छाए जब घनघोर अँधेरा,मन में आस जगाता कौन।
बीच भंवर में नाव फँसी है,इससे पार लगाता कौन।।
खड़ा अकेला बचपन सहमा,एकल होते अब परिवार
दादी नानी के किस्से का,नैतिक पाठ पढ़ाता कौन।।
सामाजिक ताने-बाने का,भूल गए हैं लोग महत्व
परंपरा जब बोझ लगेगी,होगा युग निर्माता कौन।।
कथनी-करनी का भेद बड़ा,व्यथित हृदय के हैं उद्गार ।
एक मुखौटा ओढ़ खड़े हैं, इसको आज हटाता कौन।।
शक्ति रूप में देवी पूजन,फिर बेटी पर अत्याचार
मर्यादा आघात सहे जब, इसका मान बचाता कौन।।
एक दिवस अठखेली कर, हिंदी घूमी चारों ओर।
शेष समय चुपचाप पड़ी है,नित्य महत्व बढ़ाता कौन।।
ऋषि मुनियों की भारत भू पर, वैदिक संस्कृति का इतिहास।
सत्य सनातन धर्म हमारा, इसको आज सिखाता कौन।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुंदर भावपूर्ण ! 🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संजीव जी
Deleteसुंदर भाव पूर्ण रचना ,बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमिता
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी
Deleteअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण गीतिका 💐🙏🏼
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीप्ति जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण एवं सार्थक गीत दीदी 👏👏👏🌹
ReplyDeleteधन्यवाद सरोज जी
Deleteआस्था का सुंदर पावन सृजन सखी।
ReplyDeleteआभ्गर सखि
DeleteWaah bahut sundar ma'am 🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद तुषार
Deleteअत्यंत भावपूर्ण रचना मैम🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteबहुत सुंदर थी👌👌👌🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद पूनम जी
ReplyDeleteअद्भुत सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसुंदर,लाजवाब रचना ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सही
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteपरम्पराओं के निर्वहन हेतु प्रोत्साहित करती रचना, अति सुन्दर
ReplyDeleteजी धन्यवाद
ReplyDeleteसादर आभार
ReplyDeleteAti sunder
ReplyDeleteवाह!खूबसूरत सृजन ।
ReplyDelete