*कठपुतली*
आँख में अंजन दांत में मंजन
नित कर नित कर नित कर
नाक में ऊँगली कान में लकड़ी
मत कर मत कर मत कर"..
कितनी सरलता से हँस-हँसकर
जीवन का पाठ पढ़ाती थी वो
दूसरों के हस्त संचालन से नाचती
काठ की कठपुतली थी वो...
जिज्ञासा थी बालमन में
कैसे डोर से बंधी ये नाचती होगी..
पर्दे के पीछे कमाल सूत्रधार का
जो उंगलियों से उन्हें नचाता होगा...
जिज्ञासा अब शांत हो रही
अब डोर है कितने अदृश्य हाथों में...
काठ के तो नहीं
भावनाएं है
कुछ सपने
कुछ आकांक्षाएं है..
निपुणता से संचालन करते हैं लोग
परिवार धर्म मर्यादा रिश्तों के नाम पर
कितनी बखूबी से नचाते है लोग..
वो काठ की कठपुतली थी
दूसरों के इशारे पर नाचती थी वो
और अब...
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteकठपुतली के माध्यम से सामाजिक ताने बाने को प्रतिबिंबित करती रचना
ReplyDeleteवाह
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