Thursday, October 31, 2019

लघुकथा 
रंगमंच
**
सुनते सुनते थक गया हूं कि दुनिया रंगमंच है और तू किरदार!
 मैं ही हमेशा क्यों किरदार बनूं !
अब नहीं जीना मुझे ये जीवन.
मेरी डोर  सदैव किसी के हाथ में क्यों रहे ...
कहते हुए बड़ी तेज गुस्से में चिल्लाया था "तन "
जी हाँ मेरा अपना " तन "
आज  से मैं रंगमंच हूँ...
यदि मैं रंगमंच तो फिर किरदार कौन ?
अकुलाहट भरे मन  ने कोने से दबी आवाज लगाई, अब मैं किरदार हूँ,
तुम किरदार बन मनमानी करते रहे और पतन की ओर जा रहे हो !
मुझे तुम्हारे इस तन के रंगमंच पर  अपना किरदार  निभाना है और अभिनय को वास्तविक रूप देना है।
बाहर की आवाजें कैमरा  लाइट साउंड कट बहुत सुन चुके।
कुर्सियां खाली पड़ती जा रहीं हैं।
अब अन्तर्मन के लाइट और साउंड को सुन अभिनय करना है ।
नेपथ्य से नई आवाजें आने लगी हैं..

अनिता सुधीर

Friday, October 25, 2019


अकेला दीपक
***
अकेले दीपक की टिमटिमाती लौ
देख अंधियारा मुस्करा ,ये कह उठा ,
सामर्थ्य कहाँ बची अब तुझमें
और मुझे मिटाने का ख्वाब सजा रहा।
रंग बिरंगी झालरों की रौनक में
तेरा वजूद गौण हो गया है ।
गढ़ता रहा जो कुम्हार ताउम्र तुम्हें
वो अब मौन हो गया है ।
दीपक भी हँस के बोला
मेरी सामर्थ्य का भान नहीं है तुम्हें,
मेरे वजूद की बात करते हो
तेरा वजूद मेरे ही तले है
मैं अकेला सामर्थ्य वान हूँ
तुम्हें कैद करने को ,
तमस मिटा करता हूँ उजास
अकेले दीप से दीप जलते रहेंगे
और तुम यूँ ही कैद में तड़पते रहोगे ।

अनिता सुधीर







Thursday, October 24, 2019


गीत 
आधार  हरिगीतिका छन्द 
विधान   28  मात्रा
 गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा
**

सद्भावना अरु प्रेम से निस दिन यहाँ त्यौहार हो।।
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ  सत्कार हो।

अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा,
रचते रहें ये गीत मधुरम छन्द से जो हो जड़ा ।
आशीष दो माँ शारदे बस भाव नित ओंकार हो ,
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ  सत्कार हो।
सद्भावना...

खबरें परोसी जा रही, जो झूठ में लिपटी मिले,
इन्सान ऐसा कौन है इस घाव को जो अब सिले।
सच लिख सके जो अब सदा ऐसा नया अखबार हो।।
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ  सत्कार हो।
सद्भावना...

बातें निरर्थक हो रहीं ,इसमें छिपा क्या राज है,
अपशब्द कहने का सभी को अब नया अंदाज है।
सम्मान करना युगपुरुष का अब सदा आचार हो ,
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ  सत्कार हो।
सद्भावना...

मद के नशे में चूर जो,गाथा उन्हीं की क्यों कहे ,
वंदन चरण का क्यों करें अपमान हम क्यों कर सहें।
ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ,
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ  सत्कार हो।
सद्भावना...

स्वरचित
अनिता सुधीर 

Tuesday, October 22, 2019



दर्पण  को आईना दिखाने का प्रयास किया है

    दर्पण  #mirror
*********
दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है  तुम्हें
अपने  पर ,कि
तू  सच दिखाता है।
आज तुम्हे  दर्पण,
दर्पण दिखाते हैं!
क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट
बिखर नहीं जाएगा
जब तू उजाले का संग
 नहीं पाएगा
माना तू माध्यम आत्मदर्शन का
पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें  को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता  है
 कि तू सच बताता है ।
माना तुम हमारे बड़े काम के ,
समतल हो या वक्र लिए
पर प्रकाश पुंज के बिना
तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
दर्पण को दर्पण दिखलाना
मन्तव्य  नहीं,
लक्ष्य है
आत्मशक्ति के प्रकाशपुंज
से  गंतव्य तक जाना ।

अनिता सुधीर

Monday, October 21, 2019

औलाद 


समाज में व्यापत बुराईयों पर किसे दोष दूँ! जब अपनी ही औलाद  सही मार्ग का अनुसरण न करें और संस्कार हीन हो ...
ऐसे हर बिगड़े  बेटे और बेटियों की माँ  का आत्ममंथन…
****
बेटे तेरे कृत्यों पर  मैं  शर्मिन्दा हूँ
कोख शर्मसार हुई , क्यों जिन्दा हूँ ।

रब से की थी असंख्य दुआएं,
प्रभु से की मंगलकामनाएं ।
पग पग पर आँचल फैलाये
तुम पर कोई आंच न आये ।

लाड़ प्यार संग नैतिकता 
का तुमको पाठ पढ़ाया  था ।
कहाँ हो गयी चूक हमसे,जो
तुमने गलत कदम बढ़ाया था ।

लाड़ प्यार के अतिरेक में
तुम बिगड़ते  चले गए,या 
तुम्हारी गलतियों को हम
 नजरअंदाज करते गए ।

कहाँ तुम कमजोर पड़ गए!
क्यों तुम मजबूर हो गए 
एक नेक  भले  इंसान से  
तुम  कैसे हैवान बन गए ।

हैवानियत भी आज शरमा रही
तुम संग स्वयं से घृणा हो रही
मेरा दूध आज लजा रहा ,
दूसरे को क्या दोष दे ,जब
अपना ही सिक्का खोटा हो रहा ।

जब मासूमों से दरिन्दगी करते हो 
उनमें अपनी माँ बहने नहीं देख पाते हो।
गरीबों की चीखें सुन नहीं पाते 
बददुआयों से तिजोरियाँ भरते हो ।
और भी न जाने क्या क्या 
तुम अपराध किया करते हो ।

मेरे बच्चों
मत करो  शर्मिन्दा मुझे
अभी समय है चेत जाओ
अपराधों की सजा भुगत 
पश्चाताप कर सुधर जाओ।

नेक रास्ते पर कदम बढ़ा ,
दूध का कर्ज चुका जाओ ।
देश का भविष्य हो तुम 
समाज  में नई चेतना जगा जाओ ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

Sunday, October 20, 2019


विदाई
***
सूने पार्क में
कोने के चबूतरे पर बैठी
यादों के बियाबान जंगल में
विचरण करती हुई..
तभी पीले पत्तों का शाख से विदा हो कर
स्पर्श कर जाना ,
निःशब्द, स्तब्ध कर गया मुझे ।
अंकुरण नई कोपलों का ,
हरीतिमा लिए पत्तियों में ऊर्जा का भंडार ,
जीवन भर का अथक प्रयास,
और अब  इनकी विदाई की बेला।
कितने ही दृश्य कौंध गये....
माँ की  नन्हीं गुड़िया की
घर से छात्रावास तक की विदाई
अपने जड़ों से दूर जाने की विदाई
एक आँगन से दूसरे आँगन में रोपने की विदाई
पत्नी ,बहू माँ रूप में जीवन का तप..
समय  के चक्र में वही क्रम ,वही विदाई
एक एक कर सब विदा लेते हुए....
वही नम आँखे ....
जीवन के  लंबे सफर में
उम्र के इस ढलान पर
काश मैं भी इन पत्तों सी विदाई ले लेती...
साँसों की डोर में..
निरर्थक  बंधी हुई ..
अंतिम विदाई ले पाती..
तभी एक मैले कुचैले कपडे में
एक अबोध बालिका का रुदन
विचलित कर गया ...
अभी रोकनी होगी अपनी अनंत 
यात्रा की कामना ..
और  सार्थक करनी होगी
अपनी अंतिम विदाई ...

Saturday, October 19, 2019

**बचपन**

दादी बाबा संग नहीं
भाई बहन का चलन नहीं
नाना नानी दूर हैं
और बच्चे...
एकाकी बचपन को मजबूर हैं ।
भौतिक सुविधाओं की होड़ लगी
आगे बढ़ने  की दौड़ है
अधिकार क्षेत्र बदल रहे
कोई  कम क्यों रहे
मम्मी पापा कमाते हैं
क्रेच छोड़ने जाते हैं
शाम को थक कर आते हैं
संग समस्या लाते हैं
बच्चों  खातिर समय नहीं
मोबाइल , गेम थमाते है
बच्चों के लिये कमाते हैं
और बच्चे ...
बचपन खोते जाते हैं ।
आबोहवा अब शुद्ध नहीं
सड़कों पर भीड़ बड़ी
मैदान  खेल के लुप्त हुए
बस्ते का बोझ बढ़ता गया
कैद हो गये चारदीवारी में
न दोस्तों का संग  मिला
बच्चों का ....
बचपन खोता जाता है
बच्चा समय से पहले  ही
बड़ा होता जाता है।
याद करें
अपने बचपन के दिन
दादी के  वो लाड़ के दिन
भाई बहनों संग मस्ती के दिन
दोस्तों संग वो खेल खिलौने के दिन
क्या ऐसा बचपन अब बच्चे पाते हैं
बच्चे ....
अपना बचपन खोते जाते हैं
आओ हम बच्चों का बचपन लौटाएं
स्वयं उनके संग बच्चे बन  जायें
वो बेफिक्री के दिन लौटा दें
बच्चों का बचपन लौटा दें।

अनिता सुधीर

Friday, October 18, 2019




अशुद्ध ....

लुप्त होता शिष्टाचार ..
अशुद्ध आचार विचार ..
फैलता भ्रष्टाचार ...
मिथ्या प्रचार....
चहुँ  दिस अंधियार...
मनुज लाचार...
क्या है इसका उपचार..
क्या है इसका समाधान..
अशुद्ध हवा ..
अशुद्ध दवा ..
अशुद्ध भोज्य पदार्थ........
निहित स्वार्थ....
ये मिलावटखोर....
इनके हृदय कठोर..
आतंकवादियों से अधिक खतरनाक
इरादे नापाक .....
करते कारनामे खौफनाक....
अपनों  संग ही करें मजाक ....
बेच चुके जमीर ...
मिलावट दूध खोया पनीर..
भोज्य पदार्थ को अशुद्ध कर
बनना चाहते हैं अमीर ....
समय की मार से डरो ..
अब तो अपने कर्म शुद्ध करो..
सोचो यदि  तुम्हारा परिवार ....
होगा इस अशुद्धता का शिकार...
भयानक पड़ेगा बीमार ...
क्या होगा तब सोचो ...
©anita_sudhir

Thursday, October 17, 2019


अर्धांगिनी
छंदमुक्त
**
माथे पर बिंदिया की चमक
हाथों मे कँगने की खनखन,
मेहंदी की खुशबू रची बसी
माँग में सिंदूर की लाली सजा
#सुहाग का जोड़ा पहन
पैरों मे महावर लगा
अग्नि को साक्षी मान
बंधी सात वचनों मे
बनी में तुम्हारी #सुहागन
मन में उमंग लिये
तुम्हारे संग चली,
छोड़ के अपना घर अँगना।
    हाथों की छाप लगा द्वारे
आँखो मे नए सपने सजाए
तुम संग आई ,तुम्हारे घर सजना ।
सामाजिक बंधन रीति रिवाज़ों में
तुम्हारी जीवनसाथी ,तुम्हारी अर्धांगिनी ।
अर्धागिनी.....अर्थ   क्या....
अपना घर छोड़ के आने से
तुम्हारे घर  तक आने का सफर 
बन गया हमारा घर...
मेरे  और तुम्हारे रिश्ते नाते
अब  हो गए  हमारे रिश्ते,
मेरे तुम्हारे सुख दुख ,मान सम्मान
अब  सब हमारे हो गए ।
एक दूसरे के गुण दोषो को
आत्मसात कर
मन का मन से  मिलन कर
मैं और तुम एकाकार  हो गए ।
जीवन के हर मोड़ पर  
एक दूसरे के पूरक बन
जीवनसाथी के असली अर्थ  को
बन अर्धांगिनी तुम्हारी जी रहे  हम।
ये चांद  सदा साक्षी रहा
हमारे खूबसूरत मिलन का
सुहाग की सुख समृद्धि रहे
बस यही है मंगलकामना ।
अनिता सुधीर


Wednesday, October 16, 2019





हूँ मैं

बिखरे अल्फाजों की कहानी हूँ मैं
टूटे हुऐ ख्वाबों की रवानी हूँ मैं।

शौक नये पालने की फितरत उनकी
शराब मयखाने  की पुरानी हूँ मैं ।

हर्फ दर हर्फ वो ताउम्र लिखते रहे
अनकहे जज्बातों की जुबानी हूँ मैं।

तन्हाईयाँ  मुहब्बत में साथ रहीं
इंतजार की लंबी कहानी हूँ मैं।

राख चिट्ठियों की बन्द डिब्बियों में
बीते हुए लम्हों की जुबानी हूँ मैं।

परछाइयाँ  तैरती रहीं रात भर यूँ
इन नयनों का बहता पानी हूँ मैं ।

मुश्किलों में मुस्कराना सीखा जबसे
अपनी जिंदगी की जिंदगानी हूँ मैं ।

मशालों को थामे रहा करती थी ,
अब गुजरे जमाने की निशानी हूँ मैं ।

बेफिक्री में लम्हें गुजारा करती हूँ
आज के नारी की कहानी हूँ मैं ।

Tuesday, October 15, 2019




हूँ मैं

बिखरे अल्फाजों की कहानी हूँ मैं
टूटे हुऐ ख्वाबों की रवानी हूँ मैं।

शौक नये पालने की फितरत उनकी
शराब मयखाने  की पुरानी हूँ मैं ।

हर्फ दर हर्फ वो ताउम्र लिखते रहे
अनकहे जज्बातों की जुबानी हूँ मैं।

तन्हाईयाँ  मुहब्बत में साथ रहीं
इंतजार की लंबी कहानी हूँ मैं।

राख चिट्ठियों की बन्द डिब्बियों में
बीते हुए लम्हों की जुबानी हूँ मैं।

परछाइयाँ  तैरती रहीं रात भर यूँ
इन नयनों का बहता पानी हूँ मैं ।

मुश्किलों में मुस्कराना सीखा जबसे
अपनी जिंदगी की जिंदगानी हूँ मैं ।

मशालों को थामे रहा करती थी ,
अब गुजरे जमाने की निशानी हूँ मैं ।

बेफिक्री में लम्हें गुजारा करती हूँ
आज के नारी की कहानी हूँ मैं ।

Monday, October 14, 2019

प्रपंच

***
मूल अर्थ लुप्त  हुआ
नकरात्मकता का सृजन हुआ
नई  परिभाषा  रच डाली
प्रपंच  का  प्रपंच  हुआ ।
पंच का मूल अर्थ संसार
"प्र"  ,पंच को देता विस्तार
क्षिति ,जल,पावक ,गगन समीर
पांच तत्व का ये संसार
और पंचतत्व की काया है ।
"प्र" लगे जब सृष्टि  में,अर्थ
अद्भुत अनंत विस्तार हुआ,
नश्वर काया मे प्र  जुड़ कर
भौतिकता का विस्तार करे
अधिकता इसकी ,जीवन
का जंजाल और झमेला है
स्वार्थ सिद्धि हेतु  लोग
छल  का सहारा ले 
नित नए प्रपंच रचते हैं
अनर्गल बातों का दुनिया
में प्रचार किये  फिरते  हैं  ।
प्रपंच  मूल संसार नहीं
प्रपंच माया लोक हुआ
मूल अर्थ न विस्मृत कर
प्र  को और विस्तृत कर ।


Sunday, October 13, 2019



शरद पूर्णिमा विशेष
1)
दोहा
***
गहन तिमिर अंतस छटे,धवल प्रबल हो गात।
अमृत की बरसात हो ,शरद चाँदनी रात ।।
**
2)
**
क्षणिका

शरद पूनम की रात में
अमृत बरसता रहा ,
मानसिक प्रवृतियों के द्वंद में
कुविचारों के हाथ
लग गया अमृत ,
वो  अमर होती जा रहीं ।
**
3)
छंदमुक्त
***
उतरा है फलक से चाँद जो मेरे अंगना
तारों की बारात लेके आओ सजना ,
पूनों की चाँदनी लायी ये पैगाम है
अपनी मुहब्बतों पे तेरा ही नाम है।


अनिता सुधीर

Saturday, October 12, 2019

प्रेम के विभिन्न रूप ...

शाश्वत भाव लिये  प्रेम कण कण में समाया हुआ है।अपरिमित ,अपरिभाषित असीमित प्रेम की अनुभूति और  सौंदर्य अद्वितीय और विलक्षण है ।
कभी वात्सल्य में ,तो कभी पिता की डांट में ,कभी गुरु के अनुशासन में मुखर हो उठता  है ये प्रेम ।तो कभी खामोश रह कर त्याग , बलिदान  और सेवा में दिखाई पड़ता है ।
प्रेम के विभिन्न आयामों को एक साथ पिरोया है
****
दोहा छन्द  के माध्यम से
****

सूना है सब प्रेम बिन, कैसे ये समझाय।
त्याग भाव हो प्रेम में ,प्रेम अमर हो जाय ।।

आदर जो हो प्रेम में,सबका मान बढ़ाय।
बंधन रिश्तों में  रहे ,जीवन सफल बनाय।।

प्रेम रंग से जो रँगे ,मन पावन हो  जाय ।
भक्ति भाव हो  प्रेम में,पूजा ये कहलाय ।।

मात पिता के प्रेम सा ,दूजा न कोइ प्यार।
साथ गुरु का प्रेम हो, जीवन धन्य अपार।।

बाँधे बंधन नेह के ,पावन  रेशम डोर।
भ्रात बहन के प्रेम में,भीगे मन का कोर।।

रक्षा बंधन पर्व का ,करें सार्थक अर्थ ।
प्रकृति से जो प्रेम करें,होंगें तभी समर्थ।।

प्रेम दिलो में जो बसे ,  नफरत कैसे आय।
सबकी सोच अलग रही, बीता दो बिसराय ।।

हिंदी भाषा आन  है, हिन्दी भाषा शान।
भाषा से अनुराग हो ,रखिये इसका मान।।

मानव और प्रकृति का,रिश्ता है अनमोल।
देव रुप में पूज्य ये ,समझ प्रेम का मोल ।।

अद्भुत सारे प्रेम हैं , देश बड़ा नहि कोय।
नाम देश के मर मिटें, बिरले  ऐसे होय ।।

अनिता सुधीर


माँ

कोई शब्द नहीं मेरे पास
जो तुमको बयान करे माँ ।
लेखनी की बिसात नही
जो तुम्हें परिभाषित करे माँ।
तुम असीमित, अपरिमित,
रोम रोम मे समाई हो माँ।
जीवन की कड़ी धूप में
शीतल छाँव किये रही माँ।
प्यार ,अनुशासन से जीवन
परीक्षा के पाठ पढ़ाई माँ ।
आदर्श प्रस्तुत कर रिश्तों
का महत्व बताया तुमने माँ ।
त्याग और समर्पण की मिसाल
बनी ,मेरा व्यक्तित्व रच गयीं माँ।
तुम्हारा ही अनुसरण करते रहे
माँ के गुण मुझे प्रदान कर गईं माँ।
तुम कभी लाड़ नहीं जताई माँ
और मैं कभी अपने को
व्यक्त नहीं कर पाई माँ
तुम्हारा घर से कभी जाना
बड़ा  अखरता था माँ ,
इसीलिए मैं बच्चों को छोड़
बाहर  नहीं  जा पाई माँ।
आज उम्र के इस पड़ाव
पर भी आप ही सहारा बनती हो माँ।
परेशानियों को अभी भी
तुरंत हल करती हो माँ ।
तुम संबल बन साथ रहो
इतनी सी चाहत है माँ।
तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब बनूँ
ये आशीर्वाद दे दो मेरी माँ ।

Thursday, October 10, 2019

रुपया
***
सुनो  रुपैया..  तुम हो बड़े काम के भैया

कई रंगों मे रंगे हो भैया  तुम हो सबके खिवैया
पास अगर तुम होते हो पार लगाते जीवन नैया

तुम बिन  इस भंवर में हिचकोले खाती है नैया
मिले सम्मान जगत में पास में होय जब रुपैया।

विवश हो चश्मे से देखते,हिंसा में काम आते तुम
गाँधी के सिद्धांत रौंद,दबाते सच को तुम रुपैया।

बिक गया इंसान ,ईमान रिश्ता धर्म हो गया
रिश्तों में कत्लेआम देखा,कारण तुम थे रुपैया ।

अरबों की भूख में ,देश बेच रखे महलों में रुपैया
दो रोटी की भूख जिसे,नसीब नहीं एक मडैया ।

जब घर आते सैंया पत्नी झांके ओट किवडिया
बालम ले आये  रुपैया पत्नी का श्रृंगार रुपैया ।।

बच्चों का मनुहार रुपैया, बूढ़ों का विश्वास रुपैया
सबके बड़े काम का  रुपैया।।

कोठों पर नाचते देखा जिनके पास न था रुपैया
जिस्म को नोचते देखा जिनके पास था रुपैया ।।

फांसी के फंदे पर लटके,उनके पास नहीं रुपैया
भिखारी मर गया बाहर ,मंदिर में अपार रुपैया।।

सद्बुद्धि देना प्रभु ,महत्व तुम्हारा समझें भैया।।
आवश्यक जीवन में रुपैया ,पर निश्चित है भैया
सब कुछ होता नहीं रुपैया ।।

एक अधिक सांस न मोल  ले पाये रुपैया
एक अधिक सांस न मोल  ले पाये रुपैया।।
सब कुछ नहीं होता रुपैया  ।।
अशांत मन ,असहनीय वेदना लिये
यायावर सा भटकता रहा ,
संदेशों में कहे गूढ़ अर्थ को
समझने की कोशिशें करता रहा ।
प्रतिवर्ष  दम्भी रावण का दहन,
रावण का समाज में प्रतिनिधित्व
राम कौन ,जो मुझको मारे !ये प्रश्न पूछ
दस शीश रख अट्ठहास करना ,
समाज रावण और भेड़ियों से भरा
ये संदेश विचलित करते रहे ।
एक ज्वलंत प्रश्न कौंधा
क्या लिखने वालों ने अनुसरण किया!
या संदेश अग्रसारित कर
कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली ।
.....दो पुतलों को जलते देखा  जब
भीड़ के चेहरे का उत्साह,
वीडियो बनाते इन पलों को कैद करते लोग
मेला घूमते लोगों को देख
मन शांत हो नाच उठा ।
ये भीड़ प्रतिदिन
गरीबी ,बेरोजगारी ,अशिक्षा
अत्याचार और न जाने कितने
ही रावण से युद्व करती है
जीवन की भागदौड़ में
तिल तिल कर मरती है ।
त्यौहार संस्कृति है हमारी
त्यौहार से मिलती खुशियां सारी
प्रत्येक वर्ष रावण का दहन
देख अपने दुख ,कष्ट भूल जाते हैं
रावण कुम्भकरण प्रतिवर्ष जल कर
अपनी संस्कृति से जोड़े रहते हैं
और राम बनने के प्रयास जारी ....

Wednesday, October 9, 2019

आरे में आरी
वृक्ष की आवाज बनने का प्रयास
दोहावली  के माध्यम से

हमें काटते जा रहे  ,पारा हुआ पचास।
नित्य नई परियोजना, क्यों भोगें हम त्रास।।

धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इस पर  गौर ।।

भोजन का निर्माण कर ,हम करते उपकार।
स्वच्छ प्राण वायु दिये  , जो जीवन आधार ।।

देव रुप में पूज्य हम ,धरती का सिंगार ।
है गुण का भंडार ले औषध की भरमार ।।

संतति हमको मान के ,करिये प्यार दुलार ।
उत्तम खाद पानी से ,लें पालन अधिकार ।।

मानव और प्रकृति का ,रिश्ता है अनमोल
आरे में आरी नहीं ,समझें मेरा  मोल।

Tuesday, October 8, 2019


दशहरा

विजयी भव शुभकामना, करते बारम्बार।
सबके अंदर राम हों ,इस पावन त्यौहार ।।

दम्भी रावण का दहन ,होता है प्रति वर्ष ।
मूल भाव के ज्ञान से ,ही निकले निष्कर्ष ।।

द्वंद राम रावण चले ,उर जो इनका वास ।
अच्छाई की  जीत से  ,होय बुराई नास ।।

भेदी घर के आज भी ,अपनी लंका ढाय।
खायें अपने देश का ,दूजो के गुण गायं।।
©anita_sudhir

Sunday, October 6, 2019





कर्ण नायक या ...

महाभारत युद्ध के पहले  कुंती पांडवों की  रक्षा का वचन लेने जब कर्ण के पास जातीं हैं तो वह कर्ण  की सच्चाई उसे  बता देती हैं । ये जानने के पश्चात कर्ण की  स्थिति को ,कर्ण द्वारा कुंती से पूछे जाने वाले प्रश्नों के माध्यम से व्यक्त किया है...
***
सेवा से  तुम्हारी प्रसन्न हो
ऋषि ने तुम्हें वरदान  दिया
करो जिस देव की आराधना
उसकी संतान का उपहार दिया।
अज्ञानता थी तुम्हारी
तुमने परीक्षण कर डाला
सूर्य पुत्र मैं, गोद में तेरी,
तुमने गंगा में बहा डाला ।
इतनी विवश हो गयी तुम
क्षण भर भी सोचा नहीं,
अपने मान का ध्यान रहा ,
पर मेरा नाम मिटा डाला ।
कवच कुंडल पहना कर
रक्षा का कर्तव्य निभाया
सारथी दंपति ने पाला पोस
मात पिता का फर्ज निभाया ।
सूर्य पुत्र बन जन्मा मैं
सूत पुत्र पहचान बनी
ये गलती रही तुम्हारी , मैंने
जीवन भर विषपान किया।
कौन्तेय से राधेय बना मैं
क्या तुम्हें न ये बैचैन किया!
धमनियों में रक्त क्षत्रिय का
तो भाता कैसे रथ चलाना।
आचार्य द्रोण का तिरस्कार सहा
तो धनुष सीखना था ठाना।
पग पग पर अपमान सहा
क्या तुमको इसका भान रहा !
दीक्षा तो मुझे लेनी थी
झूठ पर मैंने नींव रखी ,
स्वयं को ब्राह्मण बता ,मैं
परशुराम का शिष्य बना ।
बालमन ने कितने आघात सहे
क्या तुमने भी ये वार सहा !
था मैं पांडवों मे जयेष्ठ
हर कला में उनसे श्रेष्ठ,
होता मैं हस्तिनापुर नरेश
क्या मुझे उचित अधिकार मिला
क्या तुम्हें अपराध बोध हुआ!
जब भी चाहा भला किसी का
शापित वचनों का दंश सहा
गुरु और धरती के शाप ने
शस्त्र विहीन ,रथ  विहीन किया।
भरी सभा  द्रौपदी  ने
सूत पुत्र कह अपमान किया
मत्स्य आँख का भेदन कर
अर्जुन ने स्वयंवर जीत लिया ।
मैंने जो अपमान का घूंट पिया
क्या तुमने  कभी विचार किया !
कठिन समय ,जब कोई न था
दुर्योधन ने मुझे मित्र कहा
अंग देश का राजा बन
अर्जुन से द्वंद युद्ध किया ।
मित्रता का धर्म निभाया
दुर्योधन जब भी गलत करे ,
कुटिलता छोड़ कर , उसको
कौशल से लड़ना बतलाया ।
दानवीर नाम सार्थक किया
इंद्र को कवच कुंडल  दान दिया
तुमने भी तो पाँच पुत्रों
का जीवन मुझसे माँग लिया
क्या इसने तुम्हें  व्यथित किया !
आज ,जब अपनी पहचान जान गया
माँ  ,मित्र का धर्म निभाना होगा
मैंने अधर्म का साथ दिया ,
कलंक सदियों तक सहना होगा
अब तक जो मैंने पीड़ा सही
उसका क्या भान हुआ तुमको !
मेरी मृत्यु तक तुम अब
पहचान छुपा मेरी रखना
अपने भाइयों से लड़ने का
अपराध, मुझे क्षमा करना ।
जीवन भर जलता रहा आग में
चरित्र अवश्य मेरा बता देना
खलनायक  क्यों बना मैं
माँ तुम जग को बतला देना ।
©anita_sudhir


Saturday, October 5, 2019

*निःशब्द*

निःशब्द हो जाती हूं
जब विद्वजनों की लेखनी
में खो  जाती  हूँ
और लेखन रस के संसार में
डूब  जाती हूँ ।
कलाकारों की कलाकृतियां
देख साँस थामे
नि:शब्द अपने भाव
प्रकट कर आती हूँ
उन उंगलियों का स्पर्श
कर ,मौन प्रशंसा कर आती हूँ।
निःशब्द परमसत्ता
के रहस्यमयी संसार में हूँ
निःशब्द मन की उड़ान में हूँ।
पर आज
निःशब्द हूँ.....
इतिहास में दफन राज
पर होती निरर्थक बहस
और विचार से ,
बिना समय ,परिस्थिति जाने
उसकी सत्यता से ,
महापुरुषों को अपशब्द कहने से ..
झाड़ू की राजनीति से..
वर्तमान काल पर
सत्यता, ईमानदारी से
बिना भेदभाव के
कौन शब्द दे पायेगा..
कौन इसे परख पायेगा
और भविष्य में फिर
इतिहास दोहराया जायेगा...
अब शब्द देने पड़ेंगे
विचारों की स्वच्छता के लिए
सत्य की कसौटी के लिए ,
देशहित में परिपक्वता के लिए
जन  मस्तिष्क में भरे
जहर को दूर करने के लिए
अब शब्द देने पडेंगे।
वाणी मुखर करनी होगी ।
©anita_sudhir

Friday, October 4, 2019


स्पर्श / सिहरन
हाइकु

प्रथम स्पर्श
तन मे सिहरन
प्रेमानुभूति

नाजुक स्पर्श
नवजात बेटी का
हर्षित मन

हृदय स्पर्शी
बेटी भ्रूण कूड़े में
दुर्गा उत्सव

तन कम्पन
शीत लहर स्पर्श
लाचार वृद्ध

चीखों का स्पर्श
व्यथित होता मन
वेदना तन।।


Thursday, October 3, 2019

मैं  कैसी
**
मैं कैसी
चर्चा का विषय क्यों
हर बार कसौटियों पर
मैं ही परखी जाऊँ
लहूलुहान होती रूह पर
कब तक मरहम लगाऊं
सदियों से चुप रही
कराहती रूह को
थपथपा सुलाती रही
पर अब नहीं ...
जैसी भी  मैं
क्यों दें सबूत
साक्ष्य प्रमाण क्यों
एक एक कृत्य के
गवाह क्यों 
नहीँ चाहिये मुझे
तुम्हारी अदालत से
कोई फैसला
कोई सनद नहीं
कोई प्रमाण पत्र नहीं
स्वयं को बरी करती हूँ.....

        उपवास
         दोहा छन्द
**
औषधि उत्तम है यही ,रखें एक उपवास ।
चित्त शुद्ध मन शांत हो ,रोगों का हो नास ।।

सार्थक है उपवास जो ,समझें इसका मर्म।
खान पान नियमित करें ,पालन करिये धर्म ।।

खुश होते भगवान जो ,रखने से उपवास ।
रहता भिक्षुक वो सुखी, बैठा मंदिर पास ।।

लिये सत्य की धारणा ,करें मौन उपवास ।
चिंतन गाँधी का भरे ,जन जीवन में आस ।।

महत्व है उपवास का ,समझें इसके बोल।
अन्न त्याग के साथ ही , हो विचार अनमोल ।।

Wednesday, October 2, 2019

गांधी
दोहावली


युग निर्माण आप किये,लकुटी था हथियार ।
सत्य अहिंसा पाठ से,आलोकित  संसार।।

लिये सत्य की धारणा ,किया मौन उपवास ।
चिंतन गाँधी का भरे ,जन जीवन में आस ।।

शांति उपासक कर गया ,भारत को आजाद।
राम राज की   स्थापना ,करें आज ये नाद ।।

खादी वस्त्र विचार है,रखिये इसका  मान ।
देशी को अपनाइये ,बापू गाँधी महान ।।

स्वच्छता अभियान हो ,जन जन की पहचान ।
देखे चश्मा बापु का, बदला  हिंदुस्तान ।।

Tuesday, October 1, 2019

तीन बंदर

गांधी जी के
तीन बन्दर
ही तो  अब
बन गया है समाज ।

बुरा मत देखो ,
बुरा मत सुनो
बुरा मत  कहो,
सिखाते आये  गांधी जी ।

आँखे बंद किया अंधा..
अब वो कहाँ देखता बुरा,
घटना का वीडियो बनाता
एक कोने मे खड़ा ।

कान बंद किये बहरा...
सच वो बुरा नहीं सुनता,
किसी की चीत्कारों का
कोई असर नहीँ पड़ता ।

मुँह बंद किये गूँगा
अन्याय सहता
 और सहते देख
बुराई के खिलाफ वो
आवाज बुलन्द नही करता ।

गांधी होते ,
देख द्रवित होते
अपने देश का हाल
सीख उनकी ,
ढाल  ली
सबने स्वयं अनुसार ।

गांधी के चश्मे से
गांधी का भारत देखो,
बुराई  को दूर कर
भारत को स्वच्छ करो ।





संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...