बोले मन की शून्यता
बोले मन की शून्यता
क्यों डोले निर्वात
कठपुतली सी नाचती
थामे दूजा डोर
सूत्रधार बदला किये
पकड़ काठ की छोर
मर्यादा घूँघट लिए
सहे कुटिल आघात।।
चली ध्रुवों के मध्य ही
भूली अपनी चाह
पायल की थी बेड़ियां
चाही सीधी राह
ढूँढ़ रही अस्तित्व को
बहता भाव प्रपात।।
अम्बर के आँचल तले
नहीं मिली है छाँव
कुचली दुबकी है खड़ी
नित्य माँगती ठाँव
आज थमा दो डोर को
पीत पड़े अब गात।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteजी आभ्गर
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
Deleteजी हार्दिक आभार
Deleteउत्कृष्ट🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteबहुत सुंदर 👏👏👏🌹🌹
ReplyDeleteहार्दिक आभार सरोज जी
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
Deleteबहुत-बहुत सुंदर रचना 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeleteआभ्गर सौम्या जी
Deleteअत्यंत मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील सृजन 💐💐🙏🏼
ReplyDeleteधन्यवाद दीप्ति जी
Deleteबिल्कुल सही।
ReplyDeleteस्त्री की उम्र बीत गई पर मिली ना श्रेय की परवाज़
मन मार मार कर एक दिन भर गई, दिया फ़र्ज़ का नाम।
रेखा खन्ना
जी धन्यवाद
Deleteबिल्कुल सही।
ReplyDeleteस्त्री की उम्र बीत गई पर मिली ना श्रेय की परवाज़
मन मार मार कर एक दिन मर गई, दिया फ़र्ज़ का नाम।
रेखा खन्ना
Please ignore previous comment ...मर गई की जगह भर गई type हो गया है।
धन्यवाद रेखा जी
Deleteआपका आभार जो रचना के मर्म तक पहुंची
सुंदर रचना
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 28 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आ0
Deleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद
सुन्दर , पहले ऐसा था परन्तु अब स्थितियां बदली है।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteउत्कृष्ट भाव, अभिनव व्यंजनाएं।
ReplyDeleteसुंदर सखी।
वाह
ReplyDeleteआभार आ0
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
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