आस का सूरज उगा कर बात करनी चाहिए।
बर्फ जमती उर पटल पर वह पिघलनी चाहिए।।
उष्णता की नित कमी से त्रास बढ़ता जा रहा
दृश्य ओझल हो रहा अब धुंध मिटनी चाहिए।।
नित कुटिलता को बढ़ाने अब शकुनि घर घर रहें
ध्येय जिनका यह रहा है रार मचनी चाहिए ।।
शून्य होती भावना में धीरता की है कमी
धैर्य की फिर बूँद से अब झील भरनी चाहिए।।
मौन हो अभिव्यक्तियाँ अब दृग पलक पर क्यों सजें
शब्द मुखरित हो सकें मुस्कान मिलनी चाहिए।।
अनिता सुधीर आख्या
शून्य होती भावना में धीरता की है कमी, अत्युत्तम गीतिका🙏🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteवाह । बहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसुंदर सराहनीय सीजन ।
ReplyDeleteजी सादर आभार
Deleteअति उत्तम एवं सार्थक संदेश देती हुई गीतिका 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteअद्भुत गीतिका👏👏👏मैंम
ReplyDeleteनमन
हार्दिक आभार विपिन जी
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