किसी की भावनाओं से खेला जा रहा है!
क्या बीतती होगी उस पर जब पता चलता होगा कि जिसको वह जीवन साथी समझ रही थी वह एक धोखेबाज इंसान है जो अपने मतलब के लिए उसे प्रेम रूपी चारा डाल अपने जाल में कर फंसा रहा था!
सत्य कहा आ0
Deleteआप का हार्दिक आभार
मार्मिक रचना
ReplyDeleteजी आभ्गर
Delete