Friday, April 30, 2021

अमृत

अमृत


मौतें तांडव कर रहीं,मिलता नहीं इलाज।
अमृत कलश की सिद्धियां,मिल जाएं फिर आज।।

स्वयं मौत का डर नहीं,पी लें अमृत आप।
रहे अमरता आपकी, रहे अमिट सी छाप।।

मुरलीधर की बाँसुरी,छेड़े मीठी तान।
प्रीत राग सुनकर हुआ,शुद्ध अमृत का पान।।

मंथन जीवन भर किया ,लगा नहीं कुछ हाथ ।
पान अमृत का तब हुआ,सद्गुरु जब हैं साथ ।।

जीवन अद्भुत रंग में,करें आप स्वीकार।
अमृत मिले या विष मिले, मिले नियति अनुसार।।

अमृत छोड़ जो विष पिये,जग में वो आराध्य।
सुख वैभव को त्यागते, लिए सदा वैराग्य।।



अनिता सुधीर आख्या






















Sunday, April 25, 2021

गीतिका



रखें उत्तम गुणों को जो,रहें सबके विचारों में।
मनुजता श्रेष्ठतम उनकी,चमकते वो हज़ारों में।

सभी लिखते किताबें अब,बचे पाठक नहीं कोई।
पढ़ेगा कौन फिर इनको,पड़ी होंगी किनारों में।।

हवा की बढ़ रही हलचल,समय आया प्रलयकारी
नहीं जो वक़्त पर चेते, उन्हें गिन लो गँवारों में।।

लगी है भूख दौलत की,हवा को बेचते अब जो
सबक तब धूर्त लेंगे जब, लगेंगे वो कतारों में ।।

अटल जो सत्य था जग का,भयावह इस तरह होगा
गहनता से इसे सोचें, मनुज मन क्यों विकारों में।।

ठहरता जा रहा जीवन,सवेरा अब नया निकले
दुबारा हो वही रंगत,महक हो फिर बहारों में।।


अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, April 20, 2021

त्राहिमाम

नवगीत

गलबहियां जो कर रहे
करते वही विरोध

दूजे सर पर ठीकरा
फोड़ रहें हैं लोग
सिसक रहा कर्तव्य भी
खाकर छप्पन भोग
देख विवश है फिर जगत
बुद्धि धरे कब बोध।।

खेल खिलाड़ी खेलते 
मतपत्रों की भीड़
पाप बढ़ा कर कुंभ भी
छीने दूजे नीड़
औषधि अब मजबूर है
ढूँढ़ रहीं वो शोध।।

तांडव करती मौत जब
रुदन हुआ अब मौन 
बिलख रहे परिवार फिर
काँधा देगा कौन
पुष्प हृदय चीत्कारता
शूल बना ये क्रोध।।

अनिता सुधीर आख्या
















Tuesday, April 13, 2021

संवत 2078

***
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,है हिन्दू नववर्ष।
नव संवत प्रारंभ है ,हो जीवन में हर्ष ।।
संवत 'राक्षस' वर्ष में ,'मंगल' हैं भूपाल,
मंगल ही मंत्री बने, करें जगत उत्कर्ष ।।
***
गुड़ी ,उगाड़ी पर्व अरु,भगवन झूले लाल।
नौ दिन का उत्सव रहे ,नव संवत के साल।।
रचे विधाता सृष्टि ये ,प्रथम विष्णु अवतार ,
अठहत्तर नव वर्ष में ,उन्नत हो अब काल।।
***
नौरातों  में प्रार्थना ,माँ आओ  उर धाम ।
करे कलश की स्थापना,पूजें नवमी राम ।।
कष्टहारिणी मातु का ,वंदन बारम्बार ,
कृपा करो वरदायिनी,पूरे  मङ्गल काम ।।
***
धर्म ,कर्म उपवास से ,बढ़ता मन विश्वास।
अन्तर्मन की  शुद्धता ,जीवन में उल्लास।।
पूजें अब गणगौर को ,मांगे अमर सुहाग,
छोड़ जगत की वेदना,रखिये मन में आस।।
**
कली ,पुष्प अरु मंजरी,से सुरभित संसार ।
कोयल कूके बाग में ,बहती मुग्ध बयार ।।
पके अन्न हैं खेत में ,छाये नव  उत्साह ,
मधुर रागिनी छेड़ के,धरा करे श्रृंगार ।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, April 11, 2021

गीतिका

तपती धरती सम जीवन में,आस लगी जलधार की।
अंतर्मन को शीतल करने,वर्षा हो अब प्यार की।।

पंचतत्त्व से बना शरीरा,काम क्रोध में लिप्त है।
मार्ग प्रदर्शक पथ दिखला दो,प्रभु से एकाकार की।।

अपनी संस्कृति मानव भूला,भूल गया संकल्प को।
पालन हो अब सदाचार का,बातें हों संस्कार की।।

श्रेस्ठ जनम मानव का मिलता,बुद्धि सदा सत्मार्ग हो।
पांच इंद्रियों को जो साधे, नींव पड़े व्यवहार की।।

ज्ञानी जन अभिमान करें जब,बढ़ा रहें संताप वो
छोड़ अहम को लक्ष्य रखें ये,सकल जगत उद्धार की।

अनिता सुधीर आख्या





Thursday, April 8, 2021

उत्तर प्रदेश की नदियाँ


उल्लाला छन्द 
*नदी*

भूतल पर जलधार का,स्त्रोत झील हिमनद रहे।
सरिता तटिनी शैलजा,नदी नद्य इसको कहे।।

नदियाँ जीवन दायिनी,जल जीवन आधार है।
मातु सरिस सब पूजते,ये संस्कृति का सार है।।

कहीं जन्म ले बह चली,नीर जलधि में भर रही।
विकसित होती सभ्यता,लालन पालन कर रही।।

रूप सदानीरा रहे,या बरसाती रूप हो।
अविरल अविरामी चलें,भरा धरा का कूप हो।।

*उत्तर प्रदेश की नदी*

धार्मिक महत्व को रखें,उत्तर प्रदेश की नदी।
ग्रंथों में गाथा लिखे ,बीत गयी कितनी सदी।।

गंगा यमुना गोमती,नदी प्रमुख है शारदा ।
चम्बल वरुणा घाघरा,सभी मिटाती आपदा।।

*गंगा*
प्रमुख नदी है देश की,गोमुख उद्गम जानिए।
पंच प्रयागों से बनीं,पावन गंगा मानिए।।

आकर फिर ऋषिकेश में,चलतीं हरि के द्वार अब।
गढ़मुक्तेश्वर कानपुर,चलीं इलाहाबाद तब।।

यमुना से संगम किये,स्वागत काशी घाट में।
मिले मोक्ष का द्वार फिर,भव बंधन की काट में।।

खाड़ी है बंगाल की,सुंदरवन डेल्टा रहा।
कपिल संत का धाम है,तीर्थ गंग सागर कहा।।

देवनदी शुभ गंग को,रखें स्वच्छ हम आप सब।
औषधि गुण भंडार से,करना है उपचार अब।।


*यमुना*

नदी सहायक गंग की,व्रज की यमुना जानिए।
उद्गम यमुनोत्री रहा,संगम गंगा मानिए ।

सूर्य देव की नंदिनी,मृत्यु देव् यम भ्रात हैं।
कालिंदी तन मन बसीं ,व्रजवासी की मातु हैं।।

दिल्ली मथुरा आगरा,नगरों को पावन किया ।
क्षेत्र इटावा कालपी,जल जीवन इनको दिया।। 

नहीं प्रदूषित कीजिये,ये कृषि का आधार है।
विकसित जल परियोजना,औद्योगिक विस्तार है।।

वल्लभ मार्गी लिख रहे,यमुना के गुणगान अब ।
घर घर गूँजे गीत  फिर, गाथा नदी महान अब।।

*गोमती*

वशिष्ठ महर्षि की सुता, वेद पुराणों ने कहा।
पापनाशिनी गोमती,मूल तत्व आस्था रहा।।

उद्गम पीलीभीत में,कैथी में गंगा मिली।
कितने कंटक मार्ग में,अविरल अविरामी चली।।

रावण वध का पाप था,स्नान किये प्रभु राम तब।
मुक्ति मिली थी पाप से,धनुष किये थे शुद्ध जब।।

मान *धोपाप* का बड़ा ,गंग दशहरा जानिए
स्न्नान ध्यान करिये यहाँ,शुभ फलदायक मानिए।।

*रामगंगा*

नदी सहायक गंग की,नाम रामगंगा कहे।
गैरसैण तहसील में,दूधातोली से बहे।।

चली कुमायूँ क्षेत्र से,दक्षिण पश्चिम ओर अब।
खड़ोगार आकर मिली,दूनागिरि के छोर तब।।

देवगाड़ से नीर ले,जिम कार्बट उद्यान में।
जिला बिजनौर से चली,पहुँची फिर मैदान में।।

बाँध नदी पर बन गया,पनबिजली उत्पाद है।
खोह नदी संगम हुआ,जिला मुरादाबाद है।।

आकर के कन्नौज में,नदी गंग से आ मिली।
जलविद्युत परियोजना,से सिंचाई कर चली।।

*शारदा*

नदी महाकाली कहें,मैदानों में शारदा।
कालापानी स्थान से,चली मिटाने आपदा।।

मंदिर काली मातु का,लिपू लीख दर्रा रहा।
देवि नाम पर नाम रख,फिर काली गंगा कहा।।

हिन्द और नेपाल की,सीमा चिन्हित कर रही।
बाँध टनकपुर योजना,जल सिंचाई भर रही।।

नया नाम सरयू पड़ा,बहराइच में लोग अब ।
बलिया में गंगा मिली,उत्तम फल का भोग अब।।

बहराइच में नाम अब ,सरिता सरयू जानते।
बलिया में गंगा मिली,द्वार मोक्ष का मानते ।।

*सरयू*

वेदों में उल्लेख है,नदिया ये प्राचीन है।
नगर प्रभो का है बसा,सभी भक्ति में लीन हैं।।

बहराइच से नाम ले,रामप्रिया सरयू कहे ।
मोक्षदायिनी ये नदी,नगर अयोध्या में बहे।।

पतित पावनी घाघरा,इसका दूजा नाम है।
प्रभो विष्णु के नेत्र से,निकला पावन धाम है।।

पाप मिटाती ये नदी,ऐसा कहते लोग हैं।
स्नान दान जप तप करें,उत्तम जीवन भोग है।।

प्रमुख सहायक रापती,गोरखपुर तक बह चली।
संगम गंडक से हुआ ,छपरा में गंगा मिली।।

*चंबल नदी*

बारहमासी शैलजा,उद्गम जानापाव है।
चम्बल नदिया बह चली,यमुना इसका ठाव है।।

कोटा राजस्थान से,मन्दसौर रतलाम को।
भिंड मुरैना को चली,पाँच नदी के धाम को।।

जलप्रपात चूलिया बना,तीन प्रदेशों से बहे।
गाँधी सागर बाँध है,कामधेनु इसको कहे।।

चम्बल मामा शकुनि का,खेल यहाँ चौसर हुआ।
प्रथम नदी शापित रही,इसे न कोई फिर छुआ।।

नीर स्वच्छ बीहड़ नदी,जनसंख्या कम है यहाँ।
मुक्त प्रदूषण से रही,इतिहास अद्भुत वहाँ।।

*प्रदूषण*

नदी प्रदूषित मत करें,यह जीवन आधार है।
धोते हैं क्यों पाप सब,स्वच्छ नीर अधिकार है।।

माटी को  बाँधे जड़ें  ,रोके मृदा कटाव को।
स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव को ।।

बाढ़ और सूखा बने ,जीवन में अभिशाप जब।
कहे नदी की धार फिर ,जतन करो मिल आप सब।।

करें समापन लेख का,उत्तम अनुभव ये रहा।
जीवटता संदेश दे,गति को ही जीवन कहा ।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, April 4, 2021

ढूँढता मुखड़ा पुराना



लुप्त चौपालें हुईं अब
गाँव ढूँढ़े नव ठिकाना 

रात गाँवों की सुहानी
खाट से दिखते सितारे
सप्त मंडल ढूँढना था
जुगनुओं के फिर सहारे
पुस्तकें तब कैद रहतीं
आम इमली था चुराना।।

खेत की माटी लपेटे
खेलता फिर बचपना था
ब्याह गुड़िया का कराना
एक गुड्डा अनबना था
आज मुखड़ा ढूँढता है
गीत अपना ही पुराना

कल्पना झूले गगन तक
चाँद पहने जब मँझोला
ठूँठ हैं अब नीम यादें
झूलता था मन हिँडोला
प्रेम के संबंध गुमसुम
ढूँढता फिर से तराना।।

अनिता सुधीर आख्या




























संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...