Sunday, February 28, 2021

इंद्रधनुष

रंग चुरा लूँ धूप से,संग नीर की बूँद।
इंद्रधनुष हो द्वार पर,देखूँ आँखे मूँद।।

तम के बादल छट रहे,दुख की बीती रात।
इंद्रधनुष के रंग ले,सुख की हो बरसात।।

रंगों के इस मेल में,छुपा सुखद संदेश।
इंद्रधनुष बन एक हों,उत्तम फिर परिवेश।।

सात रंग के अर्थ में,कितने सुंदर कथ्य।
धरा गगन जल सूर्य के,लिए हुए हैं तथ्य।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, February 19, 2021

कैक्टस का फूल



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मरुथल में
एक फूल खिला 
कैक्टस का ,
तपते रेगिस्तान में
दूर दूर तक रेत ही रेत ,
वहाँ खिल कर देता ये संदेश
विपरीत स्थितियों में
कैसे रह सकते शेष !
फूल खिला तो सबने देखा ,
पौधे के बारे में किसने सोचा !
स्वयं को ढाल लिया
विपरीत  के अनुरुप
अस्तित्व को बदला कांटो में
संग्रहित कर सके जीवन जल 
और फिर खिल सका पुष्प ।
ऐसे ही नही खिलता 
मानव बगिया मे कोई पुष्प,
माली को ढलना पड़ता है,
परिस्थिति के अनुरूप ।

अनिता सुधीर

Sunday, February 14, 2021

श्रंद्धाजलि



पुलवामा  बरसी 
पुलवामा की हृदय विदारक घटना के दो वर्ष बीतने पर  वीर शहीदों को शत शत नमन

गीतिका
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घात लगाकर दे गए,आतंकी आघात।
आज बीतते वर्ष दो,हृदय व्यथित दिन रात।

ओढ़ तिरंगा सो गये ,पुलवामा के वीर 
आँखे नम हैं याद में,द्रवित मातु अरु तात ।

आयी थी विपदा बड़ी,किया पाक को खाक
बदला रिपु से ले लिया,उसकी क्या औकात ।

वीर शहीदों का लहू ,कहता बारम्बार,
नाश करो अब शत्रु का,करता वो उत्पात ।

व्यर्थ न होगा साथियों,रहे अमर बलिदान,
वादा करते हम सभी ,अरि को देंगे मात ।

कोटि कोटि उनको नमन ,जिनके तुम हो लाल ,
अर्पित श्रद्धा सुमन ये ,नहीं सहें अब घात ।

परिभाषित कर प्रेम को,गाथा लिखी महान ,
प्रेम दिवस अब है अमर,वीर हुये विख्यात ।

अनिता सुधीर

Saturday, February 13, 2021

प्रेम और बेरोजगारी

#प्रेम और बेरोजगारी

देखो बाली उम्र में, लगा प्रेम का रोग
साथ चाहिए छोकरी,नहीं नौकरी योग ।।

रखते खाली जेब हैं,कैसे दें उपहार।
प्रेम दिवस भी आ गया,चढ़ता तेज बुखार।।

दिया नहीं उपहार जो,कहीं न जाये रूठ।
रोजगार तो है नहीं,उससे बोला झूठ ।।

स्वप्न दिखाए थे उसे,ले आऊँगा चाँद ।
अब भीगी बिल्ली बने,छुप जाऊँ क्या माँद।।

साथ छोड़ते दोस्त भी,देते नहीं उधार ।
जुगत भिड़ानी कौन सी,आता नहीं विचार।।

भोली भाली माँ रही,पूछे नहीं सवाल ।
बात बात पर रार है, करते पिता बवाल।।

नहीं दिया उपहार जो,साथ गया यदि छूट।
लिए अस्त्र तब चल पड़े,करनी है कुछ लूट।

मातु पिता का मान अब ,सरेआम नीलाम।
आये ऐसे दिन नहीं,थामो प्रेम लगाम ।।

रोजगार अरु प्रेम में,सदा रहे ये तथ्य ।
दोनों का ही साथ हो ,जीवन सुंदर कथ्य ।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, February 12, 2021

गीतिका


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भूल मानव की सदा से इस धरा ने जब सही है।
आँसुओं की बाढ़ आती वेदना फिर अनकही है।।

कोख उजड़ी माँग उजड़ी प्रीत के सब रंग उजड़े
कब मनुजता सीख लेगी पीर सदियों की यही है।।

नित बसंती बौर पर पतझड़ ठहरता सा गया क्यों
दर्द का फिर कथ्य लिखकर लेखनी विचलित रही है।।

लोभ मद के फेर में पड़ सुख भटकता जा रहा अब 
प्राप्ति की इस लालसा में सत्य की मंजिल ढ़ही है।।

मृत्यु की आहट सुनाकर जब प्रलय भी काँप जाए
फिर विधाता सोचता ये काल की कैसी बही है।।

बही  बहीखाता

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, February 4, 2021

धुंध


धुंध

उष्णता की कमी
अवशोषित कर नमी
रगों में सिहरन का 
एहसास दिलाये
दृश्यता का ह्रास कराए।
सफर को कठिन बना
ये धुंध चहुँ दिशा फैलती जाती है
संयम से सजग हो
निकट धुंध के  जाओ..
 और भीतर तक जाओ
धुंध ने सूरज नहीं निगला है
 सूरज की उष्णता निगल 
लेगी धुंध को ।
सामाजिक  राजनीतिक
परिदृश्य भी 
त्रास से
धुंधलाता जा रहा 
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा
संबंधों की कम हो रही उष्णता
अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता
कड़वाहट बन सिहरन दे रही ।
विश्वास ,प्रेम की  किरणें 
लिए अंदर जाते  जाओ
दूर से देखने पर 
सब धुंधला है
पास आते जाओगे 
दृश्यता  बढ़ती जायेगी
तस्वीर साफ नजर आएगी।


अनिता सुधीर 

Monday, February 1, 2021

बजट

भानुमती का खोल पिटारा
बाहर आया जिन्न

नचा रहे हैं बड़े मदारी
नाचें छम छम लोग
तर्क पहनता नूतन चोला
कहता उत्तम योग
वायुयान में बैठ विपक्षी
आज हुए हैं खिन्न।।
बाहर आया जिन्न

दाल गलाए जनता कैसे
नायलॉन का मेल
टुकुर टुकुर वो बीमा देखे
रहे आँकड़े खेल
सोच रहे हैं अमुक फलाने
स्वप्न हुए अब छिन्न।।
बाहर आया जिन्न

अर्थ पड़ा बीमार कभी से
कबसे रहा कराह
बाजार उछलता जोरों से 
लाया नया उछाह
सत्य झूठ आपस में लड़ते
बुद्धि रखें हैं भिन्न।।
बाहर आया जिन्न

अनिता सुधीर आख्या

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...