Tuesday, December 28, 2021

अधूरे सपने


 स्वप्न अधूरे कह रहे

चलो गगन की ठाँव।


काँटे साथी राह के

 मंजिल खड़ी सुदूर

बोल उठे हैं घाव भी

थक कर होते चूर

बनी पैंजनी बेड़ियाँ

घायल करती पाँव।।


मन पक्षी बन उड़ रहा

मार कुलाँचे जोर

फिर सूरज की रश्मियाँ

पकड़ाती हैं छोर

देख हुए तब बावरे

शीघ्र मिले वो गाँव।।


ख्याली पुलाव कब पके

चाहे भट्टी आँच

ताप सहे परिश्रम का

फिर निखरे है काँच

नैन खोल के सो रहे

मुस्काती तब छाँव।।


अनिता सुधीर

चित्र गूगल से

Monday, December 27, 2021

संकल्प


संकल्प

शुभारम्भ संकल्प से ,परम्परा प्राचीन।
ध्येय सिद्धि की पूर्णता,रहिये इसमें लीन।।

सुप्त पड़ी क्षमता जगा,शक्ति मानसिक साध।
एक ज्योति संकल्प की,जलती रहे अबाध ।।

सदाचार के ह्रास से, हुई सभ्यता भार।
भूल गये संकल्प वो,जो जीवन आधार।।

दृढ़ इच्छा रख प्रण करें,यही बने संकल्प।
जीवन के निर्माण में ,संशय रखें न अल्प।।

शक्ति बड़ी संकल्प में,कहते संत सुजान ।
है अनगिन सम्भावना,कठिन कार्य आसान।।

अनिता सुधीर

Saturday, December 25, 2021

महामना प0 मदन मोहन


शत शत नमन

पच्चीस दिसंबर याद रहे,देवदूत जन्मा था एक।

लोक हितैषी योगी शिक्षक,कार्य किए थे जिसने नेक।। 


संस्कृत के विद्वान रहे थे,और वकालत से पहचान। 

लक्ष्य समाज सुधार रखे जब,कर्मवीर का कार्य महान।।


राष्ट्र निर्माण के सपने में,शिक्षा को दें सदा महत्व।

काशी का हिंदू विद्यालय,दिया युवाओं को दायित्व।।


चोरी चोरा केस लड़ा जब,जीत गए कितने अभियुक्त।

दो दल में फिर साध संतुलन,प्रण लेते अब होना मुक्त।। 


तम को दूर भगाकर मोहन,दें अनुपम आलोकित ज्ञान।

सत्यमेव नारा देकर के,किया धर्म संस्कृति उत्थान।।

Friday, December 24, 2021

वृद्धावस्था

 चित्र गूूूगल से 
वृद्धावस्था
***
नींव रहे ,
ये सम्मानित बुजुर्ग
मजबूत हैं इनके बनाये दुर्ग
छत्रछाया में जिनके पल रहा  
सुरक्षित आज का नवीन युग..
परिवर्तनशील जगत में 
खंडहर होती इमारतें 
और उम्र के इस पड़ाव में ..
निस्तेज पुतलियां,भूलती बातें
पोपला मुख ,आँखो में नीर 
झलकती व्यथा ,अब करती सवाल है ...
मेरे होने का औचित्य क्या ..
क्या मैं जिंदा हूँ ....
तब स्पर्श की अनुभूति से
अपनों का साथ पाकर
दादा जी
जो जिंदा है बस
वो थके जीवन में  फिर जी उठेंगे ....
वृद्धावस्था अंतिम सीढ़ी  सफर  की
समझें ये पीढ़ी जतन से
जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
तब अस्ति से नास्ति
का जीवन  बड़ा कठिन ।
अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक  जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।"
जो बोया काटोगे वही 
मनन करें 
सम्मान  दे इन्हें
पाया जो प्यार इनसे , 
शतांश भी लौटा सके इन्हें
ये तृप्त हो लेंगे.. 
ये फिर जी उठेंगें ...

अनिता सुधीर 

Wednesday, December 22, 2021

कहमुक़री के बिम्ब

सव
 
स्वरचित कहमुक़री

क्लांत चित्त को शांत करे जो
पल में धमके नहीं डरे वो
मिली प्रीति की फिर से थपकी
का सखि साजन! ना सखि झपकी।।

अनिता सुधीर


चित्र गूगल से साभार

नवगीत


कहमुक़री के बिम्ब अब

ढूँढ़ रहे नित स्वाँग


दीवारों ने कान दे

सुनी सखी की बात

कर्ण सुने मृदुहास जो

जागे सारी रात

भरम सखी को घेरता

पी कर आयी भाँग।।


छेड़-छाड़ कर चूनरें

बाँधें प्रीतम डोर

एक पहेली चल पड़ी

आज भिगोने कोर

चार चरण में खेल कर

सखियाँ खींचें टाँग।।


यौवन इठलाता चला

लाज करे शृंगार

भेद छिपा कर प्रश्न फिर

करने चला दुलार

दो सखियों की बात में

भरता बिम्ब छलाँग।।


अनिता  सुधीर


Tuesday, December 21, 2021

गीतिका

आस का सूरज उगा कर बात करनी चाहिए।

बर्फ जमती उर पटल पर वह पिघलनी चाहिए।।



उष्णता की नित कमी से त्रास बढ़ता जा रहा

दृश्य ओझल हो रहा अब धुंध मिटनी चाहिए।।


नित कुटिलता को बढ़ाने अब शकुनि घर घर रहें

ध्येय जिनका यह रहा है रार मचनी चाहिए ।।


शून्य होती भावना में धीरता की है कमी

धैर्य की फिर बूँद से अब झील भरनी चाहिए।।


मौन हो अभिव्यक्तियाँ अब दृग पलक पर क्यों सजें

शब्द मुखरित हो सकें मुस्कान मिलनी चाहिए।।



अनिता सुधीर आख्या

Monday, December 20, 2021

इंद्रधनुष

 

दोहे

दोहे


रंग चुरा लूँ धूप से, संग नीर की बूँद।

इंद्रधनुष हो द्वार पर, देखूँ आँखे मूँद।।


तम के बादल छट रहे, दुख की बीती रात।

इंद्रधनुष के रंग ले, सुख की हो बरसात।।


रंगों के इस मेल में, छुपा सुखद संदेश।

इंद्रधनुष बन एक हों, उत्तम फिर परिवेश।।


सात रंग के अर्थ में, कितने सुंदर कथ्य।

धरा गगन जल सूर्य के, लिए हुए हैं तथ्य।।


कभी उदासी घेरती, कभी हुआ मन क्लांत।

इंद्रधनुष के रंग फिर, करे चित्त को शांत।।


अनिता सुधीर

Saturday, December 18, 2021

नयी सोच

 शीत लहर का  प्रकोप चरम सीमा पर था । शासन के आदेश अनुसार सभी विद्यालय बंद हो गये थे ।बच्चों की छुट्टियाँ थी इतनी ठंड में सभी  काम निबटा  लेकर नीता  रज़ाई  में घुसी ही थी ,कि दरवाज़े  की घंटी बजी ।

इतनी ठंड में  कौन आया ,नीता बड़बड़ाते हुए उठी ।

(दरवाजे पर कालोनी के कुछ बच्चों और लड़कों को देखकर )

नीता - तुम लोग इतनी ठंड में ?

रोहन - आंटी एक रिक्वेस्ट है आपसे ,यदि कोई पुराने गर्म कपड़े ,कम्बल आदि आपके पास हो तो प्लीज़ साफ़ कर के उसे  पैक कर दीजिए ,हम लोग उसे दो तीन दिन में आकर ले जाएँगे ।

नीता - (आश्चर्य से  )तुम लोग इसका क्या करोगे ?

रोहन - (जो इन सबमें सबसे बड़ा  कक्षा  १२ का छात्र था ) 

आंटी  इतनी ठंड पड़ रही है,कुछ बच्चों को ठिठुरते देखा तो हम सबने ये सोचा कि इनकी  सहायता कैसे करें !

तो हम सभी ने ये तय  किया  कि सबके घर में पुराने  छोटे कपड़े होते ही हैं  वो  इकट्ठा कर इन ज़रूरतमंद लोगों को दे सकते हैं ।उनकी क्रिसमस और नए साल का  गिफ़्ट हो जाएगा  ,ठंडक से आराम और हमारी छुट्टियों का सदुपयोग भीं हो जाएगा ।

नीता - मंत्रमुग्ध सी रोहन की बात सुन कर , बेटा मैं तुम्हारे  विचारों से बहुत प्रभावित हुई हूँ ,क्या तुम लोगों ने अपने घर में बात कर ली है !

रोहन - आंटी पापा को बताया था , वो बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने हमारी पूरी सहायता करने को कहा है ।ये सब  बाँटने में वो हमारे साथ होंगे ।

नीता - (सोचते हुए )धन्य  हैं  रोहन के माता पिता जिन्होंने इतने अच्छे संस्कार दिए । जब आज की पीढ़ी नए साल की पार्टी  में नशे में चूर  हो  डान्स में डूब जाती है तो ये विचार समाज में एक नयी सुबह ले कर आयेगा ,निश्चिन्त हूँ  जब तक ये संवेदनशीलता हमारी सोच में रहेगी हमारी संस्कृति की रक्षा सदैव रहेगी । मुस्कुराते हुए वो गर्म  कपड़े निकालने चल दी थी ::

अनिता सुधीर

Thursday, December 16, 2021

दहेज (कानून का अनुचित लाभ)


 चित्र गूगल से


काल चले जब वक्र चाल में

बिना बिके दूल्हा डरता


सात वर्ष ने दाँव चला अब

घर की हँड़िया कहाँ बिके

धन की थैली प्रश्न पूछती

छल प्रपंच में कौन टिके

अदालतों से वधू पक्ष फिर

खेत दूसरों के चरता।।


चिंता लाड़ जताती सबसे

नाच रही घर के अँगना

सास ननद अब सहमी सोचें

बचा रहे चूड़ी कँगना

पुरुष घरों के छुपे खड़े हैं

व्यंग्य उदर को फिर भरता।।


कोर्ट-कचहरी के नियमों को

घूँघट से दहेज  पढ़ता

अपने दोष छिपाकर सारे

वर की पगड़ी पर मढ़ता

तारीखों में सबको फाँसे

तहस-नहस जीवन करता।।


अनिता सुधीर





















Monday, December 13, 2021

काशी



धर्म और अध्यात्म का,लेकर रूप अनूप।

विश्वनाथ के धाम का,देखें भव्य स्वरूप।।


वरुणा असि के नाम पर,पड़ा बनारस नाम।

घाटों की नगरी रही,कहें मुक्ति का धाम।।


घाटों के सौंदर्य में,है काशी की साख।

गंग धार की आरती,कहीं चिता की राख।।


विश्वनाथ बाबा रहे, काशी की पहचान।

गली गली मंदिर सजे,कण कण में भगवान।।


गंगा जमुनी मेल में रही बनारस शान।

तुलसी रामायण रचें, कबिरा संत महान।।


कर्मभूमि उस्ताद की,काशी है संगीत।

कत्थक ठुमरी साज में,जगते भाव पुनीत।।


काशी विद्यापीठ है, शिक्षा का आधार।

हिन्दू विद्यालय लिए,'मदन' मूल्य का सार।।


दुग्ध कचौरी शान है, मिला पान  को मान।

हस्त शिल्प उद्योग से, 'बनारसी' पहचान।।


नित्य शवों की त्रासदी,भोग रहें हैं लोग।

करें प्रदूषित गंग को, काशी को ही भोग।।


बाबा भैरव जी रहे, काशी थानेदार।

हुये द्रवित अब देख के, ठगने का व्यापार।।


धीरे चलता यह शहर,अब विकास की राह।

मूल रूप इसका रहा,जन मानस की चाह।।


अनिता सुधीर


Sunday, December 12, 2021

अमृत महोत्सव

 



चित्र गूगल से

पदपादाकुलक छन्द


है अमृत पर्व की नव बहार।

अब आत्म बोध का हो विचार।।


नित देश प्रेम की जले ज्योति

मिल लक्ष्य साध लो सब अपार।।


बलिदान कथ्य जो अमर आज

हम चुका सकें उनका उधार


कर्तव्य भाव को रख प्रगाढ़,

मिल पूर्ण करें अमरत्व सार।।


हों स्वर्ण विहग के नव्य पंख,

सुन मातु भारती की पुकार।।


अनिता सुधीर आख्या


Friday, December 10, 2021

विडंबना

 

रो रही है उम्र कच्ची

जब कुपोषण को जिया है।


भूख तड़पे नित उदर में

जब पतीली ही उबलती

हाथ दो ही खींचते घर

आठ की जो आस पलती

रोग को मिलता निमंत्रण

रक्त फिर आकर पिया है।।


थाल भरते व्यंजनों से

फिर उदर नखरे दिखाता

पूड़ियों को छोड़ कर तब

स्वाद का तड़का लगाता

ढूँढ़ते कूड़ा रहे कुछ

बीन कर रोटी लिया है।।


वृक्ष ने कीमत चुकायी

अन्न हो सब थालियों में

आदतों की मौजमस्ती

अन्न बहता नालियों में

है दुखद यह बात कितनी

ब्रह्म अपमानित किया है।।


लोक हित में हों समर्पित

नित यही कर्त्तव्य करना

श्रेष्ठता ही धर्म हो अब

अन्न का सब मान रखना

लक्ष्य हमको साधना है

ये वचन भू को दिया है।।


अनिता सुधीर आख्या

















Thursday, December 9, 2021

कीर्ति ध्वज


 चित्र गूगल से


कीर्ति ध्वज


कीर्ति ध्वज जब हाथ थामे

है शिखर भी पाँव में फिर


शीत भी जब काँपती-सी

धमनियों में रक्त उबले

हिम कणों की चादरों में

है तिरंगा श्रेष्ठ पहले

प्राण भी बाजी लगाता 

पर्वतों के ठाँव में फिर।।

कीर्ति ध्वज..


हौसला पहुँचे चरम पर

मुश्किलें कब रोकतीं पग

जब विजय उद्घोष करता

गर्जना से गूँजता जग

सरहदों का गान होता

राष्ट्र के हर गाँव में फिर।।


कीर्ति ध्वज..


वीरता डंका बजाकर

धूल बैरी को चटाए

काल सीना तान कर नित

शत्रु की हस्ती मिटाए

युद्ध जब इतिहास रचता

देश ध्वज की छाँव में फिर।।


कीर्ति ध्वज..



अनिता सुधीर आख्या



Wednesday, December 8, 2021

विवाह पंचमी

 विवाह पंचमी की शुभकामनाएं



।।१।।

उर लाज भरे पग साध चलीं, सुकुमारि सिया वरमाल लिए।

अति प्रेम भरें वर को निरखें, मुख तेज कपोल गुलाल लिए।।

शुभ सुंदर रूप लखें वधु का, जन हर्षित हैं सुर ताल लिए।।

सखि मंगलचार करें सँग में, वर पूजन का शुभ थाल लिए।।


।।२।।

अति विह्वल जान सखी कहतीं,अब लाज तजो कर माल उठाओ। 

प्रभु को लख क्यों सुध भूल रही, उनको वरमाल गले पहनाओ।।

कर पंकज नाल समान उठा, विधु मान उन्हें अब अर्घ्य चढ़ाओ।

जब चेतन-शक्ति प्रतीक मिले ,जग जीवन के अब स्वप्न सजाओ।।


अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, December 7, 2021

महान


महान
दोहावली

मन के ही विश्वास से, पत्थर में भगवान।
कण-कण को हम पूजते,संस्कृति रही महान।।

मनुज धर्म की श्रेष्ठता, करिये कार्य महान।
राजनीति से दूर हो , रखें देश का मान ।।

देवि रूप में पूजते, फिर नारी अपमान।
कैसा ये पाखंड है ,भूले अर्थ महान।।

प्रण लघु मन में ठान के, करिए कार्य महान।
सत्य संकल्प से बने,मानव दृढ़ बलवान।।

अपने लहु की मसि बना,गाथा लिखी महान ।
अमर तिरंगा कर गए, भारत वीर जवान ।।

अनिता सुधीर


Sunday, December 5, 2021

लव जिहाद


*लव जिहाद*

चित्र गूगल से साभार

प्रेम जाल में फाँस कर

फिर तितली पर वार करें


पंखों पर जब पुष्प उगे

सूरज लेने दौड़ी थी

मस्ती ने थैले में फिर

भरी न कोई कौड़ी थी

पदचिन्हों की ताली भी

खुशियों पर अधिकार करे।।


बाज उसाँसे भर-भर कर

झूठे दाने फेंक रहा

मीन फाँस कर मुख में रख

नाम धर्म का सेंक रहा

रक्त सने मासूमों पर

शोषण को हथियार करे।।


तभी सियासी जामे ने

प्रेम गरल का रूप धरा

भीड़ तंत्र ने कुचला जो

प्रीत भाव फिर कूप गिरा

मित्र बना दीपक ही क्यों

जीवन को अंगार करे।।


अनिता सुधीर


Saturday, December 4, 2021



तोरण द्वारे पर सजे
बाजे मंगल गीत।
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

सात जन्म के प्यार को 
बाँधा तेरे साथ
रचा प्रेम अनुभूतियां
थामा प्रीतम हाथ
बंधन जन्मों का रहे
मधुरम प्रणय पुनीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

पीहर से पी घर चली
स्वप्न सुनहरे बाँध
मन मंदिर में साजना
मिला तुम्हारा काँध
प्रेम कवच विश्वास का
संबंधों की जीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

प्रेम सरिस दूजा नहीं
यही प्रणय का सार
हृदय प्रेम परिपूर्णता
सजा सकल संसार
मन कोयल सा कूकता
अंग अंग संगीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, December 3, 2021

डॉ राजेंद्र प्रसाद



डॉ राजेंद्र प्रसाद

3 दिसंबर 1884 - 28 फरवरी 1963


राष्ट्रपति भारत के

थे प्रथम बाबू राजेंद्र।

सादगी मूरत में

देश की आशा का केंद्र।।


त्याग सादगी की मूरत में,थे राजेंद्र प्रसाद महान।

नवनिर्माता भारत के थे,प्रथम राष्ट्रपति का सम्मान।


प्रतिभाशाली छात्र रहे जो,बनते शिक्षक और वकील। 

सभी मुकदमा जीतें बाबू, देते अद्भुत तर्क दलील।।


भाषाओं के ज्ञानी का था,सादा जीवन उच्च विचार। 

पहनावा साधारण सा था, सेवा व्रत जीवन आधार।।

 

नहीं व्यक्तिगत चाह रखी थी,धन-दौलत का कब था मोह। 

गांधी दर्शन का चिंतन कर,जीवन को लेते वो टोह।।


मातृभूमि की सेवा करके,सब के मुख पर दी मुस्कान। 

अर्थशास्त्र लिख खादी का,बने देश के रत्न महान।।


अनिता सुधीर आख्या


Thursday, December 2, 2021

तेल बाती को पिलाऊँ


 चित्र गूगल से साभार

काँपती लौ श्वास चाहे

तेल बाती को पिलाऊँ


कठघरे तन की सलाखें

दागती हैं रीतियों को

फिर धुँआ कैसे सँभाले

राख होती नीतियों को

तब शिखा की दीप्ति सोचे

मर्म जीवन जान पाऊँ।।


फूस की छत पूछती है

खम्भ तेरा क्या ठिकाना

छप्परों की मौज मस्ती

भरभरा कर फिर गिराना

ढाल पर जीवन डरा है

अग्नि से तृण को बचाऊँ।


सुर लहरियाँ डूबतीं अब

ताल तिनके ढूँढ़तीं है

पृष्ठ थक कर रो रहे जो

लेखनी सिर फोड़ती है

व्याकरण उलझा हुआ सा

छन्द कैसे छाँट लाऊँ।।


Wednesday, December 1, 2021

महर्षि पतंजलि



चित्र गूगल से साभार
*मदिरा सवैया*
।। १ ।।
पावन भू पर जन्म लिए,मुनि भारत गौरव गान लिखे।
दर्शन योग पतंजलि का,ऋषि धातु रसायन मान लिखे।।
योग विधान प्रसिद्ध हुआ,परिभाषित सूत्र महान लिखे।।
भाष्य विवेचन सार लिखे,वह संस्कृति का अवदान लिखे।।
।।२।।
अष्ट प्रकार सधे तन ये,छह दर्शन में उत्थान लिखे।
औषधि वैद्य पितामह थे,तन साधन का तप ज्ञान लिखे।।
जो उपचार किए मन का,मन चंचल का वह ध्यान लिखे।
रोग विकार मिटा जग का,वह भारत की  पहचान लिखे।।

अनिता सुधीर आख्या

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...