Wednesday, December 22, 2021

कहमुक़री के बिम्ब

सव
 
स्वरचित कहमुक़री

क्लांत चित्त को शांत करे जो
पल में धमके नहीं डरे वो
मिली प्रीति की फिर से थपकी
का सखि साजन! ना सखि झपकी।।

अनिता सुधीर


चित्र गूगल से साभार

नवगीत


कहमुक़री के बिम्ब अब

ढूँढ़ रहे नित स्वाँग


दीवारों ने कान दे

सुनी सखी की बात

कर्ण सुने मृदुहास जो

जागे सारी रात

भरम सखी को घेरता

पी कर आयी भाँग।।


छेड़-छाड़ कर चूनरें

बाँधें प्रीतम डोर

एक पहेली चल पड़ी

आज भिगोने कोर

चार चरण में खेल कर

सखियाँ खींचें टाँग।।


यौवन इठलाता चला

लाज करे शृंगार

भेद छिपा कर प्रश्न फिर

करने चला दुलार

दो सखियों की बात में

भरता बिम्ब छलाँग।।


अनिता  सुधीर


18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. हार्दिक आभार आ0

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  3. अद्भुत सखी ।
    सटीक विश्लेषण।

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  4. अति सुंदर बिम्ब वाह

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  5. वाह!बहुत ही सुंदर।
    सराहनीय 👌

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  6. Replies
    1. धन्यवाद अनुराधा जी

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  7. अति सुंदर बिम्ब 💐💐💐🙏🏼

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  8. वाह ! बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  9. वाह। अद्भुत चित्रण

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  10. बेहतरीन बहुत ही मोहक सृजन

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  11. ऐसी अद्भुत रचनाओं की समुचित प्रशंसा करने की अर्हता मुझमें कहाँ? कहमुकरी के साथ जो नवगीत है, वह तो ऐसा है कि जिसे बारम्बार पढ़ने पर भी मन न भरे।

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    1. आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ0

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मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...