देहरी गाने लगी (मेरे एकल संग्रह से)
लिव इन रिलेशनशिप
डगमगाती सभ्यता का
अब बनेगा कौन प्रहरी
सात फेरे बोझ लगते
नीतियों के वस्त्र उतरें
जो नयी पीढ़ी करे अब
रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें
इस क्षणिक अनुबंध को अब
देखती नित ही कचहरी।।
जब सृजन आधार झूठा
तब नशे ने दोष ढूँढ़ा
सत्य बदले केंचुली जो
चित्त ने तब रोष ढूँढ़ा
फल घिनौने कृत्य का है
हो रही संतान बहरी।।
पत्थरों ने दूब कुचली
सभ्यता अब रो रही है
माँगती उत्तर सभी से
चेतना क्या सो रही है।।
आँधियों के प्रश्न पर फिर
ये धरा क्यों मौन ठहरी।।
निःशब्द करती रचना मैम, सटीक👏👏🙏🙏पत्थरों ने दूब कुचली सभ्यता अब रो रही है!!🙏नमन
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteसमाज में फैल रही इस कुप्रथा का सही वर्णन। उत्तम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसात फेरे बोझ लगते.. बिल्कुल सही कहा.. Today's generation has commitment phobia, blame it on the work stress or the convenience of finding someone for a night. Sad situation.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteआधुनिकता की दौड़ में बहुत कुछ छूटा जा रहा है,मैं रहकर हम भी स्वीकृति दे रहे।अपने संस्कार देना ही इसका समाधान है,बहुत सटीक लिखा ।
ReplyDeleteधन्यवाद उषा
Deleteरचना का मर्म समझने के लिए
सामयिक परिदृश्य पर सुंदर नवगीत दीदी नमन ! 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी
Deleteवाह क्या खूब
ReplyDeleteयथार्थ है आज के समय का
जी आभार आ0
Deleteअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 🙏🏼💐
ReplyDeleteधन्यवाद दीप्ति जी
Deleteसटीक ।बहुत सही।।
ReplyDeleteधन्यवाद नूतन
Deleteसुंदर रचना।👍👍
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteसुन्दर रचना 👍👍
ReplyDeleteजी धन्यवाद
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-10-21) को "/"तुम पंखुरिया फैलाओ तो(चर्चा अंक 4222) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteसमाज की ज्वलंत समस्या पर सटीक भाव
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसात फेरे बोझ लगते
ReplyDeleteनीतियों के वस्त्र उतरें
जो नयी पीढ़ी करे अब
रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें
इस क्षणिक अनुबंध को अब
देखती नित ही कचहरी।।..सटीक अभिव्यक्ति। आज का परिदृष्य दिखाती चिंतनपूर्ण रचना ।
हार्दिक आभार आ0
Deleteसुन्दर विचार 🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसुन्दर विचार ��
ReplyDeleteधन्यवाद रीना जी
Deleteसात फेरे बोझ लगते
ReplyDeleteनीतियों के वस्त्र उतरें
जो नयी पीढ़ी करे अब
रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें
इस क्षणिक अनुबंध को अब
देखती नित ही कचहरी।।
सच को बयां करती बहुत ही उम्दा रचना!
सादर अभिवादन आ0
Deleteबहुत ही बढ़ियाँ दी👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद पूनम जी
Deleteचेतना अब सो रही है, इसी एक वाक्य ने सब कह दिया है, चेतना को सुलाने के कितने उपाय चल रहे हैं आज
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसटीक बात कही आपने....आज का सच है ये
ReplyDeleteफल घिनौने कृत्य का है
ReplyDeleteहो रही संतान बहरी।।
आज की युवा पीढी के लिए सशक्त संदेश!--ब्रजेंद्रनाथ
हार्दिक आभार आ0
Deleteबेहद खूबसूरत मैम
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आ0
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