Monday, July 31, 2023

उधम सिंह

वीर सपूत उधम सिंह की पुण्यतिथि पर शत शत नमन

संयोग से आज मैं अमृतसर जलियांवाला बाग  में ही हूँ और उस इतिहास से व्यथित हूँ
 
उधम सिंह
(26 दिसंबर 1899 - 31 जुलाई 1940)

क्रांति के वीरों में,
थे उधम पंजाबी शेर। 
कर्ज था माटी का,
फिर किए डायर को ढेर।।

राष्ट्रप्रेम की ज्वाला लेकर,इंकलाब का गाते गान। 
हर बच्चा जब उधम सिंह हो,होगा भारत देश महान।।

बेबस चीखें बैसाखी की,जलियांवाला का था घाव।
लहु के आँसू बहते देखें,उधमसिंह पर पड़ा प्रभाव।।

सात समुंदर पार चले थे,लेने माटी का प्रतिशोध।
ओ'डायर को मार गिराया,जिसने मारे कई अबोध।।

बीस बरस का बदला लेते,जो जलती सीने में आग।
अमर हुआ यह वीर सिपाही,देशभक्ति का गाकर राग।। 

गाँव सुनाम हुआ बड़भागी,उधम सिंह को करे प्रणाम।
मिले मृत्यु से हँसते-हँसते,वीरों को देकर पैगाम।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, July 28, 2023

मुक्तक



**


अब हृदय की इस कलुषता को मिटाने के लिए।

प्रीति का नव गीत रच दो आज गाने के लिए।।

दौड़ने में वक़्त गुजरा,चाह अब विश्राम की 

दो घड़ी का साथ हो सुख चैन पाने के लिए।।



अनिता सुधीर आख्या


Thursday, July 27, 2023

मातु शक्ति

आधार छंद माधव मालती
मात्रा- 28,(मापनी युक्त मात्रिक)
मापनी-गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा
समांत- आर, पदांत- हो तुम

प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी मातु शक्ति को नमन

गीतिका-

पायलों की रुनझुनों में,काल की टंकार हो तुम।
नीतियों की सत्यता में,चंद्र का आधार हो तुम।।

खो रहा अस्तित्व था जब, लुप्त होती भावना में,
आस का सूरज जगाए,भोर का उजियार हो तुम।।

जब छिपी सी धूप होती,तब लड़ी तुम बादलों से
लक्ष्य की इस पटकथा में,भाल का शृंगार हो तुम।।

साधनों की रिक्तता में,हौसले के साज रखती
खेल टूटी डंडियों में,प्रीत का अँकवार हो तुम।

रच रहा इतिहास नूतन,स्वप्न अंतस में सँजोये
कोटि जन के भाव कहते,देश का आभार हो तुम।।

अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ

Wednesday, July 26, 2023

विजय दिवस

 

दोहे

विजय दिवस की शुभकामनाएं


वीर सपूतों को करें,शत-शत बार प्रणाम ।

प्राणों के उत्सर्ग से, किया देश का नाम ।।


अद्भुत गाथा लिख गये ,ऊँचे पर्वत द्रास ।

कठिनाई से कब डरे, ले ली अंतिम साँस।।


जिनके वीर सपूत ये,धन्य मातु अरु तात।

नाम अमर इतिहास में,जब अरि को दी मात।।


ऋणी शहीदों के सभी, रक्षा का लें भार।

व्यर्थ नहीं बलिदान हो, लेते शपथ हजार ।।


वीरों के बलिदान से, नतमस्तक हैं आज।

उनके ही सम्मान में ,करें नया आगाज।।


अनिता सुधीर आख्या



Monday, July 24, 2023

जल जीवन


 चित्र गूगल से


जल प्रबंधन


प्यासी मौतें डेरा डाले

पीड़ा नीर प्रबंधन की


सूरज छत पर चढ़ कर नाचे

जनजीवन कुढ़-कुढ़ मरता

ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे

किस की करनी को भरता

 ताल-नदी का वक्ष सूखता

आशा पय संवर्धन की।।


कानाफूसी करती सड़कें 

चौराहे का नल सूखा

चूल्हा देखे खाली बर्तन 

कच्चा चावल है भूखा

माँग रही है विधिवत रोटी

भूख बिलखती निर्धन की।।


बूँद टपकती नित ही तरसे

कैसे जीवन भर जाऊँ

नारे भाषण बाजी से अब

कैसे मन को बहलाऊँ

बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन 

जन सोचे अवरोधन की।।


अनिता सुधीर 


Sunday, July 23, 2023

एकाकीपन


 नवगीत


एकाकीपन


घर पीछे बड़बेर

सुना बेरों से बतियाती।।


अलसायी सी रात

व्यथित हो चौखट पर बैठी

पोपल मुख निस्तेज

करे यादों में घुसपैठी

काँप उठी फिर श्वास

तभी बंधन को बहलाती।।



पतझड़ का आतिथ्य

कराता शूलों को पीड़ा 

जीवन त्यागे राग

उदासे सुर भूले क्रीड़ा

ओसारे की खाट

व्यर्थ में ही शोर मचाती।।


दीवारों के हास्य

नयन क्रंदन के घेरे में

बौना हो अस्तित्व

फँसा जीवन के फेरे में

एकाकी की पीर

सदा भावों को सहलाती।।


अनिता सुधीर आख्या 

लखनऊ


Saturday, July 22, 2023

दहेज निषेध



दहेज कानून -अनुचित लाभ


काल चले जब वक्र चाल में

बिना बिके दूल्हा डरता


सात वर्ष ने दाँव चला अब

घर की हँड़िया कहाँ बिके

धन की थैली प्रश्न पूछती

छल प्रपंच में कौन टिके

अदालतों से वधू पक्ष फिर

खेत दूसरों के चरता।।


चिंता लाड़ जताती सबसे

नाच रही घर के अँगना

सास ननद अब सहमी सोचें

बचा रहे चूड़ी कँगना

पुरुष घरों के छुपे खड़े हैं

उदर व्यंग्य से नित भरता।।


कोर्ट-कचहरी के नियमों को

घूँघट से दहेज पढ़ता

अपने दोष छिपाकर सारे

वर की पगड़ी पर मढ़ता

तारीखों में सबको फाँसे

तहस-नहस जीवन करता।।



अनिता सुधीर आख्या



Friday, July 21, 2023

प्रेम

गीत

प्रेम-मोह

***
प्रेम मोह में भेद कर,हे मानव विद्वान।
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्त्व को जान।।

त्याग समर्पण प्रेम में,भाव रखे निस्वार्थ।
स्वार्थ प्रेम में मोह है,समझें यही यथार्थ।।
पुत्र मोह धृतराष्ट्र सम,होता गरल समान
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।

प्रेम मोह को साथ रख,करें उचित व्यवहार।
सीमा में रख मोह को ,यही प्रेम आधार।।
हरिश्चंद्र के प्रेम का,दिव्य रूप पहचान।
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।

शत्रु मनुज के पाँच ये,काम क्रोध अरु लोभ।
उलझे माया मोह जो,मन में रहे विक्षोभ।।
उचित समन्वय में रहे,जीवन का उत्थान
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।

अनिता सुधीर आख्या


Thursday, July 20, 2023

महंगाई


 नवगीत

*महँगाई*



देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती


सपने महँगे होते 

जब घर में आटा गीला

कैसे चने भुनाएँ

जब चूल्हा जलता सीला

भार झोपड़ी सहकर

फिर गड्ढों में जा धँसती।

देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती।।


थैले भर रुपयों  में

मुट्ठी भर सब्जी आती

लाल टमाटर हुलसे

जब थाली सूखी खाती

पेट पीठ अब चिपके

दाने को भूख तरसती।

देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती।।


नया कलेवर पहने

नित छज्जे चढ़ती जाती

ताक धिना-धिन करके

नए-नए नृत्य दिखाती

बढ़ा जेब पर बोझा

दिल्ली निर्धन पर हँसती।

देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती।।


अनिता सुधीर आख्या




Wednesday, July 19, 2023

एकता


 चित्र गूगल से साभार

कुंडलियां

सपना कुर्सी का लिए,चलें विपक्षी चाल।

बैठक में मतभेद रख,रँगते अपनी खाल।।

रँगते अपनी खाल,लिए भारत का ठेका।

पाने मोटा माल,दिखाते फिर से एका।।

देता विगत प्रमाण,कहाँ कब कोई अपना।

खिँचती है जब टाँग,टूटता प्यारा सपना।।



अनिता सुधीर आख्या


Monday, July 17, 2023

विपदा

विपदा

नवगीत

विपदा जब द्वारे 
नहीं बिखरना

जीवन ने खेले
खेल निराले
जब जीत हार में 
पग में छाले
फिर पल ने बोला
सदा निखरना ।।

शतरंज बिछी है
घोड़ा ढैया
फिर पार लगाता
प्यादा नैया
तब कहें गोटियाँ
नहीं सिहरना।।

जीवन में दुख की
धूप सताती
सुख छत्र लिए फिर
छाया आती
विश्वास कहे अब
नहीं भटकना।।

अनिता सुधीर

Thursday, July 13, 2023

आधुनिकता

नवगीत

आधुनिकता

फुनगी पर जो
बैठे नंद।
नव पीढ़ी के
गाते छंद।।

व्यथा नींव की
सहती मोच
दीवारों पर
चिपकी सोच
अक्ल हुई अब
डिब्बा बंद।।

ऊँचे तेवर 
थोथे लोग
झूम रहे तन
मदिरा भोग
उलझे धागे
जीवन फंद।।

चढ़ा मुलम्मा
छोड़े रंग
बेढंगी ने 
जीती जंग
आजादी की
मचती द्वंद्व।।

मर्यादा की
बहकी चाल
लज्जा कहती
अपना हाल
आभूषण अब 
पहनें चंद।।

अनिता सुधीर आख्या

Saturday, July 8, 2023

बरसात

उल्लाला छन्द आधारित गीतिका
समान्त   'आत'
पदांत      'में'
**

हँसे खेत खलिहान सब,इस मौसम बरसात में।
पाकर प्रेम फुहार को,भीगे भाव प्रपात में।।

चूल्हा सीला देखता,कब उसमें भी आग हो
जब निर्धन की झोपड़ी,टप-टप टपके रात में।।

बसी गृहस्थी कोसती,ऋतु भर की अति वृष्टि को
मनुज कमाई डूबती, मौसम के आघात में।।

सुन ध्वनि दादुर मोर की,धँसी सड़क यह सोचती।
दुर्घटना कब तक बचे, सुख दुख के आयात में।।

नित पानी में तैरता,दावा क्षेत्र विकास का
बंद पड़ी हैं नालियाँ, सरकारी उत्पात में।।

वृक्षारोपण अब करें, रोकें नद्य जमाव को।
पूरी हो परियोजना, देरी क्यों हो बात में।।

क्लांत नीतियाँ हो व्यथित,समाधान को ढूँढ़तीं
पावस कब लेकर चले, जीवन सुखद प्रभात में।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, July 7, 2023

याचना

याचना

याचना कब अकेले 
जीवित रह पाती है 
डर ,आशंका, लोभ
कामना के हिंडोले 
पर झूलती नजर आती है
गर्भ से ही सीख कर
मनुज आता है ..याचना
जब संतति कामना हेतु 
माँ करती है याचना ..
परिणाम के लिये 
करते सभी याचना ,
मन की दुर्बलता में 
अनहोनी की आशंका में
अधिक पाने के लोभ में 
मनुज करता याचना ..
याचना प्रभु चरणों में 
विश्वास और संबल बनती ..
मनुज की मनुज से 
स्वार्थ वश याचना 
भीख ही कहलाती 
और दुर्बल बना जाती ।
क्या श्रेष्ठ को करनी पड़ी है याचना ....
यदि करनी ही है याचना तो 
क्षमा याचना सीख लें

अनिता सुधीर

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...