Thursday, October 21, 2021

गीतिका


 छाए जब घनघोर अँधेरा,मन में आस जगाता कौन।

बीच भंवर में नाव फँसी है,इससे पार लगाता कौन।।


खड़ा अकेला बचपन सहमा,एकल होते अब परिवार

दादी नानी के किस्से का,नैतिक पाठ पढ़ाता कौन।। 


सामाजिक ताने-बाने का,भूल गए हैं लोग महत्व 

परंपरा जब बोझ लगेगी,होगा युग निर्माता कौन।। 


कथनी-करनी का भेद बड़ा,व्यथित हृदय के हैं उद्गार ।

एक मुखौटा ओढ़ खड़े हैं, इसको आज हटाता कौन।।


शक्ति रूप में देवी पूजन,फिर बेटी पर अत्याचार

मर्यादा आघात सहे जब, इसका मान बचाता कौन।।


एक दिवस अठखेली कर, हिंदी घूमी चारों ओर। 

शेष समय चुपचाप पड़ी है,नित्य महत्व बढ़ाता कौन।।


ऋषि मुनियों की भारत भू पर, वैदिक संस्कृति का इतिहास।

सत्य सनातन धर्म हमारा, इसको आज सिखाता कौन।।



अनिता सुधीर आख्या


33 comments:

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद संजीव जी

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  2. सुंदर भाव पूर्ण रचना ,बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अमिता

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी

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  4. अत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण गीतिका 💐🙏🏼

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दीप्ति जी

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  5. अत्यंत भावपूर्ण एवं सार्थक गीत दीदी 👏👏👏🌹

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  6. आस्था का सुंदर पावन सृजन सखी।

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  7. Waah bahut sundar ma'am 🙏🙏

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  8. अत्यंत भावपूर्ण रचना मैम🙏

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  9. बहुत सुंदर थी👌👌👌🙏🙏

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  10. धन्यवाद पूनम जी

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  11. अद्भुत सृजन

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  12. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  13. परम्पराओं के निर्वहन हेतु प्रोत्साहित करती रचना, अति सुन्दर

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  14. वाह!खूबसूरत सृजन ।

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