Tuesday, June 20, 2023

नई शिक्षा नीति



शिक्षा नीति

सुखद भोर है भारत में
शिक्षा में बदलाव लिए
पूर्ण प्रतीक्षा वर्षों की 
नीति नहीं भटकाव लिए।।

मूल भूत सिद्धांत रहा
निज भाषा से ज्ञान बढ़े
सम्प्रेषण आसान रहे
रटना क्यों सम्मान गढ़े
भाषा विकसित उन्नत हो
संस्कृति का प्रस्ताव लिए 
सुखद भोर है भारत में
शिक्षा में बदलाव लिए
पूर्ण प्रतीक्षा ..

कक्षा छह में जाते ही
अधुना शिक्षण ज्ञान मिले
लक्ष्य आत्मनिर्भरता है
रोजगार अभियान मिले
शिक्षा में व्यवधान न हो
यही अनोखा भाव लिये
सुखद भोर है भारत में
शिक्षा में बदलाव लिए
पूर्ण प्रतीक्षा..

बड़े लाभ का नियम बना
मानविकी विज्ञान पढ़े
नींव बने मजबूत तभी
साथ-साथ जब सभी बढ़े
कार्य चुनौती पूर्ण बड़ा
नहीं रहे बिखराव लिए
सुखद भोर है भारत में
शिक्षा में बदलाव लिए
पूर्ण प्रतीक्षा ..


अनिता सुधीर आख्या

Friday, June 16, 2023

तन पिंजर

गीत

तन पिंजर

तन पिंजर में कैद पड़ा है,लगता जीवन खारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

तप्त धरा पर बरसों भटके,प्रेम गठरिया  हल्की।
रूठ चाँदनी छिटक गयी है,प्रीत गगरिया छलकी।।
इस पनघट पर घट है रीता,भटके मन बंजारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

ओढ़ प्रीत की चादर ढूँढूँ,तेरा रूप सलोना।
ब्याह रचा कर कबसे बैठी,चाहूँ मन का गौना ।।
चेतन मन निष्प्राण हुआ अब,माँगे एक किनारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

बाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर  जाऊँ।
चातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, June 13, 2023

न्याय

न्याय 


न्याय के मंदिर में 
आंखों पर पट्टी बांधे 
मैं न्याय की देवी .प्रतीक्षा रत  ...
कब मिलेगा न्याय सबको...
हाथ में तराजू और तलवार लिये
तारीखों पर  तारीख की 
आवाजें सुनती रहती हूँ ..
वो चेहरे देख नहीं पाती ,पर
उनकी वेदना समझ पाती हूँ
जो आये होंगे 
न्याय की आस में 
शायद कुछ गहने गिरवी रख 
वकील की फीस चुकाई होगी,
या  फिर थोड़ी सी जमीन बेच 
 बेटी के इज्जत की सुनवाई में 
बचा  सम्मान  फिर गवाया होगा
और मिलता क्या 
एक और तारीख ,
मैं न्याय की देवी प्रतीक्षा रत ....
कब मिलेगा इनको  न्याय...
सुनती हूँ
सच को दफन करने की चीखें
खनकते सिक्कों की आवाजें
वो अट्टहास  झूठी जीत का 
फाइलों में कैद  कागज के 
फड़फड़ाने की,
पथराई आँखो के मौन 
हो चुके शब्दों के कसमसाने की
शब्द भी स्तब्ध रह जाते 
सुनाई पड़ती ठक ठक !
कलम  के आवरण से 
निकलने की   बैचेनी
सुन लेती हूँ 
कब लिखे वो न्याय 
मैं न्याय की देवी  प्रतीक्षारत....
महसूस करती हूँ
शायद यहाँ  लोग 
काला पहनते होंगे 
जो अवशोषित करता होगा 
झूठ फरेब  बेईमानी
तभी मंदिर बनता जा रहा 
अपराधियों का अड्डा 
कब मिलेगा न्याय  और
कैसे मिलेगा न्याय 
जब सबूतों को 
मार दी  जाती गोली
मंदिर परिसर में 
मैं मौन पट्टी बांधे इंतजार में
कब मिलेगा न्याय..
जग के न्यायकर्ता को 
कौन और कब दे न्याय..

©anita_sudhir

Friday, June 9, 2023

गीतिका

गीतिका

नियम-युद्ध उर ने लड़ा है।
उलझता हुआ-सा खड़ा है।।

समय चक्र की रेत में धँस
वहीं रक्तरंजित पड़ा है।।

रही भिन्नता कर्म में जब
भरा पाप का फिर घड़ा है।।

विलग भाव की नीतियों ने
तपन ले मनुज को जड़ा है।।

जमी धूलि कबसे पुरातन
विचारें कहाँ पल अड़ा है।।

सदी-नींव को जो सँभाले
बचा कौन-सा अब धड़ा है।।

लिए भाव समरस खड़ा जो
वही आज युग में बड़ा है।।

समर में विजय कर सुनिश्चित
जगत मिथ्य भू में गड़ा है।।

अनिता सुधीर आख्या

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...