चित्रकार की तूलिका,भरे गगन में रंग।
सूर्य उदय की लालिमा,रचती नवल प्रसंग।।
नित्य स्वप्न भी जागते,सूर्योदय के संग।
कनक रश्मियाँ घट लिए,भरे स्वप्न में रंग।।
चित्रकार की तूलिका,भरे गगन में रंग।
सूर्य उदय की लालिमा,रचती नवल प्रसंग।।
नित्य स्वप्न भी जागते,सूर्योदय के संग।
कनक रश्मियाँ घट लिए,भरे स्वप्न में रंग।।
सहकर सबके पाप को,पृथ्वी आज उदास। देती वह चेतावनी,पारा चढ़े पचास।। अपने हित को साधते,वक्ष धरा का चीर। पले बढ़े जिस गोद में,उसको देते पीर।। दू...