Tuesday, November 30, 2021
दोहे
Sunday, November 28, 2021
शून्यता
बोले मन की शून्यता
क्यों डोले निर्वात
कठपुतली सी नाचती
थामे दूजा डोर
सूत्रधार बदला किये
पकड़ काठ की छोर
मर्यादा घूँघट लिए
सहे कुटिल आघात।।
चली ध्रुवों के मध्य ही
भूली अपनी चाह
पायल की थी बेड़ियां
चाही सीधी राह
ढूँढ़ रही अस्तित्व को
बहता भाव प्रपात।।
अम्बर के आँचल तले
नहीं मिली है छाँव
कुचली दुबकी है खड़ी
आज माँगती ठाँव
आज थमा दो डोर को
पीत पड़े अब गात।।
चित्र गूगल से साभार
Thursday, November 25, 2021
सृजन पीर का माधुर्य
Tuesday, November 23, 2021
गीतिका
Monday, November 22, 2021
बिंदिया
चित्र गूगल से साभार
बिंदिया ललाट की
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली
गुलमोहर के रंग चुरा
मुखड़ा लगता तपने
दृग पगडण्डी फिर देखे
कुछ कजरारे सपने
आहट पगचापों की तब
करती आँख मिचोली।।
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली।।
भिन्न रूप आकार लिए
सूर्य बिम्ब भी होता
दूज चाँद श्यामल मुख पर
ओढ़ सादगी सोता
बिंदु वृत्त का रूप खिला
फबती रही मझोली।।
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली।।
दर्पण के आलिंगन या
प्रणय साक्ष्य में रहती
नींद चोर के ठप्पे से
स्वेद कणों सी बहती
जब त्रिनेत्र का रूप धरूँ
थर थर काँपे गोली।।
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली।।
अनिता सुधीर आख्या
Saturday, November 20, 2021
Wednesday, November 17, 2021
कृतज्ञता
कुंडलिया
आभारी हृद से रहें, लेकर भाव कृतज्ञ।
शब्द मात्र समझें नहीं, यह जीवन का यज्ञ।।
यह जीवन का यज्ञ, मनुज का धर्म सिखाता।
समता का ले भाव, जगत का दर्प मिटाता।।
पूरक बने समाज, मान के सब अधिकारी।
करके नित्य प्रयोग, अर्थ समझें आभारी।।
अनिता सुधीर आख्या
Tuesday, November 16, 2021
प्रेम
Monday, November 15, 2021
बिरसा मुंडा
जनजातीय गौरव दिवस
Sunday, November 14, 2021
देवोत्थानी एकादशी
दोहा
प्रबोधिनी एकादशी,आए कार्तिक मास।
कार्य मांगलिक हो रहे,छाए मन उल्लास।।
चौपाई
शुक्ल पक्ष एकादश जानें।
कार्तिक शुभ फलदायक मानें।।
चार मास की लेकर निद्रा।
विष्णु देव की टूटी तंद्रा।।
श्लोक मंत्र से देव जगाएँ ।
प्रभु चरणों में शीश झुकाएँ।।
तुलसी परिणय अति पावन है।
मंत्र दशाक्षर मनभावन है।।
भाव सुमन को उर में भरिये ।
विधि विधान से पूजन करिये।।
दीप धूप कर्पूर जलाएं।
माधव को प्रिय भोग लगाएं।।
व्रत निर्जल जब सब जन रखते।
दीन दुखी के प्रभु दुख हरते ।।
महिमा व्रत की है अति न्यारी।
पुण्य प्रतापी सब नर नारी।।
दोहा
पाप मुक्त जीवन हुआ,हुआ शुद्ध आचार।
आराधन पूजन करे,खुले मोक्ष के द्वार।।
अनिता सुधीर
Saturday, November 13, 2021
बाल दिवस विशेष
चित्र गूगल से साभार
कच्ची माटी
नाटिका
*दृश्य 1 *
पार्क का दृश्य
रमा... क्या जमाना आ गया है ,आजकल के बच्चे जब देखो तब मोबाइल में डूबे रहते हैं ,पता नहीं कैसे पेरेंट्स हैं जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते ,और इतने कम उम्र में ही मोबाइल थमा देते हैं ।
अब देखो पार्क में आयें है तो कुछ खेलने के बजाय
मोबाइल लिए बैठे हैं ।
वीना ...सच कह रही हो रमा तुम ,एक हम लोगों का समय था कितना हम लोग खेला करते थे कभी खो-खो तो कभी बैडमिंटन और शारीरिक व्यायाम तो खेल-खेल में ही हो जाता था। उस समय की दोस्ती भी क्या दोस्ती हुआ करती थी।
रमा ... तुमने तो बचपन की मीठी बातें याद दिला दीं
अरे आओ हम भी अपना बचपन जी लेते हैं।
वीना .. बहुत हो गया ,चलो अब घर चलो
रमा ... हर समय घर घर किये रहती हो ।
अरे चलती हूं मुझे तो कोई चिंता नहीं है
वीना ... क्यों
मेरी बेटियां पढ़ाई के लिए बहुत सिंसियर है ।
मैं उनको बोल के आई हूँ , वो तो पढ़ाई में व्यस्त होंगी और मुन्नी को बोल कर आई हूँ,वो घर के सारे काम कर रही होगी ।
वीना ...तेरी तो मौज है ,अब मुझे ही देख !घर जाकर अभी खाना बनाना फिर बच्चों की पढ़ाई में उनके साथ बैठना ,मेरा तो सारा समय इसमें ही निकल जाता है ।
अच्छा रमा क्या तुम मुन्नी को भी पढाती हो ....
रमा ....मुन्नी को पढ़ा कर क्या करूंगी ,करना तो उसे यही काम है ,कौन सा कलेक्टर बनी जा रही महारानी ।और फिर घर का काम क्या मैं करूंगी?
वीना ... अरे वो तो मैं ऐसे ही पूछ रही थी
*दृश्य दो *
रमा का घर
मुन्नी मुन्नी कहाँ मर गई तू ,देख रही है मैं बाहर से आ रही हूँ तो पानी तो पिला दे
आई मेमसाब ..
तू बच्चों के कमरे में क्या कर रही है ?जब देखो वहीं रहती है ,कुछ कामधाम नहीं होता तुझे
वह पढ़ रहे हैं तो उन्हें पढ़ने दे उन्हें क्यों डिस्टर्ब कर रही है चल अपना काम कर ,कामचोर हो गयी है।
रमा सोचते हुए ,मेरी बेटियां मेरा गुरूर है कितना पढ़ती है ,न मोबाइल न किसी से दोस्ती ,ये लोग बहुत नाम कमाएंगी ।
(थोड़ी देर बाद रमा )
बड़ा सन्नाटा लग रहा है देखूँ ये लड़कियां कर क्या रही है
बेटियां मां के आने की आहट सुन अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो जाती हैं और मुन्नी कपड़े तह करने लग गयी।
रमा ....कितनी अच्छी बेटियां हैं मेरी
जब देखो तब यह पढ़ती ही रहती हैं ।
मुन्नी तूने अभी तक कपड़े नहीं तह किये ? अभी सारा काम पड़ा है ,करती क्या रहती है तू सारा दिन अभी खाना भी बनाना है तुम्हें
*
(दृश्य 3)
रमा तुम सब लोग अपने-अपने काम करो
मैं जरा पड़ोस की आंटी के यहां से होकर आती हूं.
ठीक है मां आराम से जाओ ,और आराम... से आना
रमा के जाने के बाद बेटियां फिर से मोबाइल में व्यस्त हो गई और मुन्नी पढ़ाई में ...
मुन्नी कहां हर समय तू किताबों में सर खपाती है आओ तुम्हें मोबाइल में अच्छे-अच्छे गेम दिखाएं..
मुन्नी ...अरे नहीं दीदी
मेम साहब जब बाहर गई हैं तभी मुझे पढ़ने का मौका मिला है ।वह आ जायेंगी तो मुझे उनकी डांट भी खानी पड़ेगी और काम में जुटना होगा होगा।
मेरी परीक्षा आ रही है तो मुझे जैसे ही अवसर मिलता है मैं अपनी पढ़ाई कर लेती हूं ।
इस तरह से घर के कामों के साथ मेरी पढ़ाई भी चल रही है ।
पढ़ाई कर लूँगी तभी मेरे जीवन में सुधार आएगा।
बेटियां मुन्नी की बातेँ सुन हतप्रभ हो सोच रही हैं
मैं किस को धोखा दे रही हूं
एक तरफ मुन्नी है जो मां के जाने के बाद पढ़ाई कर रही है और हम लोग अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं ।
माँ पापा इतनी मेहनत करते हैं और स्कूल की फीस ,कोचिंग की फीस ,सभी सुविधाएं देते हैं और हम लोग मां को धोखा दे रहे हैं ।
और सही अर्थ में मां को धोखा न देकर स्वयं को ही धोखा दे रहे हैं ।
मन ही मन मुन्नी को धन्यवाद देते हुए
मुन्नी तुमने तो हम लोगों की आंखें खोल दी और हमें नैतिकता और शिक्षा का महत्वपूर्ण पाठ समझा दिया । और एक बात मुन्नी हम लोग माँ से तुम्हारी पढ़ाई की बात करेंगे
मुन्नी के चेहरे पर खुशी और बेटियों को आत्मसंतुष्टि ...
बचपन शिक्षा और नैतिकता के मार्ग पर अग्रसर हो
अनिता सुधीर आख्या
Friday, November 12, 2021
मद्य पान
*मद्य पान*
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये
स्वेद कण श्रम में भिगोकर
चार पैसे जो कमाते
डाँट पत्नी को पिलाकर
वो सुरालय में लुटाते
मद्य के बिन अब कहाँ है
द्वन्द में जीवन सरल ये।।
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये
रोग लगता प्रेम का या
बोझ काँधे पर बढ़ा कर
घूँट बनती फिर दवा जो
पाठ मदिरा का पढ़ा कर
आस फिर परिवार तोड़े
पीसती जब भी खरल ये।।
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।
अर्थ भी मजबूत होता
देश का भरता खजाना
दोहरी अब नीतियां हैं
धन कमा कर तन मिटाना
जब बहकते पाँव पड़ते
फिर करे जीवन गरल ये।।
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।
अनिता सुधीर आख्या
Wednesday, November 10, 2021
छठ
चित्र गूगल से साभार
दो0
करें सूर्य आराधना, आया छठ का पर्व।
समरसता के भाव में, करे विरासत गर्व।।
चौपाई
कार्तिक मास सदा उर भाए।
त्योहारों में मन हर्षाए।।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी आई।
महापर्व की खुशियाँ छाई।।
सूर्य उपासन आराधन का।
पर्व रहा संस्कृति गायन का।।
छिति जल पावक गगन समीरा।
पंच तत्व को पूज अधीरा।।
जुड़े धरा से सबको रहना।
यही पर्व छठ का है कहना।।
सूप लिए जब चले सुहागन।
प्रकृति समूची लगे लुभावन।।
ईखों से जब छत्र सजे हैं।
अंतर्मन के दीप जले हैं।।
सूरज डूबा जब जाएगा।
नवल भोर ले फिर आएगा।।
अर्थ निकलता त्योहारों से।
जुड़े रहे सब परिवारों से।।
दो0
परंपरा की नींव में,जीवन का है सार।
गूढ़ अर्थ समझे सभी,मना रहे त्योहार।।
अनिता सुधीर आख्या
तुम बिन
गीत
राह देखती ये अँखियाँ ओ साथी मेरे मन के।
तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।।
कब आओगे खत लिख दो
तुम बिन अब रहा न जाए
यह श्रृंगार अधूरा है
जो तेरी याद सताए
घर चौबारा रिक्त पड़ा
तुम शोभा हो आँगन के
राह देखती ये अँखियाँ,ओ साथी मेरे मन के।
तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।
साथ तुम्हारा शीतल है
इस जीवन के मरुधर में
जल की बूँद सरिस हो तुम
झंझावत के अम्बर में
सुधा कलश बिखरा देना
धड़कन हो तुम जीवन के
राह देखती ये अँखियाँ,ओ साथी मेरे मन के।
तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।
तुम बिन सूनी डगर लगे
जैसे तारे बिना गगन
बिना नीर के कमल कहाँ
ऐसे रहती ध्यान मगन
आ जाओ प्रियतम मेरे,
सुख देना अब बंधन के।
राह देखती ये अँखियाँ,ओ साथी मेरे मन के।
तुम बिन सूनी हैं रातें,नहीं कटे दिन विरहन के।।
अनिता सुधीर
Tuesday, November 9, 2021
छठ
छठ के पावन पर्व की शुभकामना
पूजा बिहार की मनभावन।
छठ व्रत सुहाग का अति पावन।।
माँ कुटुंब का मंगल करिये।
अखण्ड सुख से झोली भरिये।।
हमारे त्यौहारों और रीति रिवाजों में एक सार्थक संदेश है आवश्यकता है इसके मूल भाव को समझने की
जीवनदायिनी नदी को पूजने का संदेश
धर्म ही नहीं ,
जड़ों से जुड़ने का संदेश
उगते और डूबते सूरज को अर्घ्य दे
सांस्कृतिक विरासत,समानता का संदेश
देते है ,
ये रीति रिवाज और त्यौहार विशेष
Sunday, November 7, 2021
दीप
*दीप*
दीप हो उर द्वार पर जब
जग प्रफुल्लित जगमगाए
झोपड़ी सहती व्यथा है
द्वार पर लक्ष्मी उदासी
उतरनों की जब दिवाली
फिर भरे कैसे उजासी
जो विवशता दूर भागे
फिर हँसी भी खिलखिलाए।।
दीप हो उर द्वार पर जब
जग प्रफुल्लित जगमगाए
जब अमीरों की तिजोरी
खोलती हो नित्य ताला
निर्धनों के गात भी जब
ओढ़ते हों नव दुशाला
फिर कली महकी वहाँ पर
गीत भँवरा गुनगुनाए।।
दीप हो उर द्वार पर जब
जग प्रफुल्लित जगमगाए
तेल अंतस का जला कर
ज्योति की हो वर्तिका अब
यह अँधेरा दूर भागे
कर अहम को मृत्तिका अब
कालिमा में लालिमा हो
भोर भी फिर गुदगुदाए।।
दीप हो उर द्वार पर जब
जग प्रफुल्लित जगमगाए
Tuesday, November 2, 2021
संसद
मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...
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राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं दर्शन चिंतन राम का,हो जीवन आधार। आत्मसात कर मर्म को,मर्यादा ही सार।। बसी राम की उर में मूरत मन अम्बर कुछ ड...
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं एक दीप उम्मीद का,जले सदा दिन रात। मिले हौसला जीत का,यह अनुपम सौगात।। एक दीप संकल्प का,आज जलाएँ आप। तिमिर हृदय...
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शरद पूर्णिमा की बधाई सुख वैभव आरोग्य को,ले आते त्योहार। धर्म कर्म की श्रेष्ठता,पाए नित विस्तार।। शुभ तिथि अश्विन मास की,लाती शुभ...