Wednesday, October 28, 2020

मंथरा अवसाद में


मंथरा अवसाद में अब

है जगत पर मार उसकी


नित कथा लिखती कुटिलता

तथ्य बदले अब समय में

रानियाँ है केश खोले

कोप घर अब हर निलय में

फिर किले भी ध्वस्त होते

जीतती  है रार उसकी ।।

मंथरा अवसाद..


प्राण बिकता कौड़ियों में

बुद्धि पर ताला लगा है

सोच कुबड़ी कुंद होती

स्वार्थ को कहती सगा है

लिख नया इतिहास पाती

वेदना हो  पार उसकी।

मंथरा अवसाद ...



सत्य पूछे वन गमन क्यों

मंथरा कब तक रहेगी

शक्तियाँ हैं आसुरी अब

सीख भी कब सीख लेगी

व्यंजना भी रो रही है

देख आँसू धार उसकी।।

मंथरा अवसाद ...



अनिता सुधीर आख्या

Saturday, October 17, 2020

नवरात्रि

नवरात्रि की शुभकामनाएं
दोहा छन्द

शारदीय नवरात्रि का, आज हुआ आरंभ।
पापनाशिनी मातु अब,मिटा हमारे दम्भ।।

करें कलश की स्थापना,पूजन विधि अनुसार।
प्रथम दिवस माँ शैल का,वंदन बारम्बार।।

आदि शक्ति का रूप हैं,दुर्गा के अवतार।
कृपा करो वरदायिनी, सुखमय हो संसार।।

माँ आओ उर धाम में,यही लगी है आस।
अंतर्मन की शुद्धि में,जीवन का उल्लास।।

विकट आपदा काल है,मिटा जगत का त्रास।
दुष्टों का संहार कर, मन में भरो हुलास।।


स्वरचित
अनिता सुधीर

Sunday, October 11, 2020

गीतिका

 गीतिका
2212  2212  2212  2212
समान्त एगी पदांत नहीं 
**
अब लेखनी भी मौन है,वह सत्य ढूँढेगी नहीं।
इतिहास फिर झूठा लिखा,ये बात भूलेगी नहीं।।

जो गलतियाँ की काल ने,भुगते सजा वो आज हम,
अब टीस उठती भूल की,क्या वो सताएगी नहीं।।

जब स्तंभ चौथा डगमगा कर बिक रहा बाजार में
फिर मूल्य चीखे जोर से, वह तथ्य देखेगी नहीं ।।

क्यों ताक पर कर्तव्य रख ,सब पग बढ़ाते जा रहे,
फिर पीढियां भी आज की ,आदर्श मानेंगी नहीं।।

ताकत कलम को फिर मिले,जो सत्य यह नित लिख सके
व्यापार बनती लेखनी,  फिर क्या डराएगी नहीं।।

पैसा कमाना लेखनी से लक्ष्य बनता जा रहा,
अब मौन होकर साधना, अपमान झेलेगी नहीं।।


अनिता सुधीर

Tuesday, October 6, 2020

कोहरा


कोहरा 
छन्द मुक्त
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कोहरे के माध्यम से आज की समस्याओं और समाधान पर लिखने का प्रयास किया है 
कई शब्द अपने मे गहन अर्थ समेटे है आप की प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
***

जब उष्णता में आये कमी
अवशोषित कर वो नमी
रगों में सिहरन का 
एहसास दिलाये
दृश्यता का ह्रास कराता 
सफर को कठिन बनाता है
कोहरा चारों ओर फैलता जाता है।
संयम से सजग हो
निकट धुंध के  जाओ..
 और भीतर तक जाओ
कोहरे ने सूरज नहीं निगला है
 सूरज की उष्णता निगल 
लेगी कोहरे को ।
सामाजिक ,राजनीतिक
परिदृश्य भी त्रास से
धुंधलाता जा रहा 
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा
संबंधों की कम हो रही उष्णता
अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता
कड़वाहट बन सिहरन दे रही 
विश्वास ,प्रेम की  किरणें 
लिए अंदर जाते  जाओ
दूर से देखने पर 
सब धुंधला है
पास आते जाओगे 
दृश्यता  बढ़ती जायेगी
तस्वीर साफ नजर आएगी।


अनिता सुधीर आख्या

Saturday, October 3, 2020

बुद्धि बनी गांधारी


बुद्धि बनी गांधारी

विज्ञापन जब चौखट लांघे
बुद्धि बनी गांधारी

सजा धजा कर झूठ परोसा
चमचम रहती थाली
व्यंजन फीके निकले सारे
नमक मिर्च दें गाली
बाजार बजाता जब डमरू
चिल्लर बने जुआरी।।
विज्ञापन..

पतलून बेचती नारी जब
बिक्री दौड़ लगाती
उजली रहें कमीजें किसकी
साबुन बहस छिड़ाती
त्योहारों की धमाचौकड़ी
किश्तें करें उधारी।।
विज्ञापन..

शब्द लुभावन पासा फेंके 
मकड़जाल में मानव 
मस्तिष्क शिरा फड़फड़ करती
इच्छा बनती दानव
बंदर जैसे मानव नाचे
साधन बने मदारी।।
विज्ञापन..

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, October 1, 2020

गांधी

 गांधी

कुंडलिया
1)
लाठी के हथियार से,आया स्वर्णिम काल।
लड़ी लड़ाई देश की,बिना खड्ग अरु ढाल।।
बिना खड्ग अरु ढाल,सत्य का पाठ पढ़ाया।
रहा अहिंसा धर्म ,मौन उपवास बताया ।।
धोती थी पोशाक,अटल उनकी कद काठी ।
खादी रहा विचार,अमर है गाँधी लाठी  ।।
2)

चिंतन गाँधी का करें,बापू नाम महान।
राम राज साकार हो,सब लें मन में ठान।।
सब लें मन में ठान,स्वच्छता लक्ष्य हमारा।
मोहन का सिद्धांत, स्वदेशी चरखा प्यारा।।
बदले हिंदुस्तान,करे जब जीवन मंथन ।
जन जन की पहचान,बने गाँधी का चिंतन।।


अनिता सुधीर  आख्या

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...