गीतिका
मानव हृदय विचार, समझना दूभर है।
बात- बात पर रार, समझना दूभर है।।
प्रेम अनोखी नीति, त्याग की निष्ठा की
जीत कहें या हार, समझना दूभर है।।
रखे दोहरी नीति, मुखौटा पहने सब
अजब जगत व्यापार, समझना दूभर है।।
देश-प्रेम अनमोल, भाव यह सर्वोपरि
बनते क्यों गद्दार, समझना दूभर है।।
बढ़ा मनुज का लोभ, कर्म भी दूषित अब
झेले क्यों संसार , समझना दूभर है।।
संस्कृति पर आघात, सहे जीवन जीता
कहाँ धनुष टंकार, समझना दूभर है।।
हृदय प्रेम की डोर, उलझती ही जाती
ढीला क्यों आधार ,समझना दूभर है।।
सत्य हुआ जब मौन, न्याय भी चुप बैठा
छपे झूठ अखबार, समझना दूभर है।।
कम होते संवाद, मूल्य कम रिश्तों का
किसे कहें परिवार, समझना दूभर है।।
अनिता सुधीर