"महिलाओं के अधिकार"
महिलाओं के अधिकार से तात्पर्य ऐसी स्वतंत्रता से है जो व्यक्तिगत बेहतरी के लिये तथा सम्पूर्ण समुदाय की भलाई के लिये आवश्यक है।
प्रत्येक महिला या बालिका का समाज में जन्मसिद्ध अधिकार है। न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के तहत व
मानवीय दृष्टिकोण से ये नितांत आवश्यक है कि महिलाओं को पूर्ण संरक्षण प्रदान करे व उन्हें स्वयं के निर्णय लेते हुए जीवन जीने का अवसर प्राप्त हो।
महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कर रही हैं। जमीन से लेकर आसमान में ही नहीं, अंतरिक्ष में भी उनके कदमों की छाप मौजूद है ।जिस तरह से उनका कद बढ़ा है तो उन्हें अपने हक और उससे जुड़े कानूनों के बारे में भी जानना अति आवश्यक है ।महिलाओं के प्रति सबकी सोच और नजरिए में पिछले कुछ दशकों में गजब का सकारात्मक बदलाव आया है ,पर इन बदलावों का मतलब यह नहीं कि पुरुष और महिलाएं बराबरी पर पहुंच गए हैं। समानता की यह लड़ाई अभी काफी लंबी चलनी है ।दुनिया के कई देशों में आज भी महिलाएं अपने हक और अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं ।इसमें अपना देश भारत भी है और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अधिकांश महिलाएं अपने अधिकारों और हक के बारे में सही तरीके से जानती ही नहीं है।
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही नारी का स्थान सम्मानीय रहा है । जिस कुल में स्त्रियों की पूजा होती है वहां पर देवता प्रसन्न होते हैं।ऐसा हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं।भारतीय संस्कृति के प्रारंभ में नारी ही है ।उन दिनों परिवार में मातृ सत्ता ही होती थी। खेती की शुरुआत तथा एक जगह बस्ती बनाकर रहने की शुरुआत नारी ने ही की थी ।
आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के काल में नारी की स्थिति बहुत मजबूत थी। ऋग्वेद काल में भी नारी सर्वोच्च शिक्षा ग्रहण करती थी। सरस्वती को वाणी की देवी माना गया है। अर्धनारीश्वर की कल्पना स्त्री और पुरुष के समान अधिकार और उनके संतुलित संबंधों का परिचायक है।
कालांतर में धीरे-धीरे सामाजिक व्यवस्था पितृ सत्तात्मक हो गई और नारी हाशिए पर चली गई ।
मध्ययुगीन काल में महिलाओं की स्थिति में अधिक गिरावट आई ।भारत के समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह जैसी प्रथाओं और विधवा पुनर्विवाह पर रोक
सामाजिक जिंदगी का हिस्सा बन गई थी । मुसलमानों की जीत ने पर्दा प्रथा को भारतीय समाज का अंग बना दिया ।राजपूतों ने जौहर की प्रथा आरंभ की । भारत के कुछ हिस्सों में देवदासियों को यौन शोषण का भी शिकार होना पड़ा था ।बहु विवाह की प्रथा हिंदू क्षत्रिय शासकों में व्यापक रूप से प्रचलित थी ।महिलाएं जनाना क्षेत्र तक ही सीमित थी ।
अंग्रेजी शासन के समय राजा राममोहन राय के प्रयास से सती प्रथा का उन्मूलन हुआ ,और ईश्वर चंद विद्यासागर ने विधवाओं की स्थिति को सुधारने में बहुत प्रयास किए ।उनके संघर्ष का परिणाम विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1956 के रूप में सामने आया ।
1929 में मोहम्मद जिन्ना के प्रयासों के बाद बाल विवाह निषेध नियम पारित किया गया और न्यूनतम विवाह की उम्र 14 वर्ष की गई ।इसका उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार करना ही था ।
भारत में नारीवादी सक्रियता ने 1970 के दशक में रफ्तार पकड़ी ।मथुरा बलात्कार केस में काफी विरोध प्रदर्शन हुआ था ।भारतीय दंड संहिता को संशोधित करने और हिरासत में लेने के लिए मजबूर किया गया ।महिला कार्यकर्ता लिंगभेद ,महिला स्वास्थ्य और महिला साक्षरता दर जैसे मुद्दे पर एकजुट हुईं ।
भारतीय समाज में शराब की लत को को अक्सर महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जोड़कर देखा जाता है ।शराब विरोधी कानून 1990 के दशक में लागू हुआ। एनजीओ के गठन और राष्ट्रीय महिला आयोग ने भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक प्रमुख भूमिका निभाई।
राष्ट्रीय महिला आयोग भारतीय संसद द्वारा 1990 में पारित अधिनियम के तहत जनवरी 1992 में गठित एक सांविधिक निकाय है। यह कैसी इकाई है जो शिकायत या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक हितों और उनके लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू करती है। राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य भारत में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और उनके मुद्दों और चिंताओं के लिए एक आवाज प्रदान करना है। आयोग ने अपने अभियान में प्रमुखता के साथ दहेज, राजनीति ,धर्म और नौकरियों में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व तथा श्रम के लिए महिलाओं के शोषण को शामिल किया है ।महिलाओं के खिलाफ पुलिस दमन और गाली गलौज को भी गंभीरता से लिया है। बलात्कार पीड़ित महिलाओं के राहत और पुनर्वास के लिए बनने वाले कानून में राष्ट्रीय महिला आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।अप्रवासी भारतीय पतियों के जुल्मों और धोखे की शिकार या परित्यक्ता महिलाओं को कानूनी सलाह देने के लिए आयोग की भूमिका भी अत्यंत सराहनीय रही है।
भारत सरकार ने 2001 को महिलाओं को सशक्तिकरण वर्ष के रूप में घोषित किया ।
राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति एक विराट अवधारणा है जिसमें महिलाओं से संबंधित संवैधानिक व्यवस्थाओं को समाज में वास्तविक रूप से परिलक्षित करवाना है।
भारतीय संविधान में महिलाओं को पूर्ण संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गयी है ।महिलाओं के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21 व 22 व 22 में वर्णित है ।
सभी भारतीय महिलाओं का समान अधिकार अनुच्छेद 14 में ,
राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करना अनुच्छेद 15, अवसर की समानता अनुच्छेद 16 और
समान कार्य के लिए समान वेतन की गारंटी देता है। अनुच्छेद 15 महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं को परित्याग करने को करने को कहता है ।
शोषण के विरुद्ध अधिकारों का उल्लेख अनुच्छेद 23 व 24 में है।
महिलाओं के सांस्कृतिक व शैक्षणिक अधिकार अनुच्छेद 29, 30 ,39.1, 42 में है है ।इसी क्रम में महिलाओं की सुरक्षा हेतु घरेलू aहिंसा, संपत्ति ,दहेज निषेध कानूनों का निर्माण किया गया है ।इन सब के साथ ही समान नागरिक संहिता के तहत महिलाओं को सुरक्षा प्राप्त है ।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए वास्तविक जीवन में काम आने वाले कानून
1)घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 यौन उत्पीड़न अधिनियम:
यह अधिनियम मुख्य रूप से पति ,पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्ते द्वारा एक पत्नी ,एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा के लिए बनाया गया है। महिला या उसकी तरफ से कोई भी यह शिकायत दर्ज कर सकता है।
2) पीसीपीएनडीटी एक्ट :
इस एक्ट के तहत भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह एक महिला को उसके मूल अधिकार -जीने के अधिकार का अनुभव करने दे। गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक लिंग चयन पढ़ रोक तथा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है।
3)समान वेतन अधिनियम 1976:
इस अधिनियम के अनुसार - वेतन या मजदूरी को लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता । समान वेतन पर महिला और पुरुष का समान अधिकार है।
4) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम :
भारत के कानून में किसी भी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपत्ति में पूरा अधिकार है।
5)रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार:
आम जीवन में महिलाओं के अधिकार के लिये
अपराधिक प्रक्रिया संहिता सेक्शन 46 के तहत एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
6) गोपनीयता का अधिकार:
यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अपने नाम की गोपनीयता बनाए रखने का पूरा अधिकार है । अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है।
7)गरिमा और शालीनता का अधिकार:
किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो उस पर की जाने वाली की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की मौजूदगी में की जानी चाहिए।
8) मुफ्त कानूनी मदद के लिये अधिकार:
रेप की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का अधिकार है।
स्टेशन हाउस ऑफिसर के लिए ये जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था के लिए सूचित करें ।
9) मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार :
मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ संविधान नहीं बल्कि यह उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती है और वह अपना काम फिर से शुरू कर सकती है।
10) कानूनी रूप से अलग होने के बाद पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ते का हक है ।
11) अपनी भाषा शैली और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार भी महिलाओं को मिला हुआ है
12)शिक्षा का अधिकार:
यह अधिकार सभी बच्चों विशेषकर बालिकाओं के लिए मुफ्त व अनिवार्य प्राथमिक ,माध्यमिक और उच्च शिक्षा का प्रावधान देता है ।यह उन सभी महिलाओं को मूल शिक्षा का अधिकार देता है जिन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं की है। बिना भेदभाव के शिक्षण संस्थान में भी प्रवेश लेने का अधिकार महिलाओं को देता है । धर्म, वंश जाति और भाषा के आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
9 मार्च 2010 को राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल को पारित किया गया जिसे संसद और राज्य की विधानसभा में महिलाओं के लिए 35% आरक्षण की व्यवस्था है।
जिस समाज में सक्षम पुत्र को भी माता के नाम से जाना जाता था जैसे अर्जुन को कौन्तेय ,वहाँ आज की परिस्थिति में महिलाओं के ऊपर बढ़ते व्यभिचार और अत्याचार बड़े ही निंदनीय है ।
ये विचार करने का प्रश्न है कि महिलाएं अपनी हकों की लड़ाई क्यों नहीं लड़ पाती हैं ।
महिला खुद को बड़े कदम उठाने के लिए अपने आप को सक्षम नहीं पाती हैं।
शिक्षा और जानकारी का अभाव भी एक महत्वपूर्ण कारण है। साथ ही न्यायिक प्रक्रिया इतनी जटिल है और इतना समय लेती है कि महिलाएं अपनी शिकायत दर्ज नहीं करा पाती हैं ।
लोक लाज और समाज का डर भी एक महत्वपूर्ण कारण है ।
महिलाएं अपनी पुरानी सोच से उबर नहीं पाई है।
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि सिर्फ कानूनों के निर्माण से ही नारी की सुरक्षा संभव नहीं है ।एक संपूर्ण सुरक्षित वातावरण के निर्माण हेतु हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी पड़ेगी और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना पड़ेगा। न्याय की प्रक्रिया को तेज करते हुए करते हुए यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि बालिकाओं के अधिकार व महिलाओं के हितों की सुरक्षा हेतु अविलंब कार्रवाई प्रत्येक स्तर पर अविलंब हो ।
नारी ने स्वयं को ही पुरुषों से कम आँक लिया है ।अपने विचार में ये परिवर्तन लाना है कि वो सृजनकारी है,यदि वो पुष्प की तरह कोमल है तो चट्टान की तरह अडिग है,और सजग रहते हुए नारी का वो प्राचीन सम्मान फिर से प्राप्त करना है ।
अनिता सुधीर आख्या