Monday, December 26, 2022

सूर्योदय

 चित्रकार की तूलिका,भरे गगन में रंग।

सूर्य उदय की लालिमा,रचती नवल प्रसंग।।


नित्य स्वप्न भी जागते,सूर्योदय के संग।

कनक रश्मियाँ घट लिए,भरे स्वप्न में रंग।।



Thursday, December 22, 2022

नवगीत

नवगीत

पीर का आतिथ्य

पीर के आतिथ्य में अब
भाव सिसके मीत के

दीमकें मसि पी रहीं नित
खोखले-से भाव हैं
खिलखिलातीं व्यंजनाएँ
द्वंद्व के टकराव हैं
भाष्य भी फिर काँपता
वस्त्र पहने शीत के।।

थक चुकी मसि लेखनी की
ढूँढ़ती औचित्य को
पूछती वह आज सबसे
क्यों लिखूँ साहित्य को
रूठ बैठी लेखनी फिर 
भाव खोकर गीत के।।

दाव सहती भित्तियों में
छंद अब कैसे खड़े
शब्द जो मृदुहास करते
कुलबुला कर रो पड़े
लेखनी की नींद उड़ती
आस में नवनीत के।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, November 6, 2022

लघु कथा

आशा की किरण

शाम के मदमस्त माहौल में खुले लॉन में पार्टी का आयोजन चल रहा था। उपस्थित लोग संगीत-नृत्य और कई तरह के पकवानों का आनंद ले रहे थे।
तभी बाहर मुख्यद्वार पर नजर पड़ी,वहाँ कुछ बच्चे संगीत की धुन पर नृत्य कर रहे थे और अपने हिस्से की खुशियाँ टटोल रहे थे।सबकी निगाहें उधर उठ गयीं।
तभी बेटे की आवाज आई ! माँ ये बच्चे बाहर क्यों डांस कर रहे?
मुग्धा अपने बेटे प्रतीक की जिज्ञासा शांत करते हुए बोली कि सबकों तो नही बुला सकते न अंकल अपनी पार्टी में,इसीलिए बेटा ये बाहर ही डांस कर रहे।
सब अपने मे मस्त हो गए ,लेकिन प्रतीक का बालमन बाहर ही अटका रहा।
खाने का समय आया , वो बच्चे भोजन की तरफ टकटकी लगाए थे।बार-बार भगाने पर भी आ रहे थे।
मुग्धा ने प्रतीक को भोजन निकाल कर दिया।
मुग्धा------कहाँ जा रहे हो बेटा,?
प्रतीक----- मम्मी वो अंदर नही आ सकते ,मैं तो बाहर जा सकता हूँ और खाना खिला सकता हूँ।I
आसपास के लोग प्रतीक के जवाब से निःशब्द और भावुक हो गए।
बड़ों को ये ख्याल भी नही आया और व्यवहारिक बने रहे
जबकि प्लेटों मे इतना खाना बेकार जा रहा था।
मन के कोने से आशा की किरण ने हौले से दस्तक दी कि जब तक इन बच्चों में संवेदनशीलता कायम है तब तक समाज का सुखद भविष्य सुनिश्चित है..


अनिता सुधीर आख्या

Friday, October 21, 2022

दोष


दोष

पुरुषों को बड़ी आसानी
से सब दोष दे देते हैं
माँ-बेटी-बहन क्या तुम्हारे घर में
नही कह देते हैं...
क्या कहोगे जब
नारी ही नारी की दुश्मन बन जाए
बाग का माली ही 
कलियों का भक्षक बन जाए।
नारी होकर जब नारी ही
नारी का मर्म समझ न पायी
कर सारे कृत्य घिनौने 
उसको लज्जा कब आयी
सारी नारी जाति को 
शर्मिंदा कर के रख दिया
सीता दुर्गा के देश मे 
जब नंगा खेल रच दिया 
समाज कहाँ जा रहा,
क्या है परिवार के मायने
अब कौन कहाँ सुरक्षित है
यक्ष प्रश्न है सामने ..

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, October 13, 2022

करवा चौथ



पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।

सात जन्म के प्यार को ,
बाँधा तेरे साथ 
रचा प्रेम अनुभूतियाँ
थामा प्रियतम हाथ
बंधन जन्मों का रहे
मधुरिम प्रणय पुनीत।
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

पीहर से पी-घर चली,
स्वप्न सुनहरे बाँध
मन मंदिर में साजना
मिले तुम्हारा काँध
प्रेम-कवच विश्वास का 
संबंधों की जीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।

प्रेम सरिस दूजा नहीं 
यही प्रणय का सार
हृदय प्रेम परिपूर्णता
सजा सकल संसार
मन कोयल-सा कूकता 
अंग-अंग संगीत।
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, October 9, 2022

शरद पूर्णिमा

 शरद पूर्णिमा की रात में

अमृत बरसता रहा ,

मानसिक प्रवृतियों के द्वंद में 
कुविचारों के हाथ 
लग गया अमृत ...
अब वो अमर होती जा रहीं हैं...


अनिता 

Wednesday, October 5, 2022

विजया दशमी

विजया दशमी

क्वार मास की तिथि दशम,शुक्ल पक्ष शुभ मानिए।
विजया दशमी पर्व के,गूढ़ अर्थ को जानिए।।

त्योहारों का आगमन,जीवन को संदेश दें।
करें समाहित श्रेष्ठता,उत्तम शुभ परिवेश दें।।

हर्ष और उल्लास ले, फसल पकी है खेत में।
शौर्य उपासक मंत्र से, समृद्ध लाभ निकेत में।।

पंडित ज्ञानी रूप ले,शीश अहं के दस खड़े।
जग के सभी विकार से,अंतस कब अरि से लड़े।।

मानव पुतला मात्र है, समझ जगत की रीति को।
क्षण भर में धू-धू जले, लिए बुराई नीति को।।

राक्षस दैत्य प्रतीक में, छल का वध प्रतिवर्ष है।
आदिशक्ति की साधना,सद्गुण का उत्कर्ष है।।

सत्य सदा ही जीतता, नैतिकता आधार में।
मर्यादा में हो मनुज, राम जीवनी सार में।।

विजय पर्व संदर्भ में,आयुध पूजन कीजिए।
नया कार्य आरंभ कर, लक्ष्य जीत का लीजिए।।

शिव जी खग के रूप में, हरें प्रभो के पाप तब।
नीलकंठ दर्शन फलित, मिटे हृदय संताप सब।।

रावण को क्यों मारते, राम रहा अब कौन है।
प्रश्न विचाराधीन यह, उत्तर कबसे  मौन है।।

प्रतिदिन चलता युद्ध अब,उर के रावण-राम में।
विजय राम की नित्य हो, पावन अंतस धाम में।।

सार्थक होंगे अर्थ तब,विजया दशमी पर्व में।
सत्य नीति हो कर्म में, हृदय राममय गर्व में।।


अनिता सुधीर आख्या

Friday, September 30, 2022

स्कन्द माता

 स्कन्द माता के चरणों में पुष्प


पंचम तिथि माँ स्कंद का,पूजन नियम विधान है।

भक्तों का उद्धार कर, करतीं कष्ट निदान है।।


तारकसुर ब्रह्मा जपे, माँग लिए वरदान में।

अजर-अमर जीवित रहूँ,मृत्यु न रहे विधान में।।


संभव ये होता नहीं,जन्म मरण तय जानिये।

शिव-सुत हाथों मोक्ष हो,मिले मूढ़ को दान ये।।


मूर्ति वात्सल्य की सजे,कार्तिकेय प्रभु गोद में।

संतति के कल्याण में,जीवन फिर आमोद में।।


सिंह सवारी मातु की,चतुर्भुजी की भव्यता।

शुभ्र वर्ण पद्मासना,परम शांति की दिव्यता।।


जीवन के संग्राम में,सेनापति खुद आप हैं।

मातु सिखाती सीख ये, बुरे कर्म से पाप हैं।।


ध्यान वृत्ति एकाग्र कर,शुद्ध चेतना रूप से।

पाएं पुष्कल पुण्य को,पार लगे भवकूप से।।


अनिता सुधीर

Thursday, September 29, 2022

आधुनिकता

नवगीत

फुनगी पर जो
बैठे नंद।
नव पीढ़ी के
गाते छंद।।

व्यथा नींव की
सहती मोच
दीवारों पर
चिपकी सोच
अक्ल हुई अब
डिब्बा बंद।।

ऊँचे तेवर 
थोथे लोग
झूम रहे तन
मदिरा भोग
उलझे धागे
जीवन फंद।।

चढ़ा मुलम्मा
छोड़े रंग
बेढंगी ने 
जीती जंग
आजादी की
मचती द्वंद्व।।

मर्यादा की
बहकी चाल
लज्जा कहती
अपना हाल
आभूषण अब 
पहनें चंद।।

अनिता सुधीर

Wednesday, September 28, 2022

मॉं चंद्रघंटा

माँ चंद्र घण्टा के चरणों में पुष्प


नवरातों त्योहार में,दिवस तीसरा ख़ास है।
चंद्र घंट को पूज के,लगी मोक्ष की आस है।।

सौम्य रूप में शाम्भवी,माँ दुर्गा अवतार हैं।
घंट सुशोभित शीश पर,अर्ध चंद्र आकार है ।।

सिंह सवारी मातु की,अस्त्र शस्त्र दस हाथ में।
दर्श अलौकिक जानिए ,दिव्य शक्तियाँ साथ में।।

अग्नि तत्व मणिपुर सधे,योग साधना तंत्र में।
साधक मन को साधते,सप्त शती के मंत्र में।।

ध्वनि घंटे की शुभ रही,करें जोर से नाद सब।
दूर प्रेत बाधा करे,दूर करे अवसाद सब।।

कीर्ति मान सम्मान हो,साधक के घर द्वार में।
रक्षा करने धर्म की,माँ आयीं संसार में।।

अनिता सुधीर

Thursday, September 22, 2022

हैप्पी हिंदी डे

नवगीत

'हैप्पी हिंदी डे'

'हैप्पी हिंदी डे' संदेशे
दिवस विचार जिया।
सेज सौत ने साझा कर ली
नित्य शिकार हिया।।


माथे की बिंदी एक दिवस
मान खरीद रही
कार्यालय की चिठ्ठी गुमसुम
पीर अपार कही
नीति-नियम गोष्ठी में बैठे
कान विकार लिया।।

झड़ी-पुछी सी भाषा होगी
अब संदूकों में
अभी वर्ष भर नाचेगी फिर
सौतन कूकों में
अक्षर-अक्षर भाव बींधते
शब्द प्रहार किया।।


'हैप्पी' होते त्योहारों ने
अब भरी बधाई
अपने मोहल्ले में करते
अधिकार लड़ाई
तुरपन ने अधरों को सिलकर
गरल प्रसार पिया।।


अनिता सुधीर आख्या

Friday, September 16, 2022

कुर्सी

 
म्यूजिकल चेयर

कुर्सी 
हाए कुर्सी...
कुर्सी की दौड़ 
आगे निकलने की होड़ 
जोड़-तोड़
तरोड-मरोड़
संगीत की धुन ..
धुन और ताल 
भाग्य और काल
कभी तेज कभी धीरे 
कभी ऊपर कभी नीचे
अचानक बंद होता संगीत
खींचते पाँव
ढूंढ़ते ठाँव
अफरातफरी 
कुर्सी की लपक 
खींच ली कुर्सी
टूटे सपने !
अब कुर्सी एक 
दावेदार तीन
तीन टांग की कुर्सी 
साधे संतुलन ...
कुर्सी 
सत्ता की कुर्सी 
लोभ की कुर्सी
मठ की कुर्सी
मुफ्त का तमाशा
मीडिया की चांदी..
और औरर औररर  ...
 निरीह बेबस जनता ...

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, September 14, 2022

हिंदी

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
विधान- *मत्तगयंद सवैया*
भगण ×7+2गुरु, 12-11 
हिंदी
।।१।।
**
छंद विधा रस शिल्प सजी लय,रूप अनूप समाहित हिंदी।।
भोजपुरी ब्रज मैथिल में सज,अद्भुत भाव प्रवाहित हिंदी।।
काव्य रचा कर श्याम सखा पर, प्रीत लिखे अवगाहित हिंदी।
कालजयी बन घूम रही शुभ,मानस शुद्ध सुवासित हिंदी।।

।।२।।

भारत की पहचान बनी अब,दिव्य ललाट सुशोभित हिंदी।
विस्तृत रूप लिए चलती नित, देश विदेश प्रचारित हिंदी।।
पोस रही इसको जब संस्कृत,है इतिहास प्रमाणित हिंदी।
मान बढ़ा नित उन्नत होकर,उत्तम भाष्य सुभाषित हिंदी।।


अनिता सुधीर

Saturday, September 10, 2022

हिंदी

*हिंदी*
*नवगीत*

राजभाषा ले लकुटिया
पग धरे हर द्वार तक

राह में अवरोध अनगिन
हीनता का दंश दें
स्वामिनी का भाव झूठा
मान का कुछ अंश दें
ये दिवस की बेड़ियां भी
कब लड़ें प्रतिकार तक।।

हूक हिय में नित उठे जो
सौत डेरा डालती
छीन कर अधिकार वो फिर
बैर मन में पालती 
कष्ट का हँसता अँधेरा
बादलों के पार तक।।

अब घुटन जो बढ़ रही है
कंठ का फन्दा कसा
खोल उर के पट सभी अब
धड़कनों में फिर बसा
अब अतिथि की वेशभूषा
छल रही श्रृंगार तक।।

अनिता सुधीर आख्या

Monday, September 5, 2022

कुंडलिया


 

आए दिन प्रतिवर्ष जब,पाँच सितम्बर मास।
जन्म दिवस कृष्णन मने,रहे सभी के खास।।
रहे सभी के खास,पढ़े थे जीवन दर्शन।
मेधावी थे शिष्य,करे थे चिंतन मंथन।।
राष्ट्र प्रेम विख्यात,जगत में नाम कमाए।
हम सबका सौभाग्य,राष्ट्रपति शिक्षक आए।।

अनिता सुधीर


Wednesday, August 31, 2022

गणेश




गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं

गणेश वंदना (चामर छन्द) 

**

रिद्धि सिद्धि साथ ले गणेश जी पधारिये।

ग्रंथ हाथ में धरे विधान को विचारिये।

देव हों विराजमान आसनी बिछी हुई।

थाल में सजा हुआ सुभोग तो लगाइये।।


प्रार्थना कृपा निधान कष्ट का निदान हो

भक्ति भाव से भरा सुजान ही प्रधान हो ।

मूल तत्व हो यही समाज में समानता,

हे दयानिधे! दया ,सुकर्म का बखान हो ।।


ज्ञान दीजिये प्रभू अहं न शेष हो हिये।

त्याग प्रेम रूप रत्न कर्म में सदा जिये।

नाम आपका सदा विवेक से जपा करें,

आपका कृपालु हस्त शीश पे सदा लिये।।


अनिता सुधीर आख्या




Thursday, August 25, 2022

तुम्हारी आँखों में

 तुम्हारी आँखों में...



गजल


जीवन का मनुहार, तुम्हारी आँखों में।

परिभाषित है प्यार, तुम्हारी आँखों में।।


छलक-छलक कर प्रेम,भरे उर की गगरी।

बहे सदा रसधार, तुम्हारी आँखों में।।


तुम जीवन संगीत, सजाया मन उपवन

भौरों का अभिसार, तुम्हारी आँखों में।।


पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया

खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।


रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल

करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।


किया समर्पण त्याग, जले बाती जैसे

करे भाव अँकवार, तुम्हारी आँखों में।।


जीवन की जब धूप, जलाती थी काया

पीड़ा का उपचार, तुम्हारी आँखों में।।


अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, August 24, 2022

राधा


 सवैया

राग-विराग सुभाव लिए ,दृग लाज भरे वृषभानु सुता।

मोहन साज सँवार करें, वह भूल गए अपनी नृपता।।

प्रीत भरें वह कुंज गली,निखरी तब कृष्ण सखा पृथुता ।

दिव्य अलौकिक दृश्य लिए,हिय में बसती प्रभु की प्रभुता।।


अनिता सुधीर आख्या



Friday, August 19, 2022

श्री कृष्ण


 सरसी छन्द आधारित गीत

-------
सखा प्रभो की लीला न्यारी,अद्भुत है आख्यान।
एक कृष्ण में भाव विविध हैं,कैसे करूँ बखान।।

दिवस अष्टमी पक्ष अँधेरा,भाद्र मास की रात।
द्वापर युग जन्मे अनिरुद्धा,ईशमयी सौगात।।
अच्युत मोहन कृष्ण कन्हैया,माधव के अवतार।
दिव्य भाव में नेक प्रयोजन ,दुष्टों का संहार।।
पूर्ण कामना मातु पिता की,निरखि रूप संतान।।
एक कृष्ण..


बन्दी गृह में अद्भुत लीला,खुलते गृह के द्वार।
चले तात संतति को लेकर,यमुना नीर अपार।।
धन्य हुई गोकुल की गलियां,आया माखनचोर।
मातु यशोदा पुलकित हर्षित,बाबा नंद विभोर।।
मोर मुकुट धर रूप अनोखा,नटखट भाव प्रधान।
एक कृष्ण..

बाँसुरिया की मोहक धुन पर,झूम उठे सब ग्वाल।
वस्त्र गोपियों का हर कर वो,छिपा कुंज की डाल।।
रास रचें कान्हा निधिवन में,राधा रानी संग।
देख अंगुली पर गोवर्धन,मन में भरे उमंग।।
बाल सुलभ लीला का करते,आज सभी गुणगान ।
एक कृष्ण..

सखा रूप का भाव निराला ,भरे आँख में नीर।
लाज बचाने दौड़ पड़े जब,सुनी द्रौपदी पीर।।
विरह अग्नि को राधा सहतीं,श्याम द्वारिका धाम।
प्रेमभाव पर्याय युगों तक ,प्रेम राधिका नाम ।।
श्याम प्रेम में डूबी मीरा,करें इष्ट का ध्यान।
एक कृष्ण..

बने सारथी अर्जुन के जब,बतलाया था मर्म।
कर्म श्रेष्ठ मानव जीवन में,मार्ग वही सत्धर्म।।
चक्र सुदर्शन ले योगेश्वर,करें पाप पर वार।
नाश अधर्मी पापी का हो,जग के पालनहार।।
युद्धक्षेत्र में धर्म सिखाते,दे गीता का ज्ञान।
कृष्ण  एक हैं....

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, August 18, 2022

गोविंद छन्द

 गोविंद


भाद्र मास की अष्टमी, कृष्ण लिए अवतार।

अद्भुत लीला श्याम की, खुलते कारा द्वार।।

खुलते कारा द्वार, चले तात शिशु को लिए।

यमुना नीर अपार, शेषनाग छाया किए।।

रास      रचैया       गोकुल    आए।

पालनहारे        कष्ट         मिटाए।।

Wednesday, August 17, 2022

हलषष्ठी

 

चौपाई

**

भाद्र मास की षष्ठी आयी

       हलछठ व्रत सुंदर फलदायी

जन्म दिवस दाऊ का मनता।

       पोखर घर के आँगन बनता ।।

शस्त्र अस्त्र हल दाऊ सोहे ।

        हलधर की मूरत मन मोहे।।

पुत्रवती महिलाएं पूजें।

     मन अँगना किलकारी गूँजे।।

पूजन कर पलाश जारी का।

        भोग लगा महुवा नारी का ।।

जोता बोया आज न खाए

      तिन्नी चावल दधि सँग भाए।।

दीर्घ आयु संतति की करना।

       आशीषों से झोली भरना ।।

वृक्ष पूजना पाठ पढ़ाता ।

        संस्कृति का यह मान बढ़ाता।।


#अनिता सुधीर

Sunday, August 14, 2022

विभाजन

रेडक्लिफ रेखा/विभाजन

एक विभाजन की रेखा ने
पक्के घर को तोड़ दिया।।

वक्ष फुला मतभेद नचाता
धर्मों की आपाधापी
चला कुदालें फिर खाई में
नींव नापता था पापी
पीर अभी तक क्रंदन करती
युग ने तथ्य मरोड़ दिया।
एक विभाजन...

आँगन की दीवारें सिसकें
टूटा जब अंक खिलौना
गेहूँ-बाली ढूँढ़ रही थी
माटी का वही बिछौना
खड़े खेत खलिहान पुकारें
क्यों मुझको अब छोड़ दिया।।
एक विभाजन..

सीमाओं की कानाफूसी
मानचित्र अब तक सहता
रोकर कोरा पृष्ठ कराहा
भूगोल बदल दो!कहता
हृद विदीर्ण कर रेखा पूछे
वक्र मार्ग क्यों मोड़ दिया।।
एक विभाजन..

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, August 11, 2022

राखी

 पावन मंच को नमन

गीत


श्रावणी की दिव्यता से 

खिल उठी सूनी कलाई।।


त्याग तप के सूत्र ने जब 

इंद्र की रक्षा करी हो

या मुगल के शुभ वचन से

आस की झोली भरी हो

नेग मंगल-कामना में

थी छिपी सबकी भलाई।।

श्रावणी...


रेशमी-सी प्रीति करती

आज ये व्यापार कैसा

बंधनों के मूल को अब

सींचता है नित्य पैसा

मर्म धागे का समझना

बात राखी ने चलाई।।

श्रावणी.…


हों सुरक्षित भ्रातृ अपने 

प्रार्थना यह बाँध आएँ

सरहदों पर उन अकेले

भाइयों के कर सजाएँ

भारती का मान तुमसे 

हर परिधि तुमने निभाई।।

श्रावणी...

अनिता सुधीर आख्या































Tuesday, August 9, 2022

कॉमनवेल्थ

 #cwg22india #हर_घर_तिरंगा_अभियान  


जीत का विश्वास रखकर ,काल की टंकार हो तुम।

नीतियों की सत्यता में, स्वर्ण का आधार हो तुम।।


खो रहा अस्तित्व था जब, लुप्त होती भावना में,

आस का सूरज जगाए,भोर का उजियार हो तुम।।


जब छिपी सी धूप होती,तब लड़े सब बादलों से

लक्ष्य की इस पटकथा में,भाल का शृंगार हो तुम।।


साधनों की रिक्तता में,हौसले के साज रखकर

खेल की जग भावना में, प्रीति का अँकवार हो तुम।


रच रहा इतिहास नूतन,स्वप्न अंतर में सँजोये

कोटि जन के भाव कहते,देश का आभार हो तुम।।


अनिता सुधीर आख्या

Friday, August 5, 2022

कला/शिल्प/धरोहर/गर्व


 

गीतिका

शिल्प में उन्नत कला का जो युगों का ज्ञान है।

वो धरोहर में सजोए देश हिंदुस्तान है।।


भित्तियों पर चित्र हों या पत्थरों की मूर्तियाँ।

विश्व में अब इस कला का हो रहा गुणगान है।।


हस्त कौशल क्षेत्र में जब भाव शिल्पी ने रचे

फिर सृजन जीवंत होकर दे रहे आख्यान है।।


गूढ़ दर्शन को लिए कृतियाँ पुरानी जो गढ़ीं।

वह अलौकिक रूप में आदर्श का प्रतिमान है।।


ज्ञान तकनीकी समेटे जब पुरातन काल ने

गर्व की अनुभूति से करना अभी उत्थान है।।


यह विविध आयाम बनते सभ्यता संवाहिका

हम कला के हैं पुजारी मिल रही पहचान है।।


लोक मंगल की कला से मिल रहे आनंद में

सत्य शाश्वत सुंदरम के भाव का आह्वान है।।


अनिता सुधीर आख्या










Tuesday, August 2, 2022

सावन/शिव शंकर

कैलाशी को पूजिये, पावन सावन मास।
आदि अनंता रूप से, लगी कृपा की आस।।

साँपों की माला धरे, कर में लिये त्रिशूल।
सोहे गंगा शीश पर, शंकर जग के मूल।।

डमरू हाथों में लिये,ओढ़े मृग की छाल।
करते ताण्डव नृत्य जब,रूप धरे विकराल।।

महिमा द्वादश लिंग की ,अद्भुत अपरम्पार।
पुष्प समर्पित है तुम्हें,विनती बारम्बार ।।

मंदिर मंदिर सज गये,जाना शिव के द्वार।
नागदेवता पूजते ,भरो ज्ञान भंडार  ।।

शिव शंकर को प्रिय लगे,बेल धतूरा खास।
दुग्ध धार अर्पित करें ,इस सावन के मास।।

अनिता सुधीर आख्या


Sunday, July 31, 2022

उधम सिंह


 शत शत नमन

उधम सिंह

(26 दिसंबर 1899 - 31 जुलाई 1940)

क्रांति के वीरों में, थे उधम पंजाबी शेर।
कर्ज था माटी का, फिर किए डायर को ढेर।।

राष्ट्रप्रेम की ज्वाला लेकर,इंकलाब का गाते गान।
हर बच्चा जब उधम सिंह हो,होगा भारत देश महान।।

बेबस चीखें बैसाखी की,जलियांवाला का था घाव।
लहु के आँसू बहते देखें,उधमसिंह पर पड़ा प्रभाव।।

सात समुंदर पार चले थे,लेने माटी का प्रतिशोध।
डायर को फिर मार गिराया,जिसने मारे कई अबोध।।

बीस बरस का बदला लेते,जो जलती सीने में आग।
अमर हुआ यह वीर सिपाही,देशभक्ति का गाकर राग।।

गाँव सुनाम हुआ बड़भागी,उधम सिंह को करे प्रणाम।
मिले मृत्यु से हँसते-हँसते,वीरों को देकर पैगाम।।

अनिता सुधीर


Saturday, July 30, 2022

क्षणिकाएं


१)


शरद पूर्णिमा की रात में

अमृत बरसता रहा ,

मानसिक प्रवृतियों के द्वंद में 

कुविचारों के हाथ 

लग गया अमृत ...

अब वो अमर होती जा रहीं हैं...


२)


दौलत की भूख़ ने 

आँखो पर बाँधी पट्टी

ईमान को बेच 

मुल्क के अस्मिता 

की बोली लगा

भूख ,करोड़ों अरबों की लगाई 

क्या तनिक भी इन्हे लाज न आई

३)


पूजास्थलों मे दौलत 

का अंबार लगा 

भिखारी बाहर 

भूख और ठंड से

बेहाल नजर आए,

ऐ !प्रभु के बंदे 

तू अब तक दौलत का 

सही उपयोग न सीख पाये ।



अनिता सुधीर आख्या


Thursday, July 28, 2022

नशा


मुक्तक


कड़ा परिश्रम दिन भर करके,चार टके घर को लाया।

बोझ देखता जब कंधों पर,माथा उसका चकराया।।

चला शौक से मदिरालय फिर,घरवाली को धमकाया।

पल भर का आनंद मिला जो,खुशियां गिरवी रख आया।।


भीड़ बढ़ी मदिरालय में अब,काल आधुनिक आया है।

मातु पिता सँग बच्चे पीते,संस्कृति को बिसराया है।।

प्रेम रोग का बना बहाना,मन का दर्द मिटाया है।

अर्थ व्यवस्था टिकी इसी पर,शासन ने बिकवाया है ।।



अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, July 27, 2022

मिसाइल मैन


 

युगप्रणेता मिसाइल मैन संत कलाम को

हमारा सलाम 

भारत के सुपर पावर की तैयारी

मिसाइल मैन का मिशन पूरा करना हमारी जिम्मेदारी

कुशल नेतृत्व हो तो कोई काम नहीं मुश्किल..

कठिन फैसला  जो लेते , पाते वही  मंजिल..

कर्मठ व्यक्ति ही सपने को पूरा कर पायेगा 

"शांति दूत" के साथ भारत  "सुपर पावर"कहलायेगा ।

मेरी पहचान 

मेरा भारत महान 



Tuesday, July 26, 2022

विजय दिवस

विजय दिवस की शुभकामनाएं

वीर सपूतों को करें, शत शत बार प्रणाम ।
प्राणों के उत्सर्ग से, किया देश का नाम ।।

जिनके वीर सपूत ये , धन्य मातु अरु तात।
नाम अमर इतिहास में ,दुश्मन को दी मात ।।

अद्भुत गाथा लिख गये ,ऊँचे पर्वत द्रास ।
कठिनाई से कब डरे, ले ली अंतिम साँस।।

ऋणी शहीदों के सभी, रक्षा का लें भार।
व्यर्थ नहीं बलिदान हो, लेते शपथ हजार ।।

वीरों के बलिदान से, नतमस्तक हैं आज।
उनके ही सम्मान में ,करें नया आगाज।।

अनिता सुधीर 


Monday, July 25, 2022

चौमासा


चौमासा/चतुर्मासा

पुरातन मान्यता शुभ है, प्रवाहित भक्ति की धारा।
शयन को विष्णु जी जाते, समय चौमास है न्यारा।।

उमापति ने सँभाला जग, इसी शुभ मास सावन से।
करें कल्याण वो सबका, मने त्योहार पावन से।।

परम शुभ श्रावणी आई, धरा शृंगार करती है।
हरित जब ओढ़ती चूनर ,फुहारें मांग भरतीं हैं।।

सुनी कजरी लुभावन सी, पड़े जो बाग में झूले।
सताती याद पीहर की, सुहाने पल कहाँ भूले ।।

नहीं शुभ कार्य अब होंगे, रहेंगे लीन पूजन में।
लिए काँवर चले सब जन, लगेंगे चित्त वंदन में।।

परम शुभ भाद्र अष्टम को, कन्हैया जी पधारेंगे।
विनायक जी तभी आकर , सभी के कष्ट हारेंगे।।

सुहाना मास अश्विन का, पितर से फिर मिलन होगा।
करें विधिपूर्ण तर्पण जब, कृपा का संचयन होगा।।

कठिन है यह मनुज जीवन ,भटकता है हृदय प्यासा।
मिले नवरात्रि में देवी, अलौकिक है चतुर्मासा।।

अशुभ पर जीत शुभ की कर, अवध में राम आएंगे।
जलेंगे दीप कार्तिक में , तिमिर जग का भगाएंगे।।

मनाते जैन भी इसको, यही चौमास की महिमा ।
तपस्या साधना करते , अहिंसा की रखें गरिमा।।

उठेंगे देव कार्तिक में, घड़ी शुभ कार्य की आयी।
कुशल मंगल रहे जीवन, समझ चौमास से पायी ।।

मनुज अब धार लो संयम, यही विज्ञान भी कहता।
करो उपवास व्रत सारे, नहीं फिर व्याधि को सहता।।

छिपा है भेद गहरा जो, इसी का अर्थ पहचानें।
चतुर्मासा शुभंकारी, यही दर्शन मनुज जाने।।

अनिता सुधीर आख्या




















Saturday, July 23, 2022

बाल गंगाधर तिलक


 

बाल गंगाधर तिलक जयंती विशेष

(23 जुलाई1856 - 1 अगस्त 1920)


लोक प्रचलित नारा,

मुक्ति जन्मों का अधिकार। 

बाल गंगाधर जी,

लिख गए गीता का सार।।


तेईस जुलाई धन्य रही,गाती गंगाधर गुणगान।

महाराष्ट्र के रत्नागिरी में,करने आए जब उत्थान।।


जन्म सिद्ध अधिकार रहा जो,उससे वंचित रहा समाज। 

लोकमान्य उपनाम मिला जो,चाह रहे थे बाल सुराज।। 


दक्कन शिक्षा समिति बनी थी,अंग्रेजी का घोर विरोध।

 देवनागरी मान्य रहे अब,यही कराते सबको बोध।।


जगा रहे थे जनमानस को,दिए क्रांति का नव संदेश। 

सार लिखे फिर गीता का वह,नित्य सुधार रहे परिवेश।।


पत्र केसरी आवाज बना,देश स्वतंत्र चला अभियान।

भारत के संरक्षक निर्माता,उनके अद्भुत कार्य महान।।




Friday, July 22, 2022

सावन

*विधाता छन्द*

**

हरी जब ओढ़ती चूनर,धरा शृंगार करती है।

फुहारें पड़ रहीं रिमझिम, सजा कर माँग भरती है।।

सुहाना मास सावन का, रचाती मेहंदी सखियाँ।

सताती याद पीहर की,बरसती नेह में अँखियाँ ।।


पपीहे शोर करते हैं, घटाएं जब उमड़तीं है।

अगन तन में जले जब भी, मिलन को वे तड़पतीं है।

सुनी कजरी लुभावन सी, पड़े जो बाग में झूले।

मनें त्यौहार अब सारे, पुरातन पल कहाँ भूले ।।


लिए काँवड़ चले सब जन, कि शिव का मास सावन है।

सजे मंदिर बढ़ी रौनक, रहा यह मास पावन है।।

चढ़ा कर दुग्ध की धारा,  धतूरा भी चढ़ाते हैं ।

कृपा कर दो उमापति अब,लगन तुममें बढ़ाते हैं।।



अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, July 20, 2022

माया

 पावन मंच को नमन

कुंडलियां

**

माया भ्रम के जाल में, भेद छिपा अति गूढ़।

जग-मिथ्या के अर्थ में, उलझी मैं मतिमूढ़।।

उलझी मैं मतिमूढ़, जगत यदि मिथ्या माना ।

परम ब्रह्म ही सत्य, कर्म की गति को जाना।।

यदि झूठा संसार, झूठ क्या मानव काया।

सत्य गुणों से जान, सगुण निर्गुण की माया।।

**

माया ठगिनी डोलती, बदल-बदल कर रूप।

धन दौलत सब चाहते, रहे रंक या भूप।।

रहे रंक या भूप, लगी तृष्णा जो मन की।

बिक जाता ईमान, मिटे पर भूख न इनकी।।

करा रही नित पाप, रुपैया जी भर खाया।

बुझी नहीं है प्यास, यही दौलत की माया।।


अनिता सुधीर






Friday, July 15, 2022

स्वर्ण विहग के घाव


 स्वर्ण विहग के घाव (कुछ पन्ने इतिहास के)


मैं अपना यह खंडकाव्य आजादी के सभी नायकों और वीर सेनानियों को समर्पित करती हूँ जिनके बलिदानी गाथा के कारण हम स्वतंत्र हवा में सांस ले रहे हैं। 



पैरों में थीं बेड़ियाँ,फैला था संताप। 

स्वर्ण विहग के घाव को,दूर करे थे आप।।

करूँ समर्पित आपको, खंडकाव्य यह आज।

अमिट अमर बलिदान की, रखे हृदय में छाप।।


वीर सपूतों को शत-शत नमन

आख्या अभिव्यक्ति

माँ शारदे और इष्ट देव को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ जिनके आशीर्वाद से यह मेरा खंडकाव्य 

 स्वर्ण विहग के घाव (कुछ पन्ने इतिहास के)

 आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर और अमृत महोत्सव की शृंखला  में आकार ले रहा है। 


भारत की गौरवशाली संस्कृति और सोने की चिड़िया का स्वर्णिम इतिहास सदा ही आत्म विभोर करता रहा है।

इन्ही गौरवमयी स्मृतियों के पल में मेरे मन में कितने भाव आते हैं जो कभी आह्लादित करते हैं तो कभी गहन पीड़ा और विषाद से भर देते हैं।


आक्रांताओं और गद्दारों की कुटिल चालों के कारण

स्वर्ण विहग ने अत्यंत घाव सहे हैं और ऐसा महान देश सदियों तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा है।

 यह पढ़ते और लिखते समय मेरी कलम कितनी ही बार रोई है और असह्य वेदना का अनुभव हुआ है।

इतिहास के इन पृष्ठों का संघर्ष और अनगिन बलिदानी गाथाओं को शब्दों में बाँध पाना असंभव है किंतु सवैया कुंडलिया और आल्हा छंद के माध्यम से एक तुच्छ प्रयास किया है।

इस प्रयास में आ0 संजय कौशिक विज्ञात जी और कलम की सुगंध पटल का निरंतर सहयोग मिलता रहा।

आ0 गुरुदेव और आ0 नीतू जी के पग-पग पर मार्गदर्शन और प्रोत्साहन से ही ये कार्य संभव हो सका है।


स्वदेशी, स्वतंत्रता, देश प्रेम एक भाव है, एक विचार है, कर्म और चिंतन है जिसके सामने सब कुछ नगण्य हो जाता है। इसी भाव को साथ लेकर अनगिन वीर सेनानियों ने आजादी के संघर्ष में अपने प्राण आहुत किये हैं।

कुछ याद रहे और उनकी अमिट छाप हृदय पटल पर अंकित है तो कुछ इतिहास के पन्नों में गुमनाम रहे।

उन सभी वीर योद्धाओं को अपने भाव सुमन अर्पित करती हूँ । सभी को लिख पाना तो संभव नहीं था 

किंतु प्रयत्न अवश्य किया है।

इन सैनिकों के अमर गाथा के कारण ही भारत देश आज अमरता की ओर चल पड़ा है।

आ0 विज्ञात जी द्वारा नए छंदों पर शोध किये गए छंद में से एक आख्या छंद पर सेनानियों का परिचय लिखा है।

 आज इन्हीं के शौर्य के कारण ही देश आजाद हवा में साँसे ले रहा है। इसी विरासत को हमें अब सँभालना है।


अपने हित को जब साधेंगे,सदा देश के ही उपरांत।

भारत उन्नत भाल रहेगा,और अडिग होगा दृष्टांत।।


विज्ञात प्रकाशन का हार्दिक आभार जिससे यह खंड काव्य मूर्त रूप ले सका।


पति,परिवार और मित्रों के सहयोग और प्रोत्साहन से मुझे सदा संबल मिला है,जिसका परिणाम आपके समक्ष है और ये खंड काव्य आपके आशीष और स्नेहिल प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में है....


अब आत्म बोध का हो विचार।

मिल लक्ष्य साध लो सब अपार।।

हों स्वर्ण विहग के नव्य पंख,

सुन मातु भारती की पुकार।।


अनिता सुधीर 'आख्या'







Tuesday, July 12, 2022

स्वर्ण विहग के घाव


 अवलोकन

आ0 नवल जी आपने अपना बहुमूल्य समय देकर उत्कृष्ट भावपूर्ण अवलोकन कर मुझे कृतार्थ कर दिया 

आप का हृदयतल से आभार


स्वर्ण विहग के घाव : कुछ पन्ने इतिहास के (खंड काव्य )

कवयित्री : श्रीमती अनिता सुधीर आख्या जी

प्रकाशक : विज्ञात प्रकाशन

मूल्य : 250 रुपए।


एक अवलोकन


इतिहास प्रायः एक नीरस विषय के रूप में देखा जाता है। लेकिन जब उसी इतिहास को काव्य की सरस कूँची से रस रंजित कर प्रवाहमय कर दिया जाए तो? आप बिलकुल ठीक समझ रहे हैं। मैं ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित एक खंड काव्य की बात कर रहा हूँ, जिसकी रचयिता हैं आदरणीया अनिता सुधीर जी। अनिता जी लखनऊ की रहनेवाली हैं और रसायन विज्ञान में अनुसंधान किया है इसीलिए जब बीकर और त्रिपाद पर रसायन विज्ञान के सूत्र के स्थान पर ऐतिहासिक तथ्यों को चढ़ाईं तो प्रतिफल में यह खंड काव्य बन गया।


एक बार बातों ही बातों में उन्होंने कहा था कि आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में वे एक पुस्तक प्रकाशित करेंगी। मैंने कहा, अच्छी बात है। किंतु तब मुझे कहाँ पता था कि वे इतिहास पर काव्य रच डालेंगी। अक्का, आपके इस भगीरथ प्रयत्न की जितनी भी सराहना की जाए, वह कम ही होगी। आपकी इस अद्वितीय, स्तुत्य कर्तृत्वशक्ति को सादर नमन।


अस्तु, चार सर्गों में विभाजित इस पुस्तक का प्रारंभ ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आगमन से हुआ है। तथा चरणबद्ध तरीके से विविध घटनाओं को समेटते हुए गोवा मुक्ति के ऑपरेशन विजय 1961 तक की घटनाओं को तीन सर्गों में समाहित कर लिया गया है। चौथा सर्ग अखंड भारत के स्वप्नदृष्टा को समर्पित है, जिसमें लगभग 39 महापुरुषों के बारे में वर्णन/मंडन किया गया है। पुस्तक का अंतिम पृष्ठ -वंदे मातरम, कवयित्री के राष्ट्र प्रेम का प्रकटीकरण है।


आदरणीया अनिता जी एक उत्कृष्ट छंद साधिका हैं। अनगिनत छंदों पर वे एकाधिकार रखते हुए समसि संधान करती हैं। अतः इस पुस्तक की रचनाएँ भी छांदस ही होगी, यह तो स्पष्ट है। किंतु कौन से छंद में?  मूलतः इस खंड काव्य का आधार वीर /आल्हा छंद है, जो कथानक को प्रस्तुत करने के निमित्त पूर्णतः समीचीन है। साथ ही प्रत्येक घटना की भूमिका को प्रदर्शित करने के लिए सवैया छंदों का प्रयोग हुआ है। वस्तुतः वीर छंद में सवैया की छौँक खंड काव्य की लावण्यता और रोचकता में चार चाँद लगा दे रहा है। साथ ही एकरागात्मकता के विखंडन हेतु बीच-बीच में भूमिका में सवैया के स्थान पर दोहा मुक्तक तथा कुंडलिया का भी प्रभावी प्रयोग किया गया है। यह कवयित्री के सृजन चातुर्य का परिचायक है।


पुस्तक प्रारंभ में ही भारत वर्णन में प्रस्तुत एक मत्तगयंद सवैया देखिए -


भारत गौरव गान लिखें जब, पुण्य धरा लगती सम चंदन।

जन्म लिए प्रभु राम यहाँ पर, धर्म सनातन का अभिनंदन।

मानवता पहचान बना कर, सत्य करें इसका नित वंदन।

पावन संस्कृति पूज रही युग, जीवन में भरती स्पंदन।


चतुर्वेद का भाव बोध लिए हुए हैं - ये चार पंक्तियाँ।


ईस्ट इंडिया के आगमन (31 दिसंबर 1600) को वर्णित करता एक दोहा मुक्तक देखिए -


ईस्ट इंडिया कंपनी, पहुँची भारत द्वार।

आए जेम्स नरेश फिर, करने को व्यापार।

डच से समझौता किए, पुर्तगाल अवरोध,

जहाँगीर के काल में, पाए फिर अधिकार।


शिल्प एवं भाव का संयोजन करते समय सृजनात्मक स्वतंत्रता तो ली गई है किंतु कहीं भी तथ्यों की प्रामाणिकता के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है। खंड काव्य का संकल्प लेने के साथ ही आख्या जी ने उपलब्ध प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रंथों का सूक्ष्म अवलोकन किया है। बारीक से बारीक तथ्यों को जाँचा है परखा है, तब जाकर उन्हें शब्दबद्ध किया है। और यदि मैं यह कहूँ कि उन्होंने न केवल तथ्यों को परखा है बल्कि घटनाओं को आत्मसात कर उन्हें अनुभूत किया है, अमानवीय यातनाओं के अनुभास से रोई हैं, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनकी इसी मानवीयता की झलक जालियाँवाला बाग की घटना को वर्णित करते हुए इन पंक्तियों में प्रकट हो गई है -


कूप गवाह बना लाशों का, और मची थी चीख पुकार।

क्षोभ हुआ फिर लिखते -लिखते, पढ़कर वह कपटी व्यवहार।


इसी प्रकार काकोरी कांड के वीरों की फाँसी की सजा को वर्णित करते हुए लिखती हैं -


एक दिवस ही सजा मिली थी, और जेल में आया काल।

हँसते -हँसते फाँसी चढ़ते, भारत माँ के चारों लाल।


तथ्यों को परोसते हुए विदुषी का अभिमत भी प्रकट हो उठता है। एक कुंडलिया देखिए -


पढ़ते जो इतिहास को, पीड़ा अपरंपार।

कुटिल विभाजन नीति से, बहे अश्रु की धार।

बहे अश्रु की धार, बीज जो जब थे रोपे।

फसल आज तैयार, पीठ खंजर में घोपे।

सत्य छिपा है मौन, दोष गुजर पर मढ़ते।

झेले दंश समाज, झूठ को नित ही पढ़ते।


यह इतिहास की लेखिका नहीं अपितु राष्ट्र की प्रहरिन्, समाज की प्रबुद्ध चिंतक ही लिख सकती है।


कुल मिलाकर कही जाए तो ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से लेकर प्लासी का युद्ध, संन्यासी विद्रोह, बक्सर युद्ध, स्वतंत्रता आंदोलन, मैग्नाकार्टा, बंग-भंग, स्वदेशी आंदोलन से होते हुए उग्र राष्ट्र वाद,सूरत अधिवेशन आदि प्रत्येक महत्वपूर्ण घटनाओं को क्रमिक रूप से इस पुस्तक में समाहित किया गया है। काव्य के गुण धर्म के अनुसार बड़े ही रोचक तरीके से बिना किसी तथ्यात्मक विचलन के घटनाओं का वर्णन पुस्तक की उपयोगिता में चार चाँद लगा रहा है। साथ ही इसमें महापुरुषों की जीवनी को भी समाहित किया गया है। इस हिसाब से यह पुस्तक विद्यालय के बच्चों के लिए  एक रेडी रैकोनर का काम करेगी। 


 आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में एक पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक के सफल प्रकाशन पर मैं आदरणीया अनिता सुधीर आख्या जी को अनंत शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ। 🌹🌹

आपकी लेखनी यों ही निर्बाध प्रवाह मान रहे।


जय हिंद

वंदे मातरम।


--©नवल किशोर सिंह

12.07.2022

Friday, July 8, 2022

न्याय


 

पावन मंच को नमन

न्याय


न्याय के मंदिर में 

आँखों पर पट्टी बांधे 

मैं न्याय की देवी ..

प्रतीक्षा रत  ...

कब दे पाऊँगी न्याय सबको...

हाथ में तराजू और तलवार लिये

तारीखों पर तारीख की 

आवाजें सुनती रहती हूँ ..

वो चेहरे देख नहीं पाती ,पर

उनकी वेदना समझ पाती हूँ

जो आये होंगे 

न्याय की आस में 

शायद कुछ गहने गिरवी रख 

वकील की फीस चुकाई होगी

या  फिर थोड़ी सी जमीन बेच 

 बेटी के इज्जत की सुनवाई में 

बचा  सम्मान  फिर गवाया होगा

और मिलता क्या ..

एक और तारीख ,

मैं न्याय की देवी प्रतीक्षा रत ....

कब मिलेगा इनको  न्याय...

सुनती हूँ

सच को दफन करने की चीखें

खनकते सिक्कों की आवाजें

वो अट्टहास  झूठी जीत का 

फाइलों में कैद  कागज के 

फड़फड़ाने की,

पथराई आँखो के मौन 

हो चुके शब्दों के कसमसाने की

शब्द भी स्तब्ध रह जाते 

सुनाई पड़ती ठक ठक !

कलम  के आवरण से 

निकलने की   बैचेनी

सुन लेती हूँ 

कब लिखे वो न्याय 

मैं न्याय की देवी  प्रतीक्षारत....

महसूस करती हूँ

शायद यहाँ  लोग 

काला पहनते होंगे 

जो अवशोषित करता होगा 

झूठ फरेब  बेईमानी

तभी मंदिर बनता जा रहा 

अपराधियों का अड्डा 

कब मिलेगा न्याय  और

कैसे मिलेगा न्याय 

जब सबूतों को 

मार दी  जाती गोली

मंदिर परिसर में 

मैं मौन पट्टी बांधे इंतजार में

सबको कब मिलेगा न्याय..


अनिता सुधीर

Wednesday, July 6, 2022

श्यामाप्रसाद मुखर्जी


 शत शत नमन

श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(6 जुलाई 1901 - 23 जून 1953)

जो मुखर्जी श्यामा
लिख गए भारत इतिहास।
नित्य पदचिन्हों पर
हम करें चलकर अभ्यास।।

वीर विलक्षण प्रतिभा लेकर,राजनीति में करें प्रवेश।
'देश अखंड रहे' यह मेरा,जनमानस को दे संदेश।।

तुष्टिकरण की नीति-नियम का,किया उन्होंने सदा विरोध।
धर्म बँटा आजादी में जो,परिणामों का होता बोध।।

एक देश दो ध्वज क्यों होंगे,इसका उनको नित था भान।काशमीर भारत में होगा,नहीं रहेगा धर्म विधान।।

हिंदू पर अत्याचार हुए, उनके मन जन्मा आक्रोश।
दल जनसंघ गठित कर कहते,किसी धर्म से कब है रोष।।

शिक्षाविद चिंतक श्यामा को,याद रखेगा भारतवर्ष।
हिंद उपासक अलख जगाकर,प्राणों का करते उत्कर्ष।।


अनिता सुधीर 


Sunday, June 26, 2022

कुछ यूँ ही

चाल पासा चल गया अभियान में
ढेर होते  सूरमा मैदान में।।

झूमता सा पद नशे में जब चला
दौड़ कुर्सी की लगी दालान में।।

चार दिन की चाँदनी धूमिल हुई
बीतती है उम्र भी पहचान में।।

मान कह के जो लिया तो क्या लिया
लीजिए इसको सभी संज्ञान में।।

नाम उनका ही अमर हो जाएगा
जो रहे नित सत्य के प्रतिमान में।।

शासकों का जब नया अवतार हो
नीतियाँ इतरा चलें उत्थान में।।

पाँव भी कब तक खड़े होंगे यहाँ
तीर सारे जब जुटे संधान में।।

अनिता सुधीर आख्या





Sunday, June 19, 2022

पिता



भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता


पाँव नन्हें याद में अब

स्कंध का ढूँढ़ें सहारा

उँगलियाँ फिर काँध चढ़ कर

चाहतीं नभ का किनारा

प्राण फूकें पाँव में वह

सीढ़ियाँ नभ तक बनाता।।

भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता


जोड़ता संतान का सुख

भूल कर अपनी व्यथा को

जब गणित में वो उलझता

तब कहें जूते कथा को

फिर असीमित बाँटने को

सब खजाना वो लुटाता।।

भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता।।


छत्रछाया तात की हो

धूप से जीवन बचाते

दुख बरसते जब कभी भी

बाँध छप्पर छत बनाते

और अम्बर हँस पड़ा फिर 

प्यास धरती की बुझाता।।

भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता।।


अनिता सुधीर आख्या


Friday, June 17, 2022

कैक्टस के फूल



मरुथल में

एक फूल खिला 

कैक्टस का 

तपते रेगिस्तान में

दूर-दूर तक रेत ही रेत 

वहाँ खिल कर देता ये संदेश

विपरीत स्थितियों में

कैसे रह सकते शेष 

फूल खिला सबने देखा 

पौधे को किसने सोचा?

स्वयं को ढाल लिया

विपरीत के अनुरुप

अस्तित्व को बदला कांटो में

संग्रहित कर सके जीवन जल 

 और खिल सके पुष्प ।

ऐसे ही नही खिलता 

मानव बगिया मे कोई पुष्प,

माली को ढलना पड़ता है

परिस्थिति के अनुरूप ।।


अनिता सुधीर







 

Wednesday, June 15, 2022

जनसंख्या -पर्यावरण



भवन की फसल अब धरा पर खड़ी है।

मही ओढ़ मुख को व्यथा से पड़ी है।।


सदा वृक्ष शृंगार भू का बढाए

जगत संपदा भी इन्हीं से जड़ी है।।


इसी भाँति कटते रहे जो विटप सब

मनुज भूल की फिर सजा भी बड़ी है।।


प्रभावित हुआ जैव मंडल हमारा

बढ़ी जीव की अब अपेक्षा अड़ी है।।


प्रदूषण बढ़ा व्याधि बढ़ती रही नव

विदोहन कपट दृष्टि जब से गड़ी है।।


जटिल ये समस्या समाधान माँगे

हृदय वेदना द्वंद्व से नित लड़ी है।।


चलो पौध कुछ रोप आएँ धरा पर

मृदा बाँधने की यही शुभ घड़ी है।।


अनिता सुधीर आख्या


चित्र गूगल से साभार


Thursday, June 9, 2022

गीतिका

 

नियम-युद्ध उर ने लड़ा है।

उलझता हुआ-सा खड़ा है।।


समय चक्र की रेत में धँस

वहीं रक्तरंजित पड़ा है।।


रही भिन्नता कर्म में जब

भरा पाप का फिर घड़ा है।।


विलग भाव की नीतियों ने

तपन ले मनुज को जड़ा है।।


जमी धूलि कबसे पुरातन

विचारें कहाँ पल अड़ा है।।


सदी-नींव को जो सँभाले

बचा कौन-सा अब धड़ा है।।


लिए भाव समरस खड़ा जो

वही आज युग में बड़ा है।।


समर में विजय कर सुनिश्चित

जगत मिथ्य भू में गड़ा है।।



अनिता सुधीर आख्या












Sunday, June 5, 2022

पर्यावरण


 पर्यावरण/ वृक्षारोपण


प्राण वायु देता रहे ,विटप करे उपकार।।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।

वृक्ष काटते जा रहे  ,पारा हुआ पचास।
जीव जगत व्याकुल हुआ ,शीतलता का ह्रास।।
धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इसपर  गौर ।।
श्वसन तंत्र बाधित हुआ,पड़ा मनुज बीमार।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।।

क्षरण मृदा का जो रुके ,लगे बाढ़ पर रोक।
वृक्षों का रोपण करें,तभी मिटेगा शोक । ।
माटी को  बाँधे जड़ें  ,रोके मृदा कटाव ।
स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव।।
विकट प्राकृतिक आपदा ,इस पर करें विचार।।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।।

औषध गुण भरपूर है,भोजन का भंडार।
देख भाल उत्तम करें,करिये प्यार दुलार।।
देव रूप में  पूजिये,वृक्ष धरा की शान।
संतति जैसे मानिये ,करें मान सम्मान।।
सरकारें लाचार हैं ,आप लीजिए  भार।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।।

अनिता सुधीर आख्या 

Sunday, May 29, 2022

गीतिका


गीतिका

मानव हृदय विचार, समझना दूभर है।

बात- बात पर रार, समझना दूभर है।।


प्रेम अनोखी नीति, त्याग की निष्ठा की

जीत कहें या हार, समझना दूभर है।।


रखे दोहरी नीति, मुखौटा पहने  सब

अजब जगत व्यापार, समझना दूभर है।।


देश-प्रेम अनमोल, भाव यह सर्वोपरि

बनते क्यों गद्दार, समझना दूभर है।।


बढ़ा मनुज का लोभ, कर्म भी दूषित अब

झेले क्यों संसार , समझना दूभर है।।


संस्कृति पर आघात, सहे जीवन जीता

कहाँ धनुष टंकार, समझना दूभर है।।


हृदय प्रेम की डोर, उलझती ही जाती 

ढीला क्यों आधार ,समझना दूभर है।।


सत्य हुआ जब मौन, न्याय भी चुप बैठा

छपे झूठ अखबार, समझना दूभर है।।


कम होते संवाद, मूल्य कम रिश्तों का

किसे कहें परिवार, समझना दूभर है।।


अनिता सुधीर


Wednesday, May 25, 2022

मंगलमान अभियान


 

*मंगलमान अभियान*


नव शक्ति ले नव लक्ष्य ले, अभियान मंगलमान का।

प्रहरी बना यह राष्ट्र का, शुभ कीर्ति का यशगान का।।


मतदान का जब पर्व था, नित जागरण हित राष्ट्र में

वह युद्ध था रणवीर का, था योग्यता पहचान का।।


उर में सनातन धर्म है, करते विसर्जन मूर्ति जो

यह दृष्टि है अति दूर की, यह भाव है अवदान का।।


हर भूख को नित रोटियाँ, जल का प्रबंधन कर रहे

शुभ मंगला बरसात से, दिन कष्ट के अवसान का।।


परिकल्पना नव कार्य की, श्रम साध के फिर कर्म से

गुरु विश्व का बनना हमें, ध्वज केसरी के आन का।।


अनिता सुधीर


Thursday, May 19, 2022

अंधविश्वास

 



*अंध विश्वास*

सो रहा विश्वास अंधा

बुद्धि पर भी धुंध छाई।


मिर्च नींबू थक रहे हैं 

द्वार पर कबसे टँगे हैं

डूबता व्यापार डाँटे

अब यहाँ ये क्यों लगे हैं

बाजुओं का बोलता दम

फिर निडरता जीत पाई।


मार्ग बिल्ली का कटा जो

वह अशुभ ले बैठती है

कोसती रहती मनुज को

बात क्या ये पैठती है

छींक को पानी पिलाकर

शुभ घड़ी सबने बनाई।।


शल्य होता अब जरूरी

धर्म अंधा आँख पाए

टोटके का मंत्र मारो

रात भी फिर मुस्कुराए

नींद से अब जागती सी 

ये सुबह नव रीत लाई।।


अनिता सुधीर

Tuesday, May 17, 2022

 बड़े मंगल की हार्दिक शुभकामनाएं


मंगलमान अभियान में स्वरचित गीत


https://fb.watch/d2Q0EZU98K/


मंगलमय अभियान में, मंगल ध्वनि सुर साज।

उर के मंगल भाव से,  हर्षित रहे समाज।।

ज्येष्ठ मास मंगल रहा, बड़ा अवध में खास,

राम भक्त हनुमान जी, रखें भक्त की लाज।।


अनिता सुधीर

Tuesday, May 10, 2022

पद्मश्री तुलसी गौड़ा..


 पद्मश्री तुलसी गौड़ा..


धन्य रही भारत की धरती, गौरवशाली है पहचान।

व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व बना कर, जो गाती नित अनुपम गान।।


पथ में कब कठिनाई आती, जब करते हैं ढृढ़ संकल्प।

दूर भगाते बाधा को फिर, चाहे साधन हों अति अल्प।।


विश्वकोश जंगल की कहते, तुलसी गौड़ा नाम महान।

पर्यावरण सुरक्षा में जो, देता अपना जीवन दान।।


जन्म लिया था कर्नाटक में, वृक्षारोपण ही अभियान।

निर्धनता कब आड़े आयी, "वनदेवी" बन रखतीं ध्यान।।


नित्य दिहाड़ी मजदूरी कर, रचा अनोखा यह इतिहास।

वन्यजीव की देखभाल कर, जंगल में ढूंढें उल्लास।।


मातृ वृक्ष को पहचानें जब, करतीं बीजों को एकत्र।

फिर बीजों के निष्कर्षण से, पौध लगातीं वो सर्वत्र।।


सिद्ध किया तुलसी गौड़ा ने,विधिवत शिक्षा कब अनिवार्य।

अठहत्तर की अभी उमर कम, दौड़ रहा नित उनका कार्य।


बिरले तुलसी गौड़ा जैसे, सरल सहज जिनका व्यवहार।

पुरस्कार हैं झोली में पर ,जीवन सादा उच्च विचार।।


पद्मश्री सम्मान मिला है,और मिले कितने ईनाम।

प्रकृति प्रेम में तन अर्पित कर, लिखतीं जीवन का आयाम।।


हाड़-माँस के जर्जर तन पर, पहन आदिवासी पोशाक।

नंगे पैर भवन में पहुँची, रखे इरादे अपने पाक।।


जंगल की पगडंडी से चल, राष्ट्र भवन की है कालीन।

मिली प्रेरणा जीवन से यह, सदा कर्म रहते आधीन।।



अनिता सुधीर आख्या




Sunday, May 8, 2022

मातृ दिवस विशेष



*भाग्यशालिनी*
(वो माँ भाग्यशालिनी है जब स्वयं की संतान माँ का रूप धर उनकी देखभाल करे)

सौभाग्य सुलाता माता को
जब बच्चे लोरी गाएँ।

मेरी माँ मेरे अंदर है
सदा रही उनके जैसी
चक्र समय का चलता जाता
संतति राह चले वैसी
मातु भाव में संसार निहित
शब्द नहीं इसको पाएँ।।

ऊँगली पकड़े चलना सीखा
कदम कदम पर डाँट पड़ी
हाथ पकड़ अब सुता चलाये 
निर्देशों की लगी झड़ी
स्वर्ग मिला था मातु गोद में 
सुत ये अब भान कराये।।

पीर मातु ने सदा छुपाई
कितने कष्ट सहे थे तब 
व्यथा झेल कर कष्ट छुपाते
वही करें औलादें अब 
जब संतति माँ का रूप धरें
हृदय झूम नभ छू आए।


अनिता सुधीर

Monday, May 2, 2022

दोहे


दोहावली


बूढ़ा बरगद देखता, घर का आँगन लुप्त।

खड़ी मध्य दीवार में, नेह पड़ा है सुप्त।।


लाख यत्न शासक करे,बना नियम सौ-लाख।

कुछ की भूख करोड़ की, कहाँ बचे फिर साख।।


चिर प्रतिद्वंद्वी देश का,सदा सहा आघात।

छुरा पीठ में भोंक कर, करता मीठी बात।।


जन्म-मरण के मध्य में, है श्वासों का खेल।

साधक बन कर खेलिए, रखे जगत से मेल।।


पुस्तक के बँद पृष्ठ में, प्रेम चिन्ह जो शेष।

निमिष मात्र विस्मृत नहीं, दृष्टि रही अनिमेष।।


होता तर्क़ वितर्क जब, करिए नहीं कुतर्क।

बना सत्य को झूठ क्यों, करते बेड़ा ग़र्क़।।


गरज-बरस के शोर में, लुप्त करें सब तथ्य।

स्वार्थ सिद्धि ही ध्येय जब, कौन विचारे कथ्य।।


अनिता सुधीर

Friday, April 29, 2022

ग़ज़ल

 ग़ज़ल


जिंदगी कब बीतती है प्यार की बौछार से

मुश्किलों का है सफ़र ये बोझ के अंबार से


वक़्त की इन आंधियों से हार कर क्या बैठना

चीर दे तूफ़ान को तू हौसलों की धार से


डोर नाजुक टूटती है प्रेम औ विश्वास की

चोट खाई है बशर ने फिर इन्हीं गद्दार से


मज़हबी कमजोरियां क्यों इस क़दर अब बढ़ चलीं

धर्म क्या अब यों बचेगा आपसी तक़रार से


क्यों कलम का रंग भी अब पूछते हैं सब यहाँ

अब समर लड़ना बचा है लेखनी तलवार से


वो अलग ही शख्सियत जो जीत की जिद पर अड़ी

कामयाबी की कहानी कब रची है हार से


किस अमन की चाह में कतरा लहू का बह रहा

जीत लो संसार को अब  प्रेम के व्यवहार से


अनिता सुधीर





Sunday, April 24, 2022

रामधारी सिंह दिनकर

 

रामधारी सिंह दिनकर की पुण्य तिथि पर

कुंडलिया
**
धारी दिनकर सिंह का, लेखन कार्य महान।
अलख क्रांति की नित जगा, रखा देश का मान।।
रखा देश का मान, खरी खोटी थे कहते।
रहे सदा निर्भीक, झूठ को कभी न सहते ।।
ओत-प्रोत रस वीर, लिखा था हाहाकारी
ज्ञानपीठ सम्मान,' राम'थे दिनकर धारी।।

अनिता सुधीर 




Thursday, April 21, 2022

सुनो धरती की


सुनो धरती की 
***
श्वास कंठ में कबसे अटकी
तृषा नहीं गंगाजल की 
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा 
धीरज की गगरी छलकी।।

वक्ष पटल पर पड़ी लकीरें
चोट तुम्हीं ने पहुँचाई
नाखूनों से नोचा तुमने
पीड़ा से मैं अकुलाई
कमी अन्न की खलिहानों में 
चित्र सोचती अब कल की ।।
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा
धीरज की गगरी छलकी।।

चेतन मन उर्वी ढूँढ़ रही
हरित वल्लरी आलिंगन
व्यथा भोगती जड़ होने की
चाहूँ साँसों का स्पंदन
उर पाथर पर पड़ी दरारें
बहे धार शीतल जल की।।
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा 
धीरज की गगरी छलकी।।

चली उर्वशी देवलोक से
क्रीड़ा सुख को तरस रही
दैवत्व पुरुरवा की तृष्णा
अब तक कितने कष्ट सही
बंद नैन में स्वप्न डोलते
आस लगी स्वर्णिम पल की ।।
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा 
धीरज की गगरी छलकी।।


अनिता सुधीर आख्या




Saturday, April 16, 2022

हनुमान



हनुमान प्रकटोसव की शुभकामनाएं


चैत्र माह की पूर्णिमा,प्रकट हुए हनुमान ।

राम नाम उर में धरे ,करें राम का ध्यान।।


मारुति सुत हनुमान हैं,अनघ रुद्र अवतार।

रामदूत बजरंग जी ,करते  बेड़ा  पार ।।


जपे नाम हनुमान का , रोग दोष का नाश।

भवसागर से तार दें,अंतस भरें प्रकाश ।।


मूरत इनकी  देख कर, दूर भागता काल।

दया करो मुझ दीन पर ,हे अँजनी के लाल ।।


भक्तों के दुख दूर हों, खड़े आपके द्वार।

प्रभु अपना आशीष दें, खुशियाँ भरें अपार।।


अनिता 


Friday, April 15, 2022

जीत के मंत्र

 

नवगीत


जीत के कुछ मंत्र बो दें 

अब लगी है धूप तपने


सौ परत में स्वप्न दुबका

सो रहा तकिया लगाकर

भोर सिरहाने खड़ी है

पैर को चादर उढ़ाकर

पथ विजय के नित पुकारें

धार हिय उत्साह अपने।।


कंठ सूखे होंठ पपड़े

ले नियति जब भागती है

पर्ण लेती सिसकियाँ जो

रात्रि भी फिर जागती है

अब पुरानी रीति बैठी

जीत के नव श्लोक जपने।।


रात ने माँगी मनौती

द्वार पर जो भोर उतरी

स्वेद श्रम से अब भिगोकर

कर्म की फिर बाँध सुतरी

रथ समय का चल पड़ेगा

ले कुँआरे साथ सपने।।


अनिता सुधीर






Thursday, April 14, 2022

गजल

 हाथ लेकर ख़ाली इस सफ़र पे आए।

साथ फिर क़फ़न के क्या ले के कोई जाए।।


अपनी ही चाहतों को दिल में दफन किया था

तूफ़ान जो उठा  फिर कहर वो खूब ढाए।।


जिंदगी भी आज़िज़ कब तलक शिकवा करे

हाथ की लकीरों को कब कौन है मिटाए।।


तक़दीर खेल खेले अब पैर थक रहे हैं

वक़्त थोड़ा सा बचा चल कर शज़र लगाएं।


दिल में पड़ी दरारें जब धर्म की सियासत

आग बस्तियों की फिर कौन आ बुझाए।।


अनिता सुधीर


Saturday, April 9, 2022

माता महागौरी



 माता महागौरी

अष्टम तिथि की दिव्यता,पूज्य शिवा में ध्यान हो।
मातु महागौरी सदा,भक्तों का कल्याण हो।।

जन्म हिमावन के यहाँ, मातु पार्वती ने लिया।
शंकर हों पति रूप में,बाल काल से तप किया।।

श्वेत वर्ण है मातु का,उपमा श्वेतांबरधरा ।
चतुर्भजी दुखहारिणी,माँ का अब है आसरा ।।

पूजन गौरी का करे,शांति हृदय में व्याप्त हो।
करें पाप का नाश फिर,शक्ति अलौकिक प्राप्त हो।।

राहू की हैं स्वामिनी ,दूर करें इस दोष को।
मातु वृषारूढ़ा भरें,सभी भक्त के कोष को।।

अनिता

Friday, April 8, 2022

माँ कालरात्रि

माता कालरात्रि
***

कालरात्रि की अर्चना,सप्तम तिथि को कीजिए।
काल विनाशक कालिका,शुभंकरी को पूजिए।।

रक्त बीज संहार जब,जन्म हजारों रक्त का।
दानव का संहार कर,कष्ट हरा फिर भक्त का।।

तीन नेत्र की स्वामिनी,रूप धरे विकराल हैं।
तांडव मुद्रा देख के,दूर भागता काल है ।।

चतुर्भुजी के हाथ में,कांटा और कटार है।
गर्दभ वाहन साथ ले,करें असुर संहार है।।

रोग दोष से मुक्त कर,करें शत्रु का नाश है।
ग्रह बाधा को दूर कर,जग में भरा प्रकाश है।।

द्वार सिद्धियों के खुलें,साधक मन सहस्रार में।
शीर्ष चक्र की चेतना,है दैहिक आधार में।।

अनिता सुधीर आख्या
चित्र गूगल से

Monday, April 4, 2022

माँ चंद्रघंटा

 #माँ चंद्र घण्टा के चरणों में पुष्प#



नवरातों त्योहार में,दिवस तीसरा ख़ास है ।
चंद्र घंट को पूज के ,लगी मोक्ष की आस है।।

सौम्य रूप में शाम्भवी,माँ दुर्गा अवतार हैं।
घण्टा शोभित शीश पर ,अर्ध चंद्र आकार है ।।

सिंह सवारी मातु की,अस्त्र शस्त्र दस हाथ में।
दर्श अलौकिक जानिए ,दिव्य शक्तियाँ साथ में।।

अग्नि तत्व मणिपुर सधे,योग साधना तंत्र में।
साधक मन को साधते,सप्त शती के मंत्र में।।

ध्वनि घंटे की शुभ रही,करें जोर से नाद सब।
दूर प्रेत बाधा करे,दूर करे अवसाद सब।।

कीर्ति मान सम्मान हो,साधक के घर द्वार में।
रक्षा करने धर्म की,माँ आयीं संसार में।।

अनिता सुधीर

Friday, April 1, 2022

परीक्षा उत्सव

 परीक्षा

रूप घनाक्षरी


कितने ही प्रकार से जीवन परीक्षा लेता

जीत सदा होती कब,कभी मिलती है हार।


दुखी कभी होना नहीं, छोड़ दें अवसाद को

परीक्षा को पर्व मान, करें सदैव सत्कार।।


कर्म पथ हो अडिग, हर पल निडर हो

जो भी परिणाम आये, उसको ले अँकवार।


श्रेष्ठ अपना दीजिये धीरज वरण कर, 

सबके प्रश्न भिन्न हैं ,यही जीवन का सार।।


अनिता सुधीर

Monday, March 28, 2022

गीतिका

 शूल को पथ से हटाने का मजा कुछ और है।

वीथिका को नित सजाने का मजा कुछ और है।।


व्यंजना या लक्षणा में भाव हृद के व्यक्त हों

छंद को फिर गुनगुनाने का मजा कुछ और है।।


क्लांत बैठा हो पथिक जब जिंदगी से हार कर

पुष्प उस पथ में बिछाने का मजा कुछ और है।।


पंख सपनों को लगाकर दूर बाधा को करें

मुश्किलों के पार जाने का मजा कुछ और है।।


चाल चलकर काल निष्ठुर ओढ़ चादर सो रहा

लालिमा में चहचहाने का मजा कुछ और है।।


पीर की सामर्थ्य क्यों अवसाद को नित जोड़ती

वेदना में मुस्कुराने का मजा कुछ और है।।


कौन हूँ मैं क्या प्रयोजन द्वंद्व अंतस ने लड़ा 

लक्ष्य को फिर से जगाने का मजा कुछ और है।।



अनिता सुधीर 


Saturday, March 26, 2022

सपने


कुंडलिया


1)

सपने जग कर देखिए, बीते काली रात।

खुले नैन से ही सधे, नूतन नवल प्रभात।।

नूतन नवल प्रभात, लक्ष्य दुर्गम पथ जानें ।

करके बाधा पार, मिले मंजिल तय मानें ।

सपनों का संसार, सजाएँ नित सब अपने।

कठिन लक्ष्य को भेद, और फिर देखें सपने।।


2)

अपने जीवन को गढ़ें, शिल्पकार बन आप।

छेनी की जब धार हो, अमिट रहेगी छाप।।

अमिट रहेगी छाप, सदा रखिये मर्यादा ।

सच्चाई का मार्ग, नहीं हो झूठ लबादा।।

सतत हथौड़ा सत्य का,पूर्ण हो सारे सपने ।

नैतिकता आधार,गढ़ें सब सपने अपने।।


अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, March 23, 2022

शहीदी दिवस

शत शत नमन
 

अब आत्म बोध का हो विचार।

सुन मातु भारती की पुकार।।

बलिदान कृत्य से अमर आज

हम चुका सकें उनका उधार।।



Tuesday, March 22, 2022

जल प्रबंधन

विश्व जल दिवस 


प्यासी मौतें डेरा डाले
पीड़ा नीर प्रबंधन की

सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
जनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
किस की करनी को भरता
ताल नदी का वक्ष सूखता
आशा पय संवर्धन की।।

कानाफूसी करती सड़कें
चौराहे का नल सूखा
चूल्हा देखे खाली बर्तन
कच्चा चावल है भूखा
माँग रही है विधिवत रोटी
भूख बिलखती निर्धन की।।

बूँद टपकती नित ही तरसे
कैसे जीवन भर जाऊँ
नारे भाषण बाजी से अब
कैसे मन को बहलाऊँ
बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन
जन सोचे अवरोधन की।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, March 20, 2022

पीर विरह की

 पीर विरह की



पीर जलाती रही विरह की

बनती रीत।

मिले प्रेम में घाव सदा क्यों

बोलो मीत।।


विरह अग्नि में मीरा करती 

विष का पान

तप्त धरा पर घूम करें वो

कान्हा गान

कुंज गली में  राधा ढूँढे 

मुरली तान 

कण कण से संगीत पियें वो

रस को छान

व्यथित हृदय से कृष्ण खोजते

फिर वो प्रीत 

पीर जलाती ..


तड़प तड़प कर रहते होंगे

राँझा हीर

अलख निरंजन जाप करे वो ,

टिल्ला वीर

बेग!माहिया बन के तड़पे ,

रक्खे धीर,

विरह अग्नि सोहनी की बुझती

नदिया तीर।

ब्याह चिनाब में फिर रचाये

मौनी मीत 

पीर जलाये..


जन्मों के वादे कर हमसे

पकड़ा हाथ

अब विरह वेदना को सहते 

छोड़ा साथ

बिना गुलाल अब सूखा फाग

सूना माथ

लगे भूत का डेरा घर अब

झेलें क्वाथ ।

पत्तों की खड़खड़ भी करती

अब भयभीत 

पीर जलाए..



अनिता सुधीर 

Wednesday, March 16, 2022

होलिका दहन



होलिका दहन


आज का प्रह्लाद भूला

वो दहन की रीत अनुपम।।


पूर्णिमा की फागुनी को

है प्रतीक्षा बालियों की

जब फसल रूठी खड़ी है

आस कैसे थालियों की 

होलिका बैठी उदासी 

ढूँढती वो गीत अनुपम।।


खिड़कियाँ भी झाँकती है

काठ चौराहे पड़ा जो

उबटनों की मैल उजली

रस्म में रहता गड़ा जो

आज कहता भस्म खुद से

थी पुरानी भीत अनुपम।।


बांबियाँ दीमक कुतरती

टेसुओं की कालिमा से

भावना के वृक्ष सूखे

अग्नि की उस लालिमा से

सो गया उल्लास थक कर

याद करके प्रीत अनुपम।।


अनिता सुधीर आख्या



Sunday, March 13, 2022

लेखनी अब ऊँघती-सी





छंद की ग्रीवा हठी-सी

माँगती अक्षर जड़ाऊ।

हाट कहता यह व्यथा फिर

काव्य क्यों रहता बिकाऊ।।


कल्पना की आस भागी

शब्द को कसकर जकड़ लें

बुद्धि ने पहरा लगाया

बाँध कर गति को पकड़ लें

आर्द्रता मसि पर पसरती

भाव कब रहते टिकाऊ।।


जब कलम अनुभूतियों के

पीत सरसों खेत ढूँढ़े

पृष्ठ  कोरे  ले उदासी

कथ्य रस की रेत ढूँढ़े

व्यंजना या लक्षणा के

सूखते हैं कूप प्याऊ।।



वर्ण पर पाला पड़ा जो

वृष्टि से कैसे निपटता

शीत की फिर ओढ़ चादर

पौष शब्दों से लिपटता

लेखनी अब ऊँघती-सी

मौन की यात्रा थकाऊ।।


अनिता सुधीर 

Wednesday, March 9, 2022

दर्पण


मुक्तक

1)

दर्पण तुम लोगों को आइना दिखाते हो।

बड़ा अभिमान तुमको कि तुम सच बताते हो।

बिना उजाले के क्या अस्तित्व रहा तेरा ,

दायें को बायें कर तुम क्यों इतराते हो ।।

2)

ये दर्पण पर सीलापन था।

या छाया का पीलापन था ।।

दर्पण को पोछा बार -बार ,

क्या आँखो का गीलापन था ।

3)

हर शख्स ने चेहरे पर चेहरा लगा रखा है ।

अधरों पर हंसी, सीने में दर्द सजा रखा है ।

सुंदर मुखौटों का झूठ बताता है आईना ,

और मायावी दुनिया का सच छिपा रखा है।


©anita_sudhir



Monday, March 7, 2022

स्त्री

 

स्त्री बाजार नहीं है।

वो व्यापार नहीं है।।


क्यों उपभोग किया है
वो लाचार नहीं है।।

नर से श्रेष्ठ सदा से
ये तकरार नहीं है।।

उसने मौन सहा जो
कोई हार नहीं है ।।

आँगन रिक्त रहे जब
फिर संसार नहीं है।

अनिता सुधीर आख्या



Friday, March 4, 2022

दीपशिखा


दीपशिखा


दीपशिखा बनकर सदा जली ,

मेरे पथ पर रहा अंधेरा,

लपट बना कर चिंगारी की ,

लूट रहा सुख चैन लुटेरा ।


कितने धागे टूटा करते

सूखे अधरों को सिलने में

पहर आठ अब तुरपन करते,

क्षण लगते कुआं भरने में

रिसते घावों की पपड़ी से

पल पल बखिया वही उधेरा 

लपट बना कर चिंगारी की ,

लूट रहा सुख चैन लुटेरा ।


पुष्प बिछाये और राह पर

शूल चुभा वो किया बखेरा ।

दुग्ध पिला कर पाला जिसको

वो बाहों का बना सपेरा ।

पीतल उसकी औकात नहीं

गढ़ना चाहे स्वर्ण  ठठेरा 

लपट बना कर चिंगारी की ,

लूट रहा सुख चैन लुटेरा ।


बन कर रही मोम का पुतला

धीरे धीरे सब पिघल गया 

अग्निशिखा अब बनना चाहूँ

कोई मुझको क्यों कुचल गया 

अब अंतस की लौ सुलगा कर,

लाना होगा नया सवेरा ।

लपट बना कर चिंगारी की 

लूट रहा था चैन लुटेरा ।


अनिता सुधीर



Thursday, March 3, 2022

प्रीत हिंडोला

 *प्रीत हिंडोला*


उर जलधि में कर हिलोरें

प्रेम फलता-फूलता सा


रश्मि रथ पर पग सँभारे

भोर नटखट-सी उतरती

कुनमुनी सी गुनगुनाहट

साज बन कर अब चहकती

प्रीत हिंडोले लहर में

हिय कुसुम कुछ झूलता सा।।


तोड़ नीरवता विपिन भी

ले मलय सौरभ विचरता

लालिमा से अर्घ्य ले कर

फिर हृदय उपवन निखरता

हो तरंगित नाचता मन 

कालिमा को भूलता सा।।


सप्त रंगों को सजोये

श्वेत अम्बर मुग्ध है अब

आगमन नव बौर का हो

नींद व्याकुल स्निग्ध है अब

उर प्रतीक्षा में धड़कता

जो रहा था सूखता सा।।



अनिता सुधीर आख्या

Monday, February 28, 2022

शिवरात्रि


उल्लाला छंद


महापर्व शिवरात्रि में, रात मिलन अध्यात्म की।
कृष्ण चतुर्दश फाल्गुनी, प्रकृति-पुरुष एकात्म की।।

पंच तत्व का संतुलन,यह शिवत्व आधार है।
वैरागी को साधना, ही जीवन का सार है।। 

प्रकटोसव शिवरात्रि में, ऊर्जा का संचार है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में, निराकार साकार है।।

शिव गौरा के ब्याह की, आज मनोरम रात में।
आराधन में लीन हो, भीगें भक्ति प्रपात में।।

सृष्टि रचयिता रुद्र का, तीन लोक अधिपत्य है।
महाकाल हैं काल के, शिवं सुंदरं सत्य है।।

औगढ़ योगीराज का, आदि अंत अज्ञात है।
तांडव नृत्य त्रिनेत्र का, सकल अर्थ विख्यात है।।

आत्मजागरण पर्व की, महिमा अपरंपार है।
नीलकंठ के अर्थ में, जगत श्रेष्ठ व्यवहार है।।

शंकर गौरा साथ में, और भाव वैराग्य भी।
गुण विरोध में संतुलन, यही मनुज सौभाग्य भी।।

नाड़ी तीन प्रतीक हैं, शंकर हस्त त्रिशूल के।
दैहिक भौतिक ताप हर, निष्कंटक जग मूल में।।

राख चिता की गात जो,भस्म जीव का साथ है।
भाव शुद्धता का लिए, बाबा भोलेनाथ हैं।।

बिल्वपत्र अक्षत चढ़ा,करिए व्रत उपवास सब।
कैलाशी को पूज कर, जीवन करें प्रभास सब।।

अनिता सुधीर आख्या















 


Thursday, February 24, 2022

कविता

 *बनी प्रेयसी सी चहकी*


खुली गाँठ मन पल्लू की जब

पृष्ठों पर कविता महकी


बनी प्रेयसी शिल्प छन्द की

मसि कागद पर वह सोई 

भावों की अभिव्यक्ति में फिर

कभी पीर सह कर रोई

देख बिलखती खंडित चूल्हा

आग काव्य की फिर लहकी।।


लिखे वीर रस सीमा पर जब

ये हथियार उठाती है

युग परिवर्तन की ताकत ले

बीज सृजन बो जाती है

आहद अनहद का नाद लिये

कविता शब्दों में चहकी।।


शंख नाद कर कर्म क्षेत्र में 

स्वेद बहाती खेतों में

कभी विरह में लोट लगाती

नदी किनारे रेतों में

रही आम के बौरों पर वह

भौरों जैसी कुछ बहकी।।


झिलमिल ममता के आँचल में 

छाँव ढूँढती शीतलता

पर्वत शिखरों पर जा बैठी

भोर सुहानी सी कविता

लिए अमरता की आशा में

युग के आँगन में कुहकी।।


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, February 20, 2022

चुनाव

 आया दौर चुनाव का  ,नेताओं की रार ।

लगा दाँव पर अस्मिता ,करते हैं व्यापार।


निम्न कोटि के हो रहे ,नेताओं के बोल,
मूल्यों को रख ताक पर,बिका करें बिन मोल।
नायक जनता के बनें,करिए दूर विकार ।
अपने हित को त्यागिये,रखिए शुद्ध विचार।
याद करें संकल्प ये ,देश प्रेम आधार ।
आया ..

जाति धर्म निज स्वार्थ दे,गद्दारी का घाव ।
देश भक्ति ही धर्म हो ,रखे एकता भाव।
जन जन की वाणी बनो,अमर देश का नाम,
राजनीति को अब मिले ,एक नया आयाम।
भारत के निर्माण में ,बहे एकता  धार ।
आया ...

युग ये कैसा आ गया ,चरण वंदना धर्म।
झूठे का गुणगान ही ,बनता जीवन कर्म ।
अपने हित को साधिये,सदा देश उपरांत ।
देशप्रेम अनमोल है ,अडिग रहे सिद्धान्त।
सच्चाई की राह पर,रुको नहीं थक हार ।
आया..


अनिता सुधीर 

Thursday, February 17, 2022

गीत

 


तन पिंजर में कैद पड़ा है,लगता जीवन खारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

तप्त धरा पर बरसों भटके,प्रेम गठरिया  हल्की।
रूठ चाँदनी छिटक गयी है,प्रीत गगरिया छलकी।।
इस पनघट पर घट है रीता,भटके मन बंजारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

ओढ़ प्रीत की चादर ढूँढूँ,तेरा रूप सलोना।
ब्याह रचा कर कबसे बैठी,चाहूँ मन का गौना ।।
चेतन मन निष्प्राण हुआ अब,माँगे एक किनारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

बाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर  जाऊँ।
चातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

अनिता सुधीर

Wednesday, February 16, 2022

ग़ज़ल


ग़ज़ल

अब गमों रंजिशों से बचा कौन  है।
इस उजड़ते चमन का ख़ुदा कौन है।।

आईना दूसरों को दिखाता रहे
ऐब अपने कभी देखता कौन है।।

पत्थरों का शहर ज़ख्म देता रहा
ठोकरों से बचाता भला कौन है।।

ज़िंदगी अनकही सी गुजरती गयी
सुन सके जो इसे वो सगा कौन है।।

आप मेरी ग़ज़ल क्यों नहीं बन सके?
आप ही बोलिए बेवफ़ा कौन है।।

इश्क़ की जो नुमाइश लगी आजकल
रूह से रूह का अब पता कौन है।।

ये सियासत सदा चाल चलती रही
अब वतन की यहाँ सोचता कौन है।।

अनिता सुधीर

Sunday, February 13, 2022

ग़ज़ल

 आप की नजरें इनायत हो गयी

आप से मुझको मुहब्बत हो गयी।


इश्क़ का मुझको नशा ऐसा चढ़ा 

अब जमाने से अदावत हो गयी ।


तुम मिले सारा जहाँ हमको मिला

यूँ लगे पूरी इबादत हो गयी।।


ये  नजर करने लगी  शैतानियां

होश खो बैठे  कयामत हो गयी।


जिंदगी सँग आप के गुजरा करे

सात जन्मों की हकीकत हो गयी।


अनिता सुधीर

Saturday, February 12, 2022

वृद्धावस्था


 *वृद्धावस्था*


टूटी कमर दीवारों की

तिल तिल करके नित्य मरे


सोने जाती आधी रात

लिए दुखों का सँग तकिया

नींद सिरहाने ऊँघी जो

स्वप्न बने नित ही छलिया

आँसुओं की सभा लगी फिर

अपनों को कब गले भरें।।


पग काँपते घर आँगन के

चार कदम जो चलना है

संयमी तुलसी पीली पड़ती

द्वार आस का पलना है

अमृत रस साथी को देना

स्वयं मौत से कौन डरे।।


दोनों खाट ओसारे की

अस्थियों का पुल बनाएं

स्तम्भ जर्जर गिरा नदी में

चप्पू अब किसे थमाएं

ठहर गयी दोनों ही सुई

हलचल केवल एक करे।।


Wednesday, February 9, 2022

मृगनयनी

चित्र गूगल से साभार

 मृगनयनी


प्रेम रूप की श्वेत हंसिनी

लगे भोर की अरुणाई


चंचल-चपला सी मृगनयनी

चाल कुलांचे भूल चली

हौले-हौले कदम साध के

शांत चित्त की खिली कली

झुके नयन में लाज भरे जब 

प्रीति पंखुड़ी गहराई।।


श्याम केश के अवगुंठन से

चाँद रूपिणी जब झाँके

अधरों का उन्माद धैर्य धर

पुष्प सितारे वह टाँके

स्निग्ध मुग्धता शीत चाँदनी

शुद्ध नीर-सी तरुणाई ।।


प्रेम मूर्ति की सुंदरता में

नहीं जलधि का शोर रहे

राग लावणी अंग सजा के

शीतल से उद्गार बहे

रमणी को परिभाषित करने

मर्यादा वो ठहराई।।


अनिता सुधीर

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...