Friday, December 10, 2021

विडंबना

 

रो रही है उम्र कच्ची

जब कुपोषण को जिया है।


भूख तड़पे नित उदर में

जब पतीली ही उबलती

हाथ दो ही खींचते घर

आठ की जो आस पलती

रोग को मिलता निमंत्रण

रक्त फिर आकर पिया है।।


थाल भरते व्यंजनों से

फिर उदर नखरे दिखाता

पूड़ियों को छोड़ कर तब

स्वाद का तड़का लगाता

ढूँढ़ते कूड़ा रहे कुछ

बीन कर रोटी लिया है।।


वृक्ष ने कीमत चुकायी

अन्न हो सब थालियों में

आदतों की मौजमस्ती

अन्न बहता नालियों में

है दुखद यह बात कितनी

ब्रह्म अपमानित किया है।।


लोक हित में हों समर्पित

नित यही कर्त्तव्य करना

श्रेष्ठता ही धर्म हो अब

अन्न का सब मान रखना

लक्ष्य हमको साधना है

ये वचन भू को दिया है।।


अनिता सुधीर आख्या

















28 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद रानी जी

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  2. हृदयस्पर्शी सृजन।
    सादर

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  3. अन्न का सब मान रखना🙏🙏नमन मैम🙏

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  4. अन्न की महत्ता को बताती संवेदनशील सृजन 💐💐🙏🏼

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  5. वाकई ये बहुत बड़ी विडंबना है कि एक ओर लोग बिना सोचे समझे अन्न की बर्बादी करते हैं वहीं दूसरी ओर लोग अन्न के एक एक दाने को तरसते हैं।बहुत सुंदर नवगीत👏👏👏👏👏👏👏

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  6. बहुत ही सुन्दर यथार्थ दृश्य ऐसा नहीं होना चाहिए बहुत सुन्दर नवगीत 🙏🙏🙏

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    1. हार्दिक आभार पूनम जी

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  7. इस मर्मस्पर्शी कविता के भाव से मैं पूर्ण सहमति व्यक्त करता हूँ।

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  8. आपकी कविता समाज के विभिन्न पहलुओं को सार्थक रूप मे प्रकट करती है। साधुवाद

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  9. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-12-21) को अपने दिल के द्वार खोल दो"(चर्चा अंक4276)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  10. हृदय स्पर्शी उद्गार सत्य का पूर्ण आईना और समर्थन।
    बहुत सुंदरता से भावों को नवगीत में पिरोया है सखी।
    बहुत सुंदर।

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  11. अन्न का सब मान रखना!!
    किसी के घर का कूड़ा किसी के घर की जरूरतें पूरी करता है किसी की जूठन से किसी का पेट भरता है!
    बिल्कुल सही कहा आपने! बहुत ही बेहतरीन हुआ है व हृदय स्पर्शी रचना!

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  12. मार्मिक रचना, अन्न का अपमान न हो ऐसा प्रयास सदा ही रहना चाहिए

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