Sunday, October 17, 2021

गेरुए सी छाप तेरी

गेरुए सी छाप तेरी*

मखमली सी याद में है
गेरुए सी छाप तेरी

साथ चंदन सा महकता
प्रेम अंगूरी हुआ है
धड़कनों की रागिनी में
रूप सिंदूरी हुआ है
सोचता मन गाँव प्यारा
ये डगर रंगीन मेरी ।।

देह के अनुबंध झूठे
रोम में संगीत बहता
बाँसुरी की नाद बनकर
दिव्यता को पूर्ण करता
जो मिटा अस्तित्व तन का
अनवरत अब काल फेरी।।

जब अलौकिक सी कथा को
मौन की भाषा सुनाती
उर पटल नित झूमता सा
प्रीत नूतन गीत गाती
स्वप्न को बुनते रहे हम
कष्ट की फिर दूर ढेरी।।

32 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. बहुत ही सुन्दर 👌👌👌👌

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  3. प्रेम अंगुरी हुआ है, बहुत ख़ूब

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  4. बहुत खूब लिखा है

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  5. वाह मुग्ध करती व्यंजनाएं !
    अभिनव नवगीत।

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  6. No words! Mann aanandit ho gaya ,sunder bhavvyakti,maa saraswati ki kripa bani rahe
    Tum par!

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    1. धन्यवाद उषा
      तुम्हारे संबल मिलता रहे

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  7. बहुत सुंदर प्रेमपूर्ण,भावपूर्ण रचना 👏👏🌹🌹

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  8. उफ्फ्फ behind every word I see a flow 6 of spirituality.. true essence of love. ♥️

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    1. लेखनी धन्य हो गयी
      सादर आभार

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  9. अति सुंदर एवं मनमोहक सृजन 💐💐🙏🏼

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    1. जी धन्यवाद दीप्ति जी

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  10. जी हार्दिक आभार

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  11. अहा अहा अहा👏👏🙏🙏मन आनंद विभोर हो गया पढ़कर🙏👏

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  12. बहुत भावपूर्ण नवगीत

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  13. यह एक प्रेमगीत है - एक अनूठा प्रेमगीत। आपके जैसी प्रतिभाशालिनी की उपस्थिति निस्संदेह काव्य-रसिकों का सौभाग्य है। मैं इस योग्य नहीं कि इस अद्भुत गीत की समुचित प्रशंसा कर सकूं।

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