Saturday, November 30, 2019




दोहावली

बनारस 
***
वरुणा असि के नाम से ,पड़ा बनारस नाम ।
घाटों की नगरी रही ,कहें मुक्ति का धाम ।।

विशिष्टता इन घाट की ,है काशी की साख।
होती गंगा आरती  ,कहीं चिता की राख ।।

विश्वनाथ बाबा रहे ,काशी की पहचान ।
गली गली मंदिर सजे,कण कण में भगवान।।

गंगा जमुना संस्कृति ,रही बनारस शान ।
तुलसी रामायण रचें,जन्म कबीर महान ।।

कर्मभूमि 'उस्ताद' की , काशी है संगीत।
कत्थक ठुमरी की सजे ,जगते भाव पुनीत।।

काशी विद्यापीठ है  ,शिक्षा का आधार ।
विश्व विद्यालय हिन्दू,'मदन' मूल्य का सार।।

दुग्ध ,कचौरी शान है ,मिला'पान 'को मान ।
हस्त शिल्प उद्योग से ,'बनारसी' पहचान ।।

त्रासदी अधजले शवों ,की !भोग रहे लोग।।
गंगा को प्रदूषित करें ,काशी को ही भोग ।।

बाबा भैरव जी रहे , काशी थानेदार ।
हुये द्रवित ये देख के ,ठगने का व्यापार।।

धीरे चलता शहर ये,अब विकास की राह।
काशी मूल रूप रहे ,जन मानस की चाह ।।

©anita_sudhir
शहर

आधुनिक होते ये शहर..

खेतों में मकान की फसलें
गुम होती पगडंडियां
विकसित होते महानगर
खंडहर होते धरोहर
और आधुनिक होते ये शहर..

जीवन की आपाधापी में
बेबस सूरतें लिये
दौड़ते भागते लोग
चाहे हो कोई भी प्रहर
और आधुनिक होते ये शहर..

बहुमंजिली इमारतों में
अजनबी हर इंसान
स्वार्थ पर टिके रिश्ते
भावनायें हो रही पत्थर
और आधुनिक होते ये शहर..

धुआँ छोड़ते कारखाने
वाहनों का धुआँ
कटते जा रहे  पेड़
हवा में  फैलता जहर
और आधुनिक होते ये शहर..

बढ़ती जा रहा  फूहड़ता
आये दिन  निर्भया कांड
घटना का वीडियो बनाते लोग
भूलते जा रहे अपने संस्कार
और आधुनिक होते ये शहर..

लुप्त  होते गौरैया के घोंसले
वृद्धाश्रम में बढ़ी भीड़
पाप का भार से मैली होती नदियाँ
टूटा समाज पर कहर
और आधुनिक होते ये शहर..

अब चले ऐसी लहर
जीयें लोग नहीँ सिहर सिहर
खिले पुष्प अब निखर निखर
हो ये मेरे सपनों का शहर
ऐसा आधुनिक  हो मेरा शहर..

अनिता सुधीर













Friday, November 29, 2019


विधा      चौपाई
विषय    माँ और  बच्चों के  मनोभाव को दिखाने का प्रयास
***
माँ  के मनोभाव
***
होती चिन्ता चिता समाना ।मरम नहीं पर मेरा जाना।।
हर आहट पर सहमी जाती। संतति जब तक घर नहि आती।।
सब कहते हैं चिन्ता  छोडें।कैसे अपनों से मुख मोड़ें।।
लहु से सींचा पाला तुमको । दिन अरु रात न भूले तुमको ।।

****
संतान

बड़े हुये अब हम सब बच्चे।नहीं रहे कोई हम कच्चे।।
साथ आपका सदैव रहता,किसी स्थिति में डर नहि लगता।।
रोग नहीँ माँ कोई घेरे ।बच्चे  चिन्ता करते  तेरे।।
हम बच्चों का आप सहारा । आप बिना कुछ लगे न प्यारा।।

****
सुने शब्द बच्चों के मुख से।छलकी आंखें माँ की सुख से।
किस्मत वाले उनको कहते ।मातु पिता बच्चों सँग रहते ।।,
हालत पूछो जाकर उनसे,शीश हाथ नहि पाया कबसे ।।
बना रहे रिश्तों का बंधन।करें सभी मिल कर ये वंदन।।


अनिता सुधीर

Thursday, November 28, 2019

शब्द युग्म ' का प्रयास

चलते चलते
चाहों के अंतहीन सफर
मे  दूर बहुत दूर चले आये
खुद ही नही खबर
क्या चाहते हैं
राह से राह बदलते
चाहों के भंवर जाल में
उलझते गिरते पड़ते
कहाँ चले जा रहे है ।

कभी कभी
मेरे पाँवों के छाले
तड़प तड़प पूछ लिया करते हैं
चाहतों का सफर
अभी कितना है बाकी
मेरे पाँव अब थकने लगे है
मेरे घाव अब रिसने लगे है
आहिस्ता आहिस्ता ,रुक रुक चलो
थोड़ा थोड़ा  मजा लेते चलो।


हँसते हँसते
बोले हम अपनी चाहों से
कम कम ,ज्यादा ज्यादा
जो  जो भी पाया है
सहेज समेट लेते है
चाहों की चाहत को
अब हम विराम देते है
सिर्फ ये चाह बची है कि
अब कोई चाह न हो ।

Wednesday, November 27, 2019

साथ जो हमने किये थे रतजगे
दिलजलों के अनकहे भी खूब थे ।

ख़्वाब पलकों पर सजाते जो रहे
इश्क़ तेरे फलसफे भी खूब थे ।

अश्क़ जो आखों से उस रोज बहे थे
बादल उस दिन बरसे भी खूब थे ।

अलग राहों पर कदम निकल पड़े है
दरमियां हमारे फासले भी खूब थे ।

जी रहे तन्हाई में कैसे है हम
आप के तो कहकहे भी खूब थे ।


Tuesday, November 26, 2019

**मेहंदी



बड़ी जद्दोजहद हुआ करती थी

तब हिना का रंग चढ़ाने में,

हरी पत्तियों को बारीक पीसना

लसलसे लेप बना कर

सींक से आड़ी तिरछी रेखाओं को उकेरना ,

फूल,पत्ती ,चाँद सितारे ,बना उसमें अक्स ढूंढना

मेहंदी की भीनी खुश्बू से सराबोर हो जाना ।

सूखने और रचने के बीच के समय में

दादी का प्यार से खाना खिलाना ,

कपड़े में लगने पर माँ की डांट खाते जाना

सब साथ साथ चला करता था।

सहेलियों के चुहलबाजी का विषय

रची मेहंदी के रंग से पति का प्यार बताना

भूला बिसरा  अब याद आता है ।

तीज त्यौहार की शान है मेहंदी

सौभाग्य का सूचक मेहंदी ,

स्वयं पिसती और कष्ट सह,

दूसरों की झोली खुशियों से भरती मेहंदी।

दुल्हन की डोली सजती,

पिया को लुभाती है मेहंदी

पुरातन काल से रचती आ रही मेहंदी

उल्लास से हाथों में सजती आ रही मेहंदी।

समय बदला ,हिना का रंग बदला!

अब मेहंदी गाढ़ी  ,गहरी रच जाती है

शायद प्राकृतिक रूप खो  चुकी है

इसीलिये दो दिन में बेरौनक हो जाती है।

अब पिसने के बाद रंग नहीं आता

तो प्यार का रंग नहीं बता पाती

इस लगने और  रचने के बीच

कोई बहुत पास होता है

जो हाथ की लकीरों में रचा बसा होता है

और उससे ही होती है  हाथों में  मेहंदी ।

©anita_sudhir

Monday, November 25, 2019


आज की नारी

दस भुजा अब रक्खे नारी ,करते तुम्हें प्रणाम
बाइक पर सवार हो, तुम चलती खुद के धाम।

सरस्वती अन्नपूर्णा हो तुम,लिये मोबाइल हाथ
पुस्तक बर्तन लैपटॉप  ,रहते तेरे साथ ।


ममता की देवी करें कुरीतियों पर प्रहार
पर्याय शक्ति कौशल की , करती बेड़ा पार ।

श्रृंगार बिन अधूरी ,सजाती चूनर लाल
कामकाजी गृहिणी हो तुम ,उन्नत तेरा भाल ।।

Sunday, November 24, 2019

 विलोम शब्द का प्रयोग कर
सरसी छन्द में रचना...


*सुख *दुख तो आना जाना है,मन क्यों करें उदास।
*पतझड़ बाद *बहारें आतीं  ,करें हास परिहास ।।

डोर *आस की थामे रहिये,होते नहीं *निरास।
दीप जले घर घर *खुशियों के,*गम में नहीं उदास ।।

*नीच *ऊंच अंतर मिट जाये ,ऐसा करें प्रयास ।
रहे नहीं *गरीबी *अमीरी , हो चहुँ ओर उजास ।।

*सतकर्मों की गठरी बांधो,*दुष्कर्मों से त्रास ।
परम सत्य है *जीना *मरना,रखिये मन में आस।।
आधार छंद - विधाता (मापनी युक्त मात्रिक)
मापनी - 1222. 1222. 1222. 1222
समांत - ' आया ' , पदांत - ' है ' .
महाराष्ट्र के घटनाक्रम पर
**
निलामी हो रही उनकी,उन्हें बस में बिठाया है,
लगी है हाजिरी उनकी ,उन्हें कैदी बनाया है ।

तमाशा वो दिखाते हैं कपट का खेल जारी है ,
खिलाड़ी वो पुराने हैं,समझ कोई न पाया है ।

कहानी ये पुरानी है ,लिखी हर बार जाती है,
चुनावों का सबब देखो,नतीजा खुद सुनाया है ।

न जाने कल कहाँ होगी ,किसी को ज्ञात कैसे हो,
सियासी चाल में देखो ,सभी को अब फँसाया है ।

मुकद्दर में लिखा क्या है,सभी कल जान जाओगे,
कि दिल ये थाम के बैठो ,कचहरी कल  बुलाया है।

किया बदनाम तुमने जो ,छिछोरी हरकतें करके
दिखाना चाहते क्या हो  , सही अंजाम पाया है!

अनिता सुधीर

Saturday, November 23, 2019



212  212  212  212
काफिया   आ
रदीफ़      मिल गया
***
इश्क़ की राह में बेवफा मिल गया,
जिंदगी को नया मशविरा मिल गया ।

छोड़ के चल दिये यों अकेले मुझे ,
आपको साथ क्या अब नया मिल गया।

याद फिर आपकी आज आने लगी ,
जख्म फिर इक पुराना खड़ा मिल गया ।

भूल पाते नहीं आपको हम कभी ,
प्यार का ये मुझे क्यों सिला मिल गया ।

टूटते ख्वाब की ये कहानी रही ,
रात फिर आज कुछ अनकहा मिल गया।

रूबरू जो हुये हम खुदी से अभी,
चाहतों का नया सिलसिला मिल गया।

अनिता सुधीर

Friday, November 22, 2019

इसका महाराष्ट्र से कोई लेना देना नहीं है 🤑🤑मुहावरों का प्रयोग 

"कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा "
"भानुमति ने कुनबा जोड़ा ।"
सबके "हाथ पाँव फूले" हैं,
दोस्ती में "आँखे फेरे "है।
"फूटी आंख नही सुहाते "
वो अब "आँखों के तारें" है ।
कब कौन किस पर" आंखे दिखाये"
कब कौन कहाँ से "नौ दो ग्यारह हो जाये" ।
"विपत्तियों का पहाड़"  है
 "गरीबी मे आटा गीला "हो जाये ।
"बंदरबांट "चल रही
"अंधे के हाथ बटेर " लगी
पुराने "गिले शिकवे भूले "हैं
"उलूक सीधे कर" रहे 
"उधेड़बुन में पड़े"
"उल्टी गंगा बहा" रहे
जो "एक आँख भाते नहीं "
वो "एक एक ग्यारह हो रहे"
कौन किसको "ऊँगली पर नचायेगा"
कौन" एक लाठी से हाँक पायेगा"
"ढाई दिन की बादशाहत" है
"टाएँ टाएँ फिस्स मत होना "।
"दाई से पेट क्या छिपाना "
बस "पुराना इतिहास मत दोहराना" ।

अनिता सुधीर



Thursday, November 21, 2019








पेंडुलम

अपने ही घर में
अपनों के बीच
अपनी ही स्थिति
से द्वंद करते
अपने मनोभावों में
इधर उधर विचरती
#पेंडुलम की तरह
मर्यादा की रस्सी से बंधी
दीवार पर लटकी रहतीं
ये स्त्रियां ......
समाज की वर्जनाओं के
नित नए आयाम छूती
दो विपरीत ध्रुवों में
मध्यस्थता कर अपने
विचारों को दफन करती,
एक भाव की उच्चतम
स्थिति पर पहुँच
गतिशून्य विचारशून्य
हो दूसरी दिशा के
उच्चतम शिखर पर
चल पड़तीं
ये स्त्रियां.....
अपने ही घर में
अपने वजूद को सिद्ध करती
अपने होने का एहसास दिलाती
भावों से भरे मन के
बावजूद निर्वात अनुभव
करते पूरी जिंदगी
पेंडुलम की  तरह
कल्पनाओं में
इधर उधर डोलती
रहती  हैं
ये स्त्रियां......
©anita_sudhir

Tuesday, November 19, 2019

पुरुष
**
पुरुषों को बड़ी आसानी से हम दोष दे देते है
माँ बेटी बहन तुम्हारे घर में, नही कह देते है ।

क्या कहोगे,नारी ही नारी की दुश्मन बन जाए
बाग का माली ही कलियों का भक्षक बन जाए।

नारी होकर जब नारी का मर्म समझ न पायी
कर सारे कृत्य घिनौने ,क्या तुम्हें शर्म न आयी ।

सारी नारी जाति को शर्मिंदा कर के रख दिया
सीता दुर्गा के देश मे ये नंगा खेल रच दिया ।

समाज कहाँ जा रहा,क्या है परिवार के मायने
अब कौन कहाँ सुरक्षित है,यक्ष प्रश्न है सामने ।

Monday, November 18, 2019









बरगद और बोनसाई

वो बरगद का पेड़ ,वो अपना गांव,
वो  गोल चबूतरा,वो पेड़ की ठंडी छांव ।
बचपन मे सुना था बहुत पुराना है पेड़
अपने मे युग समेटे  वो बरगद का पेड़ ।
पेड़ों पर पड़ते थे झूले, लगती गांव की चौपाल वहाँ
रेडियो से मिलता था,दुनिया जहान का हाल वहाँ ।
बच्चों  की धमाचौकड़ी से वो चबूतरा आबाद था ,
काकी फूआ ने बांध कलावा वटवृक्ष को
मांगा "सावित्री "सा अमर सुहाग था ।
सीखा बरगद की जटाओं (  prop roots) से
जितना ऊपर उठते जाओ,अपनी मिट्टी से जुड़े रहो
दे संबल वटवृक्ष को ,जटायें कहती एक हो के रहो ।
छूटा  गाँव  ,छूटी बरगद  की छांव
यादोँ में है अब वो बचपन का  गाँव ।
......अब घर मे बरगद का बोनसाई
मिट्टी की कहतरी मे, सुंदरता  मनभाई ।
ताप से पत्ते झड जाए ,तो रिश्तों में ताप कहाँ
मनभावन तो है वो ,पर उसमें वो छाँव कहाँ ।
कद छोटा करे जीवन का ,लोग कहे,पर
मैं हो लेती आल्हादित देख बोनसाई को
संजो लेती यादें ,जी लेती बचपन को ।
 वो बरगद का पेड़, वो अपना गांव
कितने रिश्तों का साक्षी वो बरगद की छाँव ।

Sunday, November 17, 2019

नादानी
छंदमुक्त
***

नादानी में यूं जिंदगी दांव पर लगा रहे
क्यों इन हुक्मरानों के झांसे में आ रहे

कहीं अनशन कहीं पत्थर कहीं गोली है
एक मोहरा बन खेलते खून की होली है।

कभी ये सोचा है हाथ तेरे क्या आयेगा
इस भरी दुनिया मे तू अकेला रह जायेगा

एक दिन गुमनाम गलियों में गुम जायेगा
तेरा कोई नामोंनिशान यहाँ ना रह पायेगा।

जो किया भूल जाओ, देर नही हुई है
सुधर जाओ अभी जीने के रास्ते कई हैं

शिक्षालयों में संस्कृति की नींव तोड़ा नहीं करते
सुबह का भूला घर लौटे,उसे भूला नहीं कहते

हौसले को उड़ान दे नया सफर शुरू करो
मेहनत लगन से अपनी नई मंजिल तय करो ।

अनिता सुधीर

Friday, November 15, 2019

दर्दनाक घटनाक्रम को  दर्शाती कुछ पंक्तियां
*acid    attack*
सुन सगाई की खबर उसकी ,सहन ना कर पाया 
हिम्मत ना थी कहने की ,एकतरफा प्यार करता था 
कुंठा से ग्रसित हुआ ,बदला लेने की सोची
अगर मेरी ना हुई वो ,तो किसी की ना होगी
टी वी सीरियल से देख एसिड अटैक उसने सीखा
काला कपड़ा  बांध कर,तेजाब चेहरे पर फेंका 

दर्द से कराहती रही वो, जलन से जलती रही 
आँखो की रोशनी जाती रही, सर्जरी चलती रही
चेहरा ऐसा भयानक हुआ,आईने में देख डरने लगी
आईने पर पर्दे डाल दिये,बैठ हालात पर रोती रही
आँसुओ से जलन होने लगी ,धन भी खत्म होता रहा
एक डर बैठ गया मन में, कोई खड़ा है आँगन मे
पहले बहन कहा था,रिश्ते का विश्वास टूटा क्षण में

एक इल्तिजा है  थोड़ा तेजाब उस पर गिराओ
मौत की सजा थोड़ी है जलन का एहसास कराओ 
ये घटना दोबारा ना हो ऐसे कड़े कदम उठाओ
पीड़िता को सम्मान से जीने का हक़ दिलवाओ ।

अनिता सुधीर 

Thursday, November 14, 2019

बाल दिवस विशेष
एक लघु नाटिका के माध्यम से
आज के संदर्भ में

*दृश्य  1 *
(बच्चे मोबाइल में व्यस्त है और दो-तीन लोग टहल रहे हैं )
रमा... क्या जमाना आ गया है ,आजकल के बच्चे जब देखो तब मोबाइल में डूबे रहते हैं ,पता नहीं कैसे पेरेंट्स  हैं  जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते ,और इतने कम उम्र में ही मोबाइल थमा देते हैं ।
अब देखो पार्क में आयें है तो कुछ खेलने  की बजाय
मोबाइल लिए बैठे हैं ।
बीना  ...सच कह रही हो   रमा तुम ,एक हम लोगों का समय था कितना  हम लोग खेला करते थे कभी खो खो तो कभी बैडमिंटन और शारीरिक व्यायाम तो खेल खेल  में ही हो जाता था। उस समय की दोस्ती भी क्या दोस्ती हुआ करती थी।

 रमा  ... तुमने तो बचपन की वह मीठी बातें याद दिला दीं  ,चलो दो चार गेम हो जाये ।
वीना ... पागल हो गयी हो क्या ,इस उम्र में अब हम लोग क्या खेलेंगे ,
 बचपन ही याद करती रहोगी या घर भी चलोगी
रमा .... अरे आओ हम भी अपना बचपन  जी लेते  हैं।
वीना  ..  सचमुच बड़ा मजा आ गया ,वाह वाह
अच्छा बहुत हो गया , चलो अब  घर चलो
 रमा ... हर  समय घर घर किये रहती हो ।
अरे चलती हूं मुझे तो कोई चिंता नहीं है
मेरी बेटियां पढ़ाई के लिए बहुत सिंसियर है ।
 मैं उनको बोल के आई हूँ , वो तो पढ़ाई में व्यस्त   होंगी और मुन्नी को बोल कर आई हूं,वो घर के सारे काम कर रही होगी ।
बीना  ...तेरी तो मौज है ,अब मुझे ही देख  !घर जाकर अभी खाना बनाना फिर बच्चों की पढ़ाई में उनके साथ बैठना ,मेरा तो सारा समय इसमें ही निकल जाता ही निकल जाता है  ।
अच्छा रमा  क्या मुन्नी को भी पढाती हो तुम ....
रमा ....मुन्नी को पढ़ा  कर क्या करूंगी ,करना तो उसे यही  काम है ,कौन सा कलेक्टर बनी जा रही महारानी  ।और फिर घर का काम क्या  मैं करूंगी?
वीना  ... अरे वो तो मैं ऐसे ही पूछ रही थी ।

*दृश्य दो *
रमा का घर
मुन्नी मुन्नी कहां मर गई तू ,देख रही है मैं बाहर से आ रही हूं तो रही हूं तो पानी तो पिला दे
आई मेमसाब  ..
तू बच्चों के कमरे में क्या कर रही है ?जब देखो वहीं रहती है ,कुछ कामधाम नहीं होता तुझे
वह पढ़ रहे हैं तो उन्हें  पढ़ने दे उन्हें क्यों डिस्टर्ब कर रही है  चल अपना काम कर ,कामचोर हो गयी है।
रमा सोचते हुए ,मेरी बेटियां मेरा  गुरूर है कितना पढ़ती है ,न मोबाइल न किसी से  दोस्ती ,ये लोग बहुत  नाम कमाएंगी ।
(थोड़ी देर बाद  रमा )
बड़ा सन्नाटा  लग रहा है देखूँ ये लड़कियां कर क्या रही है
बेटियां मां के आने की आहट सुन अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो जाती हैं और मुन्नी कपड़े तह करने लग गयी।
रमा  ....कितनी अच्छी बेटियां हैं मेरी
जब देखो तब यह पढ़ती  ही रहती हैं ।
 मुन्नी तूने अभी तक  कपड़े नहीं तह किये ?  अभी सारा काम पड़ा है ,करती क्या रहती है तू सारा दिन अभी खाना भी बनाना है तुम्हें
 (दृश्य 3)
 रमा तुम सब लोग अपने अपने काम करो
 मैं जरा पड़ोस की आंटी के यहां से होकर आती हूं.
 ठीक है मां आराम से जाओ ,और आराम... से आना
 रमा के जाने के बाद बेटियां  फिर से मोबाइल में व्यस्त हो गई और मुन्नी पढ़ाई में .
मुन्नी  कहां हर समय तू  किताबों में सर खपाती  है आओ तुम्हें मोबाइल में अच्छे-अच्छे गेम दिखाएं.. मुन्नी ...अरे नहीं दीदी
मेम साहब जब बाहर गई हैं तभी मुझे पढ़ने का मौका मिला है ।वह आ जायेंगी तो मुझे उनकी डांट भी खानी पड़ेगी और काम में जुटना होगा होगा।
 मेरी परीक्षा आ रही है तो मुझे जैसे ही अवसर मिलता है मैं अपनी  पढ़ाई कर लेती हूं ।
इस तरह से घर के कामों के साथ मेरी पढ़ाई भी चल रही है ।
पढ़ाई कर लूंगी तभी मेरे जीवन में सुधार आएगा।

बेटियां मुन्नी कीबातेँ सुन हतप्रभ हो सोच रही हैं 
मैं किस को धोखा दे रही हूं
 एक तरफ मुन्नी है जो मां के जाने के बाद पढ़ाई कर रही है और हम लोग अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं ।
माँ पापा इतनी मेहनत करते हैं और स्कूल की फीस ,कोचिंग की फीस ,सभी सुविधाएं देते हैं और  हम लोग मां  को धोखा दे रहे हैं ।
और सही अर्थ में मां को धोखा न देकर  स्वयं को ही  धोखा दे रहे हैं ।
मन ही मन मुन्नी को धन्यवाद देते  हुए
मुन्नी तुमने तो हम लोगों की आंखें खोल दी और हमें नैतिकता  और शिक्षा का महत्वपूर्ण पाठ समझा दिया । और एक बात मुन्नी हम लोग माँ से  तुमहारी
पढ़ाई की बात करेंगे
  मुन्नी के चेहरे पर खुशी और बेटियों को आत्मसंतुष्टि ...
बचपन  शिक्षा  और नैतिकता के मार्ग पर अग्रसर

स्वरचित
अनिता सुधीर

जेब
कुंडलिया

खाली हो यदि जेब तो ,बिखरे मन की आस।
धन से परि  पूरित रहे  , देती  मन विश्वास ।।
देती मन  विश्वास  , जेब की महिमा न्यारी ।
मिलता है सम्मान ,जेब हो जिसकी  भारी।।
रौनक है त्यौहार    ,जेब से मने  दिवाली।
सत्कर्मों से जेब भर , यहाँ से जाना खाली ।।

©anita_sudhir

Wednesday, November 13, 2019





बचपन
बाल दिवस विशेष

***
दादी बाबा संग नहीं
भाई बहन का चलन नहीं
नाना नानी दूर हैं
और बच्चे...
एकाकी बचपन को मजबूर हैं ।
भौतिक सुविधाओं की होड़ लगी
आगे बढ़ने  की दौड़ है
अधिकार क्षेत्र बदल रहे
कोई  कम क्यों रहे
मम्मी पापा कमाते हैं
क्रेच छोड़ने जाते हैं
शाम को थक कर आते हैं
संग समस्या लाते हैं
बच्चों  खातिर समय नहीं
मोबाइल , गेम थमाते है
बच्चों के लिये कमाते हैं
और बच्चे ...
बचपन खोते जाते हैं ।
आबोहवा अब शुद्ध नहीं
सड़कों पर भीड़ बड़ी
मैदान  खेल के लुप्त हुए
बस्ते का बोझ बढ़ता गया
कैद हो गये चारदीवारी में
न दोस्तों का संग  मिला
बच्चों का ....
बचपन खोता जाता है
बच्चा समय से पहले  ही
बड़ा होता जाता है।
याद करें
अपने बचपन के दिन
दादी के  वो लाड़ के दिन
भाई बहनों संग मस्ती के दिन
दोस्तों संग वो खेल खिलौने के दिन
क्या ऐसा बचपन अब बच्चे पाते हैं
बच्चे ....
अपना बचपन खोते जाते हैं
आओ हम बच्चों का बचपन लौटाएं
स्वयं उनके संग बच्चे बन  जायें
वो बेफिक्री के दिन लौटा दें
बच्चों का बचपन लौटा दें।
©anita_sudhir
http://nisargmagazine.com/?p=1455

Tuesday, November 12, 2019

*बेटी


**
शिक्षा पर अधिकार ,काँधे पर बस्ता डाल,
साथ चले  पग चार ,बेटी को पढ़ाइये ।

नींव सभ्य समाज की,खुशी 'दो'परिवार की,
शिक्षा का महत्व  अब  , बेटी को बताइये।

है राह नहीं आसान,स्वयं  बने पहचान,
बेटे के  समान ही ,  बेटी को भी पालिये  ।

हर क्षेत्र में अग्रणी ,सर्व सम्पन्न और गुणी,
शिक्षा से पायें मंजिलें, कम नहीं आंकिये ।

बुरी नजर न डाल ,कोख में अब न मार ,
ये  हैं सृष्टि का आधार ,बेटी को बचाइये  ।

***
©anita_sudhir

Monday, November 11, 2019


तमस

क्यों पिघल रहा विश्वास
क्यों धूमिल हो रही आस
कैसा फैला ये तमस
चहुँ और त्रास ही त्रास ।

कोने में सिसक रही कातरता से
मानवता जकड़ी गयी दानवता से
राह दुर्गम ,कंटको से है रुकावट
जन जन शिथिल हो गया थकावट से।

संघर्ष कर तू आत्मबल से
जिजीविषा को रख प्रबल
भोर की तू आस रख
सत्य मार्ग पर हो अटल ।

आंधियों मे भी जलता रहे
दीप आस की जलाए जा
मन का तमस दूर कर
उजियारा तू फैलाए जा ।

Sunday, November 10, 2019






नशा
दोहावली

वर्तमान का हाल ये ,फैशन बना शराब।
मातु पिता सँग पी रहे,देते तर्क खराब ।।

दिन भर मजदूरी करें ,पीते शाम शराब ।
पत्नी को फिर पीटते,करते जिगर खराब ।।

देते ये चेतावनी, पीना कहें ख़राब ।
ठेके पर बिकवा रही,शासन स्वयं शराब ।।

सबको  गिरफ्त में लिया ,हुये नशे में चूर ।
जीवन सस्ता हो गया ,हुये सभी से दूर ।।

लोग नशीले  हो रहे ,खाते गुटखा पान ।
नशा मुक्त संसार हो ,ऐसा हो अभियान।।
©anita_sudhir

Saturday, November 9, 2019


बाल गीत
विधान चौपाई छन्द  चार चरण 16 मात्रा
***
देखो सुंदर चिड़िया आई,मुख में दाना भर के लाईं
अपने बच्चों को दाना दे,मन ही मन चिड़िया हरषाई

चुन्नू  मुन्नू गप्पू आओ ,इनके सँग मस्ती कर जाओ,
कितनी चिड़िया डाली पर है ,तुम ये गिन गिन कर बतलाओ।
तीन चार पाँच सात छह दस ,उतरी सब मेरी अँगनायी
चींचीं कर बोली ये चिड़ियां,हमको ये फुलवारी भायी
देखो सुंदर..

कितने कितने दिन में सुनते ,इनकी मीठी मीठी वाणी
कहाँ चली जाती हो तुम सब, कहाँ मिले है दाना पानी ,
पेड़ों पर मेरा घर सुंदर,माँ पंखों का आँचल छायी
माँ जब जब हमको दुलराती,खुशियों से जीवन भर पायी

देखो सुंदर..
खेल 'उड़ी चिड़िया' का खेला,बचपन की यादों का रैला
रहे उड़ाते दिन ये आया,गुम होता चिड़ियों का मेला
लुप्त हुई प्रजाति अब इनकी,क्या ये जीवन की सच्चाई ,
पर्यावरण बचा ले जो हम,ये सब छत पर फिर  मडँराई।
देखो सुंदर..

स्वरचित
अनिता सुधीर
एक गीत लिखते है

***
भावों के मोती चुन चुन कर,सृजन नया अब करते हैं,
नेह निमंत्रण मिला आपका,चलो एक गीत लिखते हैं

प्रभु चरणों में नमन लिखूँ,मातु पिता वंदन लिखूँ, त्याग,समर्पण प्रेम लिखूँ,या वो नया आवास लिखूँ...
दरवाजे पर टिकी निगाहें, वो वृद्धाश्रम में रहते हैं,
भीगे नयनों को स्याही बना ,चलो एक गीत लिखते हैं
नेह निमंत्रण ....

पिंजरे में कैद पंछी लिखूँ,या बेड़ियों में जकड़ी लिखूँ,
नभ की स्वच्छंद उड़ान लिखूँ, नारी का उत्थान लिखूँ...
उस वेदना को कैसे लिखूँ,जो अपने ही छला करते हैं,
मर्यादा की मसि बनाकर ,चलो एक गीत लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....

चराचर जगत का शोर लिखूँ,या अंतस का मैं मौन लिखूँ,
लिप्त में निर्लिप्त भाव लिखूँ ,मोह में नया वैराग्य लिखूँ,
स्वयं से स्वयं की पहचान का,मार्ग नया चुनते हैं,
अंतःकरण की शुद्धि से ,चलो एक गीत लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....

रवि किरणों का प्रातः लिखूँ,धुंध से धूमिल गगन लिखूँ,
अविरल अविरामी लिखूँ,या प्रदूषित नदिया नाला लिखूँ,
शुद्ध हवा को तरसे शब्द ,कैसा फल हम भुगतते हैं,
अपनी विनाश लीला का ,चलो एक गीत लिखते हैं।
नेह निमंत्रण ....


Thursday, November 7, 2019




चुभता प्रश्न


आध्यात्मिक गुरु के
प्रवचन का माहौल था ।
मोक्ष ,मुक्ति जैसे गूढ़ विषयों
पर  चर्चाओं का दौर था ।
जीवन में आनंद के
कुछ गुर सिखा रहे थे ।
संभ्रांत लोगो का जमावड़ा
माहौल को गंभीर बना रहा था ।
तयशुदा  लोग तयशुदा प्रश्न
पूछ रहे थे ।
उनके गूढ़ जवाब ,कुछ समझ में,
तो कुछ समझ से परे थे ।
हमने भी
....…एक सरल सा प्रश्न  उनसे पूछ लिया
अगर आपका पाठ और विधि
इतनी महान
तो इस पर इतना भारी शुल्क क्यों?
क्या इसी से देश विदेश मे
आश्रम बनवाते है !
या पाँच सितारा होटल की
सुविधा अपनी कुटिया में पाते हैं!
ये ज्ञान आम जनता तक
 मुफ्त  में   बांटिए
समाज के हर तबके तक पहुँचा
दूषित मन को शुद्ध  करिये।
...ऐसे प्रश्न की उम्मीद
शायद किसी को नहीं होगी
माहौल मे सन्नाटा छा गया
सब मुझको ताक रहे थे,
वो नजरों से वार कर रहे थे.
प्रश्न  बहुत ही सीधा था,
पर जवाब उनके लिए टेढ़ा था...
 चुभता प्रश्न था  और ।
तीर निशाने पर लगा था ।

Tuesday, November 5, 2019

*चार सौ बीस

संख्याओं का मुहावरों में क्या खूब प्रयोग है ,
कहीं चार सौ बीसी ,कहीं नौ दो ग्यारह योग है।
चार सौ बीसी का चलता क्या फर्जीवाड़ा है ,
अधिकार छीन दूसरों का,करें अपना वारा न्यारा है।
कहां से शुरू कर , चारसौ बीसी गिनाए
जिधर नजर  दौड़ाई सब  लिप्त नजर आए।
शिक्षा के लिए पोशाक,पुस्तकें सरकार भिजवाए ,
छात्रवृत्ति ,मिड डे मील की सुविधा का लाभ दिलाएं
 फर्जी वाड़ा का खेल  बड़ा निराला होता है
खाली पाठशाला,छात्र का पंजीकरण वहाँ होता है ।
राशन की दुकानों में चलता फर्जीवाड़ा है
फर्जी संस्थाओं के नाम पर करोड़ों का हवाला है।
चालक लाइसेंस बनाने में दलालों का हाथ है
चार सौ बीसी से कचहरी में सबूतों से छेड़छाड़ है ।
कहीं चार सौ बीसी  से सरकारें बनती गिरती हैं
कहीं नेताओं के कारनामों की फेहरिस्त लंबी होती है।
 नई-नई योजनाओं के नाम पर चार सौ बीसी है
भ्रम फैलाते विज्ञापन करते  मुख अंदर बत्तीसी है ।
चार सौ बीसी का इतिहास बड़ा पुराना है
कहीं इतराना  ,कहीं गवांना तो कहीं नजराना है ।
भोली भाली शक्लों पर कुछ लिखा नहीं होता,
जितना बड़ा नाम उतना ही बड़ा खेल होता है।
कोई माल्या ,नीरव बन विदेश  घूमते हैं
आशाराम ,रामरहीम जेलों  में सड़ते हैं।
कब तक  ये चार सौ बीसी चलती रहेगी
दिल दुखा दूसरों का तिजोरी भरती रहेगी ।
अन्तर्मन की आवाज कब सुन पाओगे
 सतकर्मों के अलावा साथ क्या ले जाओगे
बाज आओ चार सौ बीसी से
वक़्त की चाल बड़ी  बेरहम होती है
 नीयत सुधार कर जीवन जीना होगा खुशी से ।
©anita_sudhir
**गीत**

तुम्हें भाव अपने दिखाना न आया,
कभी प्यार के गीत गाना न आया।

तुम्हें एक पाती कभी जो लिखी थी,
मुलाकात की बात उसमें कही थी,
कि दस्तूर मुझको निभाना न आया
तुम्हीं से कहूँ क्या बताना न आया ।
कभी प्यार के गीत ...

छिपाते रहे राज हम आपसे जो,
शरारत निगाहें कि करने लगी थीं
नजर से हमें क्यों छुपाना न आया।
कभी पास अपने बुलाना न आया
कभी प्यार के गीत ...

नजर जो उठी आपकी इस तरह से ।
जमाने की' बातें सताने  लगी  थीं 
 बसायें जहां हम धवल चाँदनी में ,
सपन क्यों हमें ये सजाना न आया ।।
कभी प्यार के गीत ...

कहानी हमारी अधूरी रही  थी,
तड़प आज भी वो सताती रही है,
उलझती रही डोर मन की सदा जो ,
अहम को हमें क्यों मिटाना न आया ।
कभी प्यार के गीत ...
©anita_sudhir

Sunday, November 3, 2019

यात्रा  वृतांत
गंगोत्री से गंगासागर

अपनी यात्रा का वृतांत सुनाती हूँ
अविरल,अविराम चलती जाती हूँ,
कहीं जन्मती ,कहीं जा  समाती
मोक्षदायिनी गंगा कहलाती हूँ ।

पूर्वज भागीरथ के, भस्म शाप से
तपस्या से लाये,मुक्त कराने पाप से ,
शंकर की जटाओं से उतरी धरा पर
गंगोत्री हिमनद से चली मैदानों पर ।

भागीरथी बन गोमुख से निकली ,
कई पथगामी यात्रा में मिलते रहे,
ऊंचे नीचे पथरीले रास्तों में मिलन
मेरे सफर को सुहाना करते रहे।

धौली,अलकनंदा मिलीं विष्णुप्रयाग में
नंदाकिनी,अलकनन्दा से नंदप्रयाग में
चलते जा मिली पिंडर से कर्णप्रयाग में
मन्दाकिनी देख रही रास्ता रुद्रप्रयाग में।

 ऋषिकेश के पहले देवप्रयाग में
अलकनंदा भागीरथी का संगम हुआ ,
पवित्र पावनी बनी पंचप्रयाग में
ये मनोरम दृश्य बड़ा विहंगम हुआ ।

गढ़मुक्तेश्वर ,कानपुर हो पहुंची प्रयाग
यमुना सरस्वती से मिल जगे मेरे भाग ।
वक्र रूप लिये जा पहुंची काशी
मिर्जापुर पटना से हुई पाकुर वासी।

सोन ,गंडक ,घाघरा कोसी सहगामिनी रहीं
भागलपुर से दक्षिणीमुख पथगामिनी रही ,
मुर्शिदाबाद में बंटे,भागीरथी और पद्मा
देश बांगला अविरल बह चली   पद्मा ।

हुगली तक मैं भागीरथी रही
मुहाने तक हुगली नदी कहलाई।
सुंदरबन डेल्टा,बंगाल की खाड़ी में समाई
कपिल मुनि के दर्शन करती
हिंदुओ का पवित्र तीर्थ गंगासागर कहलाई।

पूरा हुआ यात्रा वृत्तांत,एक बात समझ न आई,
अपने पाप धोते रहे,मुझे मैला करते रहे ,
करोड़ों रुपयों खर्च कर भी ,सफाई अभी न हो पाई
जीवनदायिनी गंगा माँ हूँ ,सबका जीवन हरषाई ।
©anita_sudhir



आज के ज्वलंत विषय और समस्या पर ..

 दोहा छन्द  गीतिका
विषय    प्रदूषण
****
बीत गया इस वर्ष का,दीपों का त्यौहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा ,जन मानस बीमार ।।

दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।

बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।

कचरे के पहाड़ खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम ,सरकारें लाचार ।।

विद्यालय बँद हो गये  ,लगा आपातकाल ।
दूषित वातावरण में ,      देश के कर्णधार ।।

व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।

Saturday, November 2, 2019

हमारे त्यौहार और रीति रिवाज में एक सार्थक संदेश है ।आवश्यकता है इसके मूल भाव को समझने की ,ना कि अंधविश्वास में पड़ने की।
छठ का यही सार है


जीवनदायिनी नदी को पूजने का संदेश
धर्म ही नहीं ,जड़ों से जुड़ने का संदेश
उगते और डूबते सूरज को अर्घ्य दे
सांस्कृतिक विरासत,समानता का संदेश
देते है ,रीति रिवाज और त्यौहार विशेष

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...