Saturday, May 30, 2020

हिंदी पत्रकारिता दिवस*


*
पत्रकारिता  /पत्रकार
दोहा छन्द

*तीस मई* शुभ दिन रहा ,लिखा गया इतिहास।
समाचार *मार्तण्ड* ने ,उर में भरा हुलास  ।।

लिए कलम की धार जो,बनता पहरेदार।
पत्रकार निष्पक्ष हो ,लड़े बिना तलवार ।।

डोर सत्य की थामता,कहलाता है स्तंभ।
शुचिता का संचार हो ,नहीं मिला हो दम्भ।।

साहस संयम ही रहे ,पत्रकारिता मान।
सोच,विषय संवाद से,मिले नयी पहचान ।।

परिवर्तन के दौर में ,माध्यम हुए अनेक ।
समाचार की सत्यता,होती अब व्यतिरेक।।

प्रौढ़ कलम दम तोड़ती,बिकी कलम जब आज।
भटक गयी उद्देश्य से,रोता रहा समाज ।।

नया कलेवर डाल के,भूली सहज प्रवाह ।
पूंजीपति के कैद  में ,ढूँढे झूठ गवाह ।।

जोड़ तोड़ अब मत करें,पहले समझें कथ्य।
मिले वही पहचान फिर,सत्य लिखें अब तथ्य।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, May 29, 2020

विदाई


विदाई

****
सूने पार्क में कोने के चबूतरे पर बैठी
यादों के बियाबान जंगल में विचरण करती हुई..
तभी पीले पत्तों का
शाख से विदा हो कर
स्पर्श कर जाना ,
निःशब्द, स्तब्ध कर गया मुझे ।
अंकुरण नई कोपलों का ,
हरीतिमा लिए पत्तियों में ऊर्जा का भंडार ,
जीवन भर का अथक प्रयास,
और अब  इनकी विदाई की बेला।
कितने ही दृश्य कौंध गये....
माँ की  नन्हीं गुड़िया की
घर से छात्रावास तक की विदाई
अपने जड़ों से दूर जाने की विदाई
एक आँगन से दूसरे आँगन में रोपने की विदाई
पत्नी ,बहू माँ रूप में जीवन का तप..
समय  के चक्र में वही क्रम ,वही विदाई
एक एक कर सब विदा लेते हुए....
वही नम आँखे ....
जीवन के  लंबे सफर में
उम्र के इस ढलान पर
काश मैं भी इन पत्तों सी विदाई ले लेती...
साँसों की डोर में..निरर्थक  बंधी हुई ..
अंतिम विदाई ले पाती..
तभी एक मैले कुचैले कपडे में
एक अबोध बालिका का रुदन
विचलित कर गया ...
अभी रोकनी होगी अपनी अनंत 
यात्रा की कामना ..
और  सार्थक करनी होगी
अपनी अंतिम विदाई ...

अनिता सुधीर

Monday, May 25, 2020

मुक्तक


मुक्तक
मॉपनी
1222 1222 1222 1222
**
1)
वंदना
विराजो शारदे माँ तुम,नया आसन बिछाते हैं ।
तुम्हारी ही कृपा से हम,विधा नित सीख पाते हैं।
सजाते भाव के मोती,चढ़ाते शब्द की माला,
तुम्हारी ही कृपा से हम,अनोखे पद रचाते हैं ।
2)
मुहब्बत

लगाते आग जो तुम हो,बुझाना भूल जाते हो ,
जमाने से छिपाते हो ,बताना भूल जाते हो ,
मुहब्बत को इशारे से ,जताया आप ने होता ,
रही फितरत तुम्हारी ये ,मनाना भूल जाते हो ।
3)
मुहब्बत  के  तरानों में ,तरन्नुम साज बनती है,
कभी दिल गुनगुनाता है,गजल अल्फाज बनती है।
तराने आशिकी गाते ,निगाहों से जताना है,
पहेली इश्क़ कब सुलझी,यही आवाज बनती है।।
4)
मित्रता

न हमको सांझ की चिंता,न हमको रात का डर है,
मिले जो तुम मुझे मित्रों, न हमको घात का डर है,
पलों को जी लिया करते,ठहर जाये यहीं जीवन,
रहे बैचैन क्यों अब हम ,मुझे किस बात का डर  है।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, May 22, 2020

दर्पण



दर्पण  को आईना दिखाने का प्रयास किया है

    दर्पण
*********
दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है  तुम्हें
अपने  पर ,
कि तू  सच दिखाता है।
आज तुम्हे  दर्पण,
दर्पण दिखाते हैं!
क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट
बिखर नहीं जाएगा
जब तू उजाले का संग
 नहीं पाएगा
माना तू माध्यम आत्मदर्शन का
पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें  को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता  है
 कि तू सच बताता है ।
माना तुम हमारे बड़े काम के ,
समतल हो या वक्र लिए
पर प्रकाश पुंज के बिना
तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
दर्पण को दर्पण दिखलाना
मन्तव्य  नहीं,
लक्ष्य है आत्मशक्ति
के प्रकाश पुंज से
गंतव्य तक जाना ।

अनिता सुधीर

Monday, May 18, 2020

रोटी


कुंडलिया
1)
रोटी पर कविता लिखे,कहाँ मिटे है भूख।
दो रोटी की आस में ,आंतें जाती सूख ।।
आंतें जाती सूख ,उदर पानी से भरते।
मिलती कवि को वाह,तड़प कर भूखे मरते।।
काल बड़ा है क्रूर,रही किस्मत भी खोटी ।
भरा रहे अब थाल ,लिखे कवि ऐसी रोटी ।।
2)
रोटी माँ के हाथ की,रखे स्वाद भरपूर।
दो रोटी के फेर में ,हुए उन्हीं से दूर ।।
हुये उन्हीं से दूर ,नहीं अब दालें गलती।
मिले वही फिर स्वाद ,कमी अब माँ की खलती।।
नहीं रही वो डाँट ,नीर से रोटी घोटी ।
भरे नयन में नीर ,याद आती वो रोटी ।।
3)
'रोटी  बैठा तोड़ता' ,करे नाम बदनाम ।
महत्व रोटी का रहा,करना पड़ता काम।।
करना पड़ता काम,सभी आलस को छोड़ो।
मिले नहीं बिन दाम,मुफ्त मत इसको तोड़ो।।
रहा परिश्रम सार ,जोर हो एड़ी चोटी ।
तृप्त हुआ उर भाव ,कमाई जब खुद रोटी।।

4)
माया ठगिनी डोलती,बदल बदल कर रूप।
नाच नचाती ये रही ,रहे रंक  या भूप ।।
रहे रंक  या भूप ,लगी तृष्णा जो मन की।
बिक जाता ईमान ,मिटे पर भूख न इनकी।।
छीन रहे अधिकार ,तिजोरी भर भर खाया ।
बुझी नहीं है प्यास,रही रोटी की माया ।।

अनिता सुधीर आख्या
















Saturday, May 16, 2020

त्रासदी



***
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया

राजनीति के तपे तवे पर
गरम रोटियां जब सिकती
तब पाँवों के उन छालों से
व्यथा भाप बन कर फिकती
हृदय यंत्र तब छुप छुप रोते
नाद बुलाते साँवरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया

सात सुरों की सरगम मध्यम
मौतें सप्तम स्वर गाये
काल क्रूर जब स्वप्न कुचलते
राग गीत कैसे भाये
तप्त दुपहरी ज्येष्ठ दिखाये
मोड़ मोड़ पर काँवरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया


कर्ण द्वार जब सुनें मल्हार
दृगजल की बरसात हुई
स्वर कंपित हो अधर मौन तब
आज भयावह रात हुई
प्राण फूँक तुम कर्म गीत के
प्रीत भरो अब अंजुरिया
ठूँठ जगत के चेतन मन को
सुना नीति की बाँसुरिया


अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, May 12, 2020

मंगल यात्रा

नवगीत

आज से train का संचालन  आरम्भ हो रहा है ,जीवंतता का एक खूबसूरत एहसास है  ,इसी को लिखने का प्रयास
***

सत्य सलोना सुंदर सरगम
आस लगाए शहनाई

पटरी पर छुक छुक करता जब
 नव जीवन भागा दौड़ा
कालापानी के चंगुल से
 अब इसने नाता तोड़ा
विस्मृत स्मृतियाँ कालखंड की
सुखद भावना  हरषाई
सत्य सलोना सुंदर सरगम
आस लगाए शहनाई

रुका हुआ नदिया का पानी
सागर से मिलना चाहे
पथराई आँखो के किस्से
में खूब भरी है आहें
आस मिलन की प्रियजन से अब
उड़न खटोले पर आई
सत्य सलोना सुंदर सरगम
साज सजाती शहनाई

अनगिन पापड़ बेले सबने
मेघ सुखाते हैं आकर
एक सुनहरी धूप उतरती
खिलता सुख ऊर्जा पाकर
कोमल मादक मस्त महकती
कलियाँ अब ले अँगड़ाई
सत्य सलोना सुंदर सरगम
आस लगाए शहनाई।

अनिता सुधीर आख्या































Sunday, May 10, 2020

माँ

एक प्रयास किया है
शायद सबके मन की बात हो


*मैं* ,*मेरी माँ* ,*मेरे बच्चे*


स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

उंगली थाम कर चलना सीखा
कदम कदम पर डाँट पड़ी
हाथ पकड़ संतान चलाये
निर्देशों की लगी झड़ी
स्वर्ग मिला है मातु गोद में
बच्चे अब भान करायें
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

पीर मातु ने सदा छुपाई
कितने कष्ट सहे थे तब
व्यथा झेल कर कष्ट छुपाते
वही करें औलादें अब
लिटा गोद में सिर सहला के
थपकी देकर लोरी गाये
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

मेरी माँ मेरे अंदर है
सदा रही उनके जैसी
चक्र समय का चलता जाता
संतति राह चले वैसी
मातु भाव में संसार निहित
शब्द नहीं इसको पाये
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

अनिता सुधीर आख्या

Saturday, May 9, 2020

भूख


पिरामिड

**
१)
ये
थाली
है खाली
शिशु रोता
रोटी का टोटा
माँ भूख मिटाती
नभ चाँद दिखाती।
२)
ये
भूख
रसूख
तीक्ष्ण दुख
सुरसा मुख
है पतनोन्मुख!
इसे मिटा पा सुख।
3)
ये
स्तुत्य
कर्तव्य!
भूख मिटा
दुर्दिन हटा।
आचरण दिव्य
भविष्य होगा भव्य।

Thursday, May 7, 2020

यादें

नवगीत



बूंदो की वो सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर

उन गलियों में याद दौड़ती
छुप छुप के नंगे पाँवों से ,
शूल चुभाते कुछ किस्से थे
तब गन्ध उठी उन घावों से ।
कटी प्याज सी खुश्बू यादें
ठहर गयी आँखो में आकर
बूंदो की  सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर।

भानुमती का खोल पिटारा
अनगिन यादें आज खँगाली।
उमड़ घुमड़ कर मेघा बरसे
नैना बनते आज सवाली ।।
मौन खड़ा सब झेल रहा मन
याद बनाती जब भी चाकर
बूंदो की सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर

खाद पड़ी थी विष बेलों पर
अमर याद ये बढ़ती जाती,
लिपट वल्लरी उन खंभों पर
अनचाहे ही चढ़ती जाती
सदा फूलती फलती रहती
बिना नीर के दुख को खाकर
बूंदो की सोंधी स्मृतियां
महक उठी अब माटी पाकर।

अनिता सुधीर आख्या




संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...