Sunday, October 24, 2021

करवा चौथ

*मेरे गगन तुम*

मैं धरा मेरे गगन तुम
अब क्षितिज हो उर निलय में

दृश्य आलिंगन मनोरम
लालिमा भी लाज करती
पूर्णता भी हो अधूरी
फिर मिलन आतुर सँवरती
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय में।।

धार इठलाती चली जब
गागरें तुमने भरीं है
वेग नदिया का सँभाले
धीर सागर ने धरी है
नीर को संगम तरसता
प्यास रहती बूँद पय में।।

नभ धरा को नित मनाता
फिर क्षितिज की जीत होती
रंग भरती चाँदनी तब
बादलों से प्रीत होती
भास क्यों आभास का हो
काल मृदु हो पर्युदय में।।

अनिता सुधीर

23 comments:

  1. बहुत सुन्दर सारा परिवेश आज प्रेममय और मंगल मय रहे इसी कामना के साथ बधाई हो !

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद उषा

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  2. Bhut sunder .gajab ke shabd likhe hain.mai nishabd ho gai

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद
      आपका नाम नही आ रहा

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  3. बहुत सुंदर रचना अनीता जी।

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  4. मैं धरा तुम मेरे गगन *बहुत सुंदर*

    *"फिर मिलन आतुर सँवरती*
    *प्रीत की रचती हथेली*
    *गूँज शहनाई हृदय में"*. अतिसुंदर
    करवाचौथ पर बहुत ही सुन्दर रचना

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  5. अहा! करवाचौथ के पावन अवसर पर इतना सुंदर मुग्ध करता नवगीत।प्रेम समर्पण से ओतप्रोत।
    करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. दाम्पत्य प्रेम को दर्शाती हुई मनमोहक रचना 😍🙏🏼💐

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  7. बहुत सुन्दर 👌🏽👌🏽भावपूर्ण

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  8. बहुत ही सुंदर🙏🙏

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  9. अत्यंत मनभावन सृजन ❤❤❤

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  10. बहुत सुंदर सखी सुन्दर रचना 👌👌👌

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