Tuesday, June 30, 2020

गाँव


दोहा छन्द
**
सोंधी माटी गाँव की,वो खेतों की मेड़ ।
रचा बसा है याद में,वो बरगद का पेड़।।

अथक परिश्रम खेत में,कृषक हुआ जब क्लांत।
हरियाली तब गाँव की ,करे चित्त को शांत।।

झूले पड़ते नीम पर, झूले सखियाँ संग।
दृश्य निराला गाँव का,बिखरे अद्भुत रंग।।

ताल तलैया गाँव में ,वो आमों का बाग ।
जामुन महुआ तोड़ते,सुन कोयल की राग ।।

गाँव चले मजदूर अब,लेकर मन में आस।
विकसित लघु उद्योग हों,करना यही प्रयास।।

भारत गाँवो में बसे,पढ़ें बाल गोपाल।
बनें आत्म निर्भर सभी,लोग रहें खुशहाल।।

अनिता सुधीर आख्या





Friday, June 26, 2020

कर्ण नायक या .

*कर्ण  नायक या ...?*
महाभारत युद्ध के पहले कुंती द्वारा  कर्ण को  अपनी सच्चाई ज्ञात होने पर उसकी मनःस्थिति
और  कुंती से वार्तालाप का दृश्य दिखाने का प्रयास
***
सेवा से  तुम्हारी प्रसन्न हो
ऋषि  ने तुम्हें वरदान  दिया
करती जिस देव की आराधना
उसकी संतान का उपहार दिया।
अज्ञानता थी तुम्हारी
तुमने परीक्षण कर डाला
सूर्य पुत्र मैं, गोद में तेरी,
तुमने गंगा में बहा डाला ।
इतनी विवश हो गयी तुम
क्षण भर भी सोचा नहीं,
अपने मान का ध्यान रहा ,
पर मेरा नाम मिटा डाला ।
कवच कुंडल पहना कर
रक्षा का कर्तव्य निभाया
सारथी दंपति ने पाला पोसा
मात पिता का फर्ज निभाया ।
सूर्य पुत्र बन जन्मा मै
सूत पुत्र पहचान बनी
ये गलती रही तुम्हारी , मैंने
जीवन भर विषपान किया।
कौन्तेय से राधेय बना मैं
क्या तुम्हें न ये बैचैन किया!
धमनियों में रक्त क्षत्रिय का
तो भाता कैसे रथ चलाना।
आचार्य द्रोण का तिरस्कार सहा
तो धनुष सीखना था ठाना।
पग पग पर अपमान सहा
क्या तुमको इसका भान रहा !
दीक्षा तो मुझे लेनी थी
झूठ पर मैंने नींव रखी ,
स्वयं को ब्राह्मण बता ,मैं
परशुराम का शिष्य बना ।
बालमन ने कितने आघात सहे
क्या तुमने भी ये वार सहा !
था मैं पांडवों मे जयेष्ठ
हर कला में उनसे श्रेष्ठ,
होता मैं हस्तिनापुर नरेश
क्या मुझे उचित अधिकार मिला
क्या तुम्हें अपराध बोध हुआ!
जब भी चाहा भला किसी का
शापित वचनों का दंश सहा
गुरु और धरती के शाप ने
शस्त्र विहीन ,रथ  विहीन किया।
भरी सभा  द्रौपदी  ने
सूत पुत्र कह अपमान किया
मत्स्य आँख का भेदन कर
अर्जुन ने स्वयंवर जीत लिया ।
मैंने जो अपमान का घूंट पिया
क्या तुमने  कभी विचार किया !

कठिन समय ,जब कोई न था
दुर्योधन ने मुझे मित्र कहा
अंग देश का राजा बन
अर्जुन से द्वंद युद्ध किया ।
मित्रता का धर्म निभाया
दुर्योधन जब भी गलत करे
कुटिलता छोड़ कर , उसको
कौशल से लड़ना बतलाया ।
दानवीर नाम सार्थक किया
इंद्र को कवच कुंडल  दान दिया
तुमने भी तो पाँच पुत्रों
का जीवन मुझसे माँग लिया
क्या इसने तुम्हें  व्यथित किया !
आज ,जब अपनी पहचान जान गया
माँ  ,मित्र का धर्म निभाना होगा
मैंने अधर्म का साथ दिया ,
कलंक सदियों तक सहना होगा
अब तक जो मैंने पीड़ा सही
उसका क्या भान हुआ तुमको !
मेरी मृत्यु तक तुम अब
पहचान छुपा मेरी रखना
अपने भाइयों से लड़ने का
अपराध, मुझे क्षमा करना ।
जीवन भर जलता रहा आग में
चरित्र अवश्य मेरा बता देना
खलनायक  क्यों बना मैं
माँ तुम जग को बतला देना ।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, June 21, 2020

योग


योग दिवस की शुभकामनाएं
दोहा छन्द
***
योग दिवस पर विश्व में,मची योग की धूम।।
गर्व विरासत पर हमें,भारत माटी चूम ।

करते प्रतिदिन योग जो ,रहें रोग से दूर।
श्वासों का बस साधिए ,मुख पर आए नूर ।।

आसन बारह जो करे,होता बुद्धि निखार ।
सूर्य नमन से हो रहा ,ऊर्जा का संचार ।।

पद्मासन में बैठ कर ,रहिये ख़ाली पेट।
चित्त शुद्ध अरु शाँत हो,करिये ख़ुद से भेंट ।।

प्राणवायु की जब कमी ,होते सारे रोग ।
जीवन प्राणायाम से ,मानव उत्तम भोग ।। 

ओम मंत्र के जाप से ,होते दूर विकार।
तन अरु मन को साधता,बढ़े रक्त संचार।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, June 14, 2020

तीली



#तीली
***
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्हीं जलाती काया।

ठाढ़े होकर कपास सोचती
बन जाऊँ  मैं बाती,
दीप शैया पर पहुरे पहुरे
घृत सारा पी जाती
इक आलिंगन करूँ तीली से
हुलसे  मेरी छाया
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।

मुख फैलाये दैत्य दहेज का
उर में अग्नि जलाता
तेल लोभ का बंद कमरों में
चिंगारी भड़काता
क्यों सुलगाती तीली स्वार्थ की
क्यों झुलसाती साया।
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।

कोमल काया बनती काष्ठ से
विस्फोटक को लादे
आहुति देना  अपने गात की
सोच समझ कर प्यादे
चीख सुनो उस अबला सुता की
नमक वहीं का खाया
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।

अनिता सुधीर आख्या

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...