Sunday, November 6, 2022

लघु कथा

आशा की किरण

शाम के मदमस्त माहौल में खुले लॉन में पार्टी का आयोजन चल रहा था। उपस्थित लोग संगीत-नृत्य और कई तरह के पकवानों का आनंद ले रहे थे।
तभी बाहर मुख्यद्वार पर नजर पड़ी,वहाँ कुछ बच्चे संगीत की धुन पर नृत्य कर रहे थे और अपने हिस्से की खुशियाँ टटोल रहे थे।सबकी निगाहें उधर उठ गयीं।
तभी बेटे की आवाज आई ! माँ ये बच्चे बाहर क्यों डांस कर रहे?
मुग्धा अपने बेटे प्रतीक की जिज्ञासा शांत करते हुए बोली कि सबकों तो नही बुला सकते न अंकल अपनी पार्टी में,इसीलिए बेटा ये बाहर ही डांस कर रहे।
सब अपने मे मस्त हो गए ,लेकिन प्रतीक का बालमन बाहर ही अटका रहा।
खाने का समय आया , वो बच्चे भोजन की तरफ टकटकी लगाए थे।बार-बार भगाने पर भी आ रहे थे।
मुग्धा ने प्रतीक को भोजन निकाल कर दिया।
मुग्धा------कहाँ जा रहे हो बेटा,?
प्रतीक----- मम्मी वो अंदर नही आ सकते ,मैं तो बाहर जा सकता हूँ और खाना खिला सकता हूँ।I
आसपास के लोग प्रतीक के जवाब से निःशब्द और भावुक हो गए।
बड़ों को ये ख्याल भी नही आया और व्यवहारिक बने रहे
जबकि प्लेटों मे इतना खाना बेकार जा रहा था।
मन के कोने से आशा की किरण ने हौले से दस्तक दी कि जब तक इन बच्चों में संवेदनशीलता कायम है तब तक समाज का सुखद भविष्य सुनिश्चित है..


अनिता सुधीर आख्या

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...