Monday, February 28, 2022

शिवरात्रि


उल्लाला छंद


महापर्व शिवरात्रि में, रात मिलन अध्यात्म की।
कृष्ण चतुर्दश फाल्गुनी, प्रकृति-पुरुष एकात्म की।।

पंच तत्व का संतुलन,यह शिवत्व आधार है।
वैरागी को साधना, ही जीवन का सार है।। 

प्रकटोसव शिवरात्रि में, ऊर्जा का संचार है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में, निराकार साकार है।।

शिव गौरा के ब्याह की, आज मनोरम रात में।
आराधन में लीन हो, भीगें भक्ति प्रपात में।।

सृष्टि रचयिता रुद्र का, तीन लोक अधिपत्य है।
महाकाल हैं काल के, शिवं सुंदरं सत्य है।।

औगढ़ योगीराज का, आदि अंत अज्ञात है।
तांडव नृत्य त्रिनेत्र का, सकल अर्थ विख्यात है।।

आत्मजागरण पर्व की, महिमा अपरंपार है।
नीलकंठ के अर्थ में, जगत श्रेष्ठ व्यवहार है।।

शंकर गौरा साथ में, और भाव वैराग्य भी।
गुण विरोध में संतुलन, यही मनुज सौभाग्य भी।।

नाड़ी तीन प्रतीक हैं, शंकर हस्त त्रिशूल के।
दैहिक भौतिक ताप हर, निष्कंटक जग मूल में।।

राख चिता की गात जो,भस्म जीव का साथ है।
भाव शुद्धता का लिए, बाबा भोलेनाथ हैं।।

बिल्वपत्र अक्षत चढ़ा,करिए व्रत उपवास सब।
कैलाशी को पूज कर, जीवन करें प्रभास सब।।

अनिता सुधीर आख्या















 


Thursday, February 24, 2022

कविता

 *बनी प्रेयसी सी चहकी*


खुली गाँठ मन पल्लू की जब

पृष्ठों पर कविता महकी


बनी प्रेयसी शिल्प छन्द की

मसि कागद पर वह सोई 

भावों की अभिव्यक्ति में फिर

कभी पीर सह कर रोई

देख बिलखती खंडित चूल्हा

आग काव्य की फिर लहकी।।


लिखे वीर रस सीमा पर जब

ये हथियार उठाती है

युग परिवर्तन की ताकत ले

बीज सृजन बो जाती है

आहद अनहद का नाद लिये

कविता शब्दों में चहकी।।


शंख नाद कर कर्म क्षेत्र में 

स्वेद बहाती खेतों में

कभी विरह में लोट लगाती

नदी किनारे रेतों में

रही आम के बौरों पर वह

भौरों जैसी कुछ बहकी।।


झिलमिल ममता के आँचल में 

छाँव ढूँढती शीतलता

पर्वत शिखरों पर जा बैठी

भोर सुहानी सी कविता

लिए अमरता की आशा में

युग के आँगन में कुहकी।।


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, February 20, 2022

चुनाव

 आया दौर चुनाव का  ,नेताओं की रार ।

लगा दाँव पर अस्मिता ,करते हैं व्यापार।


निम्न कोटि के हो रहे ,नेताओं के बोल,
मूल्यों को रख ताक पर,बिका करें बिन मोल।
नायक जनता के बनें,करिए दूर विकार ।
अपने हित को त्यागिये,रखिए शुद्ध विचार।
याद करें संकल्प ये ,देश प्रेम आधार ।
आया ..

जाति धर्म निज स्वार्थ दे,गद्दारी का घाव ।
देश भक्ति ही धर्म हो ,रखे एकता भाव।
जन जन की वाणी बनो,अमर देश का नाम,
राजनीति को अब मिले ,एक नया आयाम।
भारत के निर्माण में ,बहे एकता  धार ।
आया ...

युग ये कैसा आ गया ,चरण वंदना धर्म।
झूठे का गुणगान ही ,बनता जीवन कर्म ।
अपने हित को साधिये,सदा देश उपरांत ।
देशप्रेम अनमोल है ,अडिग रहे सिद्धान्त।
सच्चाई की राह पर,रुको नहीं थक हार ।
आया..


अनिता सुधीर 

Thursday, February 17, 2022

गीत

 


तन पिंजर में कैद पड़ा है,लगता जीवन खारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

तप्त धरा पर बरसों भटके,प्रेम गठरिया  हल्की।
रूठ चाँदनी छिटक गयी है,प्रीत गगरिया छलकी।।
इस पनघट पर घट है रीता,भटके मन बंजारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

ओढ़ प्रीत की चादर ढूँढूँ,तेरा रूप सलोना।
ब्याह रचा कर कबसे बैठी,चाहूँ मन का गौना ।।
चेतन मन निष्प्राण हुआ अब,माँगे एक किनारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

बाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर  जाऊँ।
चातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

अनिता सुधीर

Wednesday, February 16, 2022

ग़ज़ल


ग़ज़ल

अब गमों रंजिशों से बचा कौन  है।
इस उजड़ते चमन का ख़ुदा कौन है।।

आईना दूसरों को दिखाता रहे
ऐब अपने कभी देखता कौन है।।

पत्थरों का शहर ज़ख्म देता रहा
ठोकरों से बचाता भला कौन है।।

ज़िंदगी अनकही सी गुजरती गयी
सुन सके जो इसे वो सगा कौन है।।

आप मेरी ग़ज़ल क्यों नहीं बन सके?
आप ही बोलिए बेवफ़ा कौन है।।

इश्क़ की जो नुमाइश लगी आजकल
रूह से रूह का अब पता कौन है।।

ये सियासत सदा चाल चलती रही
अब वतन की यहाँ सोचता कौन है।।

अनिता सुधीर

Sunday, February 13, 2022

ग़ज़ल

 आप की नजरें इनायत हो गयी

आप से मुझको मुहब्बत हो गयी।


इश्क़ का मुझको नशा ऐसा चढ़ा 

अब जमाने से अदावत हो गयी ।


तुम मिले सारा जहाँ हमको मिला

यूँ लगे पूरी इबादत हो गयी।।


ये  नजर करने लगी  शैतानियां

होश खो बैठे  कयामत हो गयी।


जिंदगी सँग आप के गुजरा करे

सात जन्मों की हकीकत हो गयी।


अनिता सुधीर

Saturday, February 12, 2022

वृद्धावस्था


 *वृद्धावस्था*


टूटी कमर दीवारों की

तिल तिल करके नित्य मरे


सोने जाती आधी रात

लिए दुखों का सँग तकिया

नींद सिरहाने ऊँघी जो

स्वप्न बने नित ही छलिया

आँसुओं की सभा लगी फिर

अपनों को कब गले भरें।।


पग काँपते घर आँगन के

चार कदम जो चलना है

संयमी तुलसी पीली पड़ती

द्वार आस का पलना है

अमृत रस साथी को देना

स्वयं मौत से कौन डरे।।


दोनों खाट ओसारे की

अस्थियों का पुल बनाएं

स्तम्भ जर्जर गिरा नदी में

चप्पू अब किसे थमाएं

ठहर गयी दोनों ही सुई

हलचल केवल एक करे।।


Wednesday, February 9, 2022

मृगनयनी

चित्र गूगल से साभार

 मृगनयनी


प्रेम रूप की श्वेत हंसिनी

लगे भोर की अरुणाई


चंचल-चपला सी मृगनयनी

चाल कुलांचे भूल चली

हौले-हौले कदम साध के

शांत चित्त की खिली कली

झुके नयन में लाज भरे जब 

प्रीति पंखुड़ी गहराई।।


श्याम केश के अवगुंठन से

चाँद रूपिणी जब झाँके

अधरों का उन्माद धैर्य धर

पुष्प सितारे वह टाँके

स्निग्ध मुग्धता शीत चाँदनी

शुद्ध नीर-सी तरुणाई ।।


प्रेम मूर्ति की सुंदरता में

नहीं जलधि का शोर रहे

राग लावणी अंग सजा के

शीतल से उद्गार बहे

रमणी को परिभाषित करने

मर्यादा वो ठहराई।।


अनिता सुधीर

Tuesday, February 8, 2022

टकराव

 मध्य अहम् की दीवारों से

कैसे पायें पार।


रखें ताक पर धीरज को

ढूँढ़ रहें क्यों सेज,

पहन प्रेम का आभूषण

पाती मन की भेज 

बनता है राई का पर्वत

बात बात पर रार।।

मध्य अहम् की दीवारों से,कैसे पायें पार।।


किसकी रेखा बड़ी रहेगी

ह्रदय पटल पर द्वंद

कीट द्वेष का कुलबुल करता

बना गले का फंद

उम्मीदों की गठरी भारी

दूजे को दें भार।

मध्य अहम् की दीवारों से,कैसे पायें पार।।


प्रेम कूप अब बिना नीर के

सूख रहे हैं भाव

रहे क्रोध में तनी भृकुटियाँ

छिपा रहे हैं घाव

उच्च नासिका अब कब सोचे

नैना कर लें चार

मध्य अहम् की दीवारों से ,कैसे पायें पार।।


अनिता सुधीर

Saturday, February 5, 2022

माँ शारदे


 

मनहरण घनाक्षरी छन्द


शिक्षा कला संगीत की,देवी तुम हो शारदे 

हृदय में प्रीत भरो, जीवन को तार दे।।

विचार और भावना,मन में हो संवेदना

करते यह प्रार्थना, जन्म ये सुधार दे।।

धवल वस्त्र धारिणी ,मयूर हंस वाहिनी ,

सद्बुद्धि विद्या दायिनी, ज्ञान से सवाँर दे।।

माता वीणा वादिनि को ,पूजते विष्नु महेश

देकर आशीष अम्बा, तम से उबार दे।।


अनिता सुधीर आख्या


Friday, February 4, 2022

दोस्त


 लघु कथा

नीता- (सुमन से) हर समय घर में रहती हो, चलो मेरे साथ आज तुम्हें किटी पार्टी में ले चलते हैं। तुम भी ज्वाइन कर लेना।

सुमन- नीता, मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती।
रोहन स्कूल से आने वाला ही होगा, मेरा समय उसके साथ ही बीत जाता है, पढ़ाई भी मैं ही देखती हूँ और आजकल तो परीक्षा भी चल रही है।

नीता- तुम उसकी ट्यूशन क्यों नहीं रख देती। देखो, मैंने प्रतीक को ट्यूशन क्लासेस ज्वाइन करवा रखी हैं, परीक्षा की तैयारी भी वो लोग करवा देते हैं और मैं इन सब झंझट से मुक्त रहती हूँ।
(नीता और सुमन दोनों ही अच्छी दोस्त हैं और दोनों के बच्चे आठवीं कक्षा में एक साथ ही पढ़ते हैं)

परीक्षा परिणाम देख कर
नीता- प्रतीक (डांटती हुई), यह तुम्हारे इतने कम नंबर क्यों आए हैं! तुम्हारी तो मैंने ट्यूशन भी लगवा रखी है, इतना पैसा तुम्हारे ऊपर खर्च करते हैं, रोहन को देखो, बिना ट्यूशन के भी उसके कितने अच्छे नंबर आए हैं। तुम पढ़ने जाते हो या घूमने!

सुमन- अब बस भी करो नीता। मैं तुम्हारी दोस्त हूँ, एक दोस्त का कर्तव्य होता है कि वो अपने दोस्त को सही मार्ग दिखाए। मैं कई दिनों से देख रही कि तुम्हारा ध्यान प्रतीक और घर में नहीं है। तुम इतनी पढ़ी-लिखी हो, तुम प्रतीक को खुद ही पढ़ा सकती हो फिर तुमने उसकी ट्यूशन क्यों लगा रखी है। उसके घर आने के बाद तुम आए दिन बाहर चली जाती हो, केवल ट्यूशन लगाने से तुम्हारी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। इस नाजुक उम्र में बच्चों को माता-पिता के समय और प्यार की भी आवश्यकता होती है। समाज में देखो, आजकल कोई न कोई खबर सुर्खियों में रहती है। अपने बच्चे की दोस्त बन कर उसके साथ रहो और पढ़ाई में उसकी मदद करो। जब तुम उसे समय दोगी तो वो अपनी परेशानियाँ तुम्हें बताएगा और तुम समाधान कर पाओगी, अन्यथा वो पता नहीं किससे कहे और भगवान न करे, किसी गलत साथ में पड़ जाए। 

नीता- (पश्चाताप से) सुमन, तुम्हारे जैसे दोस्त किस्मत वालों को मिलते हैं, मेरी दोस्त ने मुझे अपने बेटे का दोस्त बना हमें सही मार्ग दिखाया है।

अनिता सुधीर 

चित्र गूगल से

Thursday, February 3, 2022

गीत


गीत

आलोकित है जग सारा,बहती भावों की धारा।
श्रद्धा के मोती चुनकर,करते शृंगार तुम्हारा।।

जीवन का ताना बाना,सुख-दुख का जाना-आना।
रो-रो कर दिन क्यों काटें,दुख हँस कर सहते जाना।।
आती है जब कठिनाई, हो जाता जीवन खारा ।
थामे तुम हाथ बढा के, देते हो सदा सहारा ।।
आलोकित है ..

जग के पालनहारे तुम ,हम सबके रखवारे तुम ।
प्रेम सुमन अर्पित करते, दूर करो अँधियारे तुम।।
नाव फँसी तूफानों में, अब मिलता नहीं किनारा 
अन्तर्मन में दीप जला, भर दो मन में उजियारा ।।
आलोकित है....

सच्चाई की बोली से ,सत्कर्मों की झोली से।
नफरत द्वेष मिटा मन से,हृदय भरो रंगोली से।।
साथ भला क्या जाएगा ,छूटे गलियाँ चौबारा ।
पंछी छोड़े तन पिँजरा ,मानव जीवन बंजारा ।।
आलोकित है ....


अनिता सुधीर

Wednesday, February 2, 2022

श्रमिक

 


कुंडलिया छन्द


।१।

सहता रहता त्रासदी ,श्रम का यह भगवान।

हाड़ मांस का तन बना,करता कार्य महान।।

करता कार्य महान, देश की सेवा करता ।

मिला नहीं अधिकार, सदा तिल तिल कर मरता।।

करे भवन निर्माण , स्वेद कण पल पल बहता।

वृक्ष तले है ठाँव, ताप जीवन का सहता ।।


।२।


नेता सब वादे करें,पूरी करें न बात।

उचित मूल्य इनको मिले,तब सुधरे हालात।।

तब सुधरे हालात,चले श्रमिकों का खर्चा।

शोषण का इतिहास,सदा चलती है चर्चा ।।

इन्हें मिले सम्मान ,रहें ये सदा विजेता  ।

श्रमिक नहीं मजबूर,सुनो अब सारे नेता ।।


अनिता सुधीर आख्या

चित्र गूगल से साभार


संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...