Sunday, May 29, 2022

गीतिका


गीतिका

मानव हृदय विचार, समझना दूभर है।

बात- बात पर रार, समझना दूभर है।।


प्रेम अनोखी नीति, त्याग की निष्ठा की

जीत कहें या हार, समझना दूभर है।।


रखे दोहरी नीति, मुखौटा पहने  सब

अजब जगत व्यापार, समझना दूभर है।।


देश-प्रेम अनमोल, भाव यह सर्वोपरि

बनते क्यों गद्दार, समझना दूभर है।।


बढ़ा मनुज का लोभ, कर्म भी दूषित अब

झेले क्यों संसार , समझना दूभर है।।


संस्कृति पर आघात, सहे जीवन जीता

कहाँ धनुष टंकार, समझना दूभर है।।


हृदय प्रेम की डोर, उलझती ही जाती 

ढीला क्यों आधार ,समझना दूभर है।।


सत्य हुआ जब मौन, न्याय भी चुप बैठा

छपे झूठ अखबार, समझना दूभर है।।


कम होते संवाद, मूल्य कम रिश्तों का

किसे कहें परिवार, समझना दूभर है।।


अनिता सुधीर


Wednesday, May 25, 2022

मंगलमान अभियान


 

*मंगलमान अभियान*


नव शक्ति ले नव लक्ष्य ले, अभियान मंगलमान का।

प्रहरी बना यह राष्ट्र का, शुभ कीर्ति का यशगान का।।


मतदान का जब पर्व था, नित जागरण हित राष्ट्र में

वह युद्ध था रणवीर का, था योग्यता पहचान का।।


उर में सनातन धर्म है, करते विसर्जन मूर्ति जो

यह दृष्टि है अति दूर की, यह भाव है अवदान का।।


हर भूख को नित रोटियाँ, जल का प्रबंधन कर रहे

शुभ मंगला बरसात से, दिन कष्ट के अवसान का।।


परिकल्पना नव कार्य की, श्रम साध के फिर कर्म से

गुरु विश्व का बनना हमें, ध्वज केसरी के आन का।।


अनिता सुधीर


Thursday, May 19, 2022

अंधविश्वास

 



*अंध विश्वास*

सो रहा विश्वास अंधा

बुद्धि पर भी धुंध छाई।


मिर्च नींबू थक रहे हैं 

द्वार पर कबसे टँगे हैं

डूबता व्यापार डाँटे

अब यहाँ ये क्यों लगे हैं

बाजुओं का बोलता दम

फिर निडरता जीत पाई।


मार्ग बिल्ली का कटा जो

वह अशुभ ले बैठती है

कोसती रहती मनुज को

बात क्या ये पैठती है

छींक को पानी पिलाकर

शुभ घड़ी सबने बनाई।।


शल्य होता अब जरूरी

धर्म अंधा आँख पाए

टोटके का मंत्र मारो

रात भी फिर मुस्कुराए

नींद से अब जागती सी 

ये सुबह नव रीत लाई।।


अनिता सुधीर

Tuesday, May 17, 2022

 बड़े मंगल की हार्दिक शुभकामनाएं


मंगलमान अभियान में स्वरचित गीत


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मंगलमय अभियान में, मंगल ध्वनि सुर साज।

उर के मंगल भाव से,  हर्षित रहे समाज।।

ज्येष्ठ मास मंगल रहा, बड़ा अवध में खास,

राम भक्त हनुमान जी, रखें भक्त की लाज।।


अनिता सुधीर

Tuesday, May 10, 2022

पद्मश्री तुलसी गौड़ा..


 पद्मश्री तुलसी गौड़ा..


धन्य रही भारत की धरती, गौरवशाली है पहचान।

व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व बना कर, जो गाती नित अनुपम गान।।


पथ में कब कठिनाई आती, जब करते हैं ढृढ़ संकल्प।

दूर भगाते बाधा को फिर, चाहे साधन हों अति अल्प।।


विश्वकोश जंगल की कहते, तुलसी गौड़ा नाम महान।

पर्यावरण सुरक्षा में जो, देता अपना जीवन दान।।


जन्म लिया था कर्नाटक में, वृक्षारोपण ही अभियान।

निर्धनता कब आड़े आयी, "वनदेवी" बन रखतीं ध्यान।।


नित्य दिहाड़ी मजदूरी कर, रचा अनोखा यह इतिहास।

वन्यजीव की देखभाल कर, जंगल में ढूंढें उल्लास।।


मातृ वृक्ष को पहचानें जब, करतीं बीजों को एकत्र।

फिर बीजों के निष्कर्षण से, पौध लगातीं वो सर्वत्र।।


सिद्ध किया तुलसी गौड़ा ने,विधिवत शिक्षा कब अनिवार्य।

अठहत्तर की अभी उमर कम, दौड़ रहा नित उनका कार्य।


बिरले तुलसी गौड़ा जैसे, सरल सहज जिनका व्यवहार।

पुरस्कार हैं झोली में पर ,जीवन सादा उच्च विचार।।


पद्मश्री सम्मान मिला है,और मिले कितने ईनाम।

प्रकृति प्रेम में तन अर्पित कर, लिखतीं जीवन का आयाम।।


हाड़-माँस के जर्जर तन पर, पहन आदिवासी पोशाक।

नंगे पैर भवन में पहुँची, रखे इरादे अपने पाक।।


जंगल की पगडंडी से चल, राष्ट्र भवन की है कालीन।

मिली प्रेरणा जीवन से यह, सदा कर्म रहते आधीन।।



अनिता सुधीर आख्या




Sunday, May 8, 2022

मातृ दिवस विशेष



*भाग्यशालिनी*
(वो माँ भाग्यशालिनी है जब स्वयं की संतान माँ का रूप धर उनकी देखभाल करे)

सौभाग्य सुलाता माता को
जब बच्चे लोरी गाएँ।

मेरी माँ मेरे अंदर है
सदा रही उनके जैसी
चक्र समय का चलता जाता
संतति राह चले वैसी
मातु भाव में संसार निहित
शब्द नहीं इसको पाएँ।।

ऊँगली पकड़े चलना सीखा
कदम कदम पर डाँट पड़ी
हाथ पकड़ अब सुता चलाये 
निर्देशों की लगी झड़ी
स्वर्ग मिला था मातु गोद में 
सुत ये अब भान कराये।।

पीर मातु ने सदा छुपाई
कितने कष्ट सहे थे तब 
व्यथा झेल कर कष्ट छुपाते
वही करें औलादें अब 
जब संतति माँ का रूप धरें
हृदय झूम नभ छू आए।


अनिता सुधीर

Monday, May 2, 2022

दोहे


दोहावली


बूढ़ा बरगद देखता, घर का आँगन लुप्त।

खड़ी मध्य दीवार में, नेह पड़ा है सुप्त।।


लाख यत्न शासक करे,बना नियम सौ-लाख।

कुछ की भूख करोड़ की, कहाँ बचे फिर साख।।


चिर प्रतिद्वंद्वी देश का,सदा सहा आघात।

छुरा पीठ में भोंक कर, करता मीठी बात।।


जन्म-मरण के मध्य में, है श्वासों का खेल।

साधक बन कर खेलिए, रखे जगत से मेल।।


पुस्तक के बँद पृष्ठ में, प्रेम चिन्ह जो शेष।

निमिष मात्र विस्मृत नहीं, दृष्टि रही अनिमेष।।


होता तर्क़ वितर्क जब, करिए नहीं कुतर्क।

बना सत्य को झूठ क्यों, करते बेड़ा ग़र्क़।।


गरज-बरस के शोर में, लुप्त करें सब तथ्य।

स्वार्थ सिद्धि ही ध्येय जब, कौन विचारे कथ्य।।


अनिता सुधीर

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...