गमों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।
जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।
शिकायत करें दर्द क्या हाकिमों से
अदालत लगा कौन सुनता यहां है।
तमाशा दिखाकर सियासत करें जो
मसीहा बने कब दिए आसमां हैं।।
तरक्की क़लम ने लिखी मुल्क की पर...
थमे मुफ़लिसों पर सितम कब कहाँ है l
अनिता सुधीर
बहुत खूब 👌
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबाह अति सुंदर
ReplyDeleteसादर अभिवादन
DeleteWaah!!
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल👏👏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Delete"शिकायत करें दर्द क्या हकीमों से," वाह वाह
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteवाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteधन्यवाद नूतन
Deleteबेहद खूबसूरत गज़ल 🙏🏼💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद दीप्ति जी
Deleteबेहद सुंदर 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाह्ह्हह्ह्ह्ह
ReplyDeleteजी शुक्रिया
DeleteMagnificent 👏👏
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-10-21) को "/"रावण मरता क्यों नहीं"(चर्चा अंक 4220) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर गजल
ReplyDeleteजी शुक्रिया
Deleteबहुत ही शानदार खेल दी❤️❤️
ReplyDeleteहार्दिक आभार जी
Deleteबहुत शानदार दी
ReplyDeleteधन्यवाद पूनम जी
DeleteWah,shandar gazal,humesha ki tarah,bahut badhai
ReplyDeleteधन्यवाद उषा
Deleteबहुत ही सुन्दर 🙏
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर��
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजी आभ्गर
ReplyDeleteकम शेरों वाली छोटी-सी मगर क़ाबिल-ए-दाद ग़ज़ल है यह। जहाँ में मुसाफ़िर रहे चार दिन के, दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है। बहुत ख़ूब! यह ग़ज़ल तो किसी महफ़िल में सुनाने के लिए याद करनी होगी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
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